कौन लंबी उम्र जीता है, गाँव या शहर के लोग ?

Anusha MishraAnusha Mishra   14 Nov 2018 5:37 AM GMT

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कौन लंबी उम्र जीता है, गाँव या शहर के लोग ?शहर और गाँव के लोगों की ज़िंदगी

आमतौर पर कहा जाता है, गांव की आबोहवा में रहने वाले लोग अच्छी हवा और शुद्ध खाना खाना खाते हैं, इसलिए वो ज्यादा लंबी उम्र जीते हैं, जबकि शहर में टेंशन, प्रदूषण और दूसरी समस्याओं के चलते यहां की औसत आयु कम है। लेकिन आंकड़े कुछ और कहते हैं। गांव के लोगों की अपेक्षा शहर के लोग ज्यादा जीते हैं। उनकी उम्र लंबी होती है।

मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) भारत और नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण (एसआरएस) आधारित जीवन सारणी 2010-14 के अनुसार, देश में जहां शहर में रहने वाले पुरुषों की औसत आयु 70 साल है, वहीं गाँव में रहने वाले पुरुषों की औसत आयु 65.1 वर्ष है। यानी ग्रामीणों की अपेक्षा शहर के लोग करीब 5 साल ज्यादा जीते हैं। वहीं शहरी महिलाओं की औसत आयु 73.2 वर्ष है तो ग्रामीण महिलाओं की आबादी 68.4 वर्ष है।

संभव है कि लोग इन आंकड़ों पर सवाल खड़े, क्योंकि वो मानते हैं कि बढ़ते प्रदूषण और बिगड़ती जीवनशैली के कारण शहरी आबादी बीमारियों का शिकार हो रही है और इन बीमारियों से न जाने कितने लोगों की जान चली जाती है। गाँव में वातावरण अच्छा होता है, वहां के लोगों की जीवनशैली दुरुस्त होती है। खान - पान में मिलावट कम होती है, वे शारीरिक परिश्रम ज़्यादा करते हैं, उन्हें आवो हवा अच्छी मिलती है इसीलिए इस तरह की बीमारियां उन्हें कम घेरती हैं और वो लंबा जीते हैं। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसके बावजूद भारत में ग्रामीणों की औसत आयु शहर के लोगों की अपेक्षा कम है।

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शहर और ग्रामीण इलाकों की औसत आयु देश में भी अलग-अलग है। पहाड़ के लोग जैसे हिमाचल और कश्मीर के लोग लंबी उम्र जीते हैं। वैसे ही दूसरे राज्यों में भी ये अंतर है। ग्रामीणों की औसत आयु के मामले में जहां केरल (पुरुषों की 71.7 और महिलाओं की 78.1 वर्ष) वहीं शहरी पुरुषों की औसत आयु के मामले में हिमाचल प्रदेश (75.2 वर्ष) व शहरी महिलाओं के मामले में जम्मू कश्मीर (79.6 वर्ष) आगे है। यहां हम आपको ये भी बता दें कि सेंसस इंडिया के 2011 के आंकड़ों के अनुसार, भारत की 68.84 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है और 31.16 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है।

ग्रामीणों की औसत आयु शहरी आबादी के मुकाबले कम क्यों है? इसके कई कारण हैं। लखनऊ के वरिष्ठ पल्मनोलॉजिस्ट डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी बताते हैं कि गाँव के लोगों की औसत आयु कम होने कारण उनके जन्म से ही शुरू हो जाता है। वह बताते हैं कि गाँव के लोगों को सही मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाते। यहां ज़्यादातर महिलाएं एनीमिया का शिकार होती हैं। जिन महिलाओं में गर्भावस्था में ही एनीमिया होता है उनके बच्चे सामान्य से कम वजन के पैदा होते हैं और सही पोषण न मिल पाने की वजह से उनका प्रतिरक्षा तंत्र उतना मज़‍बूत नहीं हो पाता जितना होना चाहिए। जो कहीं न कहीं कुल आयु पर असर डालता है। डॉ. त्रिपाठी ने इसके अलावा भी कई कारण बताएं है जो ग्रामीणों की औसत आयु कम होने के लिए ज़िम्मेदार हैं।

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मेेडिकल सुविधाओं की कमी है बड़ी समस्या

