महिला दिवस विशेष : महिलाओं की विशेष अदालत जहां सुलझ जाते हैं कोर्ट और थानों में लंबित मामले

भारत में ग्रामीण महिलाओं का योगदान अक्सर किसी बही-खाते में दर्ज नहीं होता। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर गांव कनेक्शन ने एक विशेष सीरीज शुरू की है, जिसमें आपको ग्रामीण भारत की उन महिलाओं की कहानियों से रूबरू कराया जाएगा जो महिला सशक्तिकरण का जीता-जागता अनूठा उदाहरण है। सीरीज के पहले भाग में पढ़िए, ग्रामीण महिलाओं द्वारा संचालित नारी अदालतों के बारे में। पहले भाग में नारी अदालत को इसलिए चुना गया है क्योंकि पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से ग्रामीण इलाकों से महिलाओं-लड़कियों के साथ रेप, हत्या की खबरें आई हैं, उसमे नारी अदालत का जिक्र जरुरी हो गया था।

Neetu SinghNeetu Singh   8 March 2021 11:29 AM GMT

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पिसावां (सीतापुर, उत्तर प्रदेश)। गोद में पांच महीने का बच्चा लिए आरती भरी दुपहरी में पांच किलोमीटर पैदल चलकर आई थी, वो सुबकते-सुबकते पेड़ की छांव में बैठी कुछ महिलाओं को अपनी आपबीती सुना रही थी, "मेरे जेठ और देवर मेरी जमीन हड़पना चाहते हैं वो अक्सर मुझे और मेंंरे पति के साथ मारपीट करते हैं। मैं थाने में कई बार जा चुकी हूं, 3 मार्च को एक एप्लीकेशन भी लिखकर दी थी पर कोई सुनवाई नहीं हो रही," साड़ी के एक कोने से अपने आंसू पोछते हुए आरती ने कहा।

दरी पर बैठी महिलाओं में से एक ने आरती को हौसला दिलाते हुए कहा, "आरती चुप हो जाओ, रोना बंद करो। अब तुम यहां आ गयी हो तुम्हे न्याय जरूर मिलेगा।" आरती ने जहां अपना दर्द बांटा था वो ना कोई थाना था, न किसी अधिकारी का दफ्तर, ये किसी नेता का जनता दरबार भी नहीं था और ना ही फैसला सुनाने वाला कोर्ट, ये अपने तरह की एक विशेष अदालत है, जिसे नारी अदालत कहा जाता है।

दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाली आरती पासी (30 वर्ष) उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर पिसावां ब्लॉक के पथरी गांव की रहने वाली हैं, जिनके परिवार में जमीन का एक मसला है। आरती के अनुसार उनके जेठ और देवर (पति के बड़े और छोटे भाई) उन्हें पैतृक जमीन से बेदखल करना चाहते हैं जिसको लेकर आये दिन वो लोग आरती के साथ मारपीट करते हैं। यही मामला लेकर आरती छह मार्च को इस नारी अदालत में न्याय के लिए बड़े भरोसे से आई थी। यहां बैठी महिलाएं आरती की बात बड़ी गम्भीरता से सुन रही थीं और उसे दिलासा दिला रही थीं कि वो फिक्र न करे उसे न्याय जरुर मिलेगा।

थाने में जब आरती की सुनवाई नहीं हुई तब आरती नारी अदालत में आयीं. फोटो : नीतू सिंह

ये महिलाएं पिसावां थाने से महज 300 मीटर की दूरी पर खाली पड़ी सरकारी जमीन जिसे निरीक्षण भवन कहा जाता है वहां अशोक के पेड़ की छाँव में साल 2004 से 'नारी अदालत' लगाती हैं। इस नारी अदालत में घरेलू हिंसा, बलात्कार, अपहरण, बाल-विवाह, दहेज, मजदूर-शोषण और जमीन विवाद जैसे तमाम मसले आते हैं।

सीतापुर की ये अदालत पहली नारी अदालत नहीं है, उत्तर प्रदेश के 19 जिलों में जून 2020 तक 150 नारी अदालत संचालित हो रही थीं। ग्रामीण स्तर पर बनी इन नारी अदालतों ने जून 2019 तक 25,000 से ज्यादा घरेलू हिंसा के मसलों को सुलझाया था। आरती से 6 मार्च को फिर जब उसके परिजनों ने गाली-गलौच और मारने की कोशिश की तो वो थाने ना जाकर कुछ महिलाओं के कहने पर नारी अदालत आ गई।

