बुंदेलखंड: पाइपलाइन बिछ गई, नल लग गए, पर कहां है जल?

बुंदेलखंड में हर साल भीषण गर्मी पड़ती है और हर साल इलाके की महिलाओं को पानी की तलाश में दूर तक जाना पड़ता हैं। हालांकि केंद्र सरकार की जल जीवन मिशन की हर घर जल योजना के तहत, उत्तर प्रदेश के इस सूखाग्रस्त क्षेत्र के गाँवों के घरों को पानी की पाइपलाइन और नल से जोड़ा गया है, लेकिन उनमें पानी नहीं है। अपनी 'पानी यात्रा सीरीज' में गाँव कनेक्शन इसके पीछे के कारणों की पड़ताल कर रहा है।

Shivani GuptaShivani Gupta   9 May 2022 9:59 AM GMT

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झांसी, उत्तर प्रदेश

सुबह के 7.30 बज रहे हैं। चिड़ियों के चहचहाने की आवाज महिलाओं के तेज शोर में दबती चली जा रही हैं। वहां बहस इस बात पर हो रही है कि पहले पानी कौन भरेगा। तकरार सुबह से होना शुरू होती है और दोपहर तक यूं ही चलती जाती है।

महिलाएं अपनी प्लास्टिक की बाल्टी और स्टील के बर्तन को पानी से भरने के हाथापाई और धक्का-मुक्की करने में लगी हैं। जिस नल के पास वे पानी भरने के लिए जमा है, उससे बहुत ही कम पानी आ रहा है।

"सीमेंट, पेंट, पाइप और नल सब कुछ है… लेकिन पानी नहीं है, "राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 340 किलोमीटर दूर स्थित झांसी के बबीना ब्लॉक के डेली गाँव की निवासी रामसखी परिहार ने तंज कसते हुए बताया। उन्होंने गाँव कनेक्शन कहा, "चाहे कोई सरकार आ जाए, इस गाँव की समस्या को कोई हल नहीं कर सकता है।"

रामसखी अपने परिवार की जरूरतों के लिए पानी लाने के लिए सुबह 6 बजे उठती हैं। उसका आधा दिन परिवार के लिए पानी लाने में चला जाता है। फोटो: यश सचदेव

केंद्र सरकार की हर घर जल योजना के तहत पांच से छह महीने पहले रामसखी के गाँव में पाइप और नल लगाए गए थे। लेकिन इनमें पानी नहीं आ रहा है। ग्रामीण हर महीने 100 रुपये खर्च करके, एक प्राइवेट नल से पानी खरीदने के लिए मजबूर हैं। लेकिन यहां भी पानी आसानी से नहीं मिल पाता। झगड़े और लंबे इंतजार के बाद बमुश्किल कुछ ही बाल्टी ही भर पाती हैं।

डेली गाँव से करीब 18 किलोमीटर दूर चंद्र नगर गाँव में भी कुछ ऐसा ही हाल है। दो सौ की आबादी वाले चंद्र नगर गाँव की अशोकवती ने गाँव कनेक्शन को बताया, "पाइपलाइन बिछाए एक महीना हो गया है लेकिन हमें अभी तक पानी नहीं मिला है। हमारा दिन पानी लाने से शुरू होता है और अगली सुबह पानी खोजने के तनाव के साथ खत्म होता है।"

रामकाशी और अशोकवती का संकट उन लाखों अन्य ग्रामीण निवासियों से अलग नहीं है जो बढ़ते तापमान में पानी खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मार्च 2022 पिछले 122 वर्षों में देश में सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया था, और गर्मी की लहरों के शुरुआती आगमन ने लोगों को तैयार नहीं किया है। ग्रामीण भारत हमेशा गर्मियों में पीने के पानी के लिए संघर्ष करता रहा है और इस साल इसकी बदहाली और बढ़ गई है, क्योंकि देश जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से जूझ रहा है।


ग्रामीण भारत में पानी की उपलब्धता हमेशा एक चुनौती रही है। बदलते माहौल में स्थिति और खराब होने की आशंका है। वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट द्वारा जारी 2019 एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस के अनुसार, भारत को दुनिया के 17 'अत्यंत जल-तनावग्रस्त' देशों में तेरहवें स्थान पर रखा गया है। जब पानी की मांग उपलब्ध मात्रा से अधिक हो जाती है या जब पानी की खराब गुणवत्ता के चलते उसका इस्तेमाल नहीं हो पाता है तो ऐसे क्षेत्र को 'जल तनाव' के अंतर्गत लाया जाता है।

