बकरियों के शरीर पर लाल चक्कते हों तो इसे नज़रअंदाज न करें
यह विषाणु जनित रोग है तो इसका कोई कारगर इलाज नहीं है। इसके संक्रमण को रोकने के लिए पशुचिकित्सक की सलाह से एंटीबायोटिक दवाएं दी जा सकती है।
Diti Bajpai 14 Jun 2018 5:20 AM GMT

यह सभी उम्र की बकरियों में विषाणु द्वारा होने वाला संक्रामक रोग है, और मेमनो में इसका प्रभाव काफी गंभीर होता है। इस रोग से बकरी की त्वचा में चक्कते या फफोले पड़ जाते है और श्वसन तंत्र को भी प्रभावित करते है, जिससे बकरियों की मृत्यु हो जाती है। बारिश के मौसम के यह बीमारी ज्यादा फैलती है।
इसके लक्षण
- अचानक से तेज़ बुखार का आना
- आँख और नाक से तरल पदार्थ का निकलना
- मुँह से लार का निकलना
- भूख न लगाने के कारण खाना पीना छोड़ देना
- शरीर के बाल सहित भागों में जैसे, आँखों के चारो ओर, जांघ के भीतरी भाग की तरफ, पेट और पूछ में नीचे लाल रंग के फफोले पड़ना जो बाद में चक्कते के रूप ले लेते है।
- गर्भवती बकरियों का गर्भपात होना
- बकरी को सांस लेने में तकलीफ होना।
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बचाव
यह विषाणु जनित रोग है तो इसका कोई कारगर इलाज नहीं है। इसके संक्रमण को रोकने के लिए पशुचिकित्सक की सलाह से एंटीबायोटिक दवाएं दी जा सकती है। त्वचा में पड़े फफोलों और चक्कतों के लिए लाल दवा को साफ़ पानी में मिश्रण बना कर धोया जा सकता है। बकरी को खाने के लिए पौष्टिक हरा चारा देना चाहिए।
रोकथाम
- तीन से पांच महीने की उम्र की सभी बकरियों को पहला टीका और तीसरे सप्ताह के बाद दूसरा टीका लगाना चाहिए ।
- इस रोग का टीका प्रतिवर्ष (दिसम्बर-जनवरी) में लगाना चाहिए।
- पशुओं को खुले और हवादार स्थान पर रखना चाहिए।
- फिनायल के घोल से बकरी के बाड़े में साफ़ सफाई करना चाहिए।
- स्वस्थ पशु और रोगी पशु की देखभाल अलग-अलग व्यक्ति के द्वारा की जानी चाहिए।
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