लॉकडाउन में कोरोना योद्धाओं के लिए पीपीई किट बनाकर इन महिलाओं को मिला रोजगार

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
लॉकडाउन में कोरोना योद्धाओं के लिए पीपीई किट बनाकर इन महिलाओं को मिला रोजगार

भोपाल। कोरोना के संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए जो योद्धा दिन-रात काम कर रहे हैं उनकी सुरक्षा के लिए ये महिलाएं पीपीई किट बना रही हैं।

मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल धार जिले के छोटे से ग्राम तिरला में ग्रामीण महिलाओं ने अपनी आजीविका का ऐसा रास्ता खोज निकाला है जिससे कोरोना योद्धाओं की मदद भी हो जाए और वो आर्थिक रूप से सशक्त भी हो जाएं।

तिरला विकासखंड में जय गुरुदेव महिलाओं के समूह ने पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट बनाने का काम संभाला है। लॉकडाउन में इस समूह की 33 महिलाएं इस काम में जुड़ी हैं। मंदी के इस दौर में घर बैठे इन महिलाओं को एक रोजगार मिला है।

"हमारे समूह को 3,000 किट बनाने का आर्डर मिला है। शुरुआत में हम बहुत कम संख्या में किट बना पा रहे थे। क्योंकि इसमें हमें ग्लब्ज, जंपिंग सूट से लेकर हेड कवर और शू कवर, डिस्पोजल बैग बनाने का काम करना था। लेकिन धीरे-धीरे आठ दस दिन में ही इसे बनाने का अभ्यास हो गया, " सीमा प्रजापति ने बताया।

धार जिले में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं बना रहीं पीपीई किट.

देशभर में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत चल रहे स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अलग-अलग राज्यों में इन दिनों कोविड-19 से लड़ाई में आगे आयी हैं। कहीं ये महिलाएं मास्क और सेनेटाईजर बना रहीं तो कहीं दीदी किचन में भूखों का पेट भर रहीं।

"पहले समूह से हम रोज 200 रुपए कमा लेते थे। लेकिन अभी तो कोई काम नहीं चल रहा। जबसे पीपीई किट बनाने लगे तबसे कुछ पैसा हाथ में आने लगा। एक किट बनाने पर 50 रूपये मिल रहे हैं, खाली बैठने से तो अच्छा है कुछ काम मिल गया," समूह की सदस्य अवंतीबाई ने बताया।

लॉक डाउन में जहां देश में एक बड़ी आबादी पर बेरोजगारी का संकट आ गया है। ऐसे में इन महिलाओं को ये काम मिलना एक बड़ा सहारा है।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के परियोजना समन्वयक राकेश सिंह तोमर ने बताया, "एक किट की लगात राशि इन महिलाओं को 525 मिल रही है। जिसमें 450 रूपये इनके सामग्री में खर्च हो जाते हैं। प्रति सूट एक महिला को 50 रूपये पारिश्रमिक दिया जाता है। शेष बचे 25 रुपए उस समूह की बचत राशि मानी जाती है।"

लॉकडाउन में इन महिलाओं को मिला रोजगार.

राकेश सिंह आगे बताया, "जिस तरह से इसका संक्रमण थम नहीं रहा है ऐसे में पीपीई किट भुत ज्यादा मात्रा में चाहिए। ये महिलाएं ऐसे में मददगार साबित हो रही हैं, साथ में इन्हें रोजगार भी मिल रहा है। अबतक सम्बंधित विभाग को 1,000 सूट उपलब्ध करा चुके हैं।"

इस मुश्किल हालात में ये काम मिलना समूह की संगीता बाई के लिए वरदान साबित हुआ है। रानीपुरा गाँव की रहने वाली सुनीता देवी ने बताया, "मेरे पति विकलांग है वो कोई काम नहीं कर पाते। घर के खर्चे चलाने के लिए मैंने ये काम करना शुरू किया। अब घर का खर्चा चलाने में कोई दिक्कत नहीं होती है।"

समूह की अध्यक्ष सुषमा दुबे ने बताया, "अभी कच्चा सामान आने में थोड़ी दिक्कत आ रही है। हमारे पास के जिले बड़वानी से ये कच्चा सामान मिलता है, वहीं से किट बनाने की ट्रेनिंग भी मिली। अब तो यहाँ भी सबलोग बनाना सीख गये हैं।"

प्रेमविजय, कम्युनिटी जर्नलिस्ट, भोपाल

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.