आरती की पूरी बात सुनकर 20-25 महिलाएं पिसावां थाने गईं, जहां आरती 3 मार्च को एक लिखित एप्लीकेशन भी दे चुकी थी। पिसावां थाने में बनी महिला हेल्प डेस्क की एक महिला कर्मचारी ने इन महिलाओं की बात सुनी पर नारी अदालत की सदस्य नीबूकली थानाध्यक्ष से मिलना चाहती थी। कुछ देर बाद ये एसओ केबी सिंह से मिली और महिला की पूरी समस्या बताई। थानाध्यक्ष के सामने कुर्सी पर बैठी नीबूकली कह रही थीं, "आप इस महिला की समस्या का समाधान कराएं। तीन बार ये महिला थाने से लौट गयी जब यहाँ सुनवाई नहीं हुई तब ये हमारे पास पहुंची है।"

पेड़ की छाँव में दरी बिछाकर ये महिलाएं वर्ष 2004 से नारी अदालत संचालित कर रही हैं.

गांव कनेक्शन संवाददाता ने देखा कि इस थाने के कई पुलिसकर्मी नारी अदालत की सदस्यों को पहले से जानते थे, ग्रामीण महिलाओं का पुलिस के सामने इतने सशक्त तरीके से अपनी बात रखना बदलाव की एक सुखद तस्वीर जैसा था। थानाध्यक्ष केबी सिंह ने थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों से महिला की एप्लीकेशन को लेकर सवाल जवाब किए और संतोषजनक उत्तर न मिलने पर उन्होंने कड़क आवाज़ में एक पुलिस कर्मचारी को निर्देशित किया, कल(7 मार्च) दोनों पक्षों को बुलाकर इस समस्या का तुरंत हल करवाया जाये।"

नारी अदालत की महिलाएं जब निकलने लगीं तो एसओ केबी सिंह ने कहा, "आप में से पांच महिलाओं के नाम लिखवा दीजिये। महिला दिवस पर पहली बार 'महिला सुरक्षा समिति' का गठन किया जा रहा है, जिसमें हमें 20-25 महिलाओं को रखना है। ये महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वयं सहायता समूह और उद्यमी क्षेत्र से जुड़ी महिलाएं होंगी। आपकी मदद से हम महिलाओं की और बेहतर तरीके से मदद कर पाएंगे।"

ये नारी अदालत आसपास के गाँव की ग्रामीण महिलाओं द्वारा स्वैच्छिक स्तर पर शुरू किया गया न्यायिक प्रक्रिया का एक ऐसा ढांचा है, जहाँ गाँव की महिलाएं बड़ी सहजता से अपनी बात रख सकती हैं। इस अदालत से स्थानीय महिलाओं को कोर्ट, कचहरी और थाने के चक्कर नहीं लगाने पड़ते और न ही पैसा खर्च करना पड़ता। इन नारी अदालतों ने पुलिस और कोर्ट के पास सालों-साल लंबित पड़े कई मामलों को भी निपटारा कराया है।

नारी अदालत में कोई जज नहीं होता, महिलाओं का एक समूह मुद्दों को सुनकर उनका निपटारा करता और करवाता है। ये ज्यादा पढ़ी लिखी महिलाएं नहीं हैं मगर इन्हें कानून और भारतीय दंड संहिता की धाराओं की बखूबी समझ है। इन महिलाओं की दूसरी सबसे बड़ी खूबी इनकी काउंसिलिंग की क्षमता है। अपने तर्कों और सहज शब्दों से ये अपनी बात मनवाकर दी दम लेती हैं।

ये महिलाएं ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हैं पर इन्हें कानून और धाराओं की पूरी समझ है. फोटो : नीतू सिंह

महिला मुद्दों को सुलझाने के लिए स्थानीय स्तर के थानों में पुलिस भी इन महिलाओं की मदद लेती है। इन महिलाओं को 'महिला समाख्या' नाम के एक संगठन ने प्रशिक्षित कर इनमें कानून, धाराओं और महिला मूद्दों की समझ विकसित की है। लेकिन वर्तमान में महिला समाख्या कार्यक्रम को बंद कर दिया गया है।

