कश्मीर में हर साल अनोखे जलस्रोत को साफ़ करने के लिए क्यों इकट्ठा होते हैं लोग

दक्षिण कश्मीर में हर कोई दूसरे कामों से फुर्सत निकाल कर पंजथ नाग से कीचड़ और खरपतवार निकालने के लिए इकट्ठा होता है। ये रस्म सदियों से चली आ रही है। माना जाता है पंजथ गाँव से डेढ़ किलोमीटर के दायरे में 500 झरने हैं जहाँ यह सालाना उत्सव मनाया जाता है।

Mudassir KulooMudassir Kuloo   30 May 2023 10:05 AM GMT

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कश्मीर में हर साल अनोखे जलस्रोत को साफ़ करने के लिए क्यों इकट्ठा होते हैं लोग

पंजथ नाग 'पांच हाथ' शब्द से बना है, जिसका अर्थ कश्मीरी में 'पांच सौ' होता है। ऐसा माना जाता है कि पंजथ गाँव से 1.5 किलोमीटर के दायरे में 500 झरने हैं। All photos by Raouf Dar.

श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर। 22 साल और 18 साल के अपने दो बेटों के साथ, मोहम्मद अय्यूब सुबह-सुबह काजीगुंड में ताज़ा पानी के झरने पंथ नाग पहुँचे थे। एक किलोमीटर दूर अपने घर से तीनों हाथों में टोकरियाँ लेकर पैदल आए थे।

श्रीनगर से लगभग 70 किमी दक्षिण में स्थित मीठे पानी के झरने पर युवा और बूढ़े, मछली पकड़ने का वार्षिक उत्सव मनाने के लिए जुटे थे। ये मौका जलस्रोत की सफ़ाई का भी होता है।

छोटी-बड़ी टोकरियों के साथ लोग पंजथ नाग में उतरे और उसकी अच्छे से सफ़ाई की। कुलगाम, पुलवामा और शोपियां ज़िलों के कई ग्रामीणों के लिए यह सदियों पुरानी रस्म है। साल में एक बार, वे झरने के पास इकट्ठा होते हैं और दिन भर खरपतवार और जमा गाद को साफ़ करते हैं।


“मैं इस उत्सव में तब से शामिल हो रहा हूँ जब मैं एक बच्चा था। पंजथ नाग मेरे घर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था और मैं अपने पिता के साथ वहाँ जाता था,” काजीगुंड के निवासी मोहम्मद अय्यूब ने याद किया। 48 साल के अय्यूब ने गाँव कनेक्शन को बताया, "वो 1990 का दशक था और बहुत से लोग अपने हाथों में टोकरियाँ लेकर सफ़ाई करते और मछली पकड़ते थे।"

“पिछले साल, हमने लगभग दस किलो मछलियाँ पकड़ी थीं, लेकिन इस साल, हमने केवल पाँच किलो मछलियाँ पकड़ीं। यह आमतौर पर ट्राउट मछली हैं जिसे हम पकड़ते हैं और परिवारों और दोस्तों के साथ दावत देने के लिए घर ले जाते हैं, कई ऐसे लोग हैं जो लगभग 80 किलोमीटर दूर से पंजथ नाग को साफ़ करने या सिर्फ देखने के लिए आते हैं।" उन्होंने कहा।

हर साल मई के तीसरे या चौथे सप्ताह में, गाँव वाले एक ऐसा दिन चुनते हैं जब सेब, बादाम और अखरोट के बाग फूलों से भरे होते हैं। वे 500 मीटर के क्षेत्र में फैले पंजथ नाग को साफ करते हैं और मछलियाँ भी पकड़ते हैं। यह प्रथा उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है।

पंजथ नाग

पंजथ नाग 'पांच हाथ' शब्द से बना है, जिसका अर्थ कश्मीरी में 'पांच सौ' होता है। ऐसा माना जाता है कि पंजथ गाँव से 1.5 किलोमीटर के दायरे में 500 झरने हैं।

जलस्रोत का ज़िक्र कश्मीर के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, यानी राजतरंगिणी और नीलमाता पुराण जो 12 वीं शताब्दी में लिखे गए थे। यह कई छोटे झरनों का स्रोत माना जाता है।

पंजथ नाग काजीगुंड के वेसु, नुसू, बोनी गाम, बाबापोरा, नेवा, वानपोरा और पंजथ सहित 25 से अधिक गाँवों को सिंचाई और पेयजल प्रदान करता है।


