आढ़तियों को कम कीमत पर गेहूं बेचने को मजबूर बिहार के किसान

बिहार सरकार राज्य में गेहूं खरीद की प्रक्रिया शुरू नहीं कर पा रही है। किसानों को मजबूर होकर बिचौलियों और व्यापारियों को अपना अनाज बेचना पड़ रहा है। किसान अपना गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर 1,975 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर बेचना चाहते हैं, लेकिन उन्हें इसे 1,550 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर ही बेचना पड़ रहा है।

Umesh Kumar RayUmesh Kumar Ray   20 April 2021 4:57 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
आढ़तियों को कम कीमत पर गेहूं बेचने को मजबूर बिहार के किसान

किसान विवेक कुमार ने कहा कि सरकार गेहूं की खरीद नहीं कर रही और घर पर गेहूं रखने में जोखिम है। (सभी तस्वीरें- उमेश कुमार राय) 

मुजफ्फरपुर (बिहार)। 45 वर्षीय राजीव कुमार सिंह ने महामारी के दौरान अपने साढ़े पांच एकड़ खेत में लगभग सात से आठ महीने तक दिन-रात मेहनत की, इसके बावजूद उन्हें घाटा हो गया। उनकी सुनहरी-भूरी गेहूं की फसल लगभग 10 दिन पहले ही तैयार हो गई थी। वह इसे सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर 1,975 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचना चाहते थे, लेकिन मजबूरी में उन्हें इसे 1,550 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बेचना पड़ा। इसकी वजह से सिंह को 425 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान हुआ। (एक क्विंटल 100 किलोग्राम के बराबर होता है)

मुजफ्फरपुर के घरबारा गांव के रहने वाले राजीव कुमार ने बताया, "मेरी गेहूं की फसल तैयार है, लेकिन सरकार ने खरीद प्रक्रिया शुरू नहीं की है। अब तक मैंने 1,550 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बीस क्विंटल गेहूं बेच दिया है।" उन्होंने आगे बताया, "जैसे ही गेहूं की कटाई होती है, महाजन (गाँव का साहूकार) अपने पैसे वापस लेने के लिए दरवाजे पर आ जाता है। हम सरकारी खरीद का इंतजार नहीं कर सकते। इसलिए, कर्ज चुकाने के लिए हमें अपनी फसल बिचौलियों को ही बेचनी पड़ती है।"

देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर चल रही है। विभिन्न जगहों पर एक बार फिर लॉकडाउन और प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। इन सबके बीच किसानों को एक बार फिर मजबूरी में कम कीमत पर अपनी फसल बेचकर नुकसान उठाना पड़ रहा है। गाँव कनेक्शन ने पहले बताया है कि कैसे बिहार में किसानों को अपनी धान की फसल को अढ़तियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे अढ़तिया मुनाफा कमाने के लिए बिहार के किसानों की फसल, पंजाब और हरियाणा के व्यापारियों को बेच देते हैं।

45 वर्षीय राजीव कुमार सिंह ने महामारी के दौरान अपने साढ़े पांच एकड़ खेत में लगभग सात से आठ महीने तक दिन-रात मेहनत की, इसके बावजूद उन्हें घाटा हो गया

देश के कुल गेहूं उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 5.7 प्रतिशत है। आंकड़े बताते हैं कि इस साल बिहार में 233,000 हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की खेती की गई है। केंद्र सरकार की एक विज्ञप्ति के अनुसार, बिहार ने इस वर्ष 100,000 मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है।

बिहार में 10 दिन पहले गेहूं की बड़े पैमाने पर कटाई शुरू हुई थी, और यह अगले एक पखवाड़े में समाप्त हो जाएगी लेकिन, राज्य सरकार ने अभी तक इसकी खरीद शुरू नहीं की है।

Also Read:सब्जियों और फल की खेती में भविष्य देख रहे किसान, देश में बागवानी फसलों का रकबा और उत्पादन बढ़ा

समस्तीपुर के सुल्तानपुर गांव के रणधीर कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, "पिछले साल मैंने 1,600 रुपये प्रति क्विंटल के रेट पर गेहूं बेचा था, लेकिन इस बार अढ़ती केवल 1,550 रुपये का ही भुगतान कर रहा हैं।" 46 वर्षीय किसान ने आगे बताया कि पिछले एक साल में बीज, उर्वरक और डीजल की कीमत में कई गुना बढ़ोतरी हुई है, लेकिन उपज की कीमत कम हो गई है। फिर भी कुछ ही दिनों में अपना 24 क्विंटल गेहूं बेच देंगे, क्योंकि उनके पास कोई और रास्ता नहीं है। उन्होंने आगे कहा, "बिहार के किसान आज इसलिए पीड़ित हैं क्योंकि यहां की सरकार असंवेदनशील है और यहां मंडियां नहीं हैं, जहां एमएसपी पर अनाज की खरीद अनिवार्य होती, तो आज हमें अपने मेहनत की सही कीमत मिलती।"

