सत्तर साल बाद एक बार भारत में चीतों की वापसी, जानिए इनके बारे में कुछ खास बातें
गाँव कनेक्शन | Sep 17, 2022, 08:31 IST
आने वाले वर्षों में एक बार फिर भारत का नाम चीतों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा, इस समय अफ्रीका के कुछ देशों में, ईरान में चीता पाए जाते हैं,
सत्तर साल बाद भारत में एक बार फिर से चीतों की वापसी हुई है, कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से आठ चीते लाए गए हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिंजरे से बाहर छोड़ा। चलिए जाते हैं चीतों के बारे में कुछ दिलचस्प बातें।
एक समय था जब भारत में चीता, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु में पाए जाते थे। लेकिन देश में आखिरी बार आखिरी बार चीते को साल 1947 में देखा गया था। भारत में चीते को 1952 में लुप्त घोषित कर दिया गया था।
ऐसा नहीं कि पहली बार चीतों को दूसरे देशों से लाने की बात शुरू की गई है, 1970 के दशक में ईरान से एशियाई शेरों के बदले एशियाई चीतों को भारत लाने के लिए बात शुरू हुई। ईरान में चीतों को कम आबादी और अफ्रीकी चीतों और ईरानी चीतों में समानता को देखते हुए तय किया गया कि अफ्रीकी चीतों को भारत लाया जाएगा। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पायी। साल 2009 में देश में चीतों को लाने की कोशिशें नए सिरे से शुरू हईं। इसके लिए 'अफ्रीकन चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट इन इंडिया' प्रोजेक्ट शुरू किया गया। 2010 से 2012 के दौरान देश के दस वन्य अभयारण्यों का सर्वेक्षण किया गया। इसके बाद मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क को चीतों के लिए चयनित किया गया।
कुनो नेशनल पार्क में चीता कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, "जब हम अपनी जड़ों से दूर होते हैं तो बहुत कुछ खो बैठते हैं। इसलिए ही आजादी के इस अमृतकाल में हमने 'अपनी विरासत पर गर्व' और 'गुलामी की मानसिकता से मुक्ति' जैसे पंच प्राणों के महत्व को दोहराया है। पिछली सदियों में हमने वो समय भी देखा है जब प्रकृति के दोहन को शक्ति-प्रदर्शन और आधुनिकता का प्रतीक मान लिया गया था। 1947 में जब देश में केवल आखिरी तीन चीते बचे थे, तो उनका भी साल के जंगलों में निष्ठुरता और गैर-ज़िम्मेदारी से शिकार कर लिया गया। ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ।"
20 जुलाई 2022 को भारत और नामीबिया ने वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव-विविधता उपयोग संबंधी समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौता-ज्ञापन में दोनों देशों के बीच वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव-विविधता उपयोग पर जोर दिया गया है।
