इस पत्थर से बने बर्तन में दूध डालिए, जम जाता है दही

जैसलमेर के हाबूर गाँव के लोग दही जमाने के लिए इस अनोखे पत्थर का उपयोग करते हैं। ख़ास बात यह भी है कि जैसलमेर आने वाले विदेशी पर्यटक भी इस पत्थर से बने बर्तन खरीद कर साथ ले जाते हैं।

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इस पत्थर से बने बर्तन में दूध डालिए, जम जाता है दहीजैसलमेर के हाबूर गाँव में पाए जाने वाले इस पत्थर में दूध डालने से अगली सुबह जम जाता है दही । फोटो साभार : @Khetan_MK

चन्द्रभान सौलंकी

जैसलमेर (राजस्थान)। दही जमाने के लिए अक्सर खट्टा (छाछ) का उपयोग किया जाता है, मगर जैसलमेर के एक गाँव में लोग एक ख़ास पत्थर से बने बर्तन का उपयोग करते हैं।

राजस्थान के हाबूर गांव का यह अनोखा पीला पत्थर विदेशों में भी काफी मशहूर हो चुका है। इस गाँव के ग्रामीण दही ज़माने के लिए ना तो छाछ काम में लेते हैं और ना ही किसी रसायन का उपयोग करते हैं, बल्कि वे इस पत्थर से बने बर्तन का ही कई सालों से उपयोग दही जमाने में करते आ रहे हैं।

जैसलमेर से 50 किमी दूर हाबूर गांव में पाए जाना वाला यह पत्थर अपने आप में बहुत सी विशिष्ट खूबियां समेटे हुए है। इस पत्थर को स्थानीय भाषा में हाबूरिया भाटा भी कहा जाता है।

राजस्थान में जैसलमेर जिले से 50 किमी दूर है हाबूर गांव, जहाँ पाए जाते हैं यह ख़ास तरह के पत्थर। फोटो : चंद्रभान सोलंकी

इस गाँव के रहने वाले जालम सिंह 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "पुराने लोग बताते हैं कि बहुत समय पहले यहाँ समुंदर हुआ करता था, जिसके बाद गाँव में ऐसे पत्थर सामने आये। हाबूर गांव के भूगर्भ से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज और अन्य जीवाश्मों की भरमार है। हमारे पूर्वज भी दही जमाने के लिए इस पत्थर के बर्तनों का उपयोग करते थे और अब तो यह पत्थर पर्यटक भी लेने के लिए आते हैं।"

इस पत्थर की विशिष्टता के चलते देश-विदेश में भी इस पत्थर पर शोध हो चुका है। ऐसे में इस पत्थर से बने बर्तनों की डिमांड हमेशा ही यहाँ बनी रहती है। दुकानों पर सजे इस पत्थर से बने बर्तन और अन्य सामान पर्यटकों की खास पसंद है।

हाबूर गाँव की सरपंच राजबाला राठौर 'गाँव कनेक्शन' से बताती हैं, "हमने किताबों में भी इस चमत्कारी पत्थर के बारे में पढ़ा था, लेकिन जब यहां आकर देखा तो वाकई यह पत्थर दूध को दही में बदल देता है और हम चाहते हैं कि हाबूर गाँव के चमत्कारी पत्थर के बारे में पूरी दुनिया जाने ताकि राजस्थान के जैसलमेर का भी नाम रोशन हो।"

इन पत्थरों से बनाये जाते हैं ख़ास तरह के बर्तन और मूर्तियाँ। फोटो : चंद्रभान सोलंकी

इस पत्थर की रिसर्च में सामने आया है कि इस पत्थर में दही जमाने वाले सारे कैमिकल मौजूद हैं। इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं। ये कैमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं। इसलिए इस पत्थर से बने कटोरे में दूध डालकर छोड़ देने पर दही जम जाता है।

मयंक बिस्सा इन पत्थरों से बने बर्तन बेचने का काम करते हैं। मयंक बताते हैं, "इन पत्थरों में दही जम जाने के कारण इनकी डिमांड हमेशा ही रहती है। जिन लोगों को मालूम चलता है तो वे जरूर इसे ले जाते हैं। इसके अलावा इन पत्थरों से बनी मूर्तियों की भी मांग रहती है।"

फिलहाल इन ख़ास बर्तनों में बस दूध रखकर छोड़ दीजिए, सुबह होते ही शानदार दही तैयार हो जाता है, जो स्वाद में मीठा और सौंधी खुशबू वाला होता है। इस गांव में मिलने वाले इस स्टोन से बर्तन, मूर्ति और खिलौने बनाए जाते हैं। ये हल्का सुनहरा और चमकीला होता है। इससे बनी मूर्तियां भी लोगों को खूब आकर्षित करती हैं।

(कारोबारी मयंक बिस्सा संपर्क नंबर : 99508-49017)

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