सुखेत मॉडल: बिहार का एक गाँव जहां गोबर के बदले में गैस सिलिंडर मिलता है, पीएम नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में की इस गाँव की तारीफ

बिहार के मधुबनी जिले के इस गांव में महिलाओं को 1200 किलो गोबर और कचरा देने पर गैस सिलेंडर दिया जाता है, इससे गांव तो साफ हुआ ही महिलाओं को भी खाना बनाने में आराम हो गया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इस गांव की तारीफ की है।

Divendra SinghDivendra Singh   4 Sep 2021 1:49 PM GMT

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सुखेत मॉडल: बिहार का एक गाँव जहां गोबर के बदले में गैस सिलिंडर मिलता है, पीएम नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में की इस गाँव की तारीफ

गाँव में लोगों से गोबर और फसल अवशेष लेकर वर्मी कम्पोस्ट बनाया जाता है। सभी फोटो: अरेंजमेंट

मुन्नी देवी को उज्जवला योजना के तहत गैस सिलिंडर और चूल्हा तो मिल गया था, लेकिन उनके सामने मुश्किल थी कि दोबारा गैस कैसे भरवाएं, लेकिन अब गोबर के बदले उन्हें गैस सिलिंडर मिल रहा है। मुन्नी देवी की तरह इस गांव की कई महिलाओं को लकड़ी और उपलों के चूल्हों से मुक्ति मिली है और गैस पर खाना बना रही हैं।

42 वर्षीय मुन्नी देवी बताती हैं, "पांच लोगों का परिवार है, पति दिल्ली में ड्राइवरी करते हैं, गैस तो मिल गई थी लेकिन इतनी कमाई नहीं है कि गैस भरवा पाते, लकड़ी और गोइठा (गोबर के उपले) पर चूल्हे पर खाना बनाती थी। लेकिन अब गोबर के बदल में दो महीने में गैस सिलेंडर मिल रहा है। अब खाना बनाना आसान हो गया है।"

हर दिन घर-घर से गोबर और कचरा इकट्ठा किया जाता है। फोटो: अरेंजमेंट

मुन्नी देवी बिहार के मधुबनी जिले के झंझारपुर ब्लॉक के सुखेत गांव में रहती हैं, जहां पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा और कृषि विज्ञान केंद्र, मधुबनी ने एक अनोखी पहल शुरू की है। इसमें लोगों को गोबर और कचरे के बदले में गैस सिलेंडर दिया जाता है। इस मॉडल की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 अगस्त को अपने मन की बात कार्यक्रम की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "मधुबनी में डॉ राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय और वहां के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा तैयार 'सुखेत मॉडल' के चार लाभ तो सीधे-सीधे नजर आते हैं। एक तो गाँव प्रदूषण से मुक्ति, दूसरा गाँव को गंदगी से मुक्ति, तीसरा गाँव वालों को रसोई गैस सिलिंडर के लिए पैसे और चौथा गाँव के किसानों को जैविक खाद। आप सोचिए, इस तरह के प्रयास हमारे गाँवों की शक्ति कितनी ज्यादा बढ़ा सकते हैं। यही तो आत्मनिर्भरता का विषय है।"


क्या है सुखेत मॉडल

डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा कुलपति डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव ने दरअसल स्वच्छता मिशन अभियान और उज्जवला योजना को ध्यान में रखते हुए काफी अध्ययन के बाद गोबर और कचरे से वर्मी कम्पोस्ट बनाने की परियोजना बनायी है।

कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक व प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ रत्नेश कुमार झा इन अनोखी शुरूआत के बारे में गांव कनेक्शन से बताते हैं, "गांव में सबसे बड़ी समस्या इस समय फसल अवशेष की है, इसके साथ ही पशुपालक गोबर को ऐसे ही फेंक देते हैं, नहीं तो महिलाएं गोबर के उपले बनाकर उसे सुखाकर उस पर खाना बनाती हैं। महिलाओं को उज्जवला योजना के तहत सिलेंडर तो मिल गया था, लेकिन वो घरों में खाली पड़े थे, महिलाएं फिर से उपले पर खाना बनाने लगी थीं।"

वो आगे कहते हैं, "कुलपति जी का ही यह मॉडल है, उन्होंने ने ही यह प्रोजेक्ट तैयार किया था। इसी साल 4 फरवरी को हमने सुखेत गांव में इसे शूरू कर दिया है।"