शहरों के मुकाबले गाँवों में चिकित्सकीय सुविधाओं का हाल बहुत बुरा है। गाँव में रहने वाली आबादी की औसत आयु कम होने का एक मुख्य कारण वहां चिकित्सकीय सुविधाओं की कमी है। भारत के फार्मास्युटिकल प्रोड्यूसर्स का संगठन (ओपीपीआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में 60 प्रतिशत अस्पताल, 75 प्रतिशत डिस्पेंसरी और 80 प्रतिशत डॉक्टर शहरी इलाकों में हैं, देश की सिर्फ 31 प्रतिशत आबादी के लिए काम करते हैं। बाकी की 69 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के लिए 40 प्रतिशत अस्पताल, 25 प्रतिशत डिस्पेंसरी और 20 प्रतिशत डॉक्टर हैं। अब आप इस आंकड़े से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकीय सुविधाओं की क्या स्थिति है। चिकित्सकीय सुविधाओं में कमी के कारण व्यक्ति को सही इलाज़ नहीं मिल पाता और उसकी मौत हो जाती है।

गंदगी भी पड़ रही है उम्र पर भारी


गाँवों में अभी भी सफाई का वो स्तर नहीं है जो होना चाहिए। भारत में 2,36,004 गाँव ऐसे हैं, जहाँ की आबादी 500 व्यक्तियों से भी कम हैं, जबकि 3,676 गाँवों की आबादी 1000 व्यक्तियों से भी अधिक है। भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में पिछले दो सालों में 3.9 करोड़ घर शौचालय युक्त हो चुके हैं। करीब 1.9 लाख गाँव ऐसे हैं, जहाँ लोग अब खुले में शौच जाने से तौबा कर चुके हैं यानी वो हो चुके हैं स्वच्छता से चकाचक। हालांकि ये आंकड़े एक बेहतर भविष्य की ओर इशारा कर रहे हैं लेकिन जिन गाँवों में अभी भी सफाई की समुचित व्यवस्था नहीं है वहां के हालात चिंताजनक हैं।

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आंकड़ों के अनुसार झारखंड (18.8 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (21.2 प्रतिशत), ओडिशा (26.3 प्रतिशत), मध्यप्रदेश (27 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (29.5 प्रतिशत) जैसे राज्यों में अभी भी कम ही घरों में शौचालय है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जहां, 52.1 प्रतिशत ग्रामीण खुले में शौच जाते हैं वहीं शहरों में ये आंकड़ा सिर्फ 7.5 फीसदी है। ग्रामीण क्षेत्रों में 42.1 फीसदी शौचालयों में ही पानी की उपलब्धता है। ये एक बड़ा कारण ग्रामीण आबादी में सफाई से जुड़ी बीमारियां होने और उनका सही समय पर इलाज़ न होने से उनकी मृत्यु हो जाती है।


तो पौष्टिक खाना नहीं खा पाते ग्रामीण

राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो (एनएनएमबी) के 2016 में कराए गए एक सर्वे के अनुसार, 1975 - 1979 के मुकाबले अब भारतीय ग्रामीण 550 कैलोरी, 13 ग्राम प्रोटीन, 5 मिग्रा आयरन, 250 मिग्रा कैल्शियम और लगभग 500 मिग्रा विटामिन कम लेते हैं।
तीन साल से कम के बच्चों को एक दिन में 80 एमएल दूध ही मिलता है, जबकि उन्हें एक दिन में 300 एमएल दूध की ज़रूरत होती है। इस सर्वे में 35 फीसदी ग्रामीण पुरुष व महिलाएं और 42 प्रतिशत ग्रामीण बच्चों का वजन औसत से कम पाया गया।



इस सर्वे में ये भी सामने आया कि पिछले 40 वर्षों में गाँवों में भूमिहीन लोगों का अनुपात 30 से 40 फीसदी बढ़ा, और भूस्वामियों व किसानों की संख्या लगभग 50 प्रतिशत कम हो गई। इस बीच, भारत में खाद्य मुद्रास्फीति समग्र मुद्रास्फीति की तुलना में तेज दर से बढ़ी है। 40 साल पहले ये लगभग 6.7 प्रतिशत थी और इस बीच ये बढ़कर 10 प्रतिशत हो गई। यानि गाँव में भूखे रहने वालों की संख्या में इजाफ़ा हुआ जो उनकी औसत आयु कम होने का एक कारण है।

आर्थिक तंगी

गाँवों के लोगों की औसत आयु कम होने का मुख्य कारण उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी न होना है। भारत के ग्यारहवीं राष्ट्रीय विकास योजना के अनुसार भारत में 300 मिलियन से अधिक लोग गरीब हैं। हालांकि भारत ने इस दिशा में में 55% से गरीबों की संख्या 2004 में घटकर लगभग 27% (326 मिलियन गरीब) को कम करने में कामयाबी हासिल की है। मैप्स ऑफ इंडिया के अनुसार, भारत के ग्रामीण इलाकों में 216.5 (2011) मिलियन गरीब लोग हैं। भारत के सात राज्यों – छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लगभग 61% गरीब जनसंख्या वास करती है।

