बुंदेलखंड लाइव: लॉकडाउन में रोजगार का जरिया बनी मनरेगा, "काम नहीं मिलता तो घर चलाना मुश्किल हो जाता"

लॉकडाउन के बाद बुंदेलखंड जैसे सूखा प्रभावित और प्रकृति की मार झेलने वाले इलाकों में रहने वालों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। गांव कनेक्शन ने बुंदेलखंड में कई बिताकर यहां के लोगों की जिंदगी और मुश्किलों को नजदीक से समझने की कोशिश की है। #कोरोनाफुटप्रिंट सीरीज में पढ़िए क्या मनरेगा बुंदेलखंड के लोगों का सहारा बन पाया?

Arvind ShuklaArvind Shukla   5 Jun 2020 4:20 PM GMT

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ललितपुर (बुंदेलखंड)। "आप समझ लीजिए मनरेगा ऐसे ही दिनों (कोरोना के चलते लॉकडाउन जैसी आपदा) के लिए बनी थी। जो भी हमारे जिले में शहरों से लौटे हैं उन्होंने काम मांगा है तो उन्हें मनरेगा में काम दिया जा रहा है। पिछले एक हफ्ते से औसतन 10 हजार लोग रोज बढ़ रहे हैं," उत्तर प्रदेश में ललितपुर जिले के मुख्य विकास अधिकारी अनिल कुमार पाण्डे कहते हैं।

लॉकडाउन में इंडस्ट्री, फैक्ट्री, दुकानें, बाजार सब बंद हो गए। करोड़ों लोग शहरों से मायूस होकर घर लौटे, शहर में कमाई का जरिया बंद हो चुका था और जेब खाली थी, लेकिन ऐसे लोगों और उनके परिवार वालों की बड़ी संख्या में श्रमपरक मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) में काम मिलता रहा,जो उनकी कमाई का जरिया बना।

उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के महरौनी विकास खंड में मनरेगा के तहत काम करती महिलाएं। फोटो यश सचदेव

उत्तर प्रदेश के बुंदलेखंड के समोंगर ग्राम पंचायत की मीरा पिछले 17 दिनों से मनरेगा में लगातार काम कर रही थीं, मीरा कहती हैं, "अगर मनेरगा का काम नहीं मिलता तो घर चलाना मुश्किल हो जाता, क्योंकि गांव में कोई काम नहीं बचा था। लॉकडाउन था तो लकड़ियां भी बेचने नहीं जा पा रहे थे।"

कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन (Lockdown) के बाद भारी संख्या में प्रवासी मजदूर घरों को लौटे। अकेले बंदेलखंड के सबसे पिछड़े जिलों में शामिल ललितपुर में 50 हजार से ज्यादा लोग 20 मई तक वापस आ चुके थे। ललितपुर जिले में एक जून को सरकारी आंकड़ों के अऩुसार 63277 श्रमिकों को मनरेगा (Mgnrega) में काम मिला था। ललितपुर जिले में पिछले साल 6.65 मानव दिवस सृजित हुए थे जबकि इस वर्ष लॉकडाउन के दौरान ही 7.06 लाख लोगों को रोजगार मिल चुका है।

मई महीने में बुंदेलखंड पहुंची गांव कनेक्शन की टीम से बात करते हुए ललितपुर के जिलाधिकारी योगेश कुमार शुक्ला कहते हैं, "ललितपुर में लौटने वाले प्रवासियों की संख्या काफी ज्यादा हैं, हमें ग्राम समितियों के माध्यम से जो जानकारी मिल रही है उसके अऩुसार 50 हजार से ज्यादा लोग लौट चुके हैं। हमारी कोशिश है कि इन सबको संक्रमण से सुरक्षित रखते हुए स्वयं सहायता समितियों और मनरेगा के जरिए रोजगार दिया जाए, जो भी व्यक्ति काम मांगेगा उसे हर हाल में काम मिलेगा।"

मध्य प्रदेश के गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, टीकमगढ़ और सागर समेत कई जिलों से घिरा ललितपुर बुदेलखंड के सबसे पिछ़ड़े जिलों में आता है। पथरीली जमीन और पानी की कमी के चलते यहां रोजगार के नाम पर पलायन और खनन का काम होता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां से खदानों का काम बंद हुआ, मनरेगा में हीलाहवाली और खेती प्राकृतिक आपदाओं (ओलावृष्टि, सूखा) से जूझती रही, जिसके चलते पलायन बढ़ गया है। करीब 75 हजार सहरिया आदिवासी वाले ललितपुर के लोग इंदौर, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, भिवंडी से लेकर पंजाब और लखनऊ तक रोजी रोटी की तलाश में जाते हैं।

साल 2019 में मनरेगा में ललितपुर में एक लाख 14 हजार एक्टिव जॉब कार्ड थे, जिनकी संख्या 1 जून को बढ़कर 1 लाख 83 हजार हो गई थी। लॉकडाउन के दौरान 6953 नए जॉब कार्ड बने थे, जबकि 50 हजार पुराने कार्ड को एक्टिव किया था, ये वो लोग थे जो पिछले कई वर्षों से मनरेगा में काम नहीं कर रहे थे।

कोविड 19 के बाद ग्रामीण भारत में रोजगार देने के लिए सरकार ने आर्थिक पैकेज से 40 हजार करोड़ रुपए आवंटित करने की बात कही है। जबकि 60 हजार करोड़ रुपए बजट में मिले थे। हालांकि ये बजट पिछले बजट के मुकाबले 13 फीसदी कम था लेकिन अगर पूरा कोविड के बजट को मिला लें तो ये एक लाख करोड़ के ऊपर जाता है जो रिकॉर्ड है। फोटो यश सचदेव

