बदलते मौसम से कश्मीर की बागवानी और पनबिजली उत्पादन पर पड़ सकता है असर

मौसम विशेषज्ञों के अनुसार हालके वर्षों में कश्मीर घाटी में सर्दियों के दौरान कम बारिश और अनियमित मौसम बदलाव देखा गया है। अगर ऐसा ही रहा तो इसका सीधा असर कृषि, बागवानी और पनबिजली उत्पादन पर पड़ेगा जो किसानों के हित में नहीं है।

Mudassir KulooMudassir Kuloo   8 May 2023 9:19 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
बदलते मौसम से कश्मीर की बागवानी और पनबिजली उत्पादन पर पड़ सकता है असर

इस सर्दी में, चिल्लई कलां के दौरान भी घाटी में बहुत कम बर्फबारी हुई। फरवरी के मध्य के बाद, तापमान में अचानक वृद्धि हुई और बहुत कम बारिश हुई। मार्च की शुरुआत में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया था। अप्रैल में, सामान्य से अधिक वर्षा हुई है और अधिकतम तापमान फिर से 15 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया है।

श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर। मई की शुरूआत में जम्मू-कश्मीर के ऊपरी इलाकों में बर्फबारी हुई है, जिसने केंद्र शासित प्रदेश की घुमंतू जनजातियों के पलायन को रोक दिया है। गर्मी के मौसम में ये चारों की तलाश में अपने मवेशियों के साथ ऊंचाई पर चले जाते हैं।

खास बात ये है कि प्रदेश के उत्तरी हिस्से में इस साल मार्च के अंत और अप्रैल में कई बार बर्फबारी हुई है। जबकि सर्दी के के दौरान कम बारिश हुई। आमतौर पर ऐसा 21 दिसंबर से 31 जनवरी के बीच होता है।

जम्मू-कश्मीर के मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, कश्मीर में हाल की सर्दियों के दौरान वर्षा (बर्फबारी और वर्षा) 34 प्रतिशत कम थी। घाटी में एक दिसंबर, 2022 से 31 जनवरी, 2023 के बीच सामान्य 248.9 मिमी की तुलना में 188.9 मिलीमीटर (मिमी) बारिश हुई।

इसी तरह, इस साल फरवरी और मार्च में, घाटी में बारिश सामान्य रही । पहले के 130.4 मिमी और 152.9 मिमी के मुकाबले 40.7 मिमी और 78.9 मिमी बारिश हुई। यह इन दो महीनों के दौरान बारिश में 69 प्रतिशत और 48 प्रतिशत की गिरावट है।

इसके उलट, अप्रैल 2023 में, कश्मीर में सामान्य 99.6 मिमी के मुकाबले 113.5 मिमी वर्षा हुई, जो कि 14 प्रतिशत की वृद्धि है।

जम्मू-कश्मीर के मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक सोनम लोटस ने गाँव कनेक्शन को बताया कि इस साल सर्दियों के दौरान बारिश की कमी थी, लेकिन अप्रैल में घाटी के कई हिस्सों में बर्फबारी के साथ बारिश हुई है। लोटस ने कहा, "कश्मीर में पिछले दो हफ्तों से बादल छाए हुए हैं, बारिश और तापमान में गिरावट आई है, जिसके चलते ऊपरी इलाकों में हाल ही में बर्फबारी हुई है।"

यह बेमौसम स्थिति इस साल विभिन्न फसलों के उत्पादन को प्रभावित कर सकती है।

मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, वर्षों से, कश्मीर घाटी में मौसम की स्थिति अनिश्चित रहती है और सर्दियों के दौरान कम बारिश होती है, जो कृषि, बागवानी और जल-विद्युत उत्पादन को प्रभावित कर सकती है।

इस सर्दी में, चिल्लई कलां के दौरान भी घाटी में बहुत कम बर्फबारी हुई। फरवरी के मध्य के बाद, तापमान में अचानक वृद्धि हुई और बहुत कम बारिश हुई। मार्च की शुरुआत में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया था। अप्रैल में, सामान्य से अधिक वर्षा हुई है और अधिकतम तापमान फिर से 15 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया है।

