बिहार: सरकारी नौकरी की चाहत में दड़बेनुमा कमरों में जी रहे हजारों युवा

बिहार में हर साल लाखों छात्र सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करते हैं। इनमें से एक बड़ी आबादी पटना जैसे शहर में किराए के छोटे-छोटे कमरों में रहती है। घर से जितने पैसे मिलते हैं उसमें मुश्किल से काम चलता है। लेकिन वो एक उम्मीद में जुटे रहते हैं, जिसमें उन्हें अक्सर निराशा हाथ लगती है।

Rahul JhaRahul Jha   16 Feb 2022 2:00 PM GMT

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पटना (बिहार)। पटना के पोस्टल पार्क एरिया के मेन रोड पर गोपाल भवन के नाम से एक लॉज है। इस लॉज में 20 कमरे हैं। जिसमें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र रहते हैं। कमरे इतने छोटे हैं कि एक फोल्डिंग और टेबल लगाने के बाद खाना बनाने की जगह मुश्किल से बचती है।

सुपौल जिला के बभनी पंचायत के गुलशन चौधरी (33 वर्ष) इस गोपाल भवन में रहकर पिछले 14 सालों से सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहे हैं। गुलशन के कमरे की दीवार पर भारत और विश्व का मानचित्र लगा है। एक बड़ी टेबल पर किताबें रखी हैं। एक छोटी टेबल पर वो पढ़ाई करते हैं। कमरे के कोने में विद्या की देवी की कही जाने वाली सरस्वती देवी की फोटो भी है। वो पिछले 4 साल में सिर्फ 2 बार अपने गांव गए हैं।

नौकरी में सफलता न मिलने और गांव न जाने की बात पर वो कहते हैं, "क्या मुंह लेकर जाऊं? पिताजी 5 बीघा (एक एकड़) में खेती करके हमको और बहन को पालते हैं। इकलौता बेटा हूं, बहुत आस है पापा को। नौकरी नहीं मिलने के कारण आसपास वालों का भी ताना सुनना पड़ता है। सरकारें इतने कम फार्म निकाल रही हैं कि सरकारी नौकरी की आस खत्म हो गई है।"

33 साल के विपुल कुमार कहते हैं, "जब कोई वैकेंसी (नियुक्ति) आती है तो गांव का लड़का कॉपी किताब, दाल-चावल रोटी-गठरी लेकर पटना पहुंच जाता है। उसे लगता है फार्म भरा रहे हैं जल्द परीक्षा होगी रिजल्ट जाएगा। लेकिन फार्म भरने के बाद कोई खबर नहीं आती। लड़के आंदोलन करते हैं तो 2-3 बाद प्री परीक्षाएं होती हैं फिर उसके रिजल्ट का इंतजार। फिर हंगामे-शोर शराबे के बाद उस रिजल्ट आएग। इस तरह कई वर्ष निकल जाते हैं। लेकिन इन दिनों छात्रों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उनकी जिंदगी का बड़ा समय ऐसे कमरों में निकल जाता है।"

बिहार की राजधानी पटना में पोस्टल पार्क एरिया, बोरिंग रोड, राजेंद्र नगर, मुसल्लहपुर, नया टोला, भिखना पहाड़ी, शाहगंज, बाजार समिति, अशोक राजपथ एरिया कोचिंग और प्रतियोगी परिक्षार्थियों के रहने के गढ़ हैं। जहां हजारों युवा सरकारी नौकरियों की लालसा में वर्षों से तैयारियों में जुटे हैं।

पटना में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले एक युवा के कमरे की टूटी कुर्सी और सामान हालात की गवाही दे रहे हैं। फोटो- राहुल झा

किस हाल में रहकर तैयारी करते हैं छात्र

24 जनवरी के दिन पटना के राजेंद्र नगर टर्मिनल पर RRB-NTPC के अभ्यर्थियों और प्रशासन के बीच पथराव हुआ था। इसी राजेन्द्र नगर टर्मिनल से 12 किलोमीटर दूर पुणै चक एरिया में 2800 रुपए के रूम में मधुबनी जिले की मधेपुर पंचायत का प्रभात रहता है। प्रभात मैट्रिक (हाईस्कूल) पास करने के बाद ही 2012 में पटना आ गया था। इंटर आर्ट्स विषय से करने के बाद प्रभात जनरल कंपटीशन का तैयारी कर रहा है। इस बार प्रभात का भी एनटीपीसी रेलवे का रिजल्ट निकला था। लेकिन विवाद हो गया।