मुजफ्फरपुर के जिला स्तर के एक अधिकारी ने गाँव कनेक्शन को नाम न बताने की शर्त पर कहा, "जब सरकार खरीद प्रक्रिया को शुरू करने में देरी करती है, तो किसानों को मजबूर होकर अपनी फसल बिचौलियों और व्यापारियों को उनकी शर्तों पर कम कीमत में बेचनी पड़ती है। किसानों के पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता। खरीद का निर्णय विभाग के शीर्ष अधिकारियों द्वारा लिया जाता है। इसलिए हम इस मामले में कुछ नहीं कर सकते।"

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बिहार के सहकारिता विभाग ने घोषणा की थी कि गेहूं की खरीद 15 अप्रैल से शुरू होगी, लेकिन बाद में राज्य के PACS और व्यापार मंडलों के कहने पर तारीख बदलकर 20 अप्रैल कर दी गई। पिछले साल 15 अप्रैल से खरीद शुरू हो गई थी।

बिहार में गेहूं की खरीद

बिहार में प्राथमिक कृषि साख समिति (PACS), जो एक पंचायत और ग्रामीण स्तर की इकाई है, किसानों को ग्रामीण ऋण देती है और उन्हें अपने उत्पाद को अच्छी कीमत पर बेचने में मदद करने के लिए विपणन (मार्केटिंग) की सहायता भी प्रदान करती है। बिहार में कृषि उत्पाद बाजार समिति (APMC) अधिनियम को वर्ष 2006 में समाप्त कर दिया गया था और राज्य सरकार ने तब कहा था कि अब किसानों से PACS और व्यापार मंडियों के माध्यम से खाद्यान्न खरीदा जाएगा। बिहार में 8,463 PACS हैं, जिनके पास खाद्यान्न की खरीद के लिए एक लक्ष्य तय होता हैं। इसके अलावा यहां 500 व्यापार मंडल भी हैं, जो खाद्यान्न की खरीद करते हैं।

गेहूं की कटाई दो सप्ताह पहले शुरू हो गई थी जो जल्दी ही पूरी हो जायेगी।

सहकारी विभाग की सचिव वंदना प्रियदर्शी के अनुसार जिन किसानों ने कृषि विभाग के पोर्टल में अपना पंजीकरण कराया है, वे PACS और व्यापार मंडलों के माध्यम से गेहूं बेच सकते हैं। प्रियदर्शी ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, "सरकार ने एक लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है, लेकिन अगर तय लक्ष्य से ज्यादा गेहूं आता है तो उसे भी खरीदा जाएगा।"

हालांकि, जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है। किसानों को उनकी उपज अढ़तिया या बिचौलियों को एमएसपी से बहुत कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर किया जाता है, क्योंकि बिहार सरकार ने अभी तक इन PACS और व्यापार मंडियों के माध्यम से गेहूं की खरीद शुरू नहीं की है।

Also Read:कृषि वैज्ञानिकों से जानिए बदलते मौसम में कैसे बचा सकते हैं गेहूं की फसल

पटना के एक ग्रामीण इलाके में काम कर रहे PACS के चेयरपर्सन ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि गेहूं खरीद कब शुरू होगी, इस बारे में उन्हें अभी तक आधिकारिक तौर पर कोई सूचना नहीं मिली है। उन्होंने आगे कहा, "सरकारी खरीद शुरू होने के बाद भी ज्यादातर किसान इससे लाभान्वित नहीं हो पाते हैं, क्योंकि हमें भुगतान करने के लिए सहकारी बैंकों से पैसा लेना पड़ता है, और इस प्रक्रिया में भी काफी समय लग जाता है।"

मुजफ्फरपुर के घरबारा गाँव के एक अन्य किसान विवेक कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "अगर हम अपने घर में गेहूं रखते हैं, तो यह बर्बाद हो जाएगा क्योंकि बारिश का मौसम जल्द ही शुरू होने वाला है। अगर बारिश नहीं हुई तो कीड़े अनाज को नष्ट कर देंगे।" कुमार ने मजबूर होकर 1,550 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर अपना 10 क्विंटल गेहूं आढ़ती को बेचा है।


