बजट 2020: बजट से क्या चाहती हैं महिला उद्यमी?

"हमें अपने उत्पाद बेचने का सीधा बाजार मिले। लोन लेने में की प्रक्रिया को सरल किया जाए। बाजार की मांग के अनुसार उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण मिले।" राजकुमारी, महिला उद्यमी.

Neetu SinghNeetu Singh   31 Jan 2020 1:31 PM GMT

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बजट 2020: बजट से क्या चाहती हैं महिला उद्यमी?

बाराबंकी/लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। "इस बजट में लोन लेने की प्रक्रिया को आसान किया जाए। महिला उद्यमियों को सीधे बाजार मिले।" ये बात मूंज से बने उत्पाद का बिजनेस करने वाली राजकुमारी ने बताई।

बजट आने से पहले गांव कनेक्शन ने दर्जनों स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिला उद्यमियों से बात की। इन महिला उद्यमियों को आने वाले बजट से बहुत उम्मीदें हैं जिससे ये अपने व्यापार को और आगे बढ़ा सकें।

राजकुमारी (38 वर्ष) वैसे रहने वाली तो उत्तर प्रदेश के जिला सुल्तानपुर के राहिलपारा गांव की हैं लेकिन उनसे हमारी मुलाकात बाराबंकी जिले में लगे सरस मेले में हुई। वह कहती हैं, "मूज से अभी तक जो भी चीजें बनाते हैं वो हमें पहले से आती हैं। कोई ऐसी ट्रेनिंग नहीं मिली है जिससे हम वह सामान बना सकें जिसकी आज के समय में बाजार में मांग है।" ये मूज से डलिया, कुर्सी, सजावट का सामान जैसे कई तरह के उत्पाद बनाती हैं।

मूज से बने उत्पाद को मेले में बेचतीं राजकुमारी.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को वर्ष 2020-21 का बजट पेश करेंगी। हर वर्ग की तरह महिला उद्यमियों को भी इस बजट से काफी उम्मीदें हैं।

इस समय बाराबंकी जिले में सरस मेला लगा है जहां हमने अलग-अलग जिले से आयीं दर्जनों महिला उद्यमियों से बात की तो उनकी कई तरह की मुश्किलें निकलकर