मिनी इनक्यूबेटर की मदद से मिला मुर्गी पालन को बढ़ावा, ग्रामीण महिलाओं को भी मिला बेहतर कमाई का जरिया

मिनी इनक्यूबेटर की मदद से न केवल अंडमान निकोबार में चूजों की कमी को दूर करके मुर्गी पालन को बढ़ावा मिला है, बल्कि इससे ग्रामीण महिलाओं को भी कमाई का एक जरिया मिला है।

Divendra SinghDivendra Singh   7 May 2022 10:54 AM GMT

मिनी इनक्यूबेटर की मदद से मिला मुर्गी पालन को बढ़ावा, ग्रामीण महिलाओं को भी मिला बेहतर कमाई का जरिया

महिला किसान के साथ आईसीएआर-केंद्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पोर्ट ब्लेयर की वैज्ञानिक डॉ टी सुजाता। फोटो: अरेंजमेंट

पिछले कई साल से मुर्गी पालन करने वाली जोशना राणा के सामने एक ही परेशानी आती थी, कि चूजे कहां से लाए जाएं, क्योंकि जिस देसी नस्ल का वो पालन करती हैं उनके चूजे वहां से मुश्किल से मिलते हैं। लेकिन अब इस परेशानी का भी हल निकल गया है।

यहां पर जोशना जैसी कई महिलाओं को मिनी इनक्यूबेटर दिए गए हैं, जिससे वो अंडों को हैच करके चूजे तैयार करती हैं, इससे उन्हें आसानी से चूजे मिल ही जाते हैं, साथ दूसरे मुर्गी पालकों को भी चूजे मिलने लगे हैं।

अंडमान और निकोबार के पोर्ट ब्लेयर के नया गाँव की जोशना राणा को खुद के लिए चूजे तो मिल ही रहे हैं, साथ ही दूसरों को चूजे बेचकर अच्छी कमाई भी हो जाती है। 34 वर्षीय जोशना राणा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "हम लोग जंगली मुर्गी (देसी मुर्गी) की वनराजा नस्ल पालते हैं, लेकिन उसके बारे में उतनी समझ नहीं थी, इससे कई बार मुर्गियां मर जाती थी, चिक्स (चूजे) मिलना तो सबसे मुश्किल था, लेकिन इनक्यूबेटर मिलने से अब आसान हो गया है, इससे हम अंडों से चूजे तैयार करते हैं, दूसरे लोग भी चूजे लेकर जाते हैं।"


अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ज्यादातर ग्रामीण मुर्गी पालन से जुड़े हुए हैं, यहां के लगभग 75% किसान बैकयार्ड में देसी किस्म की मुर्गी पालन करते हैं। लेकिन चूजों की अनुपलब्धता इनके सामने एक बड़ी समस्या थी, ऐसे में पोर्ट ब्लेयर में स्थित आईसीएआर-केंद्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान, इनकी मदद के लिए आगे आया। संस्थान ने मिनी इनक्यूबेटर के कामकाज पर 25 गाँवों में कुल 2,202 किसानों को प्रशिक्षण दिया।

डीबीटी-बायोटेक किसान हब परियोजना के तहत दक्षिण अंडमान और उत्तर और मध्य अंडमान जिलों के कई गाँवों में कुल 7 मिनी इनक्यूबेटर-सह-हैचर इकाइयां (240 अंडे क्षमता) स्थापित की गईं हैं।

जोशना राणा को भी इसी परियोजना के तहत इनक्यूबेटर दिया गया है। जोशना के परिवार में उनके दो बच्चे और पति हैं, पति पहले दूसरों की गाड़ियां चलाया करते थे, लेकिन चूजों की बिक्री की बजत से उन्होंने अब खुद का ऑटो खरीद लिया है। जोशना बताती हैं, "पहले तो मुश्किल से घर चल पाता था, जबकि हम बहुत साल अपने घर में मुर्गी पालन करते हैं, लेकिन अब अच्छी कमाई हो जाती है। एक साल में हमने पैसे बचाकर ऑटो भी ले लिया है, अब मेरे पति को दूसरों की गाड़ी नहीं चलानी पड़ती है।"


