सिर्फ आदिवासियों के नहीं बल्कि सभी भारतीयों के नायक हैं बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा सिर्फ 25 साल जिए लेकिन इतनी कम उम्र में ही उन्होंने ब्रिटिश शासन की बुनियाद हिला दी।

Shefali SrivastavaShefali Srivastava   10 Jun 2017 5:30 AM GMT

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सिर्फ आदिवासियों के नहीं बल्कि सभी भारतीयों के नायक हैं बिरसा मुंडाआज बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि है।

लखनऊ। बिरसा मुंडा, यह नाम सुनते ही अक्सर हमारे दिमाग में एक ऐसे आदिवासी नायक की छवि बनती है, जिसने आदिवासियों के लिए लड़ाईयां लड़ीं, जबकि बिरसा मुंडा न सिर्फ आदिवासियों के बल्कि हर भारतीय के नायक है।

बिरसा मुंडा से बनना पड़ा बिरसा डेविड

बिरसा मुंडा का जन्म रांची (अब खूंटी) के उलिहातू गांव में 15 नवंबर 1875 को हुआ था। बेहद गरीब परिवार में जन्मे बिरसा के माता-पिता मजदूरी करते थे इसलिए बिरसा को उनके मामा के घर भेज दिया गया जहां उन्होंने मिशनरी स्कूल में एडमिशन लिया। वहां पढ़ाई करने के लिए उन्हें धर्म परिवर्तन करना पड़ा और उनका नाम बिरसा डेविड रख दिया गया।

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वहां पढ़ते हुए जब बिरसा ने अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों पर जुल्म, उनकी जमीन हड़पने की रणनीति को समझा तो स्कूल छोड़ दिया और अंग्रेजों के इंडियन फारेस्ट एक्ट' 1882 के खिलाफ आवाज उठाई। उन्हें 1895 में उन्हें पहली बार जेल भेजा गया, उन्हें दो साल की सजा हुई।

जेल से छूटकर बिरसा ने वैष्णव धर्म धारण कर लिया। इसके पीछे वजह थी छोटानागपुर-कोल्हान इलाके में फैली चेचक महामारी। बिरसा ने लोगों की सेवा की उनका इलाज किया। उनके पास लोगों की भीड़ लगने लगी, सभी को उनमें अपने भगवान दिखने लगे और बिरसा की सेवा से लोग ठीक भी होते गए। यहीं से बिरसा धरती के आबा यानी भगवान कहलाए जाने लगे।

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बिरसा मुंडा को पकड़ने का ईनाम था 500 रुपए

उधर पूरे देश के साथ-साथ आदिवासियों पर अंग्रेजों का जुल्म जारी था। बिरसा ने धीरे-धीरे गुरिल्ला आर्मी बनाई और अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया। इसे ही मुंडारी लिपि में उलगुहान यानी क्रांति कहा गया। बिरसा मुंडा ने 1900 में अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह करने की घोषणा करते हुए कहा, 'हम ब्रिटिश शासन तन्त्र के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा करते है और कभी अंग्रेज नियमो का पालन नही करेंगे , ओ गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजो , तुम्हारा हमारे देश में क्या काम ? छोटा नागपुर सदियों से हमारा है और तुम इसे हमसे छीन नहीं सकते है इसलिए बेहतर है कि वापस अपने देश लौट जाओ वरना लाशों के ढेर लगा दिए जाएंगे।'

इस घोषणा को एक घोषणा पत्र में अंग्रेजों के पास भेजा गया और अंग्रेज सरकार ने बिरसा की गिरफ्तारी पर 500 रुपए का इनाम रखा दिया।

मात्र 25 साल की उ म्र में ही शहीद हो गए

अंग्रेज सरकार ने विद्रोह का दमन करने के लिए 3 फरवरी 1900 को मुंडा को गिरफ्तार कर लिया जब वो अपनी आदिवासी गुरिल्ला सेना के साथ जंगल में सो रहे थे। उस समय 460 आदिवासियों को भी उनके साथ गिरफ्तार किया गया । 9 जून 1900 को रांची जेल में उनकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो गयी और अंग्रेज सरकार ने मौत का कारण हैजा बताया था जबकि उनमे हैजा के कोई लक्षण नही थे केवल 25 साल में ही बिरसा मुंडा की मृत्यु हो गई।

    

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