मध्य प्रदेश : यूरिया के लिए सुबह से शाम तक कतार में किसान, जरूरत 10 बोरी की और हाथ आ रही एक बोरी

खरीफ सीजन में किसानों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी यूरिया खाद है। पहले कालाबाज़ारी के चक्कर में किसानों को यूरिया दोगुने दाम में खरीदनी पड़ी। अब जब सरकारी दुकानों में पहुंची तो लंबी कतार लग चुकी हैं। सुबह से शाम तक खड़े होने के बावजूद किसानों को खेत के हिसाब से जितनी जरूरत है, उतनी भी खाद हाथ नहीं आ रही।

Sachin Tulsa tripathiSachin Tulsa tripathi   28 Aug 2020 10:02 AM GMT

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सतना (मध्य प्रदेश)। यूरिया का संकट लम्बे समय बाद अभी भी किसानों के सामने बना हुआ है। मध्य प्रदेश में सरकारी उर्वरक केन्द्रों के बाहर किसान लंबी-लंबी कतारों में खड़े नजर आ रहे हैं। आलम यह है कि सरकारी उर्वरक केन्द्रों में यूरिया का स्टॉक पहुँचने के बाद भी किसानों को जरूरत के अनुसार यूरिया नहीं मिल पा रही है।

"सुबह सात बजे से लाइन में खड़े हैं और शाम के पांच बज रहे हैं, अभी तक नंबर नहीं आया है। हमको तो केवल एक बोरी ही दी जा रही है। जुगाड़ वाले एक से डेढ़ ट्रॉली खाद लेकर चले गए लेकिन जो लाइन लगाये हैं, उनको अभी तक नहीं मिली," गांव खैरवाही से सतना में यूरिया खाद लेने आये किसान गया प्रसाद बताते हैं।

खाद लेने के लिए घंटों से लाइन में लगे 20 किलोमीटर दूर खैरी कोठार से आये किसान कौशल प्रसाद कोल भी गया प्रसाद की बात का समर्थन करते हैं। कौशल प्रसाद एक दिन पहले 26 अगस्त को भी यूरिया लेने के लिए पहुंचे थे, मगर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा था।

कौशल प्रसाद 'गांव कनेक्शन' से बताते हैं, "बीस-बीस, चालीस-चालीस बोरी खाद जुगाड़ वाले ले जा रहे हैं। लाइन वाला तो लाइन में ही खड़ा रह कर देखता रहता है। सब कालाबाज़ारी चल रही है।"

खरीफ सीजन में मची यूरिया की रार एक पखवाड़े बाद खत्म तो हुई लेकिन कम उपलब्धता के कारण किसान के सामने आफत खड़ी हो गई। खाद आने की जानकारी जैसे ही किसानों को मिली वह सुबह होते ही दुकान के सामने खड़े हो गए। ज़िला मुख्यालय से लेकर गांव में संचालित दुकानों में लंबी-लंबी कतारें लग गईं। आलम यह रहा कि व्यवस्था ठीक न होने किसानों की नाराजगी भी दिखी।

सतना जिला मुख्यालय के सिविल लाइन में संचालित सरकारी विक्रय केंद्र में यूरिया खरीदने के लिए 25 से 30 किलोमीटर दूर से पहुंचे किसान। फोटो : गाँव कनेक्शन

सतना जिला मुख्यालय के सिविल लाइन में संचालित सरकारी विक्रय केंद्र के सामने 25 से 30 किलोमीटर दूर से किसान पहुंचे। सुबह करीब 7 बजे से किसानों की कतार लगनी शुरू हो गई जो देर शाम तक लगी रही। विक्रय केन्द्र के सामने कतार में लगे किसान जब धैर्य खोते तब-तब जोरदार हल्ला करते। व्यवस्था को संभालने के लिए पुलिस भी लगाई गई थी। यूरिया के लिए किसानों के बीच सामाजिक दूरी के नियम भी धरे के धरे रह गए।

इसके अलावा ऐसा ही नजारा ऊँचेहरा ब्लॉक के जनपद मुख्यालय में संचालित इफको के विक्रय केंद्र में दिखा। यूरिया के लिए यहाँ भी किसानों ने खूब हंगामा किया।

इस केंद्र में पहुंचे रागला ग्राम के किसान मनदीप सिंह बताते हैं, "यहां खाद मिलना मुश्किल हो रहा है। सब उठा कर बड़े-बड़े लोगों को दी जा रही है। जरूरत 10 से 15 बोरी की है लेकिन दे एक ही बोरी रहे हैं। ऐसे में काम नहीं चलेगा।" उन्होंने 'गांव कनेक्शन' को बताया, "आधार कार्ड के आधार पर तो कोई भी ले जा रहा है। खसरा-खातौनी पर दें तो किसान को ही मिलेगी। यहां सब मनमानी चल रहा है यहाँ।"

