आखिर इन पटरियों से क्यों उतर जाती हैं ट्रेनें
Kushal Mishra 22 Jan 2017 11:09 AM GMT
लखनऊ। कानपुर के पास पुखरायां में इंदौर-पटना एक्सप्रेस पलटने की घटना भारतीय रेल के इतिहास में पहली घटना नहीं है। पटरियों के टूटने और चटकने की घटनाएं पहले भी होती आई हैं और अब तक हजारों लोग ट्रेन हादसों में अपनी जान गंवाते आए हैं। इन घटनाओं में कोई बच्चा शोरगुल में बिलखता हुआ नजर आया है तो किसी के मां-बाप ट्रेन के डिब्बों के नीचे दबे नजर आए हैं। भारतीय रेलवे के इतिहास में ऐसी सैकड़ों रेल हादसे दर्ज हैं। अंग्रेजों के जमाने की बिछाई हुईं ये कमजोर पटरियां ऐसे रेल हादसों को दावत देती रही हैं। आखिर इन पटरियों से ट्रेन उतरने के क्या कारण रहे हैं?
क्या इन पटरियों में दौड़ेगीं हाई स्पीड ट्रेन
पिछले कुछ सालों में देश में बढ़े रेल हादसों की घटनाओं ने यात्रियों की सुरक्षा पर सवाल उठाएं हैं। बीते कुछ सालों में इन घटनाओं के बाद जब रेलवे की विजिलेंस टीम ने जांच की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। विजिलेंस की टीम ने अपनी जांच में पाया कि न केवल रेल की पटरियां, ट्रेन के पहियों को टिकाने के उपयोग होने वाला हैंगर पिन और ब्रेक तक की गुणवत्ता बेहद खराब और दोयम दर्ज की है। ऐसे में भारतीय रेलवे जहां बुलेट ट्रेन और हाई स्पीड ट्रेनों को चलाने की तैयारी कर रही है, वहीं आए दिन हो रहे इन रेल दुर्घटनाओं ने बड़े यात्रियों की सुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं।
आखिर इन पटरियों से क्यों उतर जाती हैं ट्रेनें
रेलवे की विजिलेंस टीम में इन हादसों के बाद जांच रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए, उनमें ये ट्रेनों के पटरियों से उतरने के कारण स्पष्ट नजर आए।
- पटरियों से ट्रेन के उतरने का मुख्य कारण माना गया है मैकेनिकल फाल्ट या रेलवे ट्रैक पर लगने वाले उपकरण का खराब होना। जैसे पटरियों का चिटक जाना, ट्रेन के डिब्बे को बांधे रखने वाले उपकरण का ढीला होने से गेज में फैलाव होना।
- ट्रेन की बोगी को चलाने वाला कोई एक्सेल ब्रेक या पहिया का टूट जाना।
- इन पटरियों पर लगातार ट्रेनों के चलने की वजह से होने वाले घर्षण से ट्रैक का बिगड़ जाना।
- रेलवे फाटक पर किसी वाहन से टकरा जाना।
- सिग्नल देने में गलती होने की वजह से।
- आपातकालीन अवस्था में ट्रेन को तुरंत रोकने की स्थिति में अचानक ब्रेक लगाना।
मौसम बदलने पर बढ़ जाती हैं घटनाएं
रेलवे अधिकारी मौसम में बदलाव की वजह को भी इन घटनाओं की वजह बताते रहे हैं। रेलवे अधिकारियों का मानना है कि मौसम के बदलने पर ये कमजोर पटरियां चिटकने और टूटने लगती हैं। जाड़े के मौसम में पटरियां सिकुड़कर सख्त हो जाती हैं और जब हैवी वेट ट्रेन तेज गति से गुजरती हैं तो सिकुड़न की वजह से पटरियां टूट जाती हैं। यानी इसके पीछे दिन और रात में चढ़ता और उतरता तापमान भी एक वजह है। रेलवे के एक अधिकारी बताते हैं कि तापमान कम होने पर पटरी टूटने की शिकायतें बढ़ जाती हैं। कानपुर के पुखरायां में रविवार को हुए ट्रेन हादसे की वजह भी रेलवे अधिकारी प्रथम दृष्टया यही मान रहे हैं। वहीं, गर्मी में तापमान बढ़ने पर पटरियां फैल जाती हैं।
रेल फ्रैक्चर और वेल्डिंग टूटने के एक महीने में 1053 मामले
रेल हादसों के साथ ही भारतीय रेल के इतिहास में ऐसी कई घटनाएं ऐसी आई हैं कि जिनमें चटकी पटरियों में भी ट्रेनों के गुजर जाने की खबरें आई हैं। इतना ही नहीं, एक ही जगह बार-बार पटरियों के चिटकने और टूटने की घटनाएं भी हुई हैं। वहीं, पटरियों के वेल्डिंग टूटने जैसी घटनाएं देशभर के सभी मंडलों में सामने आई हैं। पिछले साल रेलवे बोर्ड की ज्वाइंट एक्शन रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में बीते साल सितंबर महीने में रेल फ्रैक्चर के 511 और वेल्डिंग टूटने के 542 मामले सामने आए हैं। वहीं, यह आंकड़े अक्टूबर महीने में 1200 तक छू गये।
ज्यादातर ट्रैक और डिब्बे जर्जर
ब्रेक ब्लॉक और हैंगर पिन टूटने की घटनाएं बढ़ने के बाद भी रेलवे बोर्ड ने इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाया है। जबकि यह ऐसे उपकरण हैं, जिसे गड़बड़ी होने पर चलती ट्रेन को दुर्घटना से रोक पाना नामुमकिन है। रिपोर्ट की मानें तो देशभर की ज्यादातर ट्रेनों में घटिया पुर्जे लगे हैं और उन्हें एक साथ बदल पाना रेलवे के लिए नामुमकिन है। देश में कालका हादसे के बाद परमाणु वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोदकर की अध्यक्षता वाली कमेटी ने जो रिपोर्ट बनाई थी, उसके मुताबिक लगभग हर ट्रेन के यात्री डिब्बे असुरक्षित हैं। वहीं, वर्षों पुराने रेलवे पुल जर्जर हो चुके हैं और अधिकतर रेलवे ट्रैक खराब हो चुके हैं। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने भारतीय रेल की एक भयावह तस्वीर पेश की थी। वहीं, एक और रिपोर्ट में रेल हादसों का कारण दोयम दर्जे की रेल पटरियों का उपयोग पाया गया है।
वर्ष रेल हादसे में मौतें
2010 24,451
2011 25,872
2012 27,402
2013 27,765
2014 25,006
वर्ष 2014 में कुल 28,360 रेल हादसे हुए थे।
(नोट-सभी आंकड़े एनसीआरबी के हैं)
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