Farmers Protest: आखिर किसान सरकार से चाहते क्या हैं, क्यां हैं उनकी 5 प्रमुख मांगें?

किसान आंदोलन का आज तीसरा दिन है। बड़ी संख्या में किसान दिल्ली के बुराड़ी मैदान में पहुंच चुके हैं तो कुछ किसान अभी भी हरियाणा- दिल्ली बॉर्डर पर डंटे हुए हैं। आखिर इन किसानों का मांगें क्या हैं, वे सरकार से चाहते क्या हैं?

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why farmers protesting, what farmers want to governmentअपनी मांगों को लेकर दिल्ली पहुंचा किसानों का समूह। (सभी तस्वीरें अमित पांडेय, गांव कनेक्शन)

केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन तीसरे दिन ‌भी जारी है‌। दूसरे दिन 27 नवंबर को तमाम रुकावटों के बाद भी हरियाणा के रास्ते हजारों की संख्या में किसान दिल्ली पहुंचे गये। कई जगह आंसू गैस के गोले दागने के बाद दिल्ली पुलिस ने किसानों को आने की अनुमति दी और बुराड़ी के निरंकारी मैदान में शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने पर किसान संगठनों के बीच सहमति बनी। हालांकि किसान अभी भी सिंघु बॉर्डर पर डंटे हुए हैं।

कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले दो महीने से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।

किसानों के 26 नवंबर से 28 नवंबर तक चलने वाले दिल्ली चलो प्रोटेस्ट मार्च के दूसरे दिन शुक्रवार 27 नवंबर को खूब बवाल हुआ। किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया, लेकिन किसान पीछे हटने को राजी नहीं हैं। किसान आंदोलन के तीसरे दिन 28 नवंबर को भी प्रदर्शन कर रहे हैं कि और देश की राजधानी नई दिल्ली के कई हिस्सों में रुके हुए हैं।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि सरकार किसानों से तीन दिसंबर को बात करेंगे, लेकिन ये किसान आंदोलन कर क्यों रहे हैं, क्या बस तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग है? आइये जानते हैं प्रदर्शन कर रहे किसानों की पांच प्रमुख मांगें क्या हैं वह भी एक दम सरल शब्दों में-

वापस हो कृषि कानून

किसानों की पहली और सबसे बड़ी मांग यही है कि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले। आंदोलन के लिए गठित संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ गांव कनेक्शन से कहते हैं कि कृषि कानून किसानों के पक्ष में नहीं है। इससे निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा। जमाखोरी बढ़ेगी। बड़ी निजी कंपनियों को फायदा होगा। किसानों का आने वाले भविष्य मुश्किल भरा होगा।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर लिखित आध्वासन

जब से कृषि विधेयकों की बात हो रही है, तब से किसानों के मन में सबसे बड़ा डर यही है कि नये कृषि बिलों से सरकार न्यनूतम समर्थन मूल्य प्रणाली को ही खत्म कर देगी। गांव कनेक्शन द्वारा कराये गये 16 राज्यों में सर्वे में शामिल 39 फीसदी किसानों में यही डर दिखा।

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सर्वे में शामिल 59 फीसदी किसानों ने यह भी कहा कि एमएसपी पर अनिवार्य कानून बनना चाहिये। किसानों की सबसे बड़ी मांगों में से एक मांग यह भी कि सरकार लिखित रूप से दे कि भविष्य में सेंट्रल पूल के लिए MSP और पारंपरिक खाद्य अनाज खरीद प्रणाली जारी रहेगी।

बिजली बिल संशोधन रद्द किया जाये

किसानों की तिसरी सबसे बड़ी मांग यह है कि सरकार बिजली बिल संशोधन को समाप्त करे। किसान संगठनों का कहना है कि अगर यह बिल कानून बन जायेगा तो उन्हें मुफ्त या सब्सिडी वाली बिजली नहीं मिलेगी। निजीकरण को बढ़ावा दिया जायेगा और पंजाब में किसानों को मिल रही मुफ्त बिजली बंद हो जायेगी।

पराली जलाने पर सजा-जुर्माने का नियम बंद हो

किसानों की चौथी मांग है कि पराली जलाने को लेकर पांच साल सजा का जो प्रावधान किया गया है, इसे वापस लिया जाये। केंद्र सरकार ने इसी साल अक्टूबर में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए नया अध्यादेश पेश किया जिसके अनुसार जो भी वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होगा, उसे पांच साल तक की सजा हो सकती है या उस पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लग सकता है। किसान इस प्रावधान को खत्म करने की मांग कर रहे हैं और साथ पराली जलाने के आरोप में गिरफ्तार किसानों की रिहाई की भी मांग कर रहे हैं।

गन्ना भुगतान का मसला

किसानों की पांचवीं मांग गन्ना भुगतान को लेकर है। गन्ना भुगतान को लेकन पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आक्रोशित हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की तो असली समस्या ही गन्ना भुगतान को लेकर है। किसान संगठनों का कहना है कि शुगर इंडस्ट्री रिकवरी कम होने का बहाना बनाकर प्रदेश सरकार पर गन्ना मूल्य नहीं बढ़ाने का दबाव बना रही है, लेकिन लगातार बढ़ रही लागत को देखते हुए गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी की जानी चाहिए।

उत्तर प्रदेश से जुड़े किसान संगठन गन्ना मूल्य 450 रुपए प्रति कुंतल घोषित करने की मांग कर रहे हैं। बता दें कि पिछले दो पेराई सत्रों से गन्ना मूल्य 315 एवं 325 रुपए कुंतल है। भारतीय किसान यूनियन मेरठ के जिलाध्यक्ष मनोज त्यागी का कहना है कि पिछले दो पेराई सत्रों में गन्ना मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। जबकि बिजली, डीजल, कीटनाशक, उवर्रक और लेबर महंगी होने से हर साल गन्ना उत्पादन लागत बढ़ रही है। वहीं पंजाब के किसान हरियाणा की तर्ज पर भुगतान की मांग कर रहे हैं।

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