सतना जिले में सरकारी तौर पर खाद विक्रय के लिए सात केंद्र हैं। इनमें से छह मार्कफेड और एक जिला मुख्यालय में एमपी एग्रो का है। किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग और मार्कफेड से मिले आँकड़ों के मुताबिक एमपी एग्रो को 150 मीट्रिक टन (एमटी), मार्कफेड सिविल लाइन को 350, शेरगंज को 500, नागौद-अमरपाटन को 700-700 और मैहर-ऊँचेहरा को 400-400 मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध कराया गया।

मार्कफेड और कृषि विभाग के ही आँकड़ों पर भरोसा करें तो गांव की सहकारी समितियों को खाद उपलब्ध नहीं कराई गई। फिलहाल सतना जिले में 90 समितियां क्रियाशील हैं, जबकि 156 कुल समितियों में 56 डिफाल्टर हैं। क्रियाशील समितियों को नियमन एडवांस में डिमांड ड्राफ्ट देने पर ही खाद उपलब्ध कराई जाती है।

सतना के अमरपाटन ब्लॉक के जनपद मुख्यालय के विक्रय केन्द्र में भी किसानों के बीच यूरिया के लिए मारामारी की स्थिति रही। किसानों ने खाद न मिलने के कारण सड़क तक जाम कर दी। इसकी जानकारी लगते ही अनुविभागीय अधिकारी केके पांडेय पहुंचे और किसानों को शांत कराने का प्रयास किया। अधिकारियों के जाने के बाद एक बार फिर शाम पांच बजे अमरपाटन में किसानों ने चक्का जाम कर दिया। स्थिति नियंत्रण के लिए पुलिस भी बुलानी पड़ी। इससे एक दिन पहले मैहर ब्लॉक में संचालित विक्रय केंद्र पर पहुंची महिला किसानों ने यूरिया के लिए दुकान का शटर गिरा दिया और सेल्समैन को कैद भी करने का प्रयास किया।

उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास बहोरी लाल कुरील 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "किसान दो-तीन दिन का इंतजार करें, उन्हें गांव की समितियों में यूरिया खाद उपलब्ध करा दी जाएगी।" कालाबाज़ारी के प्रश्न पर उपसंचालक कुरील ने कहा, "एक बोरी यूरिया का रेट 266 रुपये निर्धारित है। यदि कोई विक्रेता 270 से अधिक रेट लेता है तो उसकी शिकायत किसान करें। उस पर जरूर कार्यवाही की जाएगी।"

दूसरी ओर भारतीय किसान यूनियन के ब्लॉक इकाई अध्यक्ष ठाकुर प्रसाद सिंह 'गांव कनेक्शन' से बताते हैं, "तीन-चार दिन से लगातार किसान घूम रहा है। यूरिया खाद आ गई है लेकिन इसके बाद भी मुश्किलें कम नहीं हुईं। किसान को 15 से 20 बोरी चाहिए और दे एक बोरी रहे हैं। खाद के अभाव में किसान की खड़ी फसल सूख रही है। सब बर्बाद हो रहा है और कोई सुनने को तैयार नहीं हैं।"

मैहर ब्लॉक में संचालित विक्रय केंद्र पर पहुंची महिला किसानों ने यूरिया के लिए दुकान का शटर गिरा दिया और सेल्समैन को कैद भी करने का प्रयास किया। फोटो : गाँव कनेक्शन

सतना के मार्कफेड विक्रय केंद्र के बाहर कतार में खड़े-खड़े परेशान हो चके पोड़ी से आये किसान अनूप सिंह बताते हैं, "खाद प्रभारी की सील लगाकर टोकन दिया गया। इसमें न डेट है न नंबर। खाद कब मिलेगी। कितनी मिलेगी यह नहीं बताया जा रहा है। खाद के बिना फसल सूख रही है। पीली भी पड़ गई है। सुबह 8 बजे से खड़े हैं पांच बजे गए। अब तक यूरिया नहीं मिली है।"

दूसरी ओर जनसंपर्क मध्य प्रदेश की जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रदेश के आठ जिलों (सतना, बालाघाट, रायेसन, विदिशा, बैतूल, जबलपुर, दमोह और नरसिंहपुर) ने कृषि विभाग से 19 हजार टन से ज्यादा यूरिया मांगा था। वहीं, अब तक प्रदेश के किसानों को 9.41 लाख टन यूरिया बांटा जा चुका है, यह पिछले साल के मुकाबले 1.34 लाख टन अधिक है।

उधर, प्रदेश में यूरिया की कालाबाजारी की शिकायतें भी लगातार बढ़ रही हैं। इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 26 अगस्त को कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक बुलाई। इसमें उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए कि किसी भी सूरत में यूरिया और खाद्य सामग्री की कालाबाजारी और जमाखोरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अवैध गतिविधियों को सख्ती के साथ रोकें। प्रदेश में खरीफ फसलों के लिए किसानों को यूरिया की जरूरत है। इसके कारण मांग लगातार बढ़ रही है।

मगर आलम यह है कि अभी भी किसानों के सामने यूरिया का संकट बना हुआ है और उनकी फसल के लिए जरूरत के मुताबिक यूरिया उन्हें उपलब्ध नहीं हो पा रही है।

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