गोबर और कचरे के बदले में गैस सिलिंडर

हर दिन गांव में पशुपालकों से गोबर और कचरा इकट्ठा किया जाता है, जिसका पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है कि किस किसान के यहां से कितना गोबर मिला है। डॉ रत्नेश कुमार झा कहते हैं, "गाँव वालों की बहुत अच्छी प्रतिक्रिया है। एक परिवार से 1200 किलो कचरा आ जाता है तो उसे सिलेंडर दिया जाता है, 20 किलो प्रति दिन के हिसाब से कचरा देते हैं तो 60 दिन में 1200 किलो कचरा मिल जाता है। गांव में ज्यादातर लोग खेती और पशुपालन करते हैं।"

गोबर के साथ ही कचरा और फसल अवशेष भी इकट्ठा किया जाता है। फोटो: पिक्साबे

फसल अवशेष का भी हो रहा प्रबंधन

किसान गोबर के साथ ही फसल अवशेष भी देते हैं साथ ही कई किसान जलकुंभी और केले की पत्तियां और तना भी देते हैं। लेकिन ज्यादा मात्रा में गोबर ही इकट्ठा किया जाता है। पहले पशुपालक घरों के आसपास ही गोबर और कचरा फेक देते, जिससे गंदगी फैली रहती, लेकिन गांव भी साफ रहने लगा है। फसल अवशेष को श्रेडर से छोटे-छोट टुकड़ों में काटकर गोबर में मिलाया जाता है।

गोबर और फसल अवशेष से बन रही है वर्मी कम्पोस्ट

हर एक घर से गोबर और फसल अवशेष को इकट्ठा करके उससे वर्मी कम्पोस्ट बनाया जाता है। डॉ रत्नेश कहते हैं, "वर्मी कम्पोस्ट का सरकारी रेट 6 रुपए प्रति किलो रेट है, इसे किसान या फिर किसी कंपनी को देते हैं। लेकिन हमारा एक और प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसके में हम किसानों को वर्मी कम्पोस्ट देते हैं, जिसे हम अभी तक कहीं और से ही खरीदते थे, लेकिन अब हम जो वर्मी कम्पोस्ट तैयार करते हैं, उसे ही किसानों को देते हैं।"

वो आगे कहते हैं, "वर्मी कम्पोस्ट को तैयार करने की प्रति किलो 1 रुपए 50 पैसे की लागत आती है, जिससे 6 रुपए में बेचा जा सकते हैं। वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए 40% फसल अवशेष और 60% गोबर होता है, इसे 50-50 भी कर सकते हैं।"


जल्द ही बिहार के दूसरे जिले में भी शुरू होगा प्रोजेक्ट

अभी यह प्रोजेक्ट मधुबनी जिले के सुखेत में शुरू किया है, जल्दी यह बिहार के दूसरे जिलों जैसे सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वैशाली व पटना के गाँवों में भी शुरू किया जाएगा।

अभी 56 महिलाओं को मिल रहा गैस सिलिंडर

इस प्रोजेक्ट में महिलाओं को ही शामिल किया गया है, क्योंकि महिलाएं ही खाना बनाती हैं, गैस न होने पर उन्हें धुएं के चूल्हे पर खाना बनाना पड़ता, लेकिन अब उन्हें गैस मिल रही है। महिलाएं ज्यादा अच्छे से समझ पाती हैं, इसलिए हमने उन्हें जोड़ा है।

गैस सिलिंडर मिलने से गाँव की महिलाओं की जिंदगी आसान हो गई है।

कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. शंकर झा बताते हैं, "अभी तक गाँव की 56 महिलाओं को इसका लाभ मिल रहा है, कोशिश है कि दूसरे लोगों को भी इस योजना का लाभ मिले।"

मॉडल के लिए गाँव के किसान ने दी है जमीन

सुखेत गाँव के सुनील यादव ने सुखेत मॉडल के लिए अपनी 4 कट्ठा (0.5 बीघा) जमीन मुफ्त में दी है। सुनील बताते हैं, "पिछले साल जब हमें इस के बारे में बताया गया तो लगा कि अच्छा काम है हमें भी मदद करनी चाहिए। सीखने को मिल रहा है, पांच साल के लिए एग्रीमेंट हुआ, उसके बाद यह मॉडल मुझे दे दिया जाएगा, आगे मैं ही इसे चलाऊंगा।"


वो आगे कहते हैं, "गाँव में ज्यादातर लोगों के भैंस हैं, खेती होती नहीं इसलिए ज्यादा कमाई भी नहीं होती है, इससे सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को होती थी, गोइठा जलाकर खाना बनाती, लेकिन अब गैस पर खाना बना रही हैं।"

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