63 साल में फिर जवान होगा रिहंद, हाईटेक टरबाइन से होगा बिजली उत्पादन

Arvind ShukklaArvind Shukkla   7 Nov 2016 5:46 PM GMT

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63 साल में फिर जवान होगा रिहंद, हाईटेक टरबाइन से होगा बिजली उत्पादनरिहंद बाध यूपी के सोनभद्र जिले में स्थित है।

अरविंद शुक्ला/ कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: विष्णु तिवारी

सोनभद्र (उत्तर प्रदेश)। उत्तर भारत में बिजली उत्पादन का प्रमुख केंद्र रिहंद जल विद्युत परियोजना का कायाकल्प हो रहा है। इंजीनियर्स का दावा है कि 2018 तक अपनी क्षमता के मुताबिक फिर से बिजली का उत्पादन करने लगेगा। छह टरबाइन वाली इस परियोजना में तीन टरबाइन को अपग्रेड किया जा चुका है, जिनसे 150 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। जबकि तीन पर काम जारी है। यानि की अपने जन्म के 63 वर्ष में बांध को नया जीवन मिलेगा।

सोनभद्र के जिला मुख्यालय राबर्टगंज से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित रिहंद बांध रेनूकोट-शक्तिनगर मार्ग पर पिपरी में स्थित है। रिहंद विद्युत जल परियोजना के अधिशासी अभियंता (ऑपरेशन और मेंटिनेंस) डीबी यादव बताते हैं, “50 साल में मशीनें पुरानी हो गई थीं। पहले का प्लांट पूरी तरह मैकेनिकल था अब इलक्ट्रानिक हो जाएगा। कनवर्जन बढ़ जाएगा टरबाइन स्मूथ चलेगी तो उत्पादन बेहतर होगा।”

रिहंद डैम के फिलहाल सभी गेट बंद हैं। बरसात के दिनों में सभी गेट खोलने पड़े थे।

मशीनें पुरानी हो गई थीं। पहले का प्लांट पूरी तरह मैकेनिकल था अब इलक्ट्रानिक हो जाएगा। कनवर्जन बढ़ जाएगा टरबाइन स्मूथ चलेगी तो उत्पादन बेहतर होगा।
डीबी यादव, अधिशासी अभियंता (ऑपरेशन और मेंटिनेंस), रिहंद विद्युत जल परियोजना

रेनूकूट उत्तर प्रदेश का प्रमुख औद्योगिक केंद्र है। यहां से करीब 5 किलोमीटर दूर ये बांध है। बांध से 46 किलोमीटर पहले सोन नदी रिहंद से जुड़ती है। इन दोनों नदियों के पानी को रिंहद में रोक कर जलाशय बनाया गया है, जिसे गोविंद बल्लभ सांगर पंत जलाशय कहते हैं। 5148 वर्गमील में फैले इस जलाशय के लिए बांध का निर्माण कार्य 1954 में शुरु हुआ था। 300 फीट की उंचाई और 3065 फीट लंबाई वाले इस कंक्रीट ग्रेविटी बांध का निर्माण 1962 में पूरा हुआ। बांध और पावर प्लांट का अनावरण देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 7 जनवरी 1963 को किया था।

बिजली घर के अंदर टरबाइन को नया रूप देते इंजीनियर।

सैकड़ों टन वजनी हैं टरबाइऩ, 2008 से चल रहा है अपग्रेडेशन का काम

हाईड्रो इलेक्ट्रिक पॉवर जेनरेशन द्वारा 300 मेगावॉट बिजली का निर्माण होना था, लेकिन उतना कभी हो नहीं पाया। पुरानी मशीनरी और तकनीकि के चलते एक टर्बानइन से महज 25-35 मेगावाट उत्पादन ही हो रहा था, इसलिए वर्ष 2008 में बीएचईल के सौजन्य से इसके रेनोवेशन इसे अप्रगेडेश का कार्य शुरु हुआ वर्तमान में 50-50 मेगावट की चार टरबाइन को बदला जा चुका है, जिनमें तीन अपनी पूरी क्षमता से काम कर रही हैं। बीएचईल के लिए काम करने वाली कंपनी पावर मेकर प्र. लि के इंजीनियर संजीव शर्मा बताते हैं, “टरबाइन को पूरी तरह आधुनिक कर दिया गया है। अब ये पूरी प्लांट ऑटोमैटिक है। 2 टरबाइन पर काम जारी है 2018 तक काम पूरा हो जाएगा।” रिहंद डैम की तलहटी में स्थित पावर प्लांट में दर्जनों इंजीनियर और मैकेनिक भीमकाय टरबाइन समेत दूसरी मशीनों के बदलने और मेंटेंनेस में लगे हुए। एक-एक टरबाइन सैकड़ों टन वजनी है। बाहर से उपकरणों को लाकर यहां एसेंबल किया जाता है। टरबाइन के क्वाइल भरने में काफी वक्त लगता है।

पहले के ज्यादातर काम मैनुअल होते थे इसलिए उन्हें अपग्रेड किया जा रहा है। बिजली उत्पादन में एक बड़ी समस्या पानी का जलस्तर भी जिसे बढ़ाने पर भी काम जारी है। कुछ तकनीकी मामले सुलझते ही इस पर भी काम शुरु हो जाएगा।
आरबीएस यादव, अधिशासी अभियंता, सिंचाई विभाग

