कर्नाटक: खाने पर पड़ेगी महंगाई की मार, चावल 4 से 6 रुपये होगा महंगा

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कर्नाटक: खाने पर पड़ेगी महंगाई की मार, चावल 4 से 6 रुपये होगा महंगा

लखनऊ। मानसून में होने देरी होने के कारण चावल की विभिन्न किस्मों की कीमतों में 4 से 6 रुपये प्रति किलोग्राम महंगी होने जा रही है। यह मानसून ऊपरी कृष्णा परियोजना (यूकेपी) और तुंगभद्रा कमांड क्षेत्रों के उत्पादन में खतरनाक मंदी के लिए जिम्मेदार है। गौरतलब है कि कर्नाटक को चावल का कटोरा कहा जाता है यहां के क्षेत्र में 60 प्रतिशत चावल का उत्पादन होता है। हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार, इस सीजन में लगभग 4 मिलियन टन चावल का उत्पादन करने वाला राज्य इस सीजन में सिर्फ 3 से 3.5 मिलियन टन का उत्पादन कर पाएगा।

डेक्कन हेराल्ड की खबर के अनुसार कृषि क्षेत्र के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि मानसून की यह प्रवृत्‍त‍ि तीन साल पहले ही शुरू हो गई थी और इस साल चरम पर पहुंच गई है। राज्य कृषि मूल्य समिति के पूर्व सदस्य व रायचूर के कृषि-अर्थशास्त्री हनुमान गौड़ा डालागुरकी ने कहा, "तुंगभद्रा क्षेत्र में पानी की कमी ने यूकेपी क्षेत्र में मिट्टी की नमी के स्तर में गिरावट दर्ज की है, पारा के स्तर में तेज वृद्धि के कारण उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है।"

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नतीजतन, सोना मसूरी चावल का एक किलो 56 रुपये प्रति किलो बिकता है, जो पहले के 48 रुपये से 50 रुपये किलो था। इसके अलावा, बेंगलूरु में सोना मसूरी की बेहतर किस्म 74 रुपये प्रति किलो बिकती है। यशवंतपुर और अन्य बाजारों में थोक चावल व्यापारियों के अनुसार, राजामुड़ी, लाल चावल और उबले चावल जैसी अन्य किस्मों की लागत भी बढ़ रही है।


विशेषज्ञों के अनुसार, तुंगभद्रा (टीबी) बांध में 30 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (टीएमसीएफटी) की बढ़ती गाड जमाव ने जल संग्रहण क्षमता को प्रभावित किया है और इस तरह किसानों को उनकी रबी फसल के लिए पानी से वंचित कर दिया।

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दलगुरकी ने समझाते हुए बताया कि अधिकांश किसानों ने कमांड क्षेत्र में पिछले तीन वर्षों से रबी की खेती नहीं की है। इसी तरह यूकेपी क्षेत्र में मिट्टी में नमी का स्तर तेजी से गिर रहा है। पहले जिस मिट्टी की नमी लगभग 1,500 मिमी था, वही अब खेती को प्रभावित करने वाला पारा में 1,000 से 1,100 मिमी तक कम हो गया है।



रायचूर में चावल को संसाधित करने वाले पार्वती एग्रो इंडस्ट्रीज के पापा रेड्डी ने कहा कि कोप्पल में किसानों ने पानी की कमी के कारण रबी फसल की खेती नहीं की। धान की खेती 3 लाख हेक्टेयर से घटकर सिर्फ 1 लाख हेक्टेयर रह गई है। आमतौर पर तुंगभद्रा कमान क्षेत्र में उगाए जाने वाले धान को यूकेपी क्षेत्र में उगाए जाने वाले स्वाद की तुलना में जाना जाता है लेकिन पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस चावल की मांग में तेजी के कारण कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं।

रायचूर में बंगारू श्रीनिवास एग्रो फूड्स के कृष्णमूर्ति ने कहा कि देर से ही सही किसान भी परेशान हैं कि धान से जुड़ी कोई सुनिश्चित आय नहीं है। यहां तक फसल खराब होने की स्थिति में बीमा पैटर्न भी अच्‍छा नहीं है, जिससे किसानों को थोड़ी बहुत मदद हो जाए। इसके अलावा कृषि की लागत लोगों को खेती छोड़ने के लिए काफी प्रेरित कर रही है।


   

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