मशीनें ठप, गंगा सफ़ाई ठप, कारख़ाने ठप, जिंदगियां ठप

कुंभ के दौरान गंगा का पानी साफ रखने के लिए बंद करायी गयीं टेनरियां, एक अनुमान के मुताबिक अब तक 10 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है, जबकि हजारों मजदूर बेरोजगार हो गये हैं

Mithilesh DharMithilesh Dhar   22 Feb 2019 11:15 AM GMT

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मशीनें ठप, गंगा सफ़ाई ठप, कारख़ाने ठप, जिंदगियां ठप

कानपुर। गंगा में गिरने वाली गंदगी रोकने वाले संयंत्र सीईटीपी के समय से शुरू न होने की वजह से कानपुर में नदी साफ़ नहीं हुई। कुंभ में गंगा का साफ पानी देने के लिए दर्जनों फैक्टरियां बंद हो गयीं, व्यापार की कमर टूट गयी और हजारों मज़दूर बेरोज़गार हो गये। कानपुर के चमड़ा व्यापारी कहते हैं कि लगभग 10,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है और तीन महीने की बंदी से कानपुर का चमड़ा उद्योग अगले तीन साल तक नहीं उबर पाएगा।

"पहले दिनभर में एक हजार से 12 सौ रुपए तक की कमाई हो जाती है। अब तो 500 रुपए भी मुश्किल हैं। छह लोगों का परिवार नहीं चल पा रहा। तीन घोड़े हैं, अब एक का ही काम है। बेटा तो तीन महीने से घर बैठा है, बाहर भी ऐसा कोई काम नहीं है कि उसे भेज सकें," कानपुर के जाजमऊ में खच्चर चलाकर माल ढुलाई का काम करने वाले 65 वर्षीय खुदा बख्श ने बताया।

चमड़ा उद्योग में तमिलनाडु के बाद दूसरे नंबर पर उत्पादन करने वाले कानपुर के व्यापारियों का धंधा ठप होने के साथ ही साख पर बट्टा लग गया है। एक तो आर्डर समय पर नहीं दे पाए, दूसरे आगे के आर्डर भी कैंसिल हो गए। चमड़ा एसोसिएशन के मुताबिल करीब 10,000 करोड़ का नुकसान हो चुका है।

कुंभ के दौरान श्रद्धालुओं को साफ गंगा का पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार ने कानपुर की टेनरियां (चमड़े की फैक्ट्रियां) 18 नवंबर को बंद करवा दीं। अब दोबारा काम कुंभ मेला खत्म होने के बाद 15 मार्च से शुरू होना है। लेकिन टेनरी संचालकों और व्यापारियों को इस तीन माह की बंदी का असर तीन साल तक झेलना पड़ेगा। इस धंधे को नुकसान न होता अगर कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) पूरी तरह संचालित होते तो टेनिरयों पर रोक न लगानी पड़ती।

चमड़ा फैक्ट्रियों में ताला लग गये हैं

स्माल टेनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हफीजुर रहमान (बाबू भाई) इस बेरोजगारी और व्यापार में हो रहे घाटे के लिए सरकार पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, "हम हर साल सरकार को दो करोड़ 78 लाख टैक्स के रूप में दे रहे हैं। कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) पूरी तरह संचालित न हो पाने के कारण उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कुंभ मेले तक टेनरियों को बंद रखने का फैसला लिया है जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस साल मई में जाजमऊ के सीईटीपी और पंपिंग स्टेशनों को ठीक करने के लिए 17.68 करोड़ रुपए का बिल पास किया था। 12 नवंबर तक इसका संचालन पूरी क्षमता के साथ शुरू हो जाना था जो नहीं हो सका। ऐसे में जिम्मेदार कौन है। हमें अब तक लगभग 10 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है।"

(कापनुर के जाजमऊ का वो इलाका जहां टेनरियां चलती हैं)


जाजमऊ और कानपुर क्षेत्र में फैलीं 260 टेनटरियों से एक लाख से ज्यादा मजदूरों को रोजगार मिलता है, इनमें से ज्यादातर दूसरी जगहों पर शिफ्ट हो गये, और जो हैं उनके पास करने को कुछ नहीं हैं। कारोबारियों को सबसे बड़ी चिंता मजदूरों को लेकर है। बंदी के बाद ज्यादातर मजदूर दूसरी जगहों पर चले गए, जिनका लौटना निश्चित नहीं।

खुदा बख्श के 32 वर्षीय बेटे इस्माइल भी टेनरी फैक्ट्री में काम करता था। इस्माइल कहते हैं "टेनरी में मैं ट्रीमिंग का काम करता था। लेकिन टेनरी बंद होने के कारण मेरे पास कोई काम ही नहीं है। दो बच्चे हैं, एक स्कूल जाता है, उसकी फीस नहीं भर पा रहा। दूसरा कोई काम आता नहीं। कंपनी के मालिक कहते हैं कि जब दोबारा फैक्ट्री चलेगी तो भी ज्यादा काम नहीं होगा। बच्चों और परिवार के भविष्य को लेकिर बहुत चिंतित हूं।"

कानपुर के चमड़ा कारोबार पर संकट, चार लाख लोगों के रोजी-रोटी का क्या होगा ?

