बकरियों को गंभीर बीमारियों से बचाएगा टीकाकरण

Diti BajpaiDiti Bajpai   19 March 2019 9:28 AM GMT

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लखनऊ। बकरियों में कई ऐसी बीमारियां होती है जिनसे ग्रसित होकर बकरियों की मौत हो जाती है इससे पशुपालक को काफी नुकसान होता है। अगर पशुपालक समय से बकरियों का टीकाकरण कराएं तो वह आर्थिक नुकसान से बच सकता है।

केंद्रीय बकरियों अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ विनय चतुर्वेदी बताते हैं, "अगर पशुपालक अपनी बकरियों को समय से टीका लगवाएं तो 95 फीसदी बीमारियों को रोका जा सकता है और इससे उत्पादकता भी बढ़ती है।"

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पीपीआर

इस बीमारी का टीकाकरण ही एकमात्र बचाव है, जो कि प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार लगाया जाता है। यह एक विषाणु जनित बीमारी है। यह बीमारी भेड़ की अपेक्षा बकरी में जल्दी फैलती है। इससे चार से 12 महीने के बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं। इस रोग से ग्रसित होने पर पशु को तेज बुखार, दस्त (बुखार के 3-4 दिन बाद) एवं सांस लेने में तकलीफ होती हैं। पशु को भूख नहीं लगती, आँख व नाक से स्त्राव निकलता है तथा पशु उदास हो जाता है।


फड़किया रोग

इस टीके का बूस्टर डोज भी देना होता है पहला टीका तीन से चार महीने लगाने के 21 दिन बाद ऐन्ट्रोटाक्सीमिया का बूस्टर डोज देना होता है। उसके बाद हर छह महीने पर यह टीका रिपीट किया जाता है। यह बकरी और भेड़ में पाया जाने वाला मुख्य जीवाणु जनित रोग है। इस बीमारी के प्रारम्भिक लक्षण खाना-पीना छोड़ देना, चक्कर आना तथा खूनी दस्त करना हैं।

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खुरपका-मुंहपका रोग

इस रोग का टीका भी तीन से चार उम्र पर लगाया जाता है और इसको छह से 12 महीने के बाद पुन: इसका टीकाकरण किया जाता है। यह बीमारी विषाणु जनित होती है। इसलिए यह एक पशु से दूसरे पशु में बहुत तेजी से फैलता है। इस रोग से ग्रसित पशु के मुंह, जीभ, होंठ व खुरों के बीच की खाल में फफोले पड़ जाते है। भारत सरकार द्वारा इस बीमारी के साल में दो बार टीकाकरण भी किया जाता है। मुंह व जीभ के अन्दर छाले हो जाने से भेड़-बकरियां घास नहीं खा पाती व कमज़ोर हो जाती है।

गोट पॉक्स

यह टीका बकरियों में चेचक से बचाव के लिए टीका है इस टीके को भी तीन से चार महीने की उम्र में पहला टीका और हर साल के बाद इसको पुन लगाया जाएगा। गोट पॉक्स सभी उम्र की बकरियों में विषाणु द्वारा होने वाला संक्रामक रोग है और मेमनो में इसका प्रभाव काफी गंभीर होता है। इस रोग से बकरी की त्वचा में चक्कते या फफोले पड़ जाते है और श्वसन तंत्र को भी प्रभावित करते है, जिससे बकरियों की मृत्यु हो जाती है। बारिश के मौसम के यह बीमारी ज्यादा फैलती है।

     

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