अपने 9 साल के अनुभव को समेटे प्रभात कहता है, "2012 में ही पुणै चक एरिया में आया था। क्योंकि यहां मामा पहले से तैयारी करते थे। उस वक्त 1300 रुपए में एक रूम मिला था। जिसमें मामा के साथ में रहता था। उस वक्त रूम रेंट 650 रुपए था। सब मिलाकर घर से 2000 रुपए लेता था। अब 5000 रुपए घर से लेता हूं। एक तो अकेला रहता हूं रूम में, ताकि पढ़ाई में कोई दिक्कत ना हो। बाकी महंगाई आप देख ही रहे हैं।"

प्रभात को घर से चेतावनी मिल चुकी है। साल 2022 में नौकरी नहीं मिली तो घर आकर कोई काम धंधा कर लेना। प्रभात के मुताबिक कोरोना ने उनके जैसे छात्रों का एक साल पूरा बर्बाद कर दिया।

"पापा पोस्ट ऑफिस में एजेंट हैं। इतना पैसा नहीं हैं। पिछले साल ही पापा ने कहा था, इस बार नौकरी ना मिले तो गांव आकर बिजनेस करना। इस बार एनटीपीसी में हुआ है और ग्रुप डी का बाकी है। नहीं हुआ तो हम कमरा खाली करके वापस चले जाएंगे।" प्रभात आगे कहता है।

सरकारी नौकरी की आस में पटना में रह रहे एक और युवा का कमरा।

एक छोटे से कमरे में गुजर जाते हैं दस साल

पटना के बोरिंग रोड एरिया में रह रहे समस्तीपुर के 29 वर्षीय निशांत गांव कनेक्शन को बताते हैं, "इंटर और ग्रेजुएशन की अवधि को मिला लिया जाए तो अमूमन सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले हर छात्र को 10 साल पटना में रहना पड़ता है। यूं तो सरकारी नौकरी पाने वाले का मुख्य अड्डा भिखना पहाड़ी और महेंद्रू है। लेकिन पूरे पटना में ही सरकारी नौकरी तलाश करने वाले छात्र मिल जाएंगे।"

पटना में रह रहे 32 वर्षीय राहुल जयसवाल 14 साल पहले 302 किलोमीटर दूर वाल्मीकि नगर से एसएससी (कर्मचारी चयन आयोग) की तैयारी करने आए थे। राहुल बताते हैं कि, "पुणै चक एरिया में 2500 रुपए से कम में कोई कमरा नहीं मिलता है। इस एरिया में पानी अच्छा है तो इसलिए 14 साल से यहीं रह रहा हूं। कमरा इतना छोटा होता है कि कमरे शुरू होते ही ख़त्म हो जाते हैं। चार कमरे पर एक लैट्रिंग और बाथरूम का व्यवस्था रहती है। अब तो सब कुछ एडजस्ट करने का अभ्यास हो गया है। क्योंकि कमरा घर से दूर हमारे संघर्ष और तपस्या का केन्द्र होता है।"

सरकारी नौकरी ही क्यों?

नीति आयोग की नवंबर 2021 में आई "मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स" रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी के मामले में बिहार सबसे गरीब राज्य है। बिहार की 52 फीसदी आबादी गरीबी में जी रही है। पलायन, बाढ़, सस्ते मजदूर के अलावा बिहार को सरकारी नौकरियों में किए जाने वाले आवेदनों के लिए भी जाना जाता है। यहां के युवा सरकारी नौकरियों के लिए वर्षों तक अपने आप को खपाते हैं लेकिन ऐसा क्यों? छात्र और जानकार अपने अपने हिसाब से इसका जवाब देते हैं?

बेरोजगारों की सोशल मीडिया पर आवाज उठाने वाले दिल्ली के संगठन हल्ला बोल के राष्ट्रीय अध्यक्ष इसके पीछे कई कारण गिनाते हैं। "सबसे गरीब राज्य बिहार की बड़ी आबादी भूमिहीनों की हैं, जिसकी गिनती सरकारी आंकड़ों में नहीं की जाती है। जो अधिकतर बटाई पर खेती करने वाले किसानों में शामिल हैं। बिहार की बेरोजगारी दर 13.3 प्रतिशत है। औद्योगीकरण के मामले में बिहार फिसड्डी राज्यों में शामिल है। इसके साथ ही कोविड-19 लॉकडाउन में जिस तरह प्राइवेट नौकरी वाले वापस बिहार लौटे हैं। सरकारी नौकरी की महत्ता और भी बढ़ गई है। इसलिए बिहार के युवाओं के लिए सम्मान पाने का एकमात्र तरीका सरकारी नौकरी ही है। लेकिन अफसोस की बात है कि वैकेंसी निकलने का सिलसिला लगभग थम सा गया हैं वहीं नौजवान पागलों की तरह फॉर्म भरते हैं।"

