किसान पिता नहीं दे पा रहा था फीस, 17 साल के बेटे ने कर ली आत्महत्या

"मेरे भाई श्रीधर श्रीकृष्ण पाटिल ने 6 नवंबर को आत्महत्या कर ली। वो डॉक्टर बनना चाहता था। 12वीं में उसे फीस और ट्यूशन के लिए खर्च नहीं मिल पा रहा था। फसल बर्बाद होने से पैसे को लेकर घर में खींचतान थी"

Arvind ShuklaArvind Shukla   19 Nov 2019 5:13 AM GMT

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लातूर (महाराष्ट्र)। कृषि संकट के चलते किसानों के बाद उनके परिवार वाले भी अत्महत्या कर रहे हैं। सूखे के लिए कुख्यात महाराष्ट्र के लातूर जिले में 17 साल के एक छात्र ने फांसी लगा कर जान दे दी। परिजनों का कहना है उसकी 12वीं की फीस और खर्च के लिए पैसे नहीं मिल पा रहे थे, इसलिए उसने जान दे दी।

"मेरे भाई श्रीधर श्रीकृष्ण पाटिल ने 6 नवंबर को आत्महत्या कर ली। उसे पैसे नहीं मिल पा रहे थे, तीन-चार साल से बारिश नहीं हुई तो खेत में कुछ हुआ नहीं, इस साल की सोयाबीन बारिश से बर्बाद हो गई। पैसे को लेकर घर में खींचतान थी, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली,"बाजीराव महादेव पाटिल, अपने चचेरे भाई की मोबाइल में फोटो दिखाते हुए कहते हैं। श्रीधर पाटिल मुंबई से करीब 550 किलोमीटर दूर लातूर जिले की औसा तालुका के बोरोगांव में रहता था और 12वीं के बाद डॉक्टर बनना चाहता था। लातूर मराठवाड़ा के 8 जिलों में से एक है।

मराठवाड़ा डायरी का पहला भाग यहां पढ़ें-वो कर्ज़ से बहुत परेशान थे, फांसी लगा ली... 35 साल के एक किसान की आत्महत्या


महाराष्ट्र में नवंबर के पहले पखवाड़े में जब मुंबई में भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में खींचतान चल रही थी, अपने टूटे-फूटे और बेहद छोटे से घर के बाहर तिरपाल पर बैठे श्रीकृष्ण पाटिल अपने आप को कोस रहे थे कि काश वो अपने बेटे का सपना पूरा कर पाते।

श्रीधर ने हाईस्कूल में 72 फीसदी नंबर पाए थे, परिजनों के मुताबिक वो 12वीं में अच्छे नंबर लाने के लिए कॉलेज में पढ़ाई के साथ ट्यूशन भी पढ़ रहा था। मराठवाड़ा में प्रति विषय 12वीं के लिए औसतन 10 से 25 हजार रुपए की फीस लगती है।

श्रीधर के बड़े भाई रुषिकेष पाटिल के मुताबिक उसकी साल में 20 हजार रुपए फीस आती है। इसके अलावा मेस के कमरे के 1200 रुपए और मेस के 1800 रुपए महीने के अलग से देने होते हैं।

रुषिकेष 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "हमारे कॉलेज में जो फीस आती है, उसे हमारे इलाके से सभी बच्चे 5-6 हजार करके पांच-छह महीने में ही भरते हैं। लेकिन इस बार मेरी और मेरे भाई की फीस एक साथ आ गई। सोयाबीन भी नहीं हुई तो दोनों की फीस देने में मुश्किल हो गई। उसने किसी से कुछ कहा नहीं, लेकिन पैसे की तंगी तो हम दोनों को थी।"

१२वीं के छात्र श्रीधर पाटिल के परिजनों के मुताबिक दोनों भाइयों की फीस एक साथ आ गई थी, इसलिए घर वाले दे नहीं पा रहे थे, जिसके चलते उसने आत्महत्या कर ली।

श्रीकृष्ण पाटिल को उम्मीद थी डेढ़ एकड़ में बोई सोयाबीन से वो फीस दें देंगे लेकिन अक्टूबर-नवंबर की बारिश से पूरी फसल चौपट हो गई। श्रीधर की आत्महत्या के दो दिन बाद बेमौसम बारिश से हुई फसल नुकसान के जायजा लेने के लिए सरकार कर्मचारी पहुंचे थे लेकिन मुआवजा कब और कितना मिलेगा? ये शायद ही किसी को पता हो।

"मेरे चाचा और चाची दोनों बहुत मेहनत करके अपने बच्चों को पढ़ा रहे थे, खेती के अलावा ऑटो भी चलाते थे, दोनों बेटों को पैसे भी देते थे लेकिन पैसे मिलने में देर लगी थी, आज चाहिए होते थे तो 2-4 दिन लग जाते हैं,"चचेरे भाई बाजीराव महादेव पाटिल आगे कहते हैं।

श्रीधर के पिता श्रीकृष्ण पाटिल के पिता के पास साढ़े चार एकड़ जमीन थी, बंटवारे के बाद श्रीकृष्ण और उसके दो भाइयों को डेढ़-डेढ़ एकड़ जमीन मिली। गाँव के अंदर का घर बहुत छोटा था और 1993 के विनाशकारी भूकंप में टूट भी गया था, जिसके बाद ये सभी लोग गाँव के बाहर अपने खेत में अलग-अलग रहने लगे। श्रीकृष्ण के दो बेटे थे। बड़ा बेटा रुषिकेष पाटिल लातूर के एक कॉलेज से इंजीनियर कर रहा है, जहां उसका पहला साल है। जबकि छोटा श्रीधर का इस बार बोर्ड था, वो गाँव के नजदीक कस्बे में रहकर पढ़ाई करता था।

