प्रवासी मजदूरों के सामने भुखमरी जैसे हालात, 42 प्रतिशत मजदूरों के पास नहीं बचा राशन : सर्वे
इन मजदूरों पर किये गए एक टेलिफोनिक सर्वे में सामने आया है कि 42.3 प्रतिशत मजदूरों के पास अब एक भी दिन का राशन नहीं बचा है और उनके सामने भुखमरी जैसे हालात हैं।
Kushal Mishra 10 April 2020 8:05 AM GMT
कोरोना लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में फंसे रह गए लाखों मजदूरों के सामने अब भूखों मरने जैसी नौबत है।
इन मजदूरों पर किये गए एक टेलिफोनिक सर्वे में सामने आया है कि 42.3 प्रतिशत मजदूरों के पास अब एक भी दिन का राशन नहीं बचा है और उनके सामने भुखमरी जैसे हालात हैं। जबकि ऐसे 80 प्रतिशत से ज्यादा मजदूरों के पास लॉकडाउन (14 अप्रैल तक) से पहले ही पूरी तरह राशन खत्म हो जाएगा।
सामाजिक रूप से बहिष्कृत समुदायों के मानवाधिकारों को लेकर काम कर रही संस्था जन साहस की ओर से किये गए सर्वे में यह सामने आया। यह सर्वे 27 से 29 मार्च के बीच उत्तरी और मध्य भारत के 3,127 प्रवासी कामगारों पर किया गया।
देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की वजह से देश के लाखों प्रवासी मजदूरों को सैकड़ों किलोमीटर दूर पैदल ही अपने गांव की ओर भूखे-प्यासे चलने को मजबूर होना पड़ा है। जबकि बड़ी संख्या में ये मजदूर दूसरे राज्यों में ही फंसे रह गए हैं। दोनों ही स्थितियों में इन मजदूरों के पास राशन-पानी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है और सरकारी मदद के ऐलान के बावजूद इनके सामने खाने को लाले हैं।
बड़ी संख्या में मजदूरों को नहीं मिलेगी राहत
लॉकडाउन के समय में भारत सरकार ने प्रवासियों के दर्द को कम करने के लिए 26 मार्च को 1.7 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया। जबकि जन साहस के सर्वे में सामने आया है कि इस राहत पैकेज से बड़े अनुपात में श्रमिक बाहर हो जाएंगे।
उदाहरण के तौर पर, बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर फण्ड (BOCW) के तहत श्रमिकों को आय सहायता प्रदान की जाती है। केंद्र सरकार ने राज्यों से इस सेस में जमा धनराशि से मजदूरों की मदद करने की अपील की है। मगर यह आय सहायता प्राप्त करने के लिए मजदूरों के पास बीओसीडब्लू कार्ड होना चाहिए।
जन साहस के सर्वे में सामने आया कि बीओसीडब्लू कार्ड सिर्फ 18.8 प्रतिशत श्रमिकों के पास ही था। ऐसे में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर आवश्यक दस्तावेज न होने से राहत पैकेज का लाभ नहीं उठा पाएंगे।
इतना ही नहीं, बड़ी संख्या में ऐसे प्रवासी कामगार भी हैं जिन्हें सरकारी मदद के बारे में कोई जानकारी नहीं है। सर्वे के अनुसार 60 प्रतिशत से ज्यादा कामगारों ने कहा कि उन्हें सरकारी राहत पैकेज के बारे में जानकारी नहीं है या वे कैसे उसका लाभ उठा पाएंगे।
"62% of workers did not have any information about emergency welfare measures provided by the government."
