छठवीं वर्षगांठः गांव कनेक्शन अब बड़ा हो गया है

ग्रामीण क्षेत्र की आवाज गांव कनेक्‍शन को पूरे हुए छह साल।

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छठवीं वर्षगांठः गांव कनेक्शन अब बड़ा हो गया है

आज से छह‍ साल पहले जब नीलेश मिसरा ने ग्रामीण पत्रकार तैयार करने, ग्रामीण अखबार के माध्यम से गांव की आवाज़ बनने, सरकार और शहरों के बीच सेतु बनने के विषय में सोचा तब तक उन्हें राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मीडिया में ख्याति मिल चुकी थी। वह करियर बनाने वाले और धन कमाने वाले नौजवानों की सोच से हटकर काम करने की बात थी।

उस समय शहरी अखबारों में ग्रामीण समाचारों को 5 प्रतिशत से भी कम जगह मिलती थी और अखबार चलाने वाले पूंजीपतियों को ग्रामीण अखबार से लाभ नहीं होने वाला था, शायद इस चुनौती ने गांव कनेक्शन के फाउंडर नीलेश को आकर्षित किया हो और फिर लकीर से हटकर काम करना उन्हें परिवार से विरासत में मिला था।

2 दिसम्बर 2012 को शुरू हुआ था गांव कनेक्शन का सफर।

आखिरकार दिसम्बर 2, 2012 को भारतीय ग्रामीण विद्यालय के प्रांगण में जन समुदाय की उपस्थिति में गांव की आवाज का शंखनाद उन्होंने कर दिया। माध्यम बना एक साप्ताहिक सामाचार पत्र और नीलेश के पास था केवल उनका मजबूत इरादा। वह इंडिया एब्रॉड न्यूज़ सर्विस तथा हिन्दुस्तान टाइम्स की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़ने के बाद गांव का अखबार चलाने लगे। बहुत से लोग इस निर्णय से सहमत नहीं थे जिनमें एक मैं भी था। नीलेश की धुन को देख मुझे अपना हठ याद आया जब मैंने गांव में स्कूल खोलने के लिए कनाडा छोड़ा था, और मैं भी इस अखबार से जुडकर कुछ समय देने लगा।

गांव कनेक्शन की टीम में आरम्भ में 7-8 नवयुवक और नवयुवतियां जुडे, उनमें ऊर्जा और साहस था, अनुभव नहीं। उत्साह के कारण वे किसानों के घर जाते, चारपाई पर उनके बच्चों और किसान महिलाओं से बात करते और सही मायने में जमीन से उठाकर खबरें लाते थे। मैंने इन युवा पत्रकारों को गांव की पगडंडी पर तपती धूप में, फिसलन भरी बरसात और ठिठुरन के जाड़ों में चलते देखा है। इसके पीछे मोटी पगार नहीं बल्कि जोशीले मार्गदर्शन की प्रेरणा थी।

शहरी अखबारों में गांव के बारे में केवल अपराध और दुर्घटनाओं की खबरें होती हैं। गांव वालों को बताने की आवश्‍यकता है कि उनकी खूबियां समाप्त हो रही हैं, उनकी लोक कला, मेहनत करने की आदत, सरलता, सौम्यता, परस्पर प्रेम भाव और सहयोग की भावनाएं घट रही हैं। स्वार्थ, जलन, अभाव, कलह बढ़ रहे हैं। हम गांव की विशेषताएं खो रहे हैं और शहर की सुविधाएं हासिल नहीं कर पा रहे हैं। इसे गांव कनेक्शन के पत्रकारों ने आंखों देखा है।

शहरी अखबारों के लिए यह कोई समाचार नहीं कि गजोधर के बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं क्योंकि शहर से आने वाली मास्टरानी नहीं आ रही है, नहर में पानी नहीं आया रमपुरवा के खेत सूख गए, बहादुर के जानवरों को खुरपका हो गया है या फिर लखन के गांव में माता फैल गयी हैं। शहरी अखबारों में समाचार तो तब बनेंगे जब मंत्री जी का कुत्ता बीमार होगा और अस्पताल में दवाई न मिलेगी, पब्लिक स्कूल में पानी नहीं आएगा, विधान सभा या लोक सभा में हंगामा होगा या फिर भीड़ भाड़ वाली जगह पर कोई धरना पर बैठेगा। गांव पंचायत में लाठी चली या समझौता हुआ इससे शहरी अखबारों का समाचार नहीं बनता।