किसानों का दावा है कि कोई भी किसान कर्ज लिए बिना नहीं रह सकता है। अपनी उपज, गेहूं या धान बेचकर उन्हें जितनी आय होती है, उतने में फसल की खेती में निवेश करने वाली राशि भी वसूल नहीं हो पाती। राजीव कुमार ने निराश होकर कहा, "हमें जीवित रहने के लिए पैसे उधार लेने ही पड़ते हैं। अगर सरकार सही समय पर एमएसपी में हमारा अनाज खरीदती है, तो हमारी समस्याएं हल हो जाएंगी।"

किसानों का पूरा अनाज नहीं खरीद पाती बिहार सरकार

साल 2018-19 के रबी सीजन में, बिहार सरकार ने उत्पादित 61 लाख टन गेहूं में से 18,000 टन की खरीदी की थी। यह गेहूं के कुल उत्पादन के आधे से भी कम है। 2019-20 में लगभग 56 लाख टन में से 30,000 टन गेहूं खरीदा गया। इसका खुलासा पिछले साल 4 फरवरी को उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने किया था। यह उस वर्ष राज्य में उत्पादित कुल गेहूं का लगभग 0.54 प्रतिशत है।

कृषि मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार रबी सीजन 2019-20 में केवल 554 किसानों ने और इसी तरह रबी सीजन 2020-21 में 1,002 किसानों ने एमएसपी पर सरकार को गेहूं बेचा है। बिहार में लगभग 105 मिलियन किसान गेहूं की खेती करते हैं।

बिहार सरकार द्वारा की जा रही यह खरीद, देश के अन्य प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश की तुलना में बहुत कम थी।

ओडिशा में बेचा जाता है बिहार का गेहूं

स्थानीय बिचौलिए बिहार के किसानों से गेहूं खरीदते हैं और इसे ओडिशा के व्यापारियों को बेच देते हैं। किसानों को उनके गेहूं के लिए मिलने वाली कीमत का निर्धारण आढ़ती करते हैं। यह कीमत भी वहां के व्यापारियों (मुख्य रूप से ओडिशा और पंजाब) द्वारा तय की जाती है।

बिहार के एक व्यापारी ने नाम न छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया, "ओडिशा के व्यापारियों ने बताया है कि गेहूं अधिकतम किस मूल्य पर खरीदा जा सकता है। इस आधार पर ही आढ़ती किसानों से गेहूं खरीदते हैं।"

मुजफ्फरपुर के एक मंडी की तस्वीर

आढ़ती किसान को प्रति क्विंटल 1,550 रुपये का भुगतान करता है। फिर वह इसे स्थानीय व्यापारियों को 1,650 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर बेच देता है। इसके बाद इसे बड़े व्यापारियों को परिवहन लागत को छोड़कर 1,670 रुपये प्रति क्विंटल पर बेच दिया जाता है। इस तरह स्थानीय व्यापारियों को इससे 20 रुपये प्रति क्विंटल का लाभ होता है।

मुजफ्फरपुर बाजार समिति (पहले एपीएमसी बाजार) में काम करने वाले एक व्यापारी ने पिछले एक पखवाड़े में ओडिशा के व्यापारी को 100 टन (लगभग 1,000 क्विंटल) गेहूं बेचा है। उन्होंने कहा, "पिछले एक सप्ताह में गेहूं की आवक बढ़ी है और उम्मीद है कि आने वाले दिनों में भी यह बढ़ेगी, क्योंकि बिहार में गेहूं की कटाई आने वाले 10-15 दिनों तक चलेगी।"

पटना स्थित अर्थशास्त्री एन. के. चौधरी ने गाँव कनेक्शन से कहा कि राज्य सरकार किसानों का गेहूं नहीं खरीदना चाहती, इसीलिए खरीद प्रक्रिया में देरी हो रही है। उन्होंने आगे कहा, "अगर सरकार चाहती तो किसानों से अनाज आसानी से खरीद सकती थी, लेकिन वे नहीं चाहते हैं।"

बिहार की राज्य सरकार गेहूं की खरीद की तारीख तय नहीं कर पा रही है, लेकिन इस दौरान यहां के किसान नुकसान होने के बावजूद अपना अनाज आढ़तियों को बेच रहे हैं।

इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

अनुवाद- शुभम ठाकुर

wheat procurement #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.