छोटी सी दुकान चलाते थे रामनाथ कोविंद के पिता, पढ़िए उनके बारे में ऐसी ही कुछ अनसुनी और अनकही बातें

Update: 2017-07-21 13:11 GMT
रामनाथ कोविंद के गाँव में लोग मना रहे जश्न।

नीतू सिंह/भारती सचान

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

कानपुर देहात। राष्ट्रपति पद के लिए नामित किए जाने के बाद रामनाथ कोविंद के गांव परौख में जश्न का माहौल है। भूमिहीन रामनाथ कोविंद के पिता ने एक छोटी सी किराना की दुकान से इन्हें पढ़ाया लिखाया। जब ये पांच वर्ष के थे तब इनके घर में आग लग गयी थी, इनकी माँ का देहांत आग में जलने से हो गया था, इनके सभी भाई-बहनों का पालन-पोषण इनके पिता ने किया।

कानपुर देहात जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर डेरापुर ब्लॉक से पश्चिम दिशा में परौख गांव में जन्मे रामनाथ कोविंद के बचपन के मित्र जशवंत सिंह (70 वर्ष) खुश होकर बताते हैं, "वो हमेशा बड़ा सोचता था, गाँव के एक प्राइवेट स्कूल में हमने एक से पांचवीं तक पढ़ाई की, छठवीं से आठवीं तक गांव से छह किलोमीटर पैदल खानपुर में पढ़ाई की। बहुत ही साधारण परिवार में जन्म लिया था।" वो आगे बताते हैं, "ये गांव बहुत ही पिछड़ा है पर उन्होंने इस गाँव के लिए सड़क बनवाने से लेकर स्टेट बैंक तक खुलवा दी, गांव में इंटर कालेज भी बनवाया है, जिसमे गांव के हजारों बच्चे पढ़ते हैं।"

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रामनाथ कोविंद के बचपन के साथी।

इस गांव के ग्रामीणों ने राष्ट्रपति के लिए नामित किए जाने के बाद खुशी जाहिर की। उनके परिवार के जानकी प्रसाद (85 वर्ष) ने उनके बचपन के बारे में बताया, "जब वो पांच साल के थे तब उनके घर में आग लग गयी थी, उनकी मां कुछ पैसे निकालने अंदर गयीं और वो उसी में झुलस गयीं। एक छोटी सी दुकान और जड़ी बूटियों के बैद्य इनके पिता ने इसी आमदनी से अपने पांच बेटों को पढ़ाया लिखाया।"

इनके पिता स्वर्गीय मैकूलाल शुरू से रामभक्त थे। इनके परिवार का पारंपरिक पेशा खेती था। दुकान और बैद्य से जो भी वक्त मिलता उसमे रामभजन करते थे। उनके एक संघी मित्र उद्धव सिंह (77 वर्ष) का कहना है, "हमने बचपन में उनके साथ इन्ही दिनों कच्ची अमिया खूब खायी हैं, गन्ने के रस की रास्यावर (खीर) हमने बहुत बार साथ खायी है, आज हमारे प्रदेश और हम सब के लिए ये बहुत गर्व की बात है, वो गांव के विकास के बारे में बचपन से ही सोंचते थे, पीपल के पेड़ के नीचे पांचवीं तक पढ़ाई हम दोनों ने की, आज वो इतने आगे पहुंच गये क्योंकि उन्होंने मेहनत बहुत की।"

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ग्राम प्रधान पति बलवान सिंह उनके घर की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं, "कभी यहां कच्ची झोपड़ी थी। आज से 15 साल पहले उन्होंने मिलन केंद्र बनवा दिया। खुली बैठक से लेकर शादी-विवाह तक सब इसका इस्तेमाल करते हैं,जब भी उन्हें मौका मिलता है गांव जरूर आते हैं।" वो आगे बताते हैं, "ये गांव के लिए गौरव की बात है, छह महीने पहले ही स्टेट बैंक गांव में उनके प्रयास से ही शुरू हुई। खेतों में सिंचाई के लिए गांव में चार ट्यूबेल लगवाए। उनके पिता बहुत ही ईमानदार और व्यवहारिक व्यक्ति थे बहुत ही मेहनत से उन्होंने पढ़ाया, जिसकी वजह से उनके बच्चे आज अच्छी जगह पहुंचे हैं, ये लोग इस गांव के आदर्श माने जाते है सभी को बताया जाता है कैसे ये मुसीबतों में पले बढ़े और आज देश का नाम रोशन कर रहे हैं।

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ये वो पीपल का पेड़ जहाँ रामनाथ कोविंद ने एक से पांचवीं तक पढ़ाई की थी,अब वो स्कूल बंद हो गया है 

रामनाथ कोविंद का परिवार अब गांव में नहीं रहता है, पांच भाइयों में तीन भाई ही है। वीरांगना झलकारी बाई इंटर कालेज की 15 वर्ष से देखरेख कर रहे राजकिशोर सिंह (75 वर्ष) बताते हैं, "गाँव से इंटर कालेज बहुत दूर था, जबसे ये स्कूल गांव में बना हजारों बच्चे इसी स्कूल से पढ़कर आगे बढ़े हैं, गरीब बच्चे जो फीस नहीं दे पाते उनकी फीस नहीं ली जाती। गाँव की लड़कियां पढ़ पाती है पहले दूरी की वजह से लोग स्कूल नही भेजते थे,आज नौ हजार आबादी वाला ये गांव अपनी खुशी गा-बजाकर बयां कर रहा है। वो आगे बताते है, "जिस दिन सूचना मिल जाएगी की वो राष्ट्रपति बन गए हम सब बैंड बाजा से पूरे क्षेत्र में जश्न मनाएंगे ।"

रामनाथ कोविंद के गाँव में लगी भीड़।

गाँव की कांति देवी (45 वर्ष) उनके परिवार की एक महिला है उनका कहना है, "गाँव में अगर कोई बीमार पड़ जाए ,तो 9 किलोमीटर डेरापुर नही तो 40 किलोमीटर माती जाना पड़ता है, अगर अस्पताल बन जाए तो ठीक रहे।" मिलान केंद्र की ओर इशारा करते हुए कहती हैं, "अब यही लोग जल्दी ही कुछ करवाएंगे,गांव में पीने के पानी और अस्पताल की सबसे ज्यादा दिक्कत है।"

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