रेड जोन भोपाल में कोरोना पॉजिटिव निकली आशा की सुरक्षा को किया गया नजरअंदाज, अब बढ़ी दस लाख आशा कार्यकर्ताओं की चिंता

कोरोना संक्रमण की जंग में स्वास्थ्य विभाग की पहली मजबूत कड़ी की सुरक्षा को सरकार क्यों अनदेखा कर रही है? स्वास्थ्य विभाग से कहाँ चूक रह गयी जिस वजह से इस आशा कार्यकर्ता की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आयी? इस आशा को न तो मास्क मिला था न दास्तानें, सैनिटाइजर और पीपीई किट तो दूर की बात थी। नसरीन की तरह देश की 10 लाख आशा कार्यकर्ता इस समय बिना किसी ख़ास सुरक्षा इंतजाम के करोड़ों लोगों की देखरेख कर रही हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   27 April 2020 1:51 PM GMT

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रेड जोन भोपाल में कोरोना पॉजिटिव निकली आशा की सुरक्षा को किया गया नजरअंदाज, अब बढ़ी दस लाख आशा कार्यकर्ताओं की चिंता

उन्नीस अप्रैल को सुबह 11 बजे उसे एक फोन आया कि आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है।

पॉजिटिव रिपोर्ट ... पर मुझे तो सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार कुछ भी तो नहीं है।

आपने 17 अप्रैल को जो कोविड-19 की जांच कराई थी उसमें आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है। आप तैयार रहिये, गाड़ी आपको लेने घर आ रही है।

पर मुझे तो कुछ हुआ ही नहीं है ... नसरीन (बदला हुआ नाम) के इतना बोलते-बोलते उधर से फोन कट हो गया।

नसरीन मध्यप्रदेश के भोपाल शहर के एक गाँव की आशा कार्यकर्ता हैं। भोपाल कोरोना संक्रमण के चलते इस समय रेड जोन में है, बावजूद इसके नसरीन को सुरक्षा की सबसे बेसिक चीजें मास्क और दास्तानें तक नहीं मिलीं, सैनिटाइजर और पीपीई किट तो दूर की बात थी।

कोरोना संक्रमण की जंग में स्वास्थ्य विभाग की पहली मजबूत कड़ी उभरकर सामने आयी इन आशा कार्यकर्ताओं की सुरक्षा को सरकार क्यों अनदेखा कर रही हैं? इस सवाल का जबाव सरकार के ज़िम्मेदार ऑफिसर देने से कतरा रहे हैं।

कोरोना संक्रमण के दौरान आपके यहां आशा कार्यकर्ता को किस तरह के सुरक्षा के इंतजाम किये गये हैं? गाँव कनेक्शन संवाददाता के इस सवाल पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्यप्रदेश के डिप्टी डायरेक्टर डॉ शैलेश साकल्ले बोले, "मैं ये सब आपको क्यों बताऊं? मैं इसके लिए अधिकृत नहीं हूँ, इसके बारे में मैं आपको कुछ नहीं बता सकता।" इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

जिस आशा कार्यकर्ता के सुरक्षा के नाम पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं, ये इस महामारी में स्वास्थ्य विभाग की वो मजबूत कड़ी हैं जो इस गर्मीं में पैदल चलकर भारत के हर गाँव के घर-घर की खबर स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचा रही हैं। सरकार की नजर में इनकी सुरक्षा प्राथमिकता में भले ही न हो पर देश की ये 10 लाख पैदल फ़ौज लॉकडाउन में बिना किसी ख़ास सुरक्षा इंतजाम के घर-घर जाकर करोड़ों लोगों की देखरेख कर रही हैं।

कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से नसरीन के आसपास की आशा घबरा गयी हैं। नसरीन खुद भी चिंतित हैं, "मुझे डर लग रहा है पता नहीं जब मैं ठीक होकर जाउंगी तब आसपास के लोग मुझसे बात करेंगे या नहीं।"

