सौर ऊर्जा में अच्छी तरक्की लेकिन रूफटॉप सोलर के मामले में फिसड्डी

रूफटॉप सोलर पावर के मामले में तरक्की कछुए की रफ्तार से ही हो रही है। कुल 40 गीगावॉट के लक्ष्य के बावजूद भारत रूफटॉप सोलर के मामले में अभी 2 गीगावॉट का लक्ष्य ही हासिल कर पाया है।

Hridayesh JoshiHridayesh Joshi   24 Jan 2019 5:52 AM GMT

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सौर ऊर्जा में अच्छी तरक्की लेकिन रूफटॉप सोलर के मामले में फिसड्डी

सौर ऊर्जा के संयंत्र लगाने और कार्बन रहित ऊर्जा (सौर, पवन और जलविद्युत) की उत्पादन क्षमता के लक्ष्य हासिल करने की दिशा में तो भारत ने पिछले कुछ सालों में अच्छी तरक्की की है, लेकिन छतों पर लगने वाले सोलर पैनल (Rooftop Solar) और उससे बिजली हासिल करने के मामले में उसका प्रदर्शन फिसड्डी ही है।

भारत का लक्ष्य 2022 तक कुल 100 गीगावॉट सोलर पावर उत्पादन करने का है जिसमें से 40 गीगावॉट रूफटॉप सोलर होगा। आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2014 में भारत की कुल सौर ऊर्जा क्षमता करीब 2.6 गीगावॉट (2600 मेगावॉट) थी जो अब बढ़कर 26 गीगावॉट यानी 26000 मेगावॉट (दिसंबर 2018 तक) हो गई है। इसका मतलब है कि भारत ने सोलर पावर की उत्पादन क्षमता में 4.5 साल में तकरीबन 10 गुना बढ़ोतरी की है।

लेकिन रूफटॉप सोलर पावर के मामले में तरक्की कछुए की रफ्तार से ही हो रही है। कुल 40 गीगावॉट के लक्ष्य के बावजूद भारत रूफटॉप सोलर के मामले में अभी 2 गीगावॉट का लक्ष्य ही हासिल कर पाया है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (CSE) का कहना है, "सोलर रूफटॉप इस बाज़ार में जगह बनाने में नाकाम रहा है और पूरा ढांचा बड़े सोलर प्लांट्स पर ही ज़ोर दे रहा है।" सीएसई के मुताबिक दिसंबर 2018 तक करीब 2 गीगावॉट रूफटॉप ही ग्रिड से जोड़ा गया है और उसमें भी ज्यादातर हिस्सेदारी व्यवसायिक और औद्योगिक संयंत्रों पर है। घरेलू ग्राहक जो कि काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं उनकी भागीदारी इसमें 20 प्रतिशत से भी कम है।

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दुनिया के दूसरे देशों में कुल सोलर में रूफटॉप सोलर का हिस्सा भारत के मुकाबले काफी बेहतर है। ऑस्ट्रेलिया में कुल 97 प्रतिशत रूफटॉप सोलर है तो जर्मनी में रूफटॉप सोलर 73 प्रतिशत है। इसी तरह स्पेन में 60 और अमेरिका में 46 तो चीन में 21 प्रतिशतरूफटॉपसोलर है। लेकिन भारत में कुल सौर ऊर्जा का केवल 8 प्रतिशत ही रूफटॉपसोलर से आता है।

भारत में रूफटॉप सोलर की विफलता के पीछे कई वजहें हैं। हालांकि सामान्य सौर ऊर्जा की दरें लगातार गिर रही हैं और अभी यह कोयले के बराबर पहुंच चुके है। सरकार सोलर पैनलों पर सब्सिडी भी दे रही है लेकिन छोटे परिवारों के लिये (जिनका बिजली का खर्च कम है) सोलर अभी भी महंगा सौदा है। जबकि बड़े फार्म हाउसों में रहने वाले अमीर लोग जो अधिक बिजली खर्च करते हैं और जिनकी बिजली यूनिट इस वजह से महंगी हो जाती है वह सोलर लगाने के इच्छुक हैं।