"बिहार में सरकारी नौकरी की लालसा युवाओं की मजबूरी भी है। यहां स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्टर बहुत खराब है। स्कूलों में वो स्किल्ड (कुशलता) की ट्रेनिंग नहीं मिल पाती है कि लड़का बाहर जाकर प्राइवेट कंपनियों में अच्छे से नौकरी कर सके। ऐसे में वो डिग्री लेते हैं और सरकारी नौकरियों में जुट जाते हैं।" 27 साल के मृत्युंजय कुमार कहते हैं।

अपने बात को और सरल करते हुए वो बताते हैं, "सबकी चाहत सरकारी नौकरी पाने की है, खासकर रेलवे की नौकरी। प्राइवेट नौकरी में प्रति महीने 5,000 से 10,000 रुपये तक मिलेगा और उनको 10 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ेगा। मार्केटिंग लाइन में टारगेट पूरा करना होता है। बिहार में कंपनियों की हालत आप देख ही रहे हैं। इसलिए पंजाब और दिल्ली में मेहनत करने से बेहतर है सरकारी नौकरी की तैयारी करना।"

पटना के एक कोचिंग सेंटर की फाइल फोटो

पटना कोचिंग हब

सामान्य प्रतियोगी परीक्षाओं के गढ़ पटना में कितने कोचिंग चल रहे हैं? इस पर अभी कोई सही आंकड़ा नहीं है। हालांकि 2019 के एक रिपोर्ट के मुताबिक पटना के नगर परिषद इलाके में 355 कोचिंग रजिस्टर्ड हैं। इस बार के एनटीपीसी रेलवे अभ्यर्थियों के प्रदर्शन में कई कोचिंग संस्थान की संलिप्तता भी बताई जाती है।

बिहार के सुपौल जिला के विपुल झा बताते हैं कि, "कोरोना से पहले बोरिंग रोड, राजेंद्र नगर, मुसल्लहपुर, नया टोला, भिखना पहाड़ी, शाहगंज, बाजार समिति, अशोक राजपथ एरिया कोचिंग के छात्रों से ही भरा रहता था। कितने कोचिंग संस्थान में एक-एक क्लास में 50 छात्रों के जगह 100 छात्रों को बैठाया जाता था। हालांकि अब स्थिति में कुछ सुधार आया है। क्योंकि एक तो ऑनलाइन का दौर शुरू हो गया है और विद्यार्थी की संख्या भी थोड़ी कम हो गई है।"

RRB-NTPC विवाद और हंगामा

रेलवे के रिजल्ट के बाद बिहार में प्रतियोगी छात्रों का मुद्दा राष्ट्रीय सुर्खियां बन गया। देशभर में रेलवे में भर्ती के लिए 21 रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड (RRB) हैं। 24 जनवरी को बिहार में कई जगह हुआ हंगामा RRB-NTPC (रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी परीक्षा से जुड़ा है। साल 2019 में इस परीक्षा में अलग-अलग पदों और पे ग्रेड पर 35000 के करीब नौकरियां के लिए पद फार्म निकाले गए थे। लटकते लटकते होते ये परीक्षा हुई फिर जब करीब 3 साल बाद रिजल्ट आए तो कई तरह की अभ्यर्थियों के कई मुद्दे पर नाराजगी के चलते हंगामा किया। आगजनी, पथराव हुआ, पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस सब के बाद कई कोचिंग संचालकों और छात्रों पर प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। वहीं गिरफ्तार किए गए कुछ छात्रों को अभी तक छोड़ा नहीं गया है।

बिहार राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा कहते हैं कि, "यह लड़ाई बेरोजगारी और सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ थी। इस न्याय की लड़ाई में हम उनके परिजनों के साथ खड़े हैं। निजी तौर पर मैं मानता हूं कि वे कहीं भी गुनहगार नहीं हैं।"

प्रदर्शनकारियों को आजीवन प्रतिबंधित ना कर दे रेलवे

वहीं 25 जनवरी के दिन रेल मंत्रालय ने एक सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से कहा कि जो भी अभ्यर्थी पटरियों पर विरोध-प्रदर्शन, ट्रेन संचालन में व्यवधान, रेलवे संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने जैसी उपद्रवी/गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त हुए हैं। ऐसे उम्मीदवारों पर पुलिस कार्रवाई के साथ-साथ उन्हें रेलवे की नौकरी प्राप्त करने से आजीवन प्रतिबंधित किया जा सकता है।