पीएम नरेंद्र मोदी ने आगे कहा, "इसके पीछे हमारी वर्षों की मेहनत है। एक ऐसा कार्य, राजनैतिक दृष्टि से जिसे कोई महत्व नहीं देता, उसके पीछे भी हमने भरपूर ऊर्जा लगाई। इसके लिए एक विस्तृत चीता एक्शन प्लान तैयार किया गया। हमारे वैज्ञानिकों ने लंबी रिसर्च की, साउथ अफ्रीकन और नामीबियाई एक्स्पर्ट्स के साथ मिलकर काम किया। हमारी टीम्स वहां गईं, वहां के एक्स्पर्ट्स भी भारत आए। पूरे देश में चीतों के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र के लिए वैज्ञानिक सर्वे किए गए, और तब कुनो नेशनल पार्क को इस शुभ शुरुआत के लिए चुना गया। और आज, हमारी वो मेहनत, परिणाम के रूप में हमारे सामने है।
पहले चरण में 8 चीते लाए गए हैं। इनमें पांच मादा और 3 नर हैं, दो नर चीतों की उम्र साढ़े पांच साल है। दोनों भाई हैं। पांच मादा चीतों में एक दो साल, एक ढाई साल, एक तीन से चार साल तो दो पांच-पांच साल की हैं। भारत में चीतों का इंतजार खत्म हो चुका है। करीब 11 घंटे का सफर करने के बाद चीते भारत पहुंचे। पांच मादा और तीन नर चीतों को लेकर विमान ने नामीबिया की राजधानी होसिया से उड़ान भरी। मॉडिफाइड बोइंग 747 विमान से लाए गए इन चीतों में रेडियो कॉलर लगे हुए हैं।
भारत सरकार अगले 5 साल में कूनो नेशनल पार्क में कुल 20 चीतों का पुर्नवास करना चाहती है। दुनिया में इस समय केवल 17 देशों में ही चीते मौजूद हैं। जिनकी कुल संख्या 7000 के करीब है।
चीता का नाम हिंदी के शब्द चित्ती से बना है, क्योंकि इसके शरीर के चित्तीदार निशान इसकी पहचान होते हैं।
चीता बिल्ली प्रजाति के दूसरे जीवों से इस मामले में अलग होते हैं क्योंकि कि वह रात में शिकार नहीं करता है।
चीता दुनिया का सबसे तेज़ दौड़ने वाला जीव है लेकिन वह बहुत लंबी दूरी तक तेज़ गति से नहीं दौड़ सकता, अमूमन ये दूरी 300 मीटर से अधिक नहीं होती।
चीते दौड़ने में सबसे भले तेज़ हों लेकिन कैट प्रजाति के बाकी जीवों की तरह वे काफ़ी समय सुस्ताते हुए बिताते हैं।
गति पकड़ने के मामले में चीते स्पोर्ट्स कार से तेज़ होते हैं, शून्य से 90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार पकड़ने में उन्हें तीन सेकेंड लगते हैं।
बाघ, शेर या तेंदुए की तरह चीते दहाड़ते नहीं हैं, उनके गले में वो हड्डी नहीं होती जिससे ऐसी आवाज़ निकल सके, वे बिल्लियों की तरह धीमी आवाज़ निकालते हैं और कई बार चिड़ियों की तरह बोलते हैं।
चीते की आंखों के नीचे जो काली धारियां आंसुओं की तरह दिखती है वह दरअसल सूरज की तेज़ रोशनी को रिफ़लेक्ट करती है जिससे वे तेज़ धूप में भी साफ़ देख सकते हैं।
मुग़लों को चीते पालने का शौक़ था, वे अपने साथ चीतों को शिकार पर ले जाते थे जो आगे-आगे चलते थे हिरणों का शिकार करते थे।
भारत में चीते को 1952 में लुप्त घोषित कर दिया गया था, अब एक बार फिर उन्हें दोबारा भारत में बसाने की कोशिश हो रही है।
भारत में जो चीते लाए गए हैं वे खुले मैदानों में शिकार करने के आदी हैं, उनके मध्य प्रदेश के जंगलों में शिकार करना कितना आसान होगा, यह अभी देखना बाक़ी है।
एक समय था जब भारत में चीता, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु में पाए जाते थे। लेकिन देश में आखिरी बार आखिरी बार चीते को साल 1947 में देखा गया था। भारत में चीते को 1952 में लुप्त घोषित कर दिया गया था।
भारत - मध्यप्रदेश - श्योपुर के लिए ऐतिहासिक पल !
70 वर्षों की प्रतीक्षा हुई खत्म !