उत्तर प्रदेश में महिला समाख्या की पूर्व परियोजना निदेशक डॉ स्मृति सिंह बताती हैं, "नारी अदालत महिलाओं का एक स्वैच्छिक प्रयास है, महिलाओं के समूह के बीच से कुछ महिलाएं लीडर की भूमिका में सामने आयीं। यही वजह है कि सरकार की तरफ से बजट आवंटन न होने की वजह से कार्यक्रम (महिला समाख्या) को बंद हुए लगभग एक साल हो गया है पर महिलाएं इसे अभी भी अपने स्तर से संचालित कर रही हैं।"

डॉ स्मृति सिंह आगे बताती हैं, "यूपी में चलने वाली 150 नारी अदालतें अभी सभी चल रही हैं या कुछ बंद हो गईं ये कह पाना मुश्किल है, क्योंकि एक साल से इसका फालोअप नहीं हुआ है पर मुझे ऐसा लगता है ज्यादातर अदालतें चल रही होंगी क्योंकि इसमें शामिल महिलाएं घर बैठने वालों में से नहीं हैं। नारी अदालत की शुरुआत 20-22 साल पहले इस सोच के साथ की गयी थी कि ग्रामीण स्तर पर इतनी जागरुकता फैलाई जाए जिससे आसपास किसी तरह की कोई घटना न हो।"

थाने और कोर्ट कचहरी में लंबित मामलों को भी ये महिलाएं सुलझाती हैं. फोटो : नीतू सिंह

सीमित संसाधनों में चलने वाली इस नारी अदालत की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ आरोपी को सजा कुछ ऐसे तरीके से दी जाती है, जिससे समाज में एक संदेश जाए। पिछले साल एक नारी अदालत में एक व्यक्ति को सजा के तौर पर पांच पौधे लगाकर उसकी देखरेख करने को कहा गया था। ये ब्लॉक स्तर पर चलने वाला एक अनूठा ढांचा है जहाँ पर ग्रामीण महिलाओं से बिना किसी फीस के उनके मामले सुलझाए जाते हैं।

डॉ स्मृति सिंह आगे कहती हैं, "अगर हमें स्थानीय स्तर पर बदलाव लाना है, न्यायिक प्रणाली को मजबूत करना है तो ऐसे स्वैच्छिक संगठनों को बढ़ावा देना होगा। महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए ऐसे संस्थागत ढाँचे तैयार करने होंगे जिससे ग्रामीण क्षेत्र में हर आख़िरी व्यक्ति को इसका लाभ मिल सके। नारी अदालत में आये 99% मुद्दे सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझा दिए जाते हैं।

हर जिले में चलने वाली नारी अदालत की निर्धारित तारीख होती है जिसमें ज्यादातर 15 तारीख और बाकी की 14 और 28 तारीख को होती हैं। महिलाएं बकायदे मीटिंग मिनट्स नोट करती हैं। नारी अदालत चलाने वाली कई महिलाएं मजदूरी छोड़कर कई किलोमीटर पैदल चलकर इसमें शामिल होती हैं। इनकी मंशा यही है जिस तरह से इनके जीवन में बदलाव आया है उसी तरह दूसरी महिलाओं को भी मदद कर तकलीफों से उन्हें बाहर निकाला जाए।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार देश भर में हर दिन बलात्कार की 87 घटनाएं दर्ज की जा रही हैं। वर्ष 2019 में बलात्कार के कुल 32,033 मामले दर्ज किये गए, जिसमें सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही 3,065 मामले थे, जो कुल बलात्कार के मामलों का 10 प्रतिशत हैं। नारी अदालत से जुड़े लोगों के मुताबिक ऐसी अदालतें यूपी पीड़ितों को न्याय दिलवाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।

आरती रोते हुए नारी अदालत में जब अपनी बात बता रही थीं तो महिलाएं इन्हें दिलासा दिला रही थीं कि अब इन्हें न्याय मिल जाएगा. फोटो : नीतू सिंह