घाटी में सर्दियों की बारिश में गिरावट आयी है। आईएमडी के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछली सर्दियों में, दिसंबर 2021 और जनवरी 2022 के बीच, कश्मीर घाटी में 288.4 मिमी की सामान्य वर्षा के मुकाबले 262.5 मिमी वर्षा हुई, जो नौ प्रतिशत की कमी है।

उससे एक साल पहले, दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 के बीच, कश्मीर क्षेत्र में 37 प्रतिशत की कमी (सामान्य की तुलना में) के साथ 180.9 मिमी बारिश हुई थी।

कश्मीर विश्वविद्यालय के भू सूचना विज्ञान विभाग में पढ़ाने वाले रफ़ान रशीद ने कहा कि कश्मीर में सर्दियों के दौरान कम बर्फबारी हो रही है और ग्लोबल वार्मिंग के कारण मार्च में तापमान में शुरुआती वृद्धि देखी जा रही है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ सकता है।

“कम बर्फबारी और तापमान में जल्दी वृद्धि से ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं। इसके अलावा, यह पनबिजली और बागवानी क्षेत्र के उत्पादन को प्रभावित कर रहा है। राशिद ने कहा, गर्मियों में नदियों में पानी कम होगा, जब ग्लेशियर जल्दी पिघलेंगे, जिसके चलते कृषि और बागवानी क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होंगे।


किसानों की शिकायत है कि इस साल मार्च में सामान्य से अधिक तापमान के कारण सेब और दूसरे फलदार पेड़ों पर जल्दी फल आ गए हैं।

“फिर अप्रैल के दूसरे सप्ताह में तापमान में अचानक गिरावट आई। यह बेमौसम स्थिति इस साल विभिन्न फसलों के उत्पादन को प्रभावित कर सकती है, "उत्तरी कश्मीर के सोपोर के एक सेब उत्पादक मोहम्मद अमीन ने गाँव कनेक्शन को बताया।

बागवानी क्षेत्र से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े 7 लाख परिवारों के साथ कश्मीर की अर्थव्यवस्था का ये मुख्य आधार है। जम्मू और कश्मीर के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बागवानी का योगदान आठ प्रतिशत से अधिक है। घाटी में 338,000 हेक्टेयर से अधिक जमीन फलों की खेती के अधीन है, जिसमें से 162,000 हेक्टेयर सेब की खेती के लिए है।

नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन के एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें आने वाले महीनों में पनबिजली उत्पादन पर सर्दियों में शुष्क मौसम के प्रभाव का पता चल जाएगा। “तापमान में अंतर के कारण बर्फ पिघलने लगी है। इसलिए पनबिजली का उचित उत्पादन नहीं हो सकता है जब गर्मियों में पानी का प्रवाह कम होगा, ”उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा।

जम्मू और कश्मीर में 20,000 मेगावाट की जलविद्युत उत्पादन क्षमता है, जिसमें से अब तक 3,000 मेगावाट से अधिक का दोहन किया जा चुका है।

लोटस के मुताबिक, मौसम का मिज़ाज हर साल बदलता है। “एक साल कम बारिश होती है और दूसरे साल ज्यादा बारिश होती है। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की ये अनियमित स्थिति बनी हुई है।

इस बीच, कश्मीर स्थित स्वतंत्र वेदर फोरकॉस्टर फैजान आरिफ ने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि बारिश में गिरावट नहीं आई है। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "इस सर्दी में बारिश कम हुई थी और अगले साल हम सामान्य या अधिक बारिश देख सकते हैं, क्योंकि अल नीनो के लौटने की उम्मीद है।"

एल नीनो और ला नीना उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में एक आवर्ती जलवायु पैटर्न के गर्म और ठंडे चरण हैं - एल नीनो-दक्षिणी दोलन, या जिसे संक्षेप में "ENSO" कहते हैं। पैटर्न हर दो से सात साल में अनियमित रूप से आगे और पीछे बदलता है। समुद्र की सतह के तापमान में बदलाव लाता है और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हवा और वर्षा के पैटर्न को बाधित करता है।

chillai kalan #heatwave #JammuKashmir #snowfall #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.