16 फ्रेक्चर, 8 सर्जरी और परिवार द्वारा छोड़े जाने के बाद भी सिविल सर्विस में पास हुईं उम्मुल खेर

Basant KumarBasant Kumar   2 Jun 2017 10:30 PM GMT

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16 फ्रेक्चर, 8 सर्जरी और परिवार द्वारा छोड़े जाने के बाद भी सिविल सर्विस में पास हुईं उम्मुल खेरउम्मुल खेर दिव्यांग पैदा हुई थीं. फोटो- उम्मुल खेर फेसबुक

लखनऊ। ‘जिंदगी में कुछ भी हो सकता है, अगर करने की चाहत और जूनून हो।’ इस वाक्य को सच साबित किया है दिव्यांग पैदा होने वाली उम्मुल खेर (28 वर्ष) ने। अपने पहली कोशिश में ही खेर यूपीएससी में 420 वीं रैंक लाई हैं।

राजस्थान के पाली मारवाड़ की रहने वाली उम्मुल खेर दिव्यांग पैदा हुई थीं। उम्मुल खेर को बोन डिसऑर्डर नाम की बीमारी थी, जिसके कारण जिसमें शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। हड्डियां कमजोर होने के कारण फ्रैक्चर की संभवना ज्यादा होती है। इस बीमारी की वजह से अब तक उम्मुल को 16 से भी ज्यादा बार फ्रैक्चर का सामना करना पड़ा है।

हिंदुस्तान अख़बार को दिए इंटरव्यू में उम्मुल खेर कहती हैं, ‘‘पिता के पैसे से खर्च नहीं चलता था तो मैं झुग्गी के बच्चों को पढ़ाकर 100-200 रुपए कमा लेती थी। उन्हीं दिनों मुझे आईएएस बनने का सपना जगा था। सुना था कि यह सबसे कठिन परीक्षा होती है।।’’

परिवारिक कलह की वजह से नवीं क्लास में घर छोड़ दिया

उम्मुल खेर का परिवार दिल्ली के निजामुद्दीन के पास झुग्गियों में रहता था। निजामुद्दीन से जब झुग्गियां हटा दी गई तो खेर का परिवार पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी में आकर रहने लगा। खेर के पिता मूंगफली बेचते थे, जिसके कारण परिवार को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ता था। परिवार के लोग नहीं चाहते थे की वो आगे पढ़ाई करें। इसी दौरान खेर की माँ का देहांत हो गया। माँ के देहांत से उम्मुल कमजोर पड़ गयी। घर में सौतेली माँ आई तो उनके साथ उसका रिश्ता बेहतर नहीं रहा, जिसके कारण खेर को घर छोड़ना पड़ा था। जब खेर ने घर छोड़ने का फैसला लिया तब वो नवीं क्लास में थीं।

यूपीएससी का रिजल्ट आने के बाद उम्मुल खेर ने फेसबुक पर अपनी तस्वीर बदलते हुए लिखा ‘Sometimes the journey itself is as beautiful as the destination..’

परिवार से अलग होने के बाद दिल्ली के त्रिलोकपुरी में ही एक किराये का घर लेकर उम्मुल रहने लगीं। त्रिलोकपुरी अक्सर चोरी-चपाटी को लेकर चर्चा में रहता है, पिछले दिनों यहां विवाद भी हुआ था। लेकिन खेर ने वहां अकेले रहकर पढ़ाई जारी रखी। अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए वो झुग्गी के बच्चों को पढ़ाती रहीं।

हमेशा रहीं टॉप

आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्म लेने वाली उम्मुल की शुरूआती पढ़ाई दिव्यांग स्कूल से हुई। पांचवीं तक की पढ़ाई खेर ने आईटीओ में बने एक दिव्यांग स्कूल में हासिल की। इसके बाद अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट से आठवीं तक की पढ़ाई पूरी की। आठवीं क्लास में खेर टॉप रही जिसके कारण इन्हें स्कॉलरशिप मिला और स्कॉलरशिप के कारण एक प्राइवेट स्कूल में नामाकंन मिल गया। खेर के दसवीं में 91 प्रतिशत नम्बर आए तो12 वीं में 90 प्रतिशत नम्बर आए। 12 वीं के बाद उम्मुल डीयू के गार्गी कॉलेज में साइकोलॉजी से ग्रेजुएशन किया। डीयू से पास होने के बाद उम्मुल जेएनयू इंटरनेशनल रिलेशंस में एमए में एडमिशन लिया।

मेरे परिवार ने मेरे साथ जो भी किया वो उनकी गलती थी। मैं उन्हें माफ़ कर चुकी हूँ। मैं अब उन्हें हर तरह का आराम देना चाहती है जो उनका हक है।’’
उम्मुल खेर

जेएनयू से एमए करने के बाद वहीं एमफिल में एडमिशन ले लिया। एमफिल के साथ ही खेर ने जेआरफ निकाल लिया। इसके बाद पैसे की परेशानी खत्म हो गयी क्यूंकि जेआरफ से खेर को आर्थिक मदद मिलने लगा। एमफिल पूरा होने के बाद खेर ने जेएनयू से ही पीएचडी करने लगी। पिछले साल जनवरी में उम्मुल ने यूपीएसी के लिए तैयारी शुरू की और अपने पहली कोशिश में ही 420वीं रैंक हासिल की है।

2014 में उम्मुल का चयन जापान में होने वाले इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए हुआ था.

कर चुकी है देश का नेतृत्व

शुरू से ही हर क्षेत्र में आगे रहने वाली उम्मुल जब डीयू में थी तब से ही देश के अलग-अलग हिस्सों और देश से बाहर में देश का नेतृत्व करने जाने लगी। 2011 में उम्मुल दक्षिण कोरिया गई। 2014 में उम्मुल का चयन जापान में होने वाले इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए हुआ। इस प्रोग्राम के लिए चयनित होने वाले उम्मुल ऐसी चौथी भारतीय थीं।

अपने परिवार को माफ़ कर दिया

जिस परिवार ने उम्मुल को अपनाया नहीं और खराब दिनों में साथ नहीं दिया उस परिवार की गलतियों को वो माफ़ कर चुकी है। उम्मुल ने समाचार चैनल एनडीटीवी से कहा, ‘‘मेरे परिवार ने मेरे साथ जो भी किया वो उनकी गलती थी। मैं उन्हें माफ़ कर चुकी हूँ। मैं अब उन्हें हर तरह का आराम देना चाहती है जो उनका हक है।’’

शायद उम्मुल खेर जैसों के लिए दुष्यंत कुमार ने लिखा हैं,

कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता

एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

             

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