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गाँवों में जो व्यक्ति 27 रुपये रोज़ कमाता है भारत सरकार के अनुसार वह गरीबी रेखा के ऊपर आता है। यानि रोजाना 26 रुपये या उससे कम कमाने वाला व्यक्ति गरीब माना जाता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत में औसत 816 रुपये प्रति महीने कमाने वाला व्यक्ति ग़रीब माना गया है और इसके मुताबिक, भारत की कुल आबादी में से 25.70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है। किसी भी दूसरी सुविधा तक ग्रामीणों की पहुंच न होने का एक मुख्य कारण उनकी आर्थिक तंगी है।

धूम्रपान

डॉ. त्रिपाठी बताते हैं कि गाँव के लोग शहर वालों की अपेक्षा ज़्यादा धूम्रपान करते हैं। गाँव में हुक्का, चिलम आदि का चलन आज भी है। इसके अलावा अप्रत्यक्ष धूम्रपान का शिकार भी गाँव के लोग ज़्यादा होते हैं। वह कहते हैं कि जो ग्रामीण महिलाएं चूल्हे पर खाना बनाती हैं उनका धुएं से एक्सपोजर एक दिन में लगभग 5 से 6 घंटे का होता है। जो एक दिन में लगभग 10 सिगरेट पीने के बराबर होता है।

ब्रिटेन की लैंसेट पत्रिका में छपे एक अध्ययन के अनुसार, घर के अंदर का वायु प्रदूषण (आईएपी) के मामले में भारत बहुत आगे है। यहां हर साल लगभग 500,000 लोगों की मौत घर आईएपी के कारण हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गाँवों में लगभग 70 प्रतिशत घरों में वेंटिलेशन की उचित व्यवस्था नहीं है। डब्लूएचओ का अनुमान है कि ग्रामीण भारतीय रसोई में प्रदूषण स्तर तय मानक की तुलना में 30 गुना अधिक है और राष्ट्रीय राजधानी में पाए जाने वाले वायु प्रदूषण स्तर से छह गुना अधिक है। इससे ग्रामीणों को अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां हो जाती हैं। इसके अलावा उनके फेफड़ों में संक्रमण होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

ट्रांसपोर्टेशन की समस्या

गाँवों में एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए यातायात के सार्वजनिक साधनों की अभी भी कमी है। देर रात अगर किसी को ज़रूरत पड़ जाए तो ऐसे बहुत ही कम गाँव होंगे जहां से शहर जाने के लिए कोई साधन मिल जाए। इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ़ पब्लिक ट्रांसपोर्ट (यूआईटीपी) के आंकड़ों (2011 की जनगणना) के अनुसार, भारत के गाँवों में 11.2 मिलियन लोगों की मुख्य सवारी साइकिल है, 9.6 मिलियन लोग बस से काम पर जाते हैं, 6.3 मिलियन लोग मोपेड, स्कूटर व मोटरसाइकिल से।

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राष्ट्रीय परिवहन नीति समिति (एनटीपीसी) के अनुसार, देश में गाँवों की सिर्फ 55 प्रतिशत सड़के हीं फेयर वेदर रोड्स (एफड‍्ब्ल्यूआर) से जुड़ी हैं। एफड‍्ब्ल्यूआर से सभी गांवों को कवर करने के लिए 30,000 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता है, जो सरकार की मौजूदा प्राथमिकताओं के दायरे से परे है। यह भी एक कारण कि विपरीत परिस्थितियों में शहर तक पहुंचने के लिए साधन नहीं है। ऊबड़ - खाबड़ सड़कों के कारण कई बार वाहन सही गति से नहीं चल पाता। बीमार व्यक्ति समय पर अस्तपताल नहीं पहुंच पाता और रास्ते में दम तोड़ देते हैं।

जागरूकता

ग्रामीणों में आज भी जागरूकता की काफी कमी है। वे बीमारियों के लक्षणों को नहीं पहचानते, अगर पहचान भी लेते हैं तो सही समय पर इलाज़ नहीं कराते। कई मामलों में वे किसी नीम - हकीम या झोलाछाप से ही बीमारी का इलाज़ कराते रहते हैं। सही समय पर सही इलाज़ न मिलने के कारण कई बार कम उम्र में ग्रामीण व्यक्ति की मौत हो जाती है।

   

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