कमोबेश यही हालात उत्तर प्रदेश में दूसरे जिलों के भी हैं। मनरेगा की वेबसाइट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में करीब 89 लाख एक्टिव जॉब कार्ड हैं। पांच जून जून 2020 तक 49.70 परिवारों को मनरेगा से रोजगार उपलब्ध कराया गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों कहा था कि उनका लक्ष्य प्रदेश में रोजाना 50 लाख मजदूरों को काम देने का है।

ललितुपर में महरौली तहसील के सिलावन ग्राम पंचायत में 22 मई को चार तरह जगहों पर चार अलग-अलग तरह के काम हो रहे थे। एक जगह पर 100 से ज्यादा महिला-पुरुष खेत की मेड़बंदी कर रहे थे। वहीं पास में खड़े गांव के प्रधान प्रकाश नारायण त्रिपाठी कहते हैं, "पिछले 15 दिनों से रोजाना औसतन 150 लोगों को काम दिया जा रहा है। इनमें ज्यादातर लोग पहले के हैं जबकि कुछ वो लोग भी हैं जो शहरों से लौटे हैं और क्वारंटाइन पूरा करने के बाद काम कर रहे हैं।"

लेकिन न तो मनरेगा में हमेशा इतना काम था और न ही हर व्यक्ति को काम उसकी जरुरत के मुताबिक आज काम मिल रहा है। बालाबेहट गांव के राम सिंह सहरिया को लॉकडाउन से पहले पिछले 5 साल से काम नहीं मिला है तो इसी गांव के मनीराम को 22 मई तक सिर्फ 12 दिन लॉकडाउन में काम मिला था।

मनीराम कहते हैं, यहां कोई काम (खदान या मनरेगा) नहीं था तो गुना कमाने चले गए थे, दो महीना पहले आ गए थे, जब से बैठे थे इधर 12 दिन नरेगा (मनरेगा) में खंती (गड्डा खोदने) का काम मिला अब फिर बैठे हैं।' मनरेगा में पिछले दो वर्षों से काम तो कम मिला साथ ही पैसों का भुगतान देरी से हो रहा है लेकिन प्रधानों और अधिकारियों के मुताबिक लॉकडाउन में 7 से 15 दिन के अंदर पैसा खातों में पहुंच रहा है।

मनरेगा की वेबसाइट के मुताबिक 5 जून तक उत्तर प्रदेश में 89 लाख एक्टिव जॉब कार्ड थे, जिनमें बड़ी संख्या महिलाओं और शहरों से आए प्रवासियों की भी है। फोटो यश सचदेव

ललितपुर में मनरेगा के एपीओ उमेश चंद्र झा कहते हैं, "मनरेगा काम की माँग पर आधारित योजना है, जो भी काम मांगने आ रहा है मिल रहा है पूरे जिले में इस वक्त 1400-1500 काम चल रहे हैं, मेडबंदी, नाला सफाई, सिल्ट निकालने का पेड़ लगाने, संपर्क मार्ग आदि बनाने के। लोगों के पास पैसा नहीं है इसलिए मनरेगा में कॉम मांगने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है, इसलिए तो 60 हजार से ज्यादा अनएक्टिव (निष्क्रिय ) जाँब कार्ड एक्टिव हुए हैं।"

कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के चलते सुस्त पड़ी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए सरकार द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ के पैकेज में मनरेगा भी शामिल है। 17 मई को आर्थिक पैकेज की पांचवीं किस्त जारी करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारण ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की योजना मनेरगा के बजट में बड़ा इजाफा जा रहा है। पहले ये बजट 61 हजार करोड़ का था, जिसमें अब 40 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त दिए जाएंगे।

पिछले दिनों गांव कनेक्शन से बात करते हुए जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर और ग्रामीण मामलों में जानी मानी अर्थशास्त्री जयती घोष ने कहा था, "ग्रामीण स्तर पर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए मनरेगा से बेहतर विकल्प है ही नहीं। ऐसे में मनरेगा में और बेहतर बजट दिए जाने की जरूरत है।"

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में बड़ी संख्या में सहरिया आदिवासी रहते हैं। अकेले ललितपुर में इनकी आबादी करीब 75 हजार है। फोटो- यश सचदेव।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी इस संकट काल में मनरेगा के 100 दिनों को बढ़ाकर 200 दिन करने की मांग कर रहे हैं।

जहाँ एक ओर सरकार द्वारा श्रमपरक मनरेगा योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था संभालने के लिए उपयुक्त विकल्प के तौर पर उभरी हैं, किन्तु योजना के अंतर्गत काम माँगने हेतु निष्पक्ष एवं पारदर्शी व्यवस्था बेहद अनिवार्य हैं! इसके लिए योजना की निगरानी अनिवार्य हैं ताकि हर जरूरत मंद को काम की माँग के अनुसार काम मिल सकें

इन सबसे इतर बुदंलेखड में यूपी और मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर बसे बालाबेहट गांव की गुड्डी ग्रामीण अर्थव्यवस्था और योजनाओं के जमीन पर पहुंचने का सार बताती हैं, "अगर गांव में काम मिलता रहे तो घर थोड़कर बाहर कौन जाना चाहेगा?

रिपोटिंग सहयोग- अरविंद सिंह परमार

नोट- कोरोना फुट प्रिंट सीरीज के अगले भाग में पढ़िए- बुंदेलखंड में पलायन की इनसाइड स्टोरी.. आखिर क्यों छोड़ना पड़ा गांव?



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