चार साल पहले यानी 2014 में जाजमऊ और कानपुर के क्षेत्रों में 402 रजिस्टर्ड टेनरी यानी चमड़े के कारखाने संचालित थे। लेकिन सरकार की अनदेखी और प्रदूषण को लेकर उठते सवालों के कारण अब महज 260 टेनरियों ही चल रही हैं। बाकी लगातार घाटे के कारण या तो बंद हो गईं या फिर जिला प्रशासन द्वारा सीज कर दी गईं। इस पूरे कारोबार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 10 लाख से ज्यादा लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है।

इमरान अली (34) पहले चमड़े को रंगने का काम करते थे। लेकिन कारखाना बंद होने के कारण अब वे घरों की रंगाई-पुताई करने लगे। इमरान बताते हैं, "बड़े दिनों बाद आज (२० फरवरी 2019 को) थोड़ा बहुत काम मिला है। जब से तालाबंदी हुई है तब से घरों में रंगाई-पुताई का काम करने लगा हूं। लेकिन उसमें रोज काम नहीं मिलता। कुछ दिन और देख लेता हूं नहीं तो कहीं बाहर निकलूंगा। घर चलाने के लिए पैसे तो कमाने ही होंगे।"

इमरान अब घरों में रंगाई पुताई का काम करने लगे हैं। कभी-कभार टेनरी में काम होता है तो ये भी कर लेते हैं

लेदर कॉउंसिल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक कानपुर में कभी 12,000 करोड़ रुपए का चमड़े का व्यापार होता था, जो घटकर महज 2000 करोड़ रुपए तक रह गया है। कारोबार में 40 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज़ की गयी है।

टेनरी मालिक नैयर जमाल कहते हैं, "हम पानी ट्रीट करके ही डिस्चार्ज करते हैं। हम भी चाहते हैं कि गंगा नदी का पानी साफ हो लेकिन डॉक्टर तो मर्ज का इलाज करता है न कि मरीज को गोली मार देता है। सरकार डॉक्टर है, उस मर्ज़ को ठीक करना होगा। अब कंपनी शुरू भी जाएगी तो हमारी विश्वसनियता वापस नहीं हा पायेगी।"

मैन्युफैक्चरिंग कारोबार से जुड़े युवा कारोबारी शाहनवाज अहमद कहते हैं " ऐसा नहीं है कि इस तीन की बंदी के कारण बस टेनरियों को ही नुकसान हुआ है। खच्चर चलाने वाले, टेंपो वाले, एक्स्पोर्टर और छोटे व्यापारी भी प्रभावित हुए हैं। मैंने ऑर्डर पूरा करने के लिए कच्च माल मंगा लिया था, वो सब खराब हो गया। बाहर साख खराब हुई ऊपर से।"

भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने चमड़ा उद्योग का निर्यात वर्ष 2020 तक 20 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन कानुपर में जो हो रहा उसे देखते हुए मुश्किल ही है कि ये लक्ष्य पूरा हो सके। भारत में चमड़े का सबसे ज्यादा कारोबार तमिलनाडु में होता है। अक्टूबर 2017 में केंद्र सरकार ने तमिलनाडु के चमड़ा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए117.33 करोड़ रुपए की चार परियोजनाओं को मंजूरी भी दी थी।

कानपुर के पेच बाग में सबसे बड़ी चमड़ा मंडी है। 2014 से पहले तक यहां रोज 20-25 ट्रक खाल आती थी। यहां 1200 से ज्यादा मजदूर काम करते थे। यहां अब सन्नाटा पसरा है। पेच बाग ही वह जगह जहां खाल में नमक लगाया जाता है जिसके बाद टेनरी भेजा जाता था। वहां उसको फिनिश करके फैक्ट्री में भेजा जाता था जिससे जूते, घोड़े की काठी, बेल्ट,पर्स और अन्य आइटम बनते थे।

यहीं के एक व्यापारी है नरेंद्र सिंह तोमर, जो सेना के जवानों को लेदर का बेल्ट सप्लाई करते हैं, बताते हैं, "जो ऑर्डर कैंसिल हुए वे अब शायद ही दोबारा कभी मिलें। काम न होने की वजह कामगार दूसरी जगहों पर चले गये। कारोबार पहले से ही घट रहा था, ऐसे में इस बंदी ने हमे घुटनों पर ला दिया।


बढ़ते नुकसान को देखते हुए व्यापारी टेनरी जल्द से जल्द चलाने की मांग कर रहे हैं। बाबू भाई कहते हैं "उनकी अधिकारियों से लगातार बात हो रही है। लेकिन अधिकारी मामला एक दूसरे पर टाल रहे हैं।"

टेनरी का संचालन कब से होगा इस मामले पर जल निगम कानपुर के प्रोजेक्ट मैनेजर घनश्याम दूबे कहते हैं " मौजूदा स्थिति को देखते हमारी ओर से टेनरी संचालन को हरी झंडी दे दी गयी है। सीईटीपी का संचालन भी शुरू है। इसके आगे का फैसला उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्राधिकारी को लेना है। वहीं इस मामले पर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्राधिकारी, कानपुर कुलदीप मिश्रा ने कुछ भी बताने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि ये पॉलिसी मैटर है। इस पर फैसला सरकार लेगी।


  

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