धान को रोगों से बचाने और ज्यादा उत्पादन के लिए अपनाएं ये मुफ्त का तरीका

Arvind Shukla | Aug 01, 2018, 09:23 IST
धान की अच्छी पैदावार और कीट-रोग से बचाने के लिए देश के कई इलाकों में किसान ऐसे कई तरीके अपनाते हैं। ये उपाय बिना किसी खर्च के कारगार भी साबित हो रहे हैं।
#धान
धान की फसल में पत्ती लपेटक जैसे रोग न लगें और पौधे में ज्यादा कल्ले निकलें, इसके लिए कई प्रगतिशील किसान देसी तरीका अपना रहे हैं। इसमें पहला तरीका है रोपाई के 15-20 दिनों के आसपास पानी भरे खेत में पौधों के ऊपर से एक लकड़ी घुमा देते हैं।

उत्तर प्रदेश में रामपुर के प्रगतिशील किसान राजपाल सिंह छिल्लर ने अपनी फेसबुक वॉल पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें धान के खेत में 4 लोग एक-एक लकड़ी (करीब 10-12 फीट) को घसीटते हुए चल रहे हैं। लकड़ी (पाटा या हल्की सेरावन) के नीचे आने पर पौधे मुड़ जाते हैं और उसके हटते ही वो सीधे खड़े हो जाते हैं। वीडियो के बारे में जानकारी देते हुए लिखते हैं, "धान की फसल में लकड़ी घुमाने से दो फायदे होंगे एक तो कल्ले (पौधे में ग्रोथ) ज्यादा निकलेंगे दूसरा पत्ती लपेटक कीड़ा भी मर जाएगा।"

धान की अच्छी पैदावार और कीट-रोग से बचाने के लिए देश के कई इलाकों में किसान ऐसे कई तरीके अपनाते हैं। खेती-बाड़ी की भाषा में इन देसी विधियों को स्वदेशी ज्ञान तकनीकी (इनडिजिनश नॉलेज तकनीकी आईटीके) बोलते हैं। वीडियो यहां देखिए


करीब 12 एकड़ में धान की खेती करने वाले राजपाल सिंह गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, मैं पिछले 10-12 वर्षों से इसे आजमा रहा हूं। मेरे पड़ोस के किसान धान के सीजन में 5-6 बार दवाओं का छिड़काव करते हैं, मैं सिर्फ एक बार, क्योंकि मैं ये लकड़ी घुमाने वाला काम एक फसल में दो बार जरुर करता हूं।" उनके मुताबिक धान के पौधों पर लगने वाले सुंडी और पत्ती लपेटकर जैसे कीड़े पानी में गिरते ही मर जाते हैं।

इन विधियों की उपयोगिता के बारे में बात करने पर उत्तर प्रदेश में कृषि विज्ञान केंद्र कटिया सीतापुर के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ.दया श्रीवास्तव कहते हैं, ये देसी विधि बहुत कारगर है, "अगर धान की फसल में दो बार किसान ये कर दें तो उसमें कीट लगने की आशंका बहुत कम हो जाती है, दूसरा पौधे ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं। क्योंकि जब ये पौधे बढ़वार की स्थिति में होते हैं, उस दौरान अगर इन्हें तनाव (टेंशन) दी जाए तो ये ज्यादा तेजी से बढ़ने की कोशिश करते हैं, जिससे ज्यादा पौधे होते हैं और उत्पादन अच्छा मिलता है।'

वो आगे बताते हैं, "खरीफ के दौरान नमी ज्यादा रहने पर धान में कई कीट भी लगते हैं। जैसे पत्ती लपेटक, राइज हिस्पा, पत्ती फुदका आदि, इन कीटों की कॉलोनियां पत्तियों पर बसना शुरु होती है, अगर धान रोपाई के 15-20 दिन और दोबारा 30-35 दिन का होने पर उसमें लकड़ी को फिरा दिया जाता है तो पत्तियां पानी में डूबती हैं, जिससे कीड़े मर जाते हैं। अगर खेत में पानी निकाल दिया जाए तो और फायदा होगा।"

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डॉ. दया किसानों को एक और तरीका बताते हैं कि अगर वो लकड़ी घुमाने में सक्षम नहीं हैं तो बेर की एक डाल काटकर उसे पूरे खेत में घुमा देना चाहिए, बेर के कांटों में फंसकर कीड़े पत्तियों से दूर हो जाएंगे, ये काम भी शुरूआत के दिनों में आसानी से किया जा सकता है।

जापान, चीन, कोरिया, कंबोडिया जैसे देशों में किसान धान की फसल को कीट-पतंगों और रोगों से बचाने के लिए ऐसे तरीके अपनाते हैं। जापान और कोरिया में किसान खेत में बतख पालते हैं, जो कीट पतंगों को खा जाती हैं। जापान और थाईलैंड में कई जगह किसान धान के खेत में मछलियां भी पालते हैं, जो तनों में लगने वाले कीड़ों को चट कर जाती हैं।

डॉ.दया के मुताबिक शुरुआत में जब किसी फसल में लगे कीड़ों की अवस्थाएं (अंडा-लार्वा बच्चा और कीट) बहुत कम होते हैं और ये कमजोर भी होते हैं, इन्हें तो सिर्फ पानी की फुहर भी खत्म किया जा सकता है, कई बार तेज बारिश भी ये काम कर जाती है।

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धान की फसल में अगर 6-7 दिन से ज्यादा पानी भर जाता है तो भूरा फुदका रोग लगने की आशंका बढ़ जाती है। अगर ऐसा होता है तो कीटनाशक ( जैसे क्लोरोपाइरीफास -Chlopyrriphos की एक मिली लीटर प्रति लीटर मात्रा) का छिड़काव करें।

राजपाल सिंह कहते हैं, हमारे पूर्वज किसान काफी वैज्ञानिक तरीकों से खेती करते थे, जब ये दवाएं (कीटनाशक-खरपतवारनाशक) नहीं थे तो वो ऐसे ही तरीके आजमाते थे। मेरे बाबा पाटा (जुताई के बार खेत बराबार करने वाली लकड़ी) के नीचे कीले लगवाते थे, वो धान में घुमाते थे, इससे खास खत्म होती थी और कीड़े भी मरते थे, लेकिन बाद में किसान मशीनों और दवाओं को चक्कर में पड़कर खेती की लागत बढ़ाते चले गए। ये अच्छा है कि अब कुछ किसान फिर से पुरानी विधियों को अपना रहे हैं।"

पैडीवीडर…

अगर धान की रोपाई लाइन में की गई है तो कई हाथ से चलने वाली मशीनें भी हैं। जिनसे बिना थके ज्यादा काम होता है। इन मशीनों से छोटे खरपतवार मिट्टी में मिल जाते हैं, जिससे खरपतावर तो कम होता ही है वो सड़कर खाद का भी काम करता है।

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