गांवों में सड़कें, बिजली, पानी, रोजी और शिक्षा की आवश्‍यकता है और आवश्‍यकता है बदलते युग की जानकारी की। ग्रामीण विकास के साथ ही गांवों के निवासियों का भी विकास जरूरी है, जिसके लिए चाहिए ज्ञानवर्धन और जानकारी। गांव कनेक्शन ने इस दिशा में एक छोटा सा कदम बढ़ाया और समाचार साप्ताहिक चल पड़ा था। सोच और मानसिकता बदलने का, जानकारी बटोरने और बांटने का प्रयास करते हुए ध्यान देने की बात है कि विभिन्न जातियों के लोग जो शहरों में रहते हैं वह अगड़े हैं और उसी जाति के लोग गावों में रहने के कारण पिछड़े हैं। शिक्षा, व्यापार, नौकरी और चिकित्सा के लिए पूरी तरह गांवों की निर्भरता शहरों पर है। इस अखबार का जोर रहता है शहरों से जो पैसा यहां आ रहा है वह गांवों में ही रहे और गांवों को स्वावलम्बी बनाने के लिए हो।

गांव कनेक्शन आज बहुआयामी मीडिया हाउस बन चुका है। देश के कई प्रदेशों में ही नहीं अपने डिजिटल अवतार में विदेशों तक ख्याति प्राप्त है। अखबार के संवाददाताओं को सच बात लिखने में संकोच नहीं चाहे अपने मित्रों को ही नागवार गुजरे। गांव कनेक्शन अपने विविध रूपों में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और बाहुबल के मुद्दे उठाता रहा है और कमजोर की लड़ाई लड़ता रहा है।

गांव कनेक्‍शन को देश के कई प्रतिष्ठित अवॉर्ड मिल चुके हैं।

केवल बुराइयों की निन्दामात्र नहीं लड़कियों, दिव्यांगों, साधनविहीन छात्रों के संघर्ष और ग्रामीण लोगों के नए प्रयोग और रचनात्मक संदेश अखबार की विषय वस्तु रहते हैं। अखबार को देश विदेश के कई प्रतिष्ठित अवॉर्ड मिल चुके हैं, लेकिन अवॉर्डों पर उतना गर्व नहीं है जितना दबंगों द्वारा एक गरीब का बन्द दरवाजा खुलवाने का, भूमाफियाओं से किसान की जमीन छुड़ाने का है।

अखबार में सतही रिपोर्टिंग से हटकर जनोपयोगी समाचारों पर विशेष ध्यान रहता है। इसलिए रेप, बलात्कार, चोरी, डकैती और राजनेताओं के गाली गलौज को कभी प्रमुखता नहीं मिलती। राशिफल, भविष्यफल और ''क्या कहते हैं तारे'' जैसे विषयों में समय नहीं गंवाते। जन्म कुंडली के बजाय कर्मकुंडली पर भरोसा रखते हैं। गांव कनेक्शन एक अम्ब्रेला यानी छत्र की तरह बन गया है, जिसके नीचे अनेक विधाओं से गांवों की आवाज प्रमुखता से समाज में सुनाई पड़ती है फिर चाहे डिजिटल गांव कनेक्शन हो अथवा टीवी, रेडियो और मोबाइल के माध्यम से गांवों की बात आगे बढ़ाना।

हमारे देश के व्यापारी, उद्योगपति और निवेशक आजकल अपना ध्यान ग्रामीण बाजार पर केन्द्रित कर रहे हैं। चाहे कच्चे माल की खोज हो या खेती सम्बन्धी उपकरण और मशीनरी बेचनी हो, शि‍क्षा संस्थान खोलने हों, यह अखबार उन लोगों की गांव तक पहुंच का माध्यम बनता है। हम आशा करते हैं कि यह अखबार गांव और शहर के बीच में तालमेल बिठाने में सेतु का काम करता रहेगा।

 

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