सीतापुर जिले में महिला समाख्या की पूर्व जिला कार्यक्रम समन्यवक रह चुकी अनुपम लता बताती हैं, "आज से 20 साल पहले जिले में जब स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया तब महिलाओं को घर से बाहर निकलने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। समूह की बैठक में आने की वजह से इन महिलाओं ने अपने पतियों की बहुत मार खाई है। इस मारपीट को रोकने के लिए ये समूह में एक साथ रहने लगीं, कुछ महिलाओं को इन्होंने हिंसा होने से बचाया।"

अनुपम आगे कहती हैं, "धीरे-धीरे इन महिलाओं को लगा क्यों न इसे एक प्रक्रिया में लाया जाए जिससे किसी भी महिला के साथ हिंसा न हो। नारी अदालत इन महिलाओं ने मिलकर बनाई, इसके बनने के बाद इनके ऊपर हिंसा होना कम हुआ, धीरे-धीरे ये बड़े पैमाने पर संचालित होने लगीं। अभी जो यूपी में महिलाओं के साथ रेप और हिंसा के जो मामले आ रहे हैं उसमें इन अदालतों की सख्त जरूरत है।"

भारत सरकार द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए वर्ष 1989 में 'महिला समाख्या' कार्यक्रम की शुरुआत 11 राज्यों में की गयी थी। केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में बंद करके राज्य सरकारों को यह पत्र लिखा गया था कि अगर राज्य सरकारें चाहें तो इसे अपने स्तर चला सकती हैं। तीन राज्यों को छोड़कर अभी राज्यों ने यह कार्यक्रम बंद कर दिया था। यूपी में वर्ष 2017 में इस कार्यक्रम को महिला एवं बाल विकास कल्याण विभाग के तहत पुन: शुरू किया गया लेकिन बजट के अभाव में इस कार्यक्रम को जून 2020 में बंद कर दिया गया। पर ये नारी अदालतें बिना बजट के अभी भी जारी हैं।

ये वो माँ हैं जिनकी बेटी के साथ रेप हुआ था जिसकी एफआईआर लगभग दो महीने तक नहीं लिखी गयी थी. नारी अदालत में आने के बाद इनका मुकदमा दर्ज हुआ. फोटो : नीतू सिंह

अगर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के बजट पर नजर डालें तो वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 24,435 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। यह राशि पिछले साल के संसोधित अनुमानों की तुलना में 16% अधिक तो है लेकिन पिछले साल की बजट घोषणाओं की तुलना में ये 18.5% कम है। आपको बता दें कि एक फ़रवरी 2020 को पेश बजट में महिला और बाल विकास मंत्रालय के लिए 30,007.10 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। लेकिन संशोधित अनुमानों में इस बजट में लगभग 30% की कटौती कर दी गई।

आसमानी रंग की साड़ी पहने 46 वर्षीय मायावती बीते 16 वर्षों से इस नारी आदालत की सदस्य हैं। वो अपने गांव से 8 किलोमीटर पैदल चलकर नारी अदालत के दिन पहुंचती हैं।

मायावती आत्मविश्वास से बता रही थीं, "नारी अदालत की जितनी भी सदस्य हैं सभी महिलाएं पहले किसी न किसी रुप में घरेलू हिंसा से पीड़ित रही हैं। हम सबको बहुत मुश्किल से घर से बाहर निकलने का मौका मिला तब कहीं आज जाकर हमारी पहचान बनी है। इस नारी अदालत में नजदीकी जिले और दूसरे ब्लॉक के मामले आते हैं। आसपास के 180 गाँव में हमारे संगठन हैं जहाँ पर अगर महिलाओं के साथ किसी भी तरह की हिंसा होती है तो वो यहीं आती हैं।"

पिसावां थाने में चार साल पहले एक नाबालिग मूक बधिर बच्ची के साथ रेप हुआ था। पीड़िता की माँ लगभग दो महीने तक थाने के चक्कर लगाती रही पर एफआईआर दर्ज नहीं हुई। पीड़िता की माँ ने बताया, "थाने से लेकर जिले तक गये पर सबने ये कहकर टाल दिया कि तुम्हारी बेटी गूंगी-बहरी है उसके साथ कौन क्या करेगा? मुझे किसी ने नारी अदालत के बारे में बताया जब हम यहाँ आये तब इन सबकी मदद से करीब दो महीने बाद एफआईआर लिखी गयी।"

      

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