राजस्थान: कोरोना लॉकडाउन में में डोर डू डोर स्कीम के जरिए 8 करोड़ लोगों तक पहुंचा राशन

लॉकडाउन के दौरान राजस्थान के उदयपुर से शुरू हुई प्रशासन की इस अनूठी पहल से न सिर्फ घर-घर राशन पहुँचाया गया, बल्कि उस कठिन समय में इस पहल को पूरे प्रदेश में लागू किया गया।

Madhav SharmaMadhav Sharma   2 Nov 2020 6:29 AM GMT

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राजस्थान: कोरोना लॉकडाउन में में डोर डू डोर स्कीम के जरिए 8 करोड़ लोगों तक पहुंचा राशनलॉकडाउन के समय में राजस्थान में प्रशासन की पहल से ग्रामीण इलाकों तक घर-घर पहुँचाया गया राशन। फोटो : गाँव कनेक्शन

जयपुर/उदयपुर (राजस्थान)। लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा भीड़ बैंकों और राशन डीलर्स की दुकान पर नजर आई। यूपी बिहार से लेकर हर राज्य में अप्रैल से लेकर जून तक इन दो जगहों पर लगातार भीड़ रही। संक्रमण के खौफ के चलते काफी लोग राशन लेने तक नहीं पहुंच पाए तो काफी लोगों को रास्ते में पुलिस के लॉकडाउन की शर्तों के चलते दिक्कत हुई। लेकिन राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य उदयपुर में डोर डू डोर राशन डिलीवरी की पहल तक कोरोना के दौरान भीड़ को एक जगह आने से रोका ही ग्रामीओं तक आसानी से राशन भी पहुंच सका। बाद में इस योजना को पूरे राजस्थान में लॉकडाउन के दौरान लागू किया गया।

मार्च में लगे लॉकडाउन के बाद पुलिस प्रशासन की सख्ती के चलते बहुत सारे लोग घरों से निकल पाए। सबसे ज्यादा असर गरीब तबके पर पड़ा जो परिवार सरकार की तरफ से मिलने वाले मुफ्त अनाज पर निर्भर थे, उनके भूखे रहने की नौबत आ गई। ऐसे समय में जब प्रशासन के पास राशन नहीं मिलने की समस्याएं पहुंचने लगीं तो राजस्थान के खाद्य विभाग ने खाद्य सुरक्षा योजना के तहत मिलने वाले अनाज को बंटवाने के लिए गांव-गांव तक सप्लाई शुरू की। इससे ग्रामीण लोगों को वितरण केन्द्रों तक आने की जरूरत नहीं पड़ी।

उदयपुर जिले की जिला रसद अधिकारी ज्योति ककवानी 'गाँव कनेक्शन' से बताती हैं, "लॉकडाउन के करीब एक महीने बाद हमारे पास राशन नहीं मिलने की शिकायतें आने लगीं थीं। तब विचार किया गया कि अगर खाद्य सुरक्षा योजना के लाभार्थी वितरण केन्द्रों तक नहीं आ पा रहे तो क्यों ना हम ही उनके ही घरों तक पहुंच जाएं?"

राजस्थान के खाद्य विभाग ने लॉकडाउन के दौरान लाभार्थियों को मिलने वाले अनाज को बंटवाने के लिए गांव-गांव तक सप्लाई शुरू की। फोटो : गाँव कनेक्शन

"तब इसके लिए हमने ट्रैक्टर-ट्रॉली और अन्य उपलब्ध वाहनों से गांवों और कस्बों में घर-घर जाकर राशन बांटा। इस अभियान से उदयपुर के कोटड़ा क्षेत्र में 75 राशन डीलरों की मदद से 42,787 परिवारों तक 11.43 लाख किलो राशन बांटा गया। जबकि पूरे उदयपुर जिले की बात करें तो इससे खाद्य सुरक्षा योजना में 5.74 लाख परिवारों को लाभ पहुंचा। लॉकडाउन के तीन महीनों में जिले में 73,167 मीट्रिक टन राशन बांटा गया।" उदयपुर रसद विभाग के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो उदयपुर जिले की 544 पंचायतों में 1064 राशन डीलर्स हैं जिन्होंने लॉकडाउन के समय में घर-घर राशन बांटने का काम किया।