इस दिन को चिह्नित करने के लिए, लोग कब्रिस्तान भी जाते हैं जहाँ वे अपने दिवंगत परिजनों की कब्रों पर फूल चढ़ाते हैं, ऐसा माना जाता है कि दिवंगत आत्मा को शांति मिलती है।

75 साल के गुलाम कादिर गाँव के इस त्योहार देखने पहुंचे थे। "जब मैं छोटा था, मैं मछली पकड़ता था और झरने को साफ़ करता था। हालाँकि, पिछले कई सालों से मैं केवल दूसरों को ऐसा करते देखने आया हूँ, " बोनीगाम काजीगुंड के निवासी ने गाँव कनेक्शन को बताया।

"हम इस दिन के लिए पूरे साल इंतज़ार करते हैं। लोग इस दिन पकड़ी गई मछलियों को घर ले जाते हैं और उस दिन दोस्तों और परिवार के लिए दावत पकाते हैं, ”ग्रामीण ने कहा।

गाँव वालों के मुताबिक़, त्योहार कब शुरू हुआ, यह कोई नहीं जानता। ऐसा माना जाता है कि इसे 1846 के आसपास शुरू किया गया था।

एक सामुदायिक उत्सव

"सामूहिक मछली पकड़ने और जलस्रोत को पूरे साल साफ़ और खुलकर बहने के लिए ये सफ़ाई का काम किया जाता है। गाद भी साफ़ हो गई है। अगर हम इस प्रथा को बंद कर देते हैं तो नीचे पानी का बहाव रुक जाएगा, जिससे खेतों की सिंचाई पर भी असर पड़ेगा," गुलाम कादिर ने इस उत्सव के महत्व को समझाया।

65 साल के जाना बेगम और उनके पति जैसे कई अन्य मज़दूरों के लिए, यह काम से एक दिन की छुट्टी है।


"मैं इस रस्म को देखकर बड़ी हुई हूँ। यह ज़्यादातर रविवार को मनाया जाता है इसलिए नौकरी करने वाले या छात्र भी भाग ले सकते हैं। महिलाएँ साफ-सफाई नहीं करती हैं और न ही मछलियाँ पकड़ती हैं, हम बस किनारे से देखते हैं। कुछ लोग दोपहर का खाना और चाय साथ लाते हैं और फिर इसे यहाँ पिकनिक की तरह लेते हैं, "वह मुस्कुराई।

सभी के लिए यह एक अच्छा मौका होता है, जहाँ वो पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों से लम्बे समय बाद मिल भी लेते हैं।

“यह दिन हमारे पूर्वजों की ओर से हमें एक उपहार है और हमें अपने पर्यावरण को संरक्षित और सम्मान देने का तरीका भी। ” जाना ने आगे कहा।

संरक्षण के लिए चल रही परंपरा

दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग के पड़ोसी ज़िले के एक पर्यावरणविद बिलाल खान इन झरनों से अच्छी तरह परिचित हैं, जाना ने जो कहा वे उसका समर्थन करते हैं।

“प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण जल निकायों पर भारी दबाव है। इस सामुदायिक पहल के अच्छे नतीज़े मिले हैं। अन्य क्षेत्रों के लोगों को भी कुछ ऐसा करना चाहिए जैसा कि पंजथ नाग में होता है, ताकि जल निकायों को और अधिक संरक्षित किया जा सके।" बिलाल खान ने गाँव कनेक्शन को बताया।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ भारतीय हिमालयी क्षेत्र में 50 मिलियन से अधिक लोग अपने पानी और खाद्य सुरक्षा के लिए झरनों पर निर्भर हैं। लेकिन इनमें से कई जलस्रोत या तो सूख गए हैं या फिर अतिक्रमण और रख-रखाव के अभाव में धीरे-धीरे सूख रहे हैं।

कश्मीर में, बिलाल खान ने कहा कि झरनों की एक अनूठी प्रणाली है। “कई अध्ययनों के अनुसार, कश्मीर में 80 प्रतिशत से अधिक झरने का पानी बिना उपचार के भी पीने योग्य है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि लोग अपने संबंधित क्षेत्रों में इन झरनों को कैसे संरक्षित करते हैं।”

इस बीच, जम्मू-कश्मीर सरकार के मत्स्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार झरने की सफ़ाई के लिए कई उपाय कर रही है। क्योंकि यह इन लोगों के लिए एक परंपरा है, हम उन्हें इस प्रथा से नहीं रोक सकते। हालाँकि, मछली पकड़ने पर रोक होनी चाहिए। " अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा।

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