पहले ये प्लांट मैकेनिकल था अब आटोमैटिक हो गया है, जिसका असर उत्पादन पर पड़ा है।

अधिशासी अभियंता (सिंचाई विभाग) आरबीएस यादव बताते हैं, “पहले के ज्यादातर काम मैनुअल होते थे इसलिए उन्हें अपग्रेड किया जा रहा है। बिजली उत्पादन में एक बड़ी समस्या पानी का जलस्तर भी जिसे बढ़ाने पर भी काम जारी है। कुछ तकनीकी मामले सुलझते ही इस पर भी काम शुरु हो जाएगा।”

कई और बिजली इकाइयों को जीवन देता है रिहंद

दरअसल उत्‍तर प्रदेश हाईड्रो इलेक्ट्रिकसिटी कॉरपोरेशन लिमिटेड के स्वामित्व इस बांध में 61 संयुक्‍त और स्‍वतंत्र ब्‍लॉक है। डैम के खुद पावर प्लांट में बिजली उत्पादन के साथ ही रेनूसागर में बिड़ला, अऩपरा में राज्य उत्पादन निगम का थर्मल लैंको, सिंगौरली में एनटीपीसी की तीन यूनिट रिहंद जलाशय के पानी पर ही आश्रित हैं। यहां करीब 2000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है। बिजली विभाग के प्राप्त आंकड़ों के अऩुसार देश में बिजली उत्पादन का कुल 15 फीसदी उत्पादन रिहंद के आसपास है।

इसके साथ ही जलाशय के पानी से कई जिलों में सिंचाई का पानी और दूसरी बिद्युत उत्पादन इकाइयों को जरुरी पानी मिलता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बांध का लगातार घटता जलस्तर लोगों की चिंता का सबब बना हुआ था। हालांकि इस वर्ष मानसून के दौरान बांध के सभी 11 गेट खोलने पड़े थे, जिसके बाद प्रशासन ने थोड़ी राहत की सांस ली थी। ये यूपी का सबसे बड़ा हाइड्रो बेस्ट पावर प्लांट है। ऐसे में अगर यहां से पूरी क्षमता से उत्पादन हुआ तो प्रदेश में बिजली की उपलब्धता पर असर पड़ेगा।

बांध से सोनभद्र में कई दूसरी बिजली परियोजनाओं को जरूरी पानी मिलता है।

प्रदूषण से जलाशय और डैम को खतरा

गोविंद बल्लभ पंत सागर जलाशय का वाटर कैचमेंट एरिया कई किलोमीटर में फैला है, जिसमें कुछ इलाका छत्तीसगढ़ का भी आता है। प्रदूषण के चलते बांध की तलहटी में लगातार सिल्ट (गाद) जमा हो रही है, जिसके चलते इसकी जल ग्रहण क्षमता प्रभावित हुई है। बताय जा रहा कुछ वक्त पहले ही इसकी जलग्रहण के अधिकतम स्तर को 882 से घटाकर 870 फीट कर दिया गया है। बिजली उत्पादन में कमी के पीछे की बड़ी वहज पानी की कमी थी। रिहंद बाँध की निगरानी में लगी स्ट्रक्चर बीहैवियर मॉनिटरिंग कमेटी समेत तमाम एजेंसियां मौजूदा स्थिति के लिए बाँध के मौजूदा प्रदूषण को ही जिम्मेदार मानती है।

52 करोड़ से कम लागत में बनकर तैयार हुआ था विशालकाय बांध

बांध की ऊपरी सतह जो 24 फीट चौड़ी है।

रिहंद बाद आजाद भारत की सबसे बड़ी और महत्वकांक्षी परियोजनाओं में से एक था। इसकी उस वक्त की लागत 51.52 करोड़ रुपये थे। बांध की बेस में चौड़ाई 275 फीट जबकि ऊपर 24 फीट है। रिहंद बांध परियोजना जवाहर लाल नेहरू की दूरदृष्टि थी। बताया जाता है रिहंद के उद्घाटन के लिए रेनूकूट पहुंटे देश के पहले प्रधानमंत्री ने सोनभद्र को भारत का स्वीटजरलैंड कहा था। इलाके के लोग अब भी इस हरे भरे इलाके को यूपी का कश्मीर कहते हैं लेकिन यहां क्रशर, खनन और पावर प्लांट और अऩ्य औद्योगिक इकाइयों के चलते यहां प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। डाला सीमेंट फैक्ट्री के पास दिन में इतनी धुंध रहती है कि हाईवे पर दिखाई पडना बंद हो जाता है। राजीव गांधी सरकार सरकार के ऊर्जा मंत्री बसंत साठे ने इस इलाके को नेहरु ऊर्जा मंडल के अंतर्गत संरक्षित करने का सुझाव दिया था लेकिन वो योजना फाइलों तक भी नहीं पहुंच पाई और आज देश की इस धरोहर में पानी का संकट तो है कि खनिज संपदा से भरपूर इस इलाके में जीवन भी दुष्कर हो गया है।

अतिरिक्त सहयोग- करनपाल सिंह

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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