लॉकडाउन की शुरुआत में हमने अपने पैसे से ट्रैक्टर, टेम्पो के जरिये अलग-अलग जगह पर घर-घर जाकर राशन पहुंचाया। घर-घर राशन पहुंचाने से भीड़ नहीं हुई जो उस वक्त की सबसे बड़ी चुनौती थी। इस काम में ग्रामीण, राशन डीलर्स, कोविड ड्यूटी पर लगे अध्यापक और खाद्य विभाग ने भी मदद की। प्रति व्यक्ति को 10 किलो अनाज और एक किलो दाल हमने घरों तक पहुंचाई।

हिम्मत सिंह, राशन डीलर, बंबोरा गांव, उदयपुर

इस अभियान के बारे में 'गांव कनेक्शन' ने उदयपुर जिले के गिरवा ब्लॉक के बंबोरा गांव में तीन साल से काम कर रहे राशन डीलर हिम्मत सिंह से बात की। हिम्मत सिंह की राशन दुकान से खाद्य सुरक्षा योजना के तहत करीब 500 परिवार जुड़े हैं।

हिम्मत सिंह बताते हैं, "लॉकडाउन की शुरुआत में हमने अपने पैसे से ट्रैक्टर, टेम्पो के जरिये अलग-अलग जगह पर घर-घर जाकर राशन पहुंचाया। घर-घर राशन पहुंचाने से भीड़ नहीं हुई जो उस वक्त की सबसे बड़ी चुनौती थी। इस काम में ग्रामीण, राशन डीलर्स, कोविड ड्यूटी पर लगे अध्यापक और खाद्य विभाग ने भी मदद की। प्रति व्यक्ति को 10 किलो अनाज और एक किलो दाल हमने घरों तक पहुंचाई।"

उदयपुर की तर्ज पर इस अभियान को बाद में पूरे राजस्थान में लागू किया गया। लॉकडाउन के दौरान अप्रैल और मई महीने में पूरे राज्य सरकार ने करीब 490385.80 मीट्रिक टन गेहूं पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीनों से बांटा। इसके अलावा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत अप्रैल और मई माह में 4,38,422 मीट्रिक टन गेहूं अतिरिक्त बांटा गया है। इसी योजना के तहत लॉकडाउन के दौरान 29,982.72 मीट्रिक टन दालें भी खाद्य सुरक्षा योजना के तहत बांटी गई हैं। इसमें से अधिकतर राशन पीओएस मशीनों से डोर-टू-डोर बांटा गया है।

घर-घर राशन पहुँचने से सरकारी राशन केन्द्रों पर नहीं लग सकी लोगों की भीड़। फोटो : गाँव कनेक्शन

केन्द्र सरकार के अलावा राज्य सरकार ने भी अपनी तरफ से अतिरिक्त अप्रैल और मई महीने में राशन वितरण कराया था। खाद्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार 28,282 मीट्रिक टन गेहूं का वितरण कराया। सरकार की इस योजना का लाभ 2,06,41,415 परिवारों के 8,33,02,691 लोगों को मिला है।

उदयपुर के कोटड़ा ब्लॉक में डेहरी गांव के रहने वाले कर्मचंद पेशे से किसान हैं और अंत्योदय योजना के लाभार्थी हैं। कर्मचंद बताते हैं, "अनाज वितरण प्रक्रिया में मैंने भी अपना योगदान दिया था। गांव में एक व्यक्ति का ट्रैक्टर लिया और गांव-गांव, घर-घर जाकर राशन बांटा। तब मैंने डेहरी, घोड़ामारी और सिकला गांव में राशन बांटा था।"

सेवा के भाव से सभी ने अपना योगदान दिया। मैं खुद अंत्योदय योजना का लाभार्थी हूं। लॉकडाउन के दौरान मेरे परिवार को 35 किलो अनाज और दो किलो दाल मिली। तब इस अनाज और दाल ने काफी मदद की क्योंकि तब ना तो हम किसी काम पर जा सकते थे और ना ही अपनी फसल मंडी में बेच पा रहे थे।

कर्मचंद, किसान और अंत्योदय योजना के लाभार्थी

"सेवा के भाव से सभी ने अपना योगदान दिया। मैं खुद अंत्योदय योजना का लाभार्थी हूं। लॉकडाउन के दौरान मेरे परिवार को 35 किलो अनाज और दो किलो दाल मिली। तब इस अनाज और दाल ने काफी मदद की क्योंकि तब ना तो हम किसी काम पर जा सकते थे और ना ही अपनी फसल मंडी में बेच पा रहे थे," कर्मचंद बताते हैं।

