गंदगी से निपटने के लिए बेंगलुरू का एक्शन प्लान, सफाई के साथ इस तरह हो रहा किसानों का फायदा
Anusha Mishra 26 July 2017 3:55 PM GMT
लखनऊ। बंगलुरू जैसे तेज़ी से आगे बढ़ते शहर में मानव मल का निस्तारण एक बहुत बड़ी समस्या है। लेकिन नागरिक प्रशासन ने इस समस्या से निपटने का रास्ता खोज लिया है। 2015 में देवनहल्ली में मल और कचरे के उपचार संयंत्र (एफएसटीपी) लगाया जिसमें 20,000 घरों के मल को इकट्ठा किया जाता है। यह अपनी तरह का एक अनोखा मॉडल है जिसका इस्तेमाल देश के बाकी हिस्सों में भी किया जा सकता है। संयंत्र में उपाचार के बाद इस मल का इस्तेमाल किसानों के लिए खाद बनाने में किया जाता है।
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गुरुवार को इस प्रोजेक्ट की दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज (डीसीसीसी), भारतीय विज्ञान संस्थान में आयोजित फ्यूचर अर्थ साउथ एशिया क्षेत्रीय कार्यशाला में चर्चा की गई। ये प्रोजेक्ट डीवाईएटीएसटीएम प्रसार (सीडीडी) के लिए बेंगलुरु स्थित फर्म कंसोर्टियम की मदद से स्थानीय प्रशासन द्वारा चलाया जा रहा है।
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सीडीडी की टीम मेंबर क्लारा निकोली ने इस कार्यशाला में कहा कि मल और कचरे के प्रबंधन के इस तरह के संयंत्रों ज़रिए यूनाइटेड नेशन ने सफाई को लेकर जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं उनको पूरा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत के कई हिस्सों में खेतों में ऐसी मिट्टी है जिसमें फॉस्फोरस की कमी है और कई ऐसे किसान हैं जो बिना उपचार के इस कचरे का इस्तेमाल खेती में करते हैं। कचरे का प्रत्यक्ष उपयोग फसलों के प्रदूषण का कारण बन सकता है। लेकिन अगर कचरे का उपचार करके उससे ख़ाद बनाकर गरीब अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में किया जाता है, तो यह कचरे के प्रबंधन की समस्या को हल करने में मदद करेगा और साथ ही मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करेगा।
देवनाहल्ली में मल और कचरे का संयंत्र स्थापित करने से पहले, केंगरी में बीड़ी वर्कर्स कॉलोनी में इस तरह का एक पायलट प्रोजेक्ट लागू किया गया था। एफएसटीपी को सेप्टिक टैंकों से मल और कचरा मिलता था जिसका संयंत्र में उपचार करके ख़ाद बनाई जाती है। निकोली के मुताबिक, इस ख़ाद को अगर बेकार सब्ज़ियों से बनी खाद में मिला दिया जाए तो यह और भी अच्छे उर्वरक का काम करता है।
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सीडीडी के कृषि सलाहकार गिरिजा आर के मुताबिक, उनके संस्थान ने देवनहल्ली में किसानों के लिए ऐसी कार्यशालाओं का भी आयोजन कराया जहां उन्हें मल और कचरे के सुरक्षित पुन: उपयोग के बारे में सिखाया गया। वह बताते हैं कि बंगलुरू के क़स्बों में इस तरह के और संयंत्र लगाने की सोच रहे हैं। कर्नाटक ने अपनी जीरो निर्वहन नीति के जरिये छोटे पैमाने पर कचरा प्रबंधन में नेतृत्व किया है, जो बताता है कि बड़े अपार्टमेंटों को अपने सीवेज उपचार संयंत्र स्थापित करने होंगे।
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