इसके अलावा डिस्कॉम कंपनियों का रुख भी रूफटॉप सोलर के लिये ठंडा ही है। इसकी वजह ये ही के डिस्कॉम के लिये सोलर व्यवसायिक, औद्योगिक और बड़े फार्म हाउस जैसी जगहों को ग्रिड से जोड़ना वित्तीय रूप से फायदे का सौदा नहीं होता।

रूफटॉप सोलर के लिये बैंकों से मिलने वाला कंर्ज़ ग्रामीण और शहरी दोनों ही जगह बहुत आसान नहीं है। बैंको को सोलर ऊर्जा की तकनीक और तरीका समझाना कठिन है। जानकार इन रोड़ों को दूर करने के लिये एक पुख्ता नीति की बात करते हैं। जैसे बड़े बड़ेअपार्टमेंट्स को लेकर पूरे देश में नियम तय नहीं हैं। कुछ राज्यों में बिल्डर्स पर सोलर लगाने की शर्त होती है लेकिन सब जगह ऐसा नहीं है।

ग्रामीण भारत में सोलर पावर का काफी महत्व है। इनोवेटिव एनर्जी और रिसर्च की रिपोर्ट कहती है कृषि की भारत में दोहरी महत्ता है। खाद्य सुरक्षा देने के साथ साथ कृषि 50 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को रोज़गार भी देती है। रिपोर्ट के हिसाब से अनुमान है कि बिजली और डीज़ल से चलने वाले करीब 2.8 करोड़ पम्प होने के बावजूद 55 प्रतिशत भूमि असिंचित (2010-11 के आंकड़े) है। ऐसे में किसानों के लिये सोलर पम्प काफी मददगार हो सकते ।

इसके अलावा खाने बनाने के लिये ग्रामीण भारत में सोलरकुकर काफी फायदेमंद हैं। उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले में कनलगांव के हीरा सिंह बिष्ट ने कुछ साल पहले घर की छत पर सोलर पैनल और आंगन में सोलर कुकर लगवाया। इसके लिये उन्होंने सरकारी सब्सिडी का फायदा भी उठाया।

हीरा सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, "चपाती को छोड़कर घर का सारा खाना सोलर कुकर में ही बनता है। इससे उन्हें काफी सुविधा हो गई है।" हीरा सिंह कहते हैं कि पानी गर्म करने से लेकर घर में बिजली के इस्तेमाल के लिये भी सोलर की सुविधा ही है। इसके अलावा वह अतिरिक्त बिजली ग्रिड में भेजते हैं। वह कहते हैं, "पिछले साल मुझे करीब 22 हज़ार रुपये की कमाई हुई।"

लेकिन सीएसई के डिप्टी डायरेक्टर चन्द्र भूषण कहते हैं कि ग्रामीण भारत में रूफटॉप सोलर की जगह मिनी ग्रिड का प्रयोग कामयाब होगा। चन्द्र भूषण का तर्क है कि रूफटॉप सोलर को ग्रिड से जोड़ने के लिये हर वक्त रेगुलर पावर सप्लाई होनी चाहिये उत्तराखंड जैसे राज्यों के ग्रामीण इलाकों में हाइड्रो और सस्ती बिजली की दिक्कत नहीं है। लेकिन बिहार यूपी जैसे राज्यों के गांवों में रूफटॉप सोलर की बजाय मिनी ग्रिड ही रास्ता होगा।

लेकिन सवाल यह है कि मिनी ग्रिड हो या स्वतंत्र रूप से घरों के लिये सोलर पैनलों से बिजली का उत्पादन इन दोनों ही मामलों में बैटरी का प्रयोग ज़रूरी हो जाता है और बैटरी की कीमत लागत बढ़ा देती है। जानकार बताते हैं कि मिनी ग्रिड के प्रयोग वित्तीय रूप से कारगर नहीं रहे हैं। यही कुछ वजहें रूफटॉपसोलर के रास्ते में आड़े आ रही हैं और इसके लिये सरकार को कई मोर्चों पर नीतिगत कमज़ोरियों को दूर करना होगा

   

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