नसरीन की तरह देश की दस लाख आशा कार्यकर्ता जो इस समय दिन रात अपनी जान जोख़िम में डाल रही हैं, गाँव की हर खबर स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचा रही हैं, इस काम का मेहनताना इनका महीने का मात्र 1,000 रुपए है। इन लाखों गुमनाम 'कोरोना वॉरियर्स' का काम सोशल मीडिया पर हैशटैग और सुर्खियाँ भले ही न बटोर पाए पर भारत के गांवों में ये करोड़ों लोगों को सुरक्षित रखने में इस समय स्वास्थ्य विभाग के लिए एक मजबूत कड़ी का काम कर रही हैं।

बिना किसी लक्षण के नसरीन ने 17 अप्रैल को कुछ आशाओं की कोविड-19 की जांच के साथ अपनी भी जांच करा ली। नसरीन को उस वक़्त दूर-दूर तक इस बात का अंदेशा भी नहीं था तीन दिन बाद उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ जायेगी।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा हाल ही में यह कहा गया है कि 80 फीसदी ऐसे मामले हैं जिनमे कोरोना संक्रमण के लक्षण बहुत स्पष्ट दिखाई नहीं दिए हैं। आईसीएमआर के महामारी विज्ञान और संक्रमण रोगों के प्रमुख डॉ. आर. आर. गंगाखेडकर के मुताबिक अब तक किये गये कोविड-19 के परीक्षणों की संख्या देखें तो 31 फीसदी मामलों में ही कोरोना वायरस के लक्षण नजर आये हैं, बाकी के 69 फीसदी ऐसे मामले हैं जिनमें कोरोना संक्रमण के एक भी लक्षण नहीं मिले हैं। लक्षण न मिलने की वजह से बहुत कम लोग ही अस्पताल में कोविड-19 की जांच के लिए आएंगे।

भोपाल का वो मोहल्ला जिसे अभी बंद कर दिया गया है.

जब गाँव कनेक्शन संवाददाता ने नसरीन से पूछा कि आपको कुछ याद आ रहा है कि आपसे कहां चूक हुई?

"नहीं, हम बड़े एहतियात के साथ घर-घर सर्वे करने जाते थे। कपड़े का मास्क घर पर ही सिल लिया था। घर वापस आकर तुरंत साबुन से हाथ धुलते थे। मुझे कुछ था ही नहीं ... मैं बिलकुल ठीक थी ... पर पता नहीं कैसे मुझे ये हो गया?"

नसरीन अबतक नहीं समझ पायीं हैं कि आख़िर उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव कैसे आयी है?

आप दस्ताने पहनकर सैनिटाइजर लेकर जाती थीं न ...?

"ये सबकुछ नहीं है मेरे पास। हम केवल अपना सिला हुआ मास्क लगाकर जाते थे। भोपाल शहर में कोरोना फैला है गाँव में ऐसा कुछ नहीं था, तभी इन सब चीजों का ज्यादा ध्यान नहीं दिया," नसरीन बोलीं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्यप्रदेश की मिशन संचालक स्वाति मीणा नायक गाँव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "मध्यप्रदेश को इस समय तीन जोन में बांटा गया है- रेड, और्रेंज और ग्रीन। इन जोन के अनुसार ही आशा कार्यकर्ताओं को पीपीई किट, मास्क, ग्लब्स और सैनिटाईजर दिए जा रहे हैं। इसे खरीदने का काम जिलों को ही सौंप दिया गया है। रेड जोन के जितने भी जिले हैं वहां ये सब पहले दिया जा चुका है।"

पर भोपाल की जिस आशा कार्यकर्ता की रिपोर्ट हाल ही में पॉजिटिव आयी है उसे तो ऐसा कुछ नहीं मिला, इस पर स्वाति मीणा ने कहा, "मैं चेक करती हूँ, वो किस एरिया में काम करती थी, जहाँ पर उन्हें सुरक्षा के सभी इंतजाम दिए जाने थे पर नहीं दिए गये।"


स्वाति मीणा द्वारा कई लेटर जारी किये गये हैं जिसमें आशा, एएनएम का समय से मानदेय और पीपीई किट देने की बात स्पष्ट लिखी गयी है पर धरातल पर इसका पालन नहीं हो रहा है।