प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी द्वारा कूनो नेशनल पार्क में किया गया चीतों को विमुक्त।
आभार मोदी जी !#IndiaWelcomesCheetah #CheetahIsBack pic.twitter.com/u89Fx14aql
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) September 17, 2022
कुनो नेशनल पार्क में चीता कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, "जब हम अपनी जड़ों से दूर होते हैं तो बहुत कुछ खो बैठते हैं। इसलिए ही आजादी के इस अमृतकाल में हमने 'अपनी विरासत पर गर्व' और 'गुलामी की मानसिकता से मुक्ति' जैसे पंच प्राणों के महत्व को दोहराया है। पिछली सदियों में हमने वो समय भी देखा है जब प्रकृति के दोहन को शक्ति-प्रदर्शन और आधुनिकता का प्रतीक मान लिया गया था। 1947 में जब देश में केवल आखिरी तीन चीते बचे थे, तो उनका भी साल के जंगलों में निष्ठुरता और गैर-ज़िम्मेदारी से शिकार कर लिया गया। ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ।"
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20 जुलाई 2022 को भारत और नामीबिया ने वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव-विविधता उपयोग संबंधी समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौता-ज्ञापन में दोनों देशों के बीच वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव-विविधता उपयोग पर जोर दिया गया है।
पीएम नरेंद्र मोदी ने आगे कहा, "इसके पीछे हमारी वर्षों की मेहनत है। एक ऐसा कार्य, राजनैतिक दृष्टि से जिसे कोई महत्व नहीं देता, उसके पीछे भी हमने भरपूर ऊर्जा लगाई। इसके लिए एक विस्तृत चीता एक्शन प्लान तैयार किया गया। हमारे वैज्ञानिकों ने लंबी रिसर्च की, साउथ अफ्रीकन और नामीबियाई एक्स्पर्ट्स के साथ मिलकर काम किया। हमारी टीम्स वहां गईं, वहां के एक्स्पर्ट्स भी भारत आए। पूरे देश में चीतों के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र के लिए वैज्ञानिक सर्वे किए गए, और तब कुनो नेशनल पार्क को इस शुभ शुरुआत के लिए चुना गया। और आज, हमारी वो मेहनत, परिणाम के रूप में हमारे सामने है।
Happy to share that India has signed a historic MoU with Namibia to promote Wildlife Conservation and Sustainable Biodiversity Utilization. The MoU seeks to promote conservation and restoration of cheetah in their former range from which the species went extinct. pic.twitter.com/MNVyw8S2eQ
— Bhupender Yadav (@byadavbjp) July 20, 2022
When #Cheetah are coming back to #India. A look at how the last of the lots were hunted, maimed and domesticated for hunting parties. Video made in 1939. 1/n pic.twitter.com/obUbuZoNv5
— Parveen Kaswan, IFS (@ParveenKaswan) September 16, 2022
चीता का नाम हिंदी के शब्द चित्ती से बना है, क्योंकि इसके शरीर के चित्तीदार निशान इसकी पहचान होते हैं।
चीता बिल्ली प्रजाति के दूसरे जीवों से इस मामले में अलग होते हैं क्योंकि कि वह रात में शिकार नहीं करता है।
चीता दुनिया का सबसे तेज़ दौड़ने वाला जीव है लेकिन वह बहुत लंबी दूरी तक तेज़ गति से नहीं दौड़ सकता, अमूमन ये दूरी 300 मीटर से अधिक नहीं होती।
चीते दौड़ने में सबसे भले तेज़ हों लेकिन कैट प्रजाति के बाकी जीवों की तरह वे काफ़ी समय सुस्ताते हुए बिताते हैं।
गति पकड़ने के मामले में चीते स्पोर्ट्स कार से तेज़ होते हैं, शून्य से 90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार पकड़ने में उन्हें तीन सेकेंड लगते हैं।
बाघ, शेर या तेंदुए की तरह चीते दहाड़ते नहीं हैं, उनके गले में वो हड्डी नहीं होती जिससे ऐसी आवाज़ निकल सके, वे बिल्लियों की तरह धीमी आवाज़ निकालते हैं और कई बार चिड़ियों की तरह बोलते हैं।
चीते की आंखों के नीचे जो काली धारियां आंसुओं की तरह दिखती है वह दरअसल सूरज की तेज़ रोशनी को रिफ़लेक्ट करती है जिससे वे तेज़ धूप में भी साफ़ देख सकते हैं।
मुग़लों को चीते पालने का शौक़ था, वे अपने साथ चीतों को शिकार पर ले जाते थे जो आगे-आगे चलते थे हिरणों का शिकार करते थे।
भारत में चीते को 1952 में लुप्त घोषित कर दिया गया था, अब एक बार फिर उन्हें दोबारा भारत में बसाने की कोशिश हो रही है।
भारत में जो चीते लाए गए हैं वे खुले मैदानों में शिकार करने के आदी हैं, उनके मध्य प्रदेश के जंगलों में शिकार करना कितना आसान होगा, यह अभी देखना बाक़ी है।