इस प्रदर्शन में गिरफ्तार राजन महतो के साथ पढ़ने वाले हेमंत बताते हैं, "राजन का एलडीसी का प्री और मेन्स कंप्लीट हो चुका है। अगर प्रशासन ने गुनहगार साबित कर दिया तो चरित्र प्रमाण पत्र के बिगड़ने का डर रहेगा। जो सरकारी नौकरियों के लिए अनिवार्य होता है।"

छात्रों के प्रदर्शन के बाद दोनों ही परीक्षाओं की तारीख आगे बढ़ा दी गई है और एक कमेटी का गठन भी किया गया है। जल्द ही छात्र अपनी शिकायत और सुझाव कमेटी के सामने रख सकते हैं।

यह गुस्सा अचानक पैदा नहीं हुआ है

18 मार्च 1974 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी। जो देश भर में जेपी आंदोलन के रूप में जाना गया। 38 साल के बाद फिर से बिहार की धरती पर गुस्साए छात्रों ने प्रदर्शन किए। कई जगह हिंसा भी हुई है और ट्रेनों को आग लगा दी गई। 38 साल बाद अचानक क्यों छात्र आंदोलन करने को मजबूर हुए?

"यह गुस्सा अचानक पैदा नहीं हुआ है। सीएमआईई 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की बेरोजगारी दर 13.3 प्रतिशत है। राजस्थान के बाद बिहार दूसरे नंबर पर हैं। जहां जहां 38.84 लाख युवा बेरोजगार हैं। हालांकि जमीनी सच्चाई इससे भी खराब है। बेरोजगारी जैसे मुद्दे के बाद परीक्षा में भ्रष्टाचार और घोटाले पर नाराज छात्र पहले सोशल मीडिया पर विरोध किए। जब ध्यान नहीं दिया गया, फिर इन छात्रों को मजबूरी में सड़क पर उतरना पड़ा।" हल्ला बोल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुपम गांव कनेक्शन को बताते हैं।

"भर्तियां सही समय पर नहीं निकल रही हैं और निकल भी रही हैं तो उनमें देरी की जा रही है। सरकारी नौकरी भर्ती परीक्षाओं और नतीजों का कैलेंडर नहीं है। तैयारी में पैसा और समय दोनों खत्म होता जा रहा है। आंदोलन के अलावा हमारे पास क्या चारा हैं?" समस्तीपुर जिला के 29 वर्षीय निशांत बताते हैं।

रेलवे की परीक्षा को लेकर आंदोलित छात्रों के ग़ुस्से की वजह क्या थी?

भागलपुर जिले के कुणाल झा गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, "बिहार में कोई भी सरकारी नौकरी की चयन प्रक्रिया बिना विवाद के पूरी नहीं होती है। बिहार में नौकरी कर रहे छात्रों का अधिकतर हिस्सा रेलवे की तैयारी करता है, क्योंकि रेलवे अधिक लोगों को नौकरी देता है। रेलवे ने साल 2019 में चुनाव के वक्त NTPC के लिए 35,308 पोस्टों के लिए और ग्रुप डी के लिए लगभग एक लाख तीन हज़ार पोस्टों के लिए आवेदन मंगाया। फिर फरवरी-मार्च में छात्रों ने फॉर्म भरा और जुलाई तक परीक्षा लेने की संभावित तारीख दी गई थी, लेकिन साल 2021 में परीक्षा हुई।"

वो आगे बताते हैं, "फिर साल 2022 में CBT-1 (NTPC) का रिजल्ट जारी किया। रेलवे नोटिफिकेशन के अनुसार रेलवे बोर्ड CBT-1 (NTPC) में 20 गुना रिजल्ट देने का था। जो रेलवे ने दिया। लेकिन रेलवे ने यहां एक छात्र को चार से पांच पदों पर रिपीट किया है। ऐसे कितने ही छात्र हैं। अगर किसी छात्र का चयन पांच जगह हो गया और वह छात्र मुख्य के साथ स्किल और मेडिकल भी पास कर ले तो उस छात्र का क्या होगा?" आगे कुणाल झा बताते हैं।

वहीं एक और अभ्यर्थी अनमोल मिश्रा बताते हैं, "पिछली बार भी एकल परीक्षा हुई थी, लेकिन उस समय सीटों का बंटवारा मेन्स में हुआ था, जबकि इस बार सीट का बंटवारा प्री में ही करके काबिल विद्यार्थियों को बाहर कर दिया गया है। रेलवे के ऐसा करने से परीक्षा देने वाले छात्र गुड्स गार्ड और स्टेशन मास्टर जैसे पदों के लिए क्वालीफाई नहीं कर सकते हैं‌।"

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