— Jan Sahas (@jan_sahas) April 5, 2020
Findings of a rapid assessment on the impact of COVID-19 on migrant workershttps://t.co/QU3D0pGjmK#VoicesOfInvisibleCitizens #lockdowneffect #MigrantsOnTheRoad #COVID19
आजीविका पर पड़ा बड़ा असर
कोरोना लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूरों की आजीविका पर भी बड़ा असर पड़ा है। सर्वे के अनुसार लॉकडाउन की वजह से 92.5 प्रतिशत मजदूर एक से तीन सप्ताह तक अपना काम खो चुके हैं। इसके अलावा ये मजदूर उचित मजदूरी से भी वंचित हैं।
सर्वे में सामने आया कि 55 प्रतिशत मजदूरों को सिर्फ 200 से 400 रुपये ही मजदूरी मिलती है जबकि उनके परिवार में औसतन चार लोग हैं। वहीं 39 प्रतिशत मजदूरों को 400 से 600 रुपये ही मजदूरी के मिलते रहे हैं।
मजदूरी दरों पर गौर करें तो दिल्ली में जहां कुशल मजदूरों की मजदूरी 692 रुपये है, वहीं अर्द्ध कुशल और अकुशल की मजदूरी दर क्रमशः 629 और 571 रुपये है। ऐसे में मजदूर कम मजदूरी में अपने और अपने परिवार का पेट पालने को मजबूर हुए हैं।
नहीं चुका पाएंगे कर्ज
पर्याप्त राशन न मिलने और रोजगार खोने की वजह से इन मजदूरों के ऊपर कर्ज का भी दबाव काफी बढ़ गया है। सर्वे में यह भी सामने आया है कि 78.7 प्रतिशत प्रवासी कामगारों को डर है कि जो उन्होंने परिवार के लिए कर्ज ले रखा है, वे आगे नहीं चुका पाएंगे क्योंकि उनके पास रोजगार नहीं होगा। वहीं 48.1 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों को डर है कि अगर वे कर्ज नहीं चुका पाए तो सूदखोर उनके साथ मारपीट कर सकते हैं।
कर्ज लेने वाले इन मजदूरों में ज्यादातर लोगों ने स्थानीय सूदखोरों से कर्ज लिया हुआ है, जबकि एक चौथाई लोगों ने बैंक से पैसा लिया हुआ है। ऐसे में लॉकडाउन के चलते आय का स्रोत खत्म होने से उनके ऊपर कर्ज का बड़ा दबाव सामने है।
देश में अगर निर्माण श्रमिकों से जुड़े दिहाड़ी मजदूरों की बात करें तो 5.50 करोड़ श्रमिकों के साथ इनकी संख्या सबसे ज्यादा है और ये देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में नौ फीसदी का योगदान देते हैं। हर साल इनमें से 90 लाख श्रमिक काम के लिए गांव छोड़कर शहर की ओर पलायन करते हैं।
Four out of five workers report that they won't be able to pay their debts and half fear violence because of their inability to pay #VoicesOfInvisibleCitizens #MigrantsOnTheRoad #IndianEconomy #COVID19 #SupportVulnerableCommunities
— Aaditya Dar (@AadityaDar) April 5, 2020
परिवार का खर्च निकालने के लिए पैसे नहीं
सर्वे में सामने आया है कि अगर लॉकडाउन 14 अप्रैल से ज्यादा दिनों के लिए बढ़ाया जाता है तो 66 प्रतिशत ऐसे मजदूर हैं जिनके पास अपने परिवार का खर्चा निकालने के लिए एक सप्ताह से ज्यादा पैसे नहीं हैं। वहीं सिर्फ 22 प्रतिशत ऐसे मजदूर थे जिन्होंने माना कि वे एक महीने तक परिवार का खर्चा निकाल पाने में सक्षम होंगे। इसके बाद उनके पास घर चलाने के लिए कोई साधन नहीं हैं।