2019 में ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों के पानी ढ़ोने के बोझ को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने जल जीवन के तहत हर घर जल योजना शुरू की थी। गाँव की ये महिलाएं अक्सर अपने परिवारों की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए चिलचिलाती धूप में दिन में कई किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हैं। यह केंद्रीय योजना अगले दो सालों में यानी 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को "कार्यात्मक नल का पानी कनेक्शन" प्रदान करने का वादा करती है।

मिशन के तहत उत्तर प्रदेश और पड़ोसी मध्य प्रदेश में फैले हुए, बुंदेलखंड और विंध्याचल के सूखाग्रस्त क्षेत्रों को 'प्राथमिकता' के रूप में पहचाना गया और इस साल (2022) के अंत तक इन क्षेत्रों के गांवों को अंत तक अपने नल कनेक्शन दिए जाने की आधिकारिक घोषणा की गई।

गाँव कनेक्शन की नई सीरीज 'पानी यात्रा' के हिस्से के रूप में रिपोर्ट्स और सामुदायिक पत्रकारों की हमारी राष्ट्रीय टीम ने देश के विभिन्न राज्यों के दूरदराज के गाँवों का दौरा किया। सीरीज का उद्देश्य इस विषय पर रिपोर्ट करना है कि ग्रामीण नागरिक भीषण गर्मी और गर्म हवाओं के बीच कैसे अपनी पानी की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं?

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी जिले की यह कहानी गांव कनेक्शन की पानी यात्रा सीरीज का पहला भाग है।

डेली गाँव की 45 साल की पूनम जैसी अधिकांश महिलाएं अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी भरने और लाने में रोजाना लगभग आधा दिन बिता देती हैं। गर्मी की तपिश ने पानी के संकट और उनके संघर्ष को कई गुना बढ़ा दिया है। इस सबके बीच वे अपनी सेहत का भी ध्यान नहीं रख पातीं।

जाहिर है ये महिलाएं परेशानी में हैं और कड़े शब्दों में अपनी बात रखने के लिए बेताब हैं, "हम कुओं से पानी ढोते हैं, हैंडपंप चलाते हैं, अपने सिर पर पानी भरकर लाते हैं… न तो कोई नदी है और न ही कोई अन्य जल स्रोत। यहां सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है।" पूनम ने यह पूछे जाने पर कि वह अपने परिवार की पानी की जरूरतों को कैसे पूरा करती है, बताते हुए रो पड़ती हैं।

बुंदेलखंड में हर घर जल

जल जीवन मिशन के अनुसार, देश के 16.75 प्रतिशत ग्रामीण घरों में नल के पानी के कनेक्शन हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे कम 13.6 प्रतिशत ग्रामीण नल जल कवरेज है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गोवा, तेलंगाना, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, हरियाणा, पुडुचेरी, दादर और नगर हवेली और दमन और दीव में 100 प्रतिशत नल का पानी उपलब्ध है।

9 मई, 2022 तक राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में ग्रामीण नल जल कवरेज। फोटो: ejalshakti.gov.in

बुंदेलखंड को बनाने वाले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 12 अन्य जिलों के साथ झांसी जिला भी हर गर्मियों में खबरों में बना रहता है। पानी की किल्लत से जूझते हुए इसके ग्रामीण इलाकों की महिलाएं को पानी लाने के लिए काफी लंबी दूरी तय करनी पड़ती हैं।

जल जीवन मिशन के आंकड़ों से पता चलता है कि झांसी जिले के ग्रामीण इलाकों में 8 मई, 2022 तक केवल 12.67 प्रतिशत घरों में तक नल के पानी के कनेक्शन थे।

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के सभी सात जिलों - चित्रकूट, बांदा, झांसी, जालौन, हमीरपुर, महोबा, ललितपुर में 20 प्रतिशत से भी कम नल के पानी के कनेक्शन हैं (मानचित्र देखें ****)। आधिकारिक तौर पर बताया गया कि बुंदेलखंड क्षेत्र के ग्रामीण परिवारों को इस साल के अंत तक नल के पानी के कनेक्शन मिलने की उम्मीद है।


उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह के अनुसार, सरकार का लक्ष्य इस साल नवंबर तक बुंदेलखंड में पेयजल आपूर्ति योजना का पूर्ण कवरेज सुनिश्चित करना है।

पिछले महीने अप्रैल में बुंदेलखंड क्षेत्र के महोबा और हमीरपुर जिलों के अपने दौरे के दौरान मंत्री ने अगले छह महीनों में 60 लाख लोगों को स्वच्छ पेयजल का आश्वासन दिया था. बुंदेलखंड में जल जीवन मिशन की 32 परियोजनाओं के तहत 467 पाइप पेयजल योजनाएं निर्माणाधीन हैं।

मंत्री के हवाले से कहा गया, "बुंदेलखंड जल परियोजनाओं पर लगभग 70 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। स्वच्छ पेयजल के लिए सालों से संघर्ष कर रहे बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र के लोगों को उम्मीद से बेहतर जलापूर्ति मिलने जा रही है।

जिला स्तर के अधिकारी भी इसे लेकर काफी आश्वस्त हैं। झांसी के मुख्य विकास अधिकारी शैलेश कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मेरा मानना ​​है कि यह (हर घर जल) एक बहुत ही क्रांतिकारी योजना है, जो नागरिकों के जीवन में बड़ा बदलाव लेकर लाएगी। हम समय पर (2022 के अंत तक 100 प्रतिशत नल का पानी कवरेज) लक्ष्य हासिल कर लेंगे।"

अधिकारी ने कहा, झांसी की आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार) लगभग बीस लाख है और यहां चार लाख घर हैं। हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि झांसी के सभी घरों में पाइप से पीने का पानी मिले।"

मौजूदा समय में झांसी जिले के लगभग 83 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में पाइप से पानी का कनेक्शन नहीं है।

नल के बगल में खड़ी एक गाँव की महिला, जिसमें पानी नहीं आता है, मजबूरी में निजी पानी कनेक्शन से पानी लाती हैं। फोटो: शिवानी गुप्ता

सपना बनाम हकीकत: बिना पानी के नल

झांसी के डेली गाँव को भी वादे के अनुसार पानी का कनेक्शन और नल तो मिल गया है लेकिन उनमें पानी नहीं आ रहा है।

डेली गाँव की रहने वाली अंकिता ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमें पांच या छह महीने पहले सरकारी नल मिल गए थे। लेकिन इसके बावजूद हम बाहर से पानी लाने को मजबूर हैं। मुश्किल तो ये है कि हमें निजी कनेक्शन से भी नियमित रूप से पानी नहीं मिल पाता है।"

उनके अनुसार, रुक-रुक कर आने वाले पानी को भरने के लिए आए दिन झगड़े होते हैं। पानी की गुणवत्ता इतनी खराब है कि इसका इस्तेमाल सिर्फ शौचालयों में फ्लश करने के लिए किया जा सकता है। 21 साल की अंकिता ने कहा "हम इस पानी को पी नहीं सकते हैं।" बात करते हुए उसकी नजर लगातार सामुदायिक नल पर बनी हुई थी, उसकी बारी आने ही वाली थी।

वह आगे कहती हैं, "गर्मी अपने साथ बिजली कटौती लेकर आती है। बिजली नहीं, तो पानी भी नहीं। ऐसे दिनों में हमें पानी भरने के लिए सड़क किनारे खड़े टैंकों तक जाना पड़ता है। हमने इसकी शिकायत भी की। कुछ अधिकारी मिलने भी आए मगर हुआ कुछ नहीं।"

यहां किसी भी नल से पानी नहीं आता है।

सिमरवाड़ी गाँव से भी कुछ ऐसी ही शिकायतें सुनने को मिलीं। निवासी पारस लोधी ने गांव कनेक्शन को बताया, "पिछले साल पाइपलाइन बिछाई गई थी। लेकिन इनसे बस एक महीने ही पानी आया था।"

32 साल के लोधी ने कहा, "फिलहाल तो हम अपनी साइकिल पर एक किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं। अपने साथ-साथ मवेशियों के लिए भी पानी लाना होता है, सो दिन में इसके लिए कम से कम दस बार चक्कर काटने पड़ते हैं। यहां के कुएं गंदगी और कीड़ों से भरे हुए हैं। वहां से पानी भरने का कोई फायदा ही नहीं है, उसे पीते ही हमारे बच्चे बीमार हो जाते हैं।