तीन बीघा जमीन के मालिक कर्मचंद के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं। खुद के परिवार के अलावा तीन भाईयों के भी परिवार हैं जिन्हें लॉकडाउन के दौरान अंत्योदय योजना से राशन मिला।

खाद्य विभाग के उपायुक्त महेन्द्र सिंह राठौड़ ने 'गांव कनेक्शन' से बताते हैं, "सरकार की इस पहल से करोड़ों लोगों का फायदा हुआ। लॉकडाउन के वक्त पुलिस की काफी सख्ती थी, इसीलिए लोग बाजारों तक भी नहीं पहुंच पा रहे थे। शहरी इलाकों में ये परेशानी ज्यादा हुई थी। इसीलिए डोर-टू-डोर राशन वितरण के अलावा हमने एक पहल और की।"

राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में भी लोगों तक पहुँचाया गया राशन। फोटो : गाँव कनेक्शन

महेंद्र बताते हैं, "खाद्य विभाग ने अपनी वेबसाइट पर शहरों के अलग-अलग इलाकों में मौजूद दुकानदारों और थोक विक्रेताओँ की सूची फोन नंबरों के साथ चस्पा की। इससे जिन भी लोगों को घर पर राशन की जरूरत हुई, उन्होंने सिर्फ एक फोन पर घर बैठे राशन मंगाया। हालांकि इसका फायदा शहरी और कस्बाई क्षेत्रों में ज्यादा हुआ।"

महेंद्र के अनुसार, इसके अलावा विभाग के पास भी सभी जिलों के विभिन्न शहरों के दुकानदारों और थोक विक्रेताओं की सूची आ गई। इससे हम आगे किसी भी आपातकालीन स्थिति में इसका उपयोग कर सकते थे।

कोटड़ा में आस्था संस्था के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता डीसी खेर इस अभियान के कई फायदे हमें गिनाते हैं। खेर बताते हैं, "कोटड़ा ब्लॉक में लगभग 64 हजार राशन कार्डधारी परिवार हैं। इसमें से 42 हजार परिवारों को लॉकडाउन के वक्त घर-घर राशन पहुंचा है। ये इसीलिए भी जरूरी था क्योंकि कोटड़ा ब्लॉक में आदिवासी समुदाय ही रहता है। ये समुदाय बेहद गरीब है और मजदूरी के लिए गुजरात पलायन करता है।"

लॉकडाउन में आदिवासी क्षेत्रों में लाखों की संख्या में प्रवासी गुजरात से अपने घरों को लौट आए थे। इनमें से अधिकतर परिवार पीडीएस पर ही निर्भर करते हैं। अगर इन्हें राशन नहीं मिलता तो इनकी भूखों मरने की नौबत आ जाती क्योंकि तब ना कोई काम था और ना ही खेती हो रही थी।
डीसी खेर, सामाजिक कार्यकर्ता, आस्था संस्था

"लॉकडाउन में आदिवासी क्षेत्रों में लाखों की संख्या में प्रवासी गुजरात से अपने घरों को लौट आए थे। इनमें से अधिकतर परिवार पीडीएस पर ही निर्भर करते हैं। अगर इन्हें राशन नहीं मिलता तो इनकी भूखों मरने की नौबत आ जाती क्योंकि तब ना कोई काम था और ना ही खेती हो रही थी," डीसी खेर कहते हैं।

इसके अलावा खेर एक लाभ और गिनाते हैं। वे बताते हैं, "इस क्षेत्र में बच्चों में कुपोषण की समस्या बेहद गंभीर है। अगर लॉकडाउन में उन्हें खाना नहीं मिलता तो कुपोषण से कई मौतें हो जातीं। महिलाओं में भी एनीमिया है और पौष्टिक खाने का अभाव है।"

सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो अकेले उदयपुर में 12 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं और प्रदेश में 38.4% बच्चों का वजन औसत से कम है। 23.4 फीसदी बच्चे शारीरिक रूप से कमजोर, 8.7% बच्चे अति कमजोर और 40.8 फीसदी बच्चे अविकसित हैं।

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