मक्के की कम पैदावार से चिकन, अंडे की बढ़ सकती हैँ कीमतें

Diti BajpaiDiti Bajpai   14 Dec 2018 9:06 AM GMT

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मक्के की कम पैदावार से चिकन, अंडे की बढ़ सकती हैँ कीमतें

लखनऊ। मक्के की कम पैदावार से पिछले एक महीने में मुर्गियों के दाने के मूल्यों में 50 प्रतिशत तक इजाफा होने और चूजों के दाम दोगुने होने से मुर्गी पालकों की मुश्किलें बढ़ रही है। ऐसे में मुर्गी पालकों के लिए यह व्यवसाय घाटे का सौदा बनता जा रहा है।

उत्तर प्रदेश पोल्ट्री फामर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अली अकबर बताते हैं, "इस बार मक्के की पैदावार कम होने से पोल्ट्री फीड काफी महंगा हुआ है। ऐसे में मक्का किसान भी परेशान है और पोल्ट्री फार्मर भी।''

देश में कुल मक्का का लगभग 47 फीसदी इस्तेमाल पॉल्ट्री फीड बनाने में ही होता है। पॉल्ट्री फीड इंडस्ट्री के मुताबिक, पोल्ट्री फीड में प्रयोग किए जाने वाले रॉ मटेरियल (मक्का और सोयाबीन) पहले से बहुत महंगे मिल रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा असर मुर्गी पालकों पर पड़ रहा है। उत्पादन लागत में बढ़ोतरी के चलते मुर्गी पालकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।

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मुर्गी पालन व्यवसाय में जितना खर्चा आता है, उसका 70 से 75 फीसदी खर्चा आहार प्रबंधन पर जाता है। गोरखपुर जिले के झंगहा गाँव में रहने वाले दिवेंद्र निशाद पिछले तीन वर्षों से मुर्गी पालन कर रहे हैं।

दिवेंद्र बताते हैं, ''एक वर्ष पहले मुर्गियों के दाने की 50 किलो की एक बोरी 1900 रुपए में मिल जाती थी, वहीं इस बार 2115 रुपए में मिली है। हर साल कुछ न कुछ रेट बढ़ जाता है।'' आगे बताया, ''सर्दियों में अंडे के दाम महंगे हो जाते हैं तो जितनी लागत लगती है, निकल आती है लेकिन बाकी मौसम में मुर्गी पालकों को नुकसान ही होता है।''

सरकारें मुर्गी पालन के लिए तमाम योजनाएं चला रही है, जिसके तहत मुर्गी पालकों को मदद भी दी जा रही है। बावजूद इसके बढ़ती महंगाई के कारण मुर्गी पालन में फायदा घटता जा रहा है। आजमगढ़ जिले के जमसर गाँव में रहने वाले विकास यादव ब्रायलर (मांस) मुर्गी पालन कर रहे हैं।

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पोल्ट्री व्यवसाय में आ रही दिक्कतों के बारे में विकास बताते हैं, ''बाजार में ब्रॉयलर के दाम मिल नहीं रहे हैं और खर्चा बढ़ रहा है। अभी तक ब्रॉयलर तैयार करने में 50 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम का खर्च आ रहा था, लेकिन अब बढ़कर 70 से 80 रुपए हो गया है।''

जुलाई 2018 में भारत सरकार ने खरीफ की 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किए थे, जिसमें मक्का की फसल का मूल्य 1,425 था, वही इसको बढ़ाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य 1700 रुपए कर दिया, इसका सीधा असर पोल्ट्री व्यापार पर भी पड़ा है। पोल्ट्री फीड बनाने वाली जो कंपनियां जहां कम दामों पर मक्का खरीद रही थीं, वहीं उन्हें महंगे दामों में खरीदना पड़ रहा है जिससे मुर्गी पालकों को इस फीड के महंगे दाम देने पड़ते हैं।


पोल्ट्री फीड बढ़ने से जहां मुर्गीपालक परेशान हैं वहीं मक्का किसानों कों कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कन्नौज जिले के बछेडी गाँव में रहने वाले मोहन सिंह मक्का की खेती करते हैं। मोहन बताते हैं, "सरकार 1700 तो देती हैं लेकिन सूखा हुआ मक्का लेती, जिससे रेट कम मिलते है इसलिए हम लोग कम दामों में प्राईवेट में ही बेच हैं क्योंकि वह गीला मक्का भी ले लेते हैं।''

सरकार को लिखा पत्र

उत्तर प्रदेश पोल्ट्री ऐसोसिएशन के अध्यक्ष अली अकबर ने गाँव कनेक्शन को बताया, ''सरकार ने एमएसपी तो तैयार कर दी, लेकिन इससे मक्का किसान को भी फायदा नहीं हो रहा क्योंकि बिचौलियां इसका फायदा उठा लेते हैं और फसल भी आवारा जानवरों द्वारा बर्बाद कर देने का डर बना रहता है। इसके लिए हमने सरकार को पत्र भी लिखा है कि फेसिंग या सोलर बेरीकेडिंग पर सरकार सब्सिडी दे ताकि किसान मक्के की फसल बोने के लिए आगे आ सके।''


       

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