वह आगे कहते हैं," पानी की किल्लत के चलते कितनी बार तो हमें निजी टैंकरों से सौ रुपये में पानी खरीदना पड़ता है, जो मुश्किल से दो दिनों तक ही चल पाता है।"

चिलचिलाती गर्मी में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका है। ऐसे में ग्रामीणों के लिए साइकिल संकट के समय में काफी मददगार साबित हो रहीं है। साइकिल पर पानी भर लाने से उनकी रोजाना की मशक्कत थोड़ी सी आसान हो गई है।

झांसी के सरवा गांव के रहने वाले 42 साल के हरवां ने गांव कनेक्शन को बताया, "एक दिन में मुझे हैंडपंप के छह चक्कर लगाने पड़ते हैं। वह मेरे घर से आधा किलोमीटर दूर है। मैं अपनी साइकिल से एक बार में सिर्फ चार डब्बे (बाल्टी) पानी लेकर आ सकता हूं, " उन्होंने बताया कि उनके घर में सरकारी नल का कनेक्शन है लेकिन उसमें पानी नहीं आता।

झांसी के मुख्य विकास अधिकारी शैलेश कुमार ने बताया, "इन नलों में पानी इनटेक कुओं से आता है, जो अभी निर्माणाधीन हैं। जल स्रोतों से पानी इक्ट्ठा करने के लिए इनटेक कुओं को बनाया गया है और फिर एक कच्चे पानी की पाइपलाइन के जरिए जल उपचार संयंत्र तक पानी पहुंचाया जाता है। उसके बाद वहां से साफ पानी की लाइनें बिछाई जाती हैं. उन पाइपलाइनों और ओवरहेड टैंकों के जरिए नलों तक पानी पहुंचाया जाता है. "

क्षेत्र के ज्यादातर कुए सूख गए हैं। फोटो: यश सचदेव

अधिकारी ने समझाते हुए कहा, "अब तक हमने सिर्फ कनेक्शन दिए हैं, पानी देना शुरु नहीं किया है। यह काम रातों-रात नहीं हो सकता, इसमें समय लगेगा। इनटेक कुओं से आपूर्ति शुरू होने के बाद ही लोगों को नलों में पानी मिल पाएगा। हमारा अनुमान है कि जुलाई (इस साल) तक एक या दो परियोजनाओं में नलों से पानी मिलना शुरू हो जाएगा। ऐसी दस परियोजनाएं हैं जिनके माध्यम से हमने झांसी में नल कनेक्शन लगाए हैं।"

नलों में पानी न आना और संकरे पाइप

यह पूछे जाने पर कि हाल ही में लगाए गए नल क्यों सूखे पड़े हैं, उनमें पानी क्यों नहीं आ रहा है? इसके जवाब में ग्रामीणों और डेली के ग्राम प्रधान ने कहा कि पाइपलाइन बहुत छोटी हैं और सरकार द्वारा लगाए नलों से पानी सुचारू रूप आने कि लिए ये इलाका बहुत असमतल है।

ग्राम प्रधान दशरथ अहिरवार ने गांव कनेक्शन को बताया, "जल संस्थान के इंजीनियर साहब ने कहा था कि पाइपलाइन को बदल दिया जाएगा क्योंकि यह बहुत संकरी है। मुख्य तालाब यहां से छह किलोमीटर दूर है इसलिए पानी को नलों तक पहुंचाने के लिए अधिक प्रेशर की जरूरत है। "

उन्होंने कहा, "गंदे पानी की वजह से पाइपों में मिट्टी भर गई और वह चॉक हो गए। अभी के लिए तो मैंने पास के कुएं से जुड़े निजी पानी के नल की व्यवस्था की है."