कभी दिन-दिनभर गाँव में सर्वे करनी वाली, टीबी के मरीजों को घर-घर दवा पहुँचाने वाली, गाँव के हर घर की खबर रखने वाली नसरीन एक हफ्ते से ज्यादा अस्पताल में हैं। इनका पूरा परिवार क्वारंटाइन हैं। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इनके आसपास के घरों में पूरी तरह से नाकाबंदी कर दी गयी है। नसरीन के बाद से लगभग 150-200 लोगों की जांच हुई जिनके-जिनके घर नसरीन गईं थीं। तसल्ली की बात यह है कि किसी की भी कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं आयी। सभी अपने-अपने घरों में क्वारंटाइन हैं।

जब आप घर के बाहर काम करने जाती थीं तो कितनी बार हाथ धुलती थीं इस पर नसरीन बोलीं, "हम घर पर आकर ही हाथ धुलते थे। सैनिटाइजर हमें मिला भी नहीं और हमने खरीदा भी नहीं।"

गाँव में जाते समय आप क्या-क्या सावधानी रखती थीं?

नसरीन ने जबाव दिया, "किसी के घर नहीं जाते थे, बाहर बुलाकर ही सर्वे कर लेते थे। किसी को खांसी, जुखाम, बुखार तो नहीं ये पता करते थे। टीबी के मरीजों को दूर से दवा पकड़ा देते थे। सबको घर के अन्दर रहने, मुंह पर कपड़ा बाँधने और बार-बार हाथ धुलने के बारे में बताते थे।"

जिस क्षेत्र में नसरीन काम करती हैं वहां आसपास कोई भी कोरोना संक्रमण मरीज नहीं था फिर भी उन्हें कैसे हुआ इस सवाल के जबाव में एम्स के पूर्व डॉक्टर डॉ हरजीत सिंह भट्टी बोले, "मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ सरकार माने या न माने पर भारत में 'कम्युनिटी ट्रांसमिशन' फैल चुका है। आईसीएमआर के अनुसार 80 प्रतिशत लोगों में वैसे भी लक्षण नहीं मिल रहे हैं। इस आशा की तरह ऐसे बहुत सारे लोग अभी होंगे जिनमें इस वायरस का कोई लक्षण नहीं दिख रहा होगा और वो बिना जांच के ऐसे ही इधर-उधर घूम रहे होंगे। सोचिये कितने लोगों को ये संक्रमण फैलेगा?"

"उन सभी लोगों को सरकार पीपीई किट शुरू में ही उपलब्ध करा देती जो ऐसे समय में लगातार काम कर रहे हैं। जांचें अभी भी बहुत कम हो रही हैं। बहुत सारी जांच किट अभी ऐसी आई हैं जिसके रिजल्ट बहुत अच्छे नहीं हैं। हम इस समय तीसरी स्टेज में पहुंच चुके हैं इसलिए हर कोई अपना बचाव स्वत: करे। एक बात समझ लीजिए, स्वास्थ्यकर्मी से ये वायरस लोगों में फ़ैल सकता है और लोगों से ये वायरस स्वास्थ्यकर्मी में फ़ैल सकता है," डॉ हरजीत ने सबको सचेत रहने की सलाह दी।

डॉ हरजीत के मुताबिक जो लोग भी घर से बाहर निकलकर काम कर रहे हैं वो तीन बातों का ख़ास ध्यान रखें- पहला स्ट्रांग वाला मास्क और ग्लब्स पहनकर निकलें, दूसरा एक दूसरे से उचित दूरी बनाकर बात करें, तीसरा किसी भी हाल में अपने हाथों को नाक, मुंह पर न लगायें और बार-बार साबुन से हाथ धुलें।

जिस अस्पताल में नसरीन अभी हैं उनके वार्ड में 25-26 और लोग भी हैं। इनमे कुछ महिलाएं, लड़कियां, बच्चे और पुरुष हैं।

आइसोलेशन वार्ड में इस नसरीन की दिनचर्या क्या है? इस पर नसरीन बोलीं, "रमजान चल रहे हैं, दिन में पांच-छह बार नमाज पढ़ते हैं। कुछ देर घर वालों से फोन पर बात कर लेते हैं। घर में सब परेशान हैं, कह रहे हैं जल्दी ठीक होकर आ जाओ।"

  

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