"पिछले कुछ वर्षों से खेती में कुछ हो नहीं रहा था तो मैंने एक ऑटो खरीद लिया। शुरुआत में अच्छी कमाई हुई लेकिन कुछ दिनों बार इस रूट (औसा-लातूर) पर सरकारी बसों की संख्या बढ़ गई तो ऑटो की आमदनी कम हो गई। मैंने घर नहीं बनवाया, हम दोनों (पति-पत्नी) दिन रात मेहनत कर रहे थे कि बच्चे कुछ बन जाएं, लेकिन...," मराठी में श्रीकृष्ण कहते हैं।


मराठी में कहे शब्दों को अपने हिंदी में बता रहे उस्मानाबाद जिले के किसान और सामाजिक कार्यकर्ता अशोक पंवार 'गाँव कनेक्शन' को बताते हैं, "अपने घरों के हालात देखकर किसानों के बच्चे टेंशन में आ रहे हैं। वो या तो आत्महत्या कर रहे हैं या फिर 10वीं-12वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर मुंबई और पुणे में मजदूरी करने जा रहे हैं। मेरे सामने ये दूसरा मामला आया है, कुछ दिनों पहले उम्मानाबाद में एक छात्रा ने आत्महत्या की थी। मराठवाड़ा में किसान परिवारों का संकट हद से गुजर चुका है।"

भारत में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याएं महाराष्ट्र में होती हैं। पिछले महीने आई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की 2016 की 'एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइड'की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में देश में 11,379 किसानों ने आत्महत्या की है। इसी साल महाराष्ट्र में सर्वाधिक 3,661 किसानों ने आत्महत्या की। इससे पहले 2014 में यहां 4,004 और 2015 में 4,291 किसानों ने आत्महत्या की थी। अगर 2016 के ही आंकड़ों को आधार माने तो औसतन रोज 10 किसान महाराष्ट्र में मौत को गले लगा रहे हैं। 10 नवंबर को नांदेड जिले की लोहा तालुका में किसान गजानन राव ने आत्महत्या की थी। गांव कनेक्शन ने उनके गांव पहुंच कर परिजनों से बात की थी.. देखिए वीडियो

महाराष्ट्र में सीपीआई के किसान संगठन के उपाध्यक्ष राजन क्षीरसागर कहते हैं, "किसान कितना परेशान है ये समझने के लिए महाराष्ट्र के परमणी जिले का एक उदाहरण बताता हूं, यहां पाथरी में किसान ने आत्महत्या की। उसके तुरंत बाद उसके भाई की बेटी ने आत्महत्या कर ली और चिट्ठी में लिखा कि मुझे डर है कि कहीं आप भी चाचा की तरह मेरी शादी की खर्च के डर से आत्महत्या न कर लें, तो सिर्फ किसान नहीं उसके परिजन भी आत्महत्या कर रहे है, सरकार इस समस्या को सुलझा नहीं पा रही।"

श्रीधर की आत्महत्या के बाद उसके घर ही नहीं गांव में भी मातम जैसा है। बोरेगांव में किसान पहले भी आत्महत्या करते रहे हैं लेकिन किसी किशोर की आत्महत्या का ये पहला मामला था। श्रीधर की मौत के बाद उनकी मां (आयी) सदमे में हैं, पिछले तीन दिनों से उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला था।

टीन के छोटे से घर में सिर्फ दो तरफ दीवार थी, बाकी जगह टीन को ही दीवार बनाया गया है जिसमें अरगनी पर कुछ पुराने कपड़े और बिस्तर रखे थे, घर में थोड़े से स्टील और प्लास्टिक के बर्तन, कुछ कनस्तर भी थे, जिसमें शायद राशन रखा जाता होगा। घर कुछ-कुछ शहरी इलाकों की झुग्गियों सा कह सकते हैं।

छात्र श्रीधर के पिता श्रीकृष्ण पाटिल का घर.. फोटो- अरविंद शुक्ला

श्रीकृष्ण पाटिल के पड़ोसी नरसिंह पाटिल किसानों के दर्द कुछ समझाते हैं, "खेती में खर्च (इनपुट) बहुत बढ़ गया है। किसान को जो मिलता है वो बहुत कम होता है। लागत और मुनाफे का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। किसी साल बारिश नहीं होती, किसी साल इतनी ज्यादा बारिश हो जाती है कि फसल चौपट, अगर दोनों बराबर हुए तो मंडी में किसान को भाव नहीं मिलता। किसान का घर चलाना मुश्किल हो गया है। हम बच्चों को ठीक से खाना नहीं खिला पा रहे। पढ़ाई का कैसे कराएं।"

नरसिंह पाटिल कहते हैं, "हमारी (किसान) की हालत देखकर हमारे बच्चे बहुत टेंशन में रहने लगे हैं। कई बच्चों के आत्महत्या की ख़बरें आती हैं। दसवीं तक सब पढ़ जाता है, खर्च तो उसके बाद शुरू होते हैं। उसके बाद स्कूल, ट्यूशन, मेस का खर्च किसान कहां से उठाए। कई जवाब बच्चे मर रहे हैं, लड़कियां जान दे रही हैं क्योंकि वो अपने माता-पिता को दु:खी देख रही हैं। जमीन पर हालात बहुत खराब हैं, लेकिन कोई देखने वाला नहीं।"


     

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