ऐसे में देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की वजह से गांवों में स्थितियां और जटिल होती जा रही हैं। गुजरात से नरेगा संघर्ष मोर्चा से जुड़े निखिल शिनॉय बताते हैं, "लॉकडाउन के दो हफ्ते से ज्यादा दिन बीत चुके हैं और अभी भी कई गांव ऐसे हैं जहां अभी तक सरकारी मदद नहीं पहुंच सकी है। कई गांव में लोगों को राशन नहीं मिला है, हम कोशिश कर रहे हैं कि कम से कम उन तक सूखा राशन पहुंचाया जाए, मगर लॉकडाउन बढ़ता है तो इनकी मुश्किलें और भी बढ़ जाएँगी।"
बढ़ रही हैं मुश्किलें
वहीं झारखंड के गांवों में राशन न मिलने की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है। राज्य के गढ़वा जिले के भंडरिया गांव की एक महिला सोमरिया देवी की भूख से मौत हो गयी है। इनके परिवार को लॉकडाउन में राशन और पेंशन दोनों योजनाओं का लाभ नहीं मिला। सोमरिया के परिवार में सिर्फ उनके पति लछु लोहरा हैं जिन्हें पत्नी की मृत्य के बाद 10 किलो चावल दिया गया है।
सोमरिया देवी की भंडरिया, गढ़वा में भूख से मौत हो गयी, इनके परिवार को राशन और पेंशन दोनों योजना का लाभ नहीं मिला है, पति लक्षु लोहरा की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है, पत्नी के मृत्यु के बाद सिर्फ 10 किलो चावल दिया गया है.@HemantSorenJMM @rozi_roti @_YogendraYadav pic.twitter.com/HzkrmczADL
— Jharkhand RTFC (@righttofoodjhk) April 8, 2020
झारखंड के गांवों में जहां बड़ी संख्या में लोगों को राशन नहीं मिल रहा है, वहीं दूसरे राज्यों में फंसे मजदूर भी राशन न मिलने की वजह से सरकार से लगातार मदद की गुहार लगा रहे हैं। दूसरी ओर बड़ी संख्या में अपने गांव पहुंचे मजदूरों की मुश्किलें भी दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं। इस स्थिति में अगर लॉकडाउन बढ़ाया जाता है तो ऐसे मजदूरों के सामने समस्या और बड़ा रूप ले सकती हैं।
देखें कुछ ट्वीट ...
धनबाद के कोयला ढोने वाले भुइयाँ समुदाय भुखमरी की स्थिति में
— Dheeraj Kumar (@dheeraj_dissent) April 10, 2020
धनबाद के कतरास (कतरासगढ़,कतरी नदी मजार,बालू बंकर 2 नंबर)के रामदेव भुइयाँ का परिवार लौकडाउन के बाद भीख मांग कर गुजारा कर रहा है.एक साल की बच्ची की तबियत खराब है.बस्ती में 15-20 परिवार हैं जिन्हें तत्काल अनाज की जरूरत है. pic.twitter.com/m8usmQaHBR
URGENT: ~40 workers from Jharkhand stuck in Surat, Gujarat. Barely managing by eating only one meal in a day. Ration is to get over. Have received no help despite contacting the JH helpline. Help needed. @HemantSorenJMM @jharkhand181 @CMOGuj @DC_Ranchi @jigneshmevani80 @samzsays pic.twitter.com/3aBaViQDJm
— Jharkhand Janadhikar Mahasabha (@JharkhandJanad1) April 9, 2020
पेटरवार प्रखंड के चरगी पंचायत के 40 परिवारों का PHH कार्ड नहीं बना है, दो माह पहले इन्होने गोमिया के विधायक को आवेदन भी दिया था, इन सभी परिवारों को तत्काल राशन की जरुरत है. @HemantSorenJMM @BokaroDc कृपया इन्हें राशन उपलब्ध करायी जाए. @jharkhand181 pic.twitter.com/eZ43rp6EEv
— Jharkhand RTFC (@righttofoodjhk) April 9, 2020
डीलर ने मार्च माह का राशन वितरण नही किया और प्रशासन अब तक सोयी ही है.@jharkhand181
— Jharkhand RTFC (@righttofoodjhk) April 9, 2020
@dc_garhwa
@JmmJharkhand https://t.co/bmrBMdS6r0
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