किसानों को प्रशिक्षण देने वाली आईसीएआर-केंद्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान की वैज्ञानिक डॉ टी सुजाता बताती हैं, "पहले अंडमान में लोगों को इनक्यूबेटर के बारे में पता ही नहीं था, फार्मर कैरी (आईसीएआर-केंद्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान) और पशुपालन विभाग के ऊपर ही निर्भर रहते थे, जो भी मुर्गी पालन करता यहीं से चिक्स (चूजे) लेकर जाता, लेकिन हमारे पास भी लिमिटेड संख्या में चिक्स रहते, इसलिए उन्हें हमेशा दे पाना मुश्किल होता।"

वो आगे बताती हैं, "ज्यादातर ब्रायलर के चूजे भी मिलते थे, देसी नस्ल की मुर्गी पालने वालों के सामने दिक्कत होती थी, क्योंकि नेचुरल तरीके से चिक्स प्रोडक्शन में दिक्कत आती थी, साल में उन्हें 30-35 और ज्यादा से ज्यादा 50 चूजे मिलते थे। लेकिन अब इनक्यूबेटर से लोगों का काम आसान हुआ है।"

कैरी ने इस परियोजना की शुरूआत साल 2020 में की थी पिछले 2 साल में 650 महिला किसानों के साथ 1000 किसानों ने अभी तक इसका लाभ लिया है। कैरी के अनुसार अब तक मुर्गी और बतखों के अंडे को हैच करके 25000 चूजे तैयार किए गए हैं।

देसी अंडे और मांस का रेट ब्रायलर और लेयर की तुलना में अधिक मिलता है। डॉ सुजाता कहती हैं, "देसी पोल्ट्री का रेट अच्छा मिल जाता है, इसका मीट 450-500 रुपए प्रति किलो तक मिल जाता है और अंडों का दाम भी 18 रुपए तक मिल जाता है। अभी तो 20 रुपए में अंडा बिक रहा है। और हां जिस तरह से क्लाइमेट पर असर हो रहा है देसी मुर्गी ही पालना आसान है, क्योंकि ये हार्डी ब्रीड होती हैं, इसीलिए इसे हम बढ़ाना चाह रहे थे।"


"इनक्यूबेटर की सबसे खास बात होती है, ये सारे कम्युनिटी लेबल पर है, सभी महिला किसानों के यहां लगाए हैं, वो अंडा खरीदकर लाते हैं और 50-70 रुपए में चिक्स बेचते हैं। हमने मुर्गियों के साथ ही बतखों का अंडों की भी हैचिंग शुरू की है, "डॉ सुजाता ने आगे कहा।

इंदिरानगर गाँव की मीनाक्षी भी लाभार्थियों में से एक हैं, जिन्हें अंडों की हैचरी के लिए इनक्यूबेटर दिए गए हैं। उनके पति धर्मपाल (44 वर्ष) और वो दोनों खेती-बाड़ी से जुड़े हुए हैं। 40 वर्षीय मीनाक्षी बताती हैं, "पहले इतना ही अंडा मिलता था, जो परिवार के लिए होता था, लेकिन अब इतना अंडा उत्पादन हो जाता है, जिसे चिक्स भी मिल जाते हैं और उन्हें हम बेच भी लेते हैं। अब तो आसपास के सभी लोग यहीं अंडों को हैच कराने लाते हैं।"

इनक्यूबेटर तकनीक को देखकर कई युवा भी इसे शुरू कर रहे हैं। उत्तर और मध्य अंडमान जिले के कमल विश्वास ने 6,000 अंडे की क्षमता के मध्यम पैमाने के 2 इनक्यूबेटर खरीदे और बत्तख के अंडे सेने और बेचने पर अपना व्यवसाय शुरू किया। अब तक, कुल 15 कृषि महिलाओं और बेरोजगार युवाओं ने 80 से 250 अंडे की क्षमता वाले अपने मिनी इनक्यूबेटर स्थापित किए हैं और ग्रामीण पोल्ट्री चूजों का उत्पादन शुरू कर दिया है।

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