छत्तीसगढ़ में अब कंप्यूटर के जरिए गोंडी भाषा में पढ़ सकेंगे आदिवासी समाज के बच्चे

आधुनिक शिक्षा के बीच आदिवासियों की प्रमुख भाषा गोंडी अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ती आ रही है। ऐसे में अब इस पहल से गोंडी भाषा को सहेजने में काफी मदद मिल सकेगी।

Tameshwar SinhaTameshwar Sinha   5 Aug 2020 12:54 PM GMT

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छत्तीसगढ़ में अब कंप्यूटर के जरिए गोंडी भाषा में पढ़ सकेंगे आदिवासी समाज के बच्चेगोंडी भाषा में अभी तक मौखिक रूप से पढ़ रहे इन बच्चों को अब होगी आसानी। फोटो : गाँव कनेक्शन

छत्तीसगढ़ (कांकेर)। अब आदिवासी समाज के बच्चे कंप्यूटर के जरिये स्कूल में गोंडी भाषा पढ़ सकेंगे। अब तक ये बच्चे बिना किताबों के ही सिर्फ मौखिक रूप से गोंडी भाषा में अध्ययन करते रहे हैं।

देश के छह राज्यों में आदिवासियों के बीच बोली जाने वाली इस भाषा को सहेजने का काम छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले स्थित सरोनाजहाँ आदिवासी समाज के लोगों ने किया है। वे अब गोंडी भाषा का डिजिटलीकरण करने के लिए तैयार हैं।

इस पहल से गोंडी भाषा में स्कूली शिक्षा को बढ़ावा मिल सकेगा और यहाँ सामाजिक भवनों के जरिये चल रहे तीन स्कूलों में बच्चे जल्द ही कंप्यूटर के जरिये पढ़ाई कर सकेंगे। साथ ही गोंडी लिपि का डिजिटल फॉण्ट बनने से किताबें भी गोंडी भाषा में छापी जा सकेंगी, इससे सरकार को भी काफी मदद मिलेगी।

कांकेर जिले में आदिवासियों के द्वारा बनाई गई एक शिक्षा समिति और आदिवासी कार्यकर्ता ने एक महीने के अथक प्रयास के बाद गोंडी लिपि का डिजिटलीकरण कर फॉन्ट तैयार किया है। इस फॉण्ट का शुभारंभ नौ अगस्त विश्व आदिवासी दिन के अवसर पर किया जाएगा।

गोंडी लिपि से फॉन्ट का डिजिटलीकरण कर रहे शिक्षक विपिन भगत 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "अभी गोंडी लिपि का ASCII Code में डिजिटल किया जा रहा है फिर इसे यूनीकोड में भी लाया जाएगा। हम अभी तीन स्कूल संचालित कर रहे हैं जहाँ गोंडी में पढ़ाने के लिए पुस्तकों का होना अनिवार्य है, उसके लिए फॉन्ट का डिजिटलीकरण होना भी जरूरी है इसीलिए यह कदम उठाया गया है। यह आने वाले समय मे गोंडी भाषा के विकास में एक महत्वपूर्ण मिल का पत्थर साबित होगा।"

छत्तीसगढ़ में कांकेर जिले के सरोना, पखांजुर और कोंडागांव जिला के मसोरा में गोंडी माध्यम से पांच सालों से मौखिक रूप से बच्चों को गोंडी पढ़ाया जाता है। फोटो : गाँव कनेक्शन

देश में लगभग 11 करोड़ आदिवासियों की जनसंख्या में दो करोड़ आदिवासी गोंडी भाषा बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में कांकेर जिले के सरोना, पखांजुर और कोंडागांव जिला के मसोरा में गोंडी माध्यम से पांच सालों से मौखिक रूप से गोंडी पढ़ाया जाता है जहाँ वर्तमान में स्कूल में 300 बच्चे अध्ययनरत हैं। यह स्कूल समाजिक भवनों में संचालित होता है और सामाजिक चंदे से चलता है।

इससे पहले आदिवासी समाज के रिटायर्ड और नौकरीपेशा लोगों ने एक शिक्षा समिति जंगो रायतार बनाई थी और गोंडी माध्यम स्कूल की नींव रखी थी। इन स्कूलों का संचालन जंगो रायतार शिक्षा समिति के जरिये किया जा रहा है।

इस समिति के सचिव विष्णु पद्दा 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "स्थानीय भाषा को लेकर हमने एक प्रयास शुरू किया है, स्थानीय भाषा में स्कूली शिक्षा नहीं होने के चलते हमारी मूल भाषा को बच्चे नहीं सीख पा रहे थे। हम गोंडी में मौखिक पढ़ाई तो स्कूली बच्चों को कराते थे लेकिन जो सिलेबस की पढ़ाई है, वह फॉन्ट नहीं होने के कारण नहीं पढ़ा पा रहे थे, लेकिन अब फॉण्ट बनने से बहुत मदद मिल सकेगी।"


विष्णु पद्दा ने गोंडी भाषा के विद्वान आचार्य तिरु. मोतीरावण कंगाली द्वारा बनाई गई गोंडी लिपि का अध्ययन किया और फिर वर्ष 2005 में उन्होंने गोंडी भाषा में पहाड़ा का प्रकाशन किया था। उसी पहाड़ा को पांच सालों से बच्चों को पढ़ाया जाता था। लेकिन जैसे दूसरे भाषा में पुस्तकें और बच्चों के पास रहती हैं, वैसी पुस्तकें गोंडी भाषा में न होने से बच्चों को पढ़ाने में समस्या आती थी, लेकिन अब फॉण्ट बन जाने से अब गोंडी भाषा में शिक्षा आसान हो सकेगी।

आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता कपूर चंद कुंजाम बताते हैं, "आज देश में हर वर्ग की अपनी मूल भाषा और लिपि भी है, विष्णु पद्दा के द्वारा इसी लिपि का ही अध्ययन कर यह फॉन्ट बनाया गया।"

आधुनिक शिक्षा के बीच आदिवासियों की प्रमुख भाषा गोंडी अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ती आ रही है। गोंडी भाषा का कोई लिखित साहित्य या इस भाषा पर आधारित कोई शिक्षा पद्धति न होने से आदिवासियों की मौजूदा और आने वाली पीढ़ियां अपनी ही भाषा के ज्ञान से वंचित रहीं। ऐसे में अब इस पहल से गोंडी भाषा को सहेजने में काफी मदद मिल सकेगी।

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