डेली के एक अन्य ग्रामीण उमेश नारायण श्रीवास्तव के अनुसार, "सरकारी नलों में पानी का फ्लो और प्रेशर पर्याप्त नहीं है। जो घर कम ऊंचाई पर स्थित हैं वहां तक तो पानी पहुंच जाता है लेकिन अधिक ऊंचाई वाले घरों को पानी नहीं मिल पाता। इसके लिए लेवलिंग करना बहुत जरूरी है. " ग्रामीण ने गांव कनेक्शन को बताया कि सरकारी नल दस या बारह दिनों में केवल एक बार पानी उपलब्ध कराते हैं।,

निजी पानी की आपूर्ति के लिए भुगतान

जब सरकार पानी के इस संकट को हल करने में ज्यादा सफल नहीं हो पाई तो डेली गांव की महिलाओं ने निजी पानी के कनेक्शन के लिए पैसे जमा किए। पानी पास के एक खुले कुएं से मोटर के जरिए खींचा जाता है (जब गांव कनेक्शन ने 19 अप्रैल को गांव का दौरा किया तो यह कुआ गंदगी और सूखे पत्तों से ढका हुआ था), पानी को फिल्टर करने की कोई व्यवस्था नहीं है और ग्रामीण इसी पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

पूनम ने कहा, "हम सभी महिलाओं ने निजी नल कनेक्शन लगवाने के लिए पैसे इक्ट्ठा किए। किसी ने पचास रुपये दिए तो किसी ने सौ। अब हमें पानी लेने के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं। अभी एक महीना ही हुआ है। पहले हम कुओं से पानी भर कर लाते थे। शुक्र है कि गर्मी के दिनों में भी गांव का कुआं सूखता नहीं है।"

पूनम (पीली साड़ी में) अन्य ग्रामीण महिलाओं के साथ बैठी हैं, ये सभी निजी कनेक्शन से पानी की बाल्टी भरती हैं। फोटो: यश सचदेव

डेली गांव में 120 घरों में से 22 ने सामुदायिक नल कनेक्शन लिए हुए हैं। ये कनेक्शन दो लाइनों के बीच बंटा हुआ है। एक लाइन में सुबह 7 से 12 बजे तक और दूसरी लाइन में दोपहर 2 से शाम 6 बजे तक पानी की आपूर्ति की जाती है। उमेश कुमार नारायण को गांव की महिलाओं ने अपने निजी पानी के कनेक्शन का प्रबंधन करने के लिए चुना है। उन्होंने बताया कि कम से कम 10 घरों में एक बार में एक नल से पानी भरता है। प्रत्येक घर उसे 100 रुपये प्रति माह का भुगतान करता है।

श्रीवास्तव ने कहा, "जब दिन में बिजली नहीं होती है, तो मैं घर-घर जाता हूं और सुबह दो या तीन बजे लोगों को जगाता हूं, ताकि उस समय वे अपनी पानी की बाल्टियों को भर कर रख सकें।"

उत्तर प्रदेश में पानी की गुणवत्ता एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। कई जिलों में पानी आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन से दूषित है, जो कैंसर (आर्सेनिकोसिस) सहित गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। झांसी सहित लगभग 18 जिलों के भूजल में उच्च आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा काफी अधिक हैं (मानचित्र देखें: ****)।


जल जीवन मिशन के लिए जारी किए गए फंड में से 64 फीसदी राशि का तो इस्तेमाल ही नहीं किया जाता

भारत सरकार 2024 तक देश के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नियमित और लंबे समय तक पीने योग्य नल का पानी उपलब्ध कराने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझेदारी में जल जीवन मिशन को लागू कर रही है।

राज्यवार आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश को 1,206.28 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिनमें से सिर्फ 53 प्रतिशत (639.32 करोड़) का उपयोग वित्त वर्ष 2019-20 में जल जीवन मिशन के तहत परियोजना कार्यान्वयन के लिए किया गया था।

वित्त वर्ष 2020-21 के लिए: 2,570.94 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जिनमें से 68.5 प्रतिशत (1,761.06 करोड़ रुपये) का इस्तेमाल किया गया।

वित्त वर्ष 2021-22 के लिए: उत्तर प्रदेश को आवंटित 10,870.50 रुपये में से 27 प्रतिशत यानी 2,930.07 करोड़ रुपये (4 अप्रैल तक) ही, राज्य में कार्यात्मक नल कनेक्शन के प्रावधान के लिए उपयोग किए गए थे।

ये आकड़े जल शक्ति राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने 7 अप्रैल को लोकसभा में साझा किए थे। इसका सीधा सा मतलब है कि जल जीवन मिशन के लिए उत्तर प्रदेश को आवंटित 64 प्रतिशत धनराशि का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

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