नए संसद भवन के लिए रेशम के कालीन बुनने में रात-दिन लगे हैं कश्मीरी बुनकर
अपने करघे से लटके हुए कालीन तालीम के मुश्किल कोड के मुताबिक बुनाई करते हुए मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में 50 कारीगर, 8 फीट चौड़े और 11 फीट लंबे रेशमी कालीन बुनने में तल्लीन हैं। ये कालीन नई दिल्ली के शानदार नए संसद भवन की दीवारों की शोभा बढ़ाएंगे। भारत से सालाना 300 करोड़ रुपये के कश्मीरी कालीन निर्यात किए जाते हैं।
Mudassir Kuloo 14 Sep 2022 12:22 PM GMT
खाग (बडगाम), कश्मीर। कालीन वान या कालीन बुनने वाले करघे के सामने पालथी मारकर बैठे परवेज अहमद खान, तारिक अहमद खान और गुलाम मोहम्मद मलिक की आंखें और हाथ लगातार काम में लगे हैं। ये तीनों चचेरे भाई हैं, जो रेशम के कालीन बुनने के लिए मिले एक विशेष प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। ये कालीन राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में नए संसद भवन की शोभा बढ़ाएंगे।
मध्य कश्मीर में श्रीनगर से 30 किलोमीटर दूर बडगाम जिले के खाग में परवेज के घर पर यह करघा है।
8 फीट चौड़ा और 11 फीट लंबा एक कालीन धीरे-धीरे तैयार हो रहा है – उस पर लाल, नीले, काले, गुलाबी, हरे, नारंगी और कहीं-कहीं सफेद धागे से बने पेड़ों के पारंपरिक डिजाइन, फूल, और जानवरों की आकृतियां उभर रही हैं।
परवेज की उम्र महज 23 साल है। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया कि वह आठ-नौ साल की उम्र से ही कालीन बुन रहे हैं। परवेज ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है, लेकिन वह कालीन तालीम या लिखे हुए कोड पढ़ सकते हैं। यह काम हर किसी के लिए संभव नहीं है।
कालीन तालीम कालीन बुनने की निर्देश पुस्तिका है, इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले धागे की संख्या, रंग, धागों के बीच की दूरी आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई होती है। इसी की मदद से हाथ से बुने हुए कालीन पर पैटर्न बनाए जाते हैं। ये कोड कागज पर लिखे गए हैं और परवेज इसे अपने सामने रखकर उन्हें ज़ोर से पढ़ रहा है और बाकी लोग उसके निर्देशों का पालन कर रहे हैं।
ताहिरी कार्पेट के क़मर अली खान एक ट्रेडर हैं। उन्हें पिछले साल अक्टूबर में सेंट्रल विस्टा रिडवलपमेंट प्रोजेक्ट से 12 कालीनों का ऑर्डर मिला था। संसद के नए भवन का निर्माण इसी परियोजना के तहत चल रहा है।
सबसे पहले रेशमी कालीनों के लिए प्रसिद्ध बडगाम में पचास बुनकरों की पहचान की गई और फिर काम शुरू हुआ। कार्पेट अगले महीने अक्टूबर तक डिस्पैच के लिए तैयार हो जाएंगे।
परवेज के साथ बुनाई कर रहे तारिक अहमद खान ने गाँव कनेक्शन को बताया, "संसद के लिए कालीन बनाना एक बड़े सम्मान की बात है।" उन्होंने आगे कहा, "यह मुश्किल काम है। एक कालीन को पूरा करने में चार लोगों को लगभग छह महीने लगते हैं।" तारिक पिछले 15 सालों से कालीन बुनने का काम कर रहे है।
परवेज बताते हैं, "हम संसद के लिए इन कालीनों को बुनकर खुश हैं और हमें इसके लिए अच्छा पैसा भी मिल रहा है।" बुनकरों को उनके काम के लिए रोजाना 500 रुपये तक का भुगतान किया जा रहा है। जबकि आम तौर पर उन्हें जटिल और बारीक काम के लिए पहर दिन 150 रुपये से ज्यादा नहीं मिलते हैं। युवा परवेज ने कहा, "अगर हमें अच्छा पैसा मिलेगा तो हम इस पेशे को जारी रख पाएंगे।"
कश्मीर का सिल्क कलीन
कश्मीर में रेशम कालीन बुनाई का इतिहास मुगल काल में अपने गौरवशाली दिनों के साथ सैकड़ों साल पुराना है। कला की इस उत्कृष्ट कारीगरों को दुनिया भर के संग्रहालयों में प्रदर्शित किया गया है. जम्मू-कश्मीर के हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, हर साल 300 करोड़ रुपये के कालीन निर्यात किए जाते हैं।
हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग के अनुसार, कम से कम तीन लाख लोग हस्तशिल्प कला से जुड़े हैं। इनमें कालीन, पैपिए-मैशे (कागज की लुगदी), शॉल और लकड़ी की नक्काशी शामिल है।
हस्तशिल्प और हथकरघा, कश्मीर के निदेशक महमूद अहमद शाह ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हम सोसाइटीज बना रहे हैं जिसके जरिए सरकार कारीगरों को आर्थिक सहायता देगी. पिछले साल राज्य सरकार ने कारीगरों को 10 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी थी. इसी तरह से कारीगरों के बच्चों की आर्थिक सहायता करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं."
कश्मीरी बुनकर खुश हैं कि उन्हें यह पार्लियामेंट प्रोजेक्ट मिला है। खाग के एक अन्य बुनकर गुलाम मोहम्मद मलिक ने गांव कनेक्शन को बताया, "यह हमें अच्छा मेहनताना दे रहा है. हमें हमारे काम के इतने पैसे मिलते रहेंगे, तभी हम इस शिल्प को बनाए रखने में सक्षम हो पाएंगे।" वह आगे कहते हैं, "बहुत कम पर बने रहना बहुत मुश्किल हो जाता है। हम आमतौर पर एक दिन की कड़ी मेहनत के बाद रोजाना 200 रुपये से ज्यादा नहीं कमा पाते हैं।"
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