करोड़पति किसान: अमेरिका-जापान को हर साल भेजता है 60 करोड़ रुपए के जैविक उत्पाद

जैविक खेती से कमाई: सात किसानों के साथ मिलकर समूह में जैविक खेती की शुरुआत करने वाले राजस्थान के योगेश जोशी के साथ आज जुड़े हैं 3000 से ज्यादा किसान, पढ़िए उनकी कहानी

Moinuddin ChishtyMoinuddin Chishty   23 Dec 2019 5:30 AM GMT

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करोड़पति किसान: अमेरिका-जापान को हर साल भेजता है 60 करोड़ रुपए के जैविक उत्पादअपने समूह के किसानों के साथ योगेश जोशी।

जोधपुर (राजस्थान)। सात किसानों के साथ मिलकर समूह में जैविक खेती की शुरुआत करने वाले राजस्थान के योगेश जोशी के साथ आज 3000 से ज्यादा किसान जुड़े हैं। करीब 3000 एकड़ में जैविक खेती करवाने वाले योगेश साल में 60 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार भी कर रहे हैं।

राजस्थान के जालोर जिले की सांचोर तहसील के युवा और प्रगतिशील किसान योगेश जोशी अपने समूह के साथियों के साथ जीरे, वरियाली, धनिया, मेथी, कलौंजी जैसे मसालों की खेती करते हैं। तो मल्टीग्रेन में किनोवा, चिया सीड और बाजरा से भी उन्हें काफी मुनाफा मिल रहा है। पश्चिमी राजस्थान में उगाई जाने ये फसलें जापान में पहुंच रही हैं।

योगेश आने वाले कुछ ही वर्षों में अपने टर्नओवर को एक अरब तक पहुंचाने की कोशिश में जुटे हैं। हालांकि साल 2009 में जीरे के साथ शुरुआत करने वाले योगेश को पहले साल ही घाटा हुआ था, और लागत तक नहीं निकल पाई थी। पिछले दिनों राजस्थान के जोधपुर स्थित काजरी में आयोजित किसान मेले में भाग लेने पहुंचे योगेश से गाँव कनेक्शन के लिए मोइनुद्दीन चिश्ती ने कई मुद्दों पर बात की।

"देश के बाकी युवाओं की तरह मेरे घर वाली भी नहीं चाहते थे कि मैं खेती करूं। मैंने स्नातक के बाद ऑर्गेनिक फॉर्मिंग में डिप्लोमा किया था। वो चाहते थे अगर खेती में रुचि है तो खेती से जुड़ी नौकरी कर लूं लेकिन किसानी तो बिल्कुल नहीं। लेकिन मैं ठान चुका था, आखिरकार 2009 में जीरे की जैविक खेती कराई लेकिन घाटा हुआ।" योगेश अपनी शुरुआत बताते हैं।

ऑर्गेनिक फेस्टिवल में प्रगतिशील किसान और कारोबारी योगेश जोशी को सम्मानित करते कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह।



योगेश के मुताबिक उस समय जैविक खेती का इतना महत्व नहीं था। मैने 2 बीघे जीरे की खेती से शुरुआत की थी। लेकिन अनुभव न होने के कारण घाटा हुआ। लेकिन हिम्मत नहीं और दूसरी बार ज्यादा जानकारी के साथ काम किया। योगेश राजस्थान में जिस इलाके से ताल्लुक रखते हैं वो जीरे का गढ़ कहा जाता है। जीरा नगदी फसल है और अच्छा उत्पादन होने पर मुनाफा भी खूब होता है।

योगेश बताते हैं, "शुरुआत में नुकसान अनुभव और सलाह न होने के चलते हुआ था, इसलिए काजरी के जैविक कृषि वैज्ञानिक डॉ. अरुण के शर्मा की मदद ली। उन्होंने मेरे साथ कई और किसानों को गाँव आकर ट्रेनिंग दी, जिसके बाद हम लोगों ने फिर जीरा उगाया और मुनाफा भी हुआ।" योगेश कहते हैं, "दूसरी बात की खेती से ये समझ बनी थी कि अकेले के बजाय समूह में खेती करना ज्यादा फायदेमंद है, लेकिन शुरुआत में किसानों को जोड़ना आसान नहीं था, तो सिर्फ सात किसानों का साथ मिला। क्योंकि सवाल ये भी था कि बिना यूरिया, डीएपी और पेस्टीसाइड खेती हो भी सकेगी क्या?"

योगेश ने काजरी के वैज्ञानिकों की मदद से जैविक खाद और फसल रक्षा के लिए दवाइयां बनानी सीखीं। उनके प्रयोग से अच्छे परिणाम मिले थे और सात किसानों से शुरू हुआ कारवां 3000 तक पहुंच गया।

योगेश बताते हैं, "रसायनमुक्त खेती को व्यवसायिक रूप देने के लिए मैंने रैपिड ऑर्गेनिक कंपनी बनाई। जिसके जरिए मेरी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा किसानों को इसमें जोड़ा जाए और उन्हें अच्छा मुनाफा दिलाया जा सके। ये हमारी लिए उपलब्धि है कि पिछले 5-7 वर्षों में हमारे समूह के 1000 किसान जैविक प्रमाण पत्र प्राप्त कर चुके हैं, 1000 किसान कन्वर्जन-2 में हैं, शेष 1000 किसान साथी सी-3 फेज में हैं।"

योगेश की कंपनी ने सभी किसानों के लिए जैविक प्रमाणीकरण के खर्च को खुद उठाया और समूह के किसानों के लिए लगातार प्रशिक्षण का इंतजाम किया। योगेश के मुताबिक हमारे साथ जुड़े किसान आर्थिक रूप से शुरुआत में सक्षम नहीं थे, इसलिए ऐसे सभी खर्च खुद उठाए।

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योगेश बताते हैं कि उत्पादन शुरू होने के साथ ही मैंने मार्केट की तलाश शुरू कर दी थी, कई मसाला कंपनियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से संपर्क किया,लेकिन वो रसायन खादों वाली फसलों को खरीदने में इच्छुक थे। इसी बीच इंटरनेट उनका सहारा बना और एक जापानी कंपनी से संपर्क हुआ।

"जापानी कंपनी से बात हुई और उनके लोग हमारे खेतों में आए। जांच-परखने के बाद उन्होंने हमारे साथ करार कर लिया। जापान पहुंची हमारी जीरे की पहली खेप को खूब पसंद किया गया। जिसके बाद कंपनी ने हमें सौंफ, धनिया, मेथी आदि के लिए भी करार किया। इस डील के बाद हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा।"योगेश जोशी बताते हैं।

फिलहाल वो कई देशी-विदेशी कंपनियों के साथ कर कर रहे हैं, जिसमें हैदराबाद की एक कंपनी के साथ 400 टन किनोवा की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग यानी समझौते पर खेती के लिए करार किया है। योगेश के मुताबिक इसमें बीच, खाद सब कुछ हम देते हैं ये पूरी तरह बायबैक यानी खरीद की पूरी गारंटी वाला काम है। कृषि और किसानों के लिए किए जा रहे कार्यों को लेकर कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह भी योगेश को सम्मानित कर चुके हैं। इसके साथ ही कई राज्य सरकार के पुरस्कार उनकी झोली में है।

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सुपर फ़ूड से करेंगे अन्नदाता की आय दुगनी

योगेश ने अपने किसानों के साथ पिछले दिनों 'सुपर फूड'के क्षेत्र में कदम रखा है। इन दिनों राजस्थान में चिया सीड और किनोवा सीड (बीज) का प्रसंस्करण कर रहे हैं। योगेश कहते हैं, "प्रधानमंत्री जी का सपना है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी हो, लेकिन उसके लिए किसानों को अपने खेतों में कुछ नवाचार करने होंगे।"

किसानों को राहत का एक तरीका यह भी

किसानों के साथ एक समस्या यह भी भी रही है कि जैविक प्रमाणपत्र होने पर ही उनकी उपज का अच्छा रेट मिलता है लेकिन योगेश ने इसका एक तोड़ निकाला है वो उन किसानों से भी अच्छे रेट पर उपज खरीद लेते हैं जो जैविक खेती करते हैं। सर्टिफिकेट हो या न लेकिन केमिकल का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। योगेश के मुताबिक इसके लिए उन्होंने अमेरिका की एक कंपनी से करार किया है। हजारों किसानों की आमदनी में इफाजा कर चुके योगेश के मुताबिक उनकी कंपनी रैपिड ऑर्गेनिक देश की पहली कंपनी है जो जीरे लेकर ट्रेड फेयर पहुंच रहे हैं। वो ट्रेड फेयर सर्टिफाइड कर रहे हैं, जिसमें किसान से लेकर बायर तक का पूरा चैनल ऑनलाइन होगा। किस किसान को उसकी उपज का कितना प्रीमियम मिल रहा है, यह आंकड़ा भी सबके लिए उपलब्ध होगा।

जैविक कृषि में भविष्य तलाशने वाले किसानों को सलाह

योगेश बताते हैं कि जो किसान जैविक कृषि से जुड़े हैं, कर रहे हैं, उनके लिए यही संदेश है कि भले ही आज थोड़ी कठिनाई हो पर आने वाला समय हमारे लिए हितकारी है। जो किसान जैविक कृषि को नकारते हैं, उनको मेरी सलाह है कि 3 से 4 साल जैविक खेती को अपना कर देखें। योगेश बताते हैं कि राजस्थान के ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां आज भी पूर्ण रूप से जैविक खेती हो सकती है। ऐसी जगहों को राज्य-केंद्र सरकार द्वारा योजनाएं चलाकर विकसित किया जाना चाहिए।

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भविष्य में 1 अरब रुपए के टर्न ओवर की

साल 2009 में घाटे और फिर 10 लाख के सालना टर्न ओवर से शुरुआत करने वाले योगेश जोशी अब किसानों के समूह एफपीओ बना रहे हैं। आने वाले दिनों में वो सिर्फ इन्हीं के जरिए उत्पाद खरीदेंगे। इस एफपीओ में किसान ही चेयरमैन होगा, उसकी भी अपनी एक सोसाइटी होगी। जिसमें लाभ के भागीदार खुद किसान होंगे। योगेश आने वाले कुछ ही वर्षों में अपने टर्नओवर को एक अरब तक पहुंचाने की कोशिश में जुटे हैं।

योगेश अपनी कंपनी के जरिए किसानों को तकनीकी और मार्केट तो देते ही हैं उनके लिए मेडिकल कैंप, एजुकेशनल कैंप और कृषि प्रशिक्षण शिविर का भी लगातार आयोजन कराते हैं। जिनमे करीब 20 लाख रुपए खर्च होते हैं। योगेश के बारे में विवेकानंद ग्लोबल यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर पवन के. टाक कहते हैं, जिनको लगता है जैविक खेती घाटे का सौदा है उन्हें योगेश से सीखना चाहिए। योगेश ने जैविक खेती को उद्यम समझकर, उसमें मूल्य संवर्धन के मुहावरे को जोड़ते हुए भारतीय कृषि जगत के इतिहास में एक नया आयाम स्थापित किया है, जो सभी युवा किसानों के लिये नवाचारी उदाहरण है।

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(मोईनुद्दीन चिश्ती कृषि और पर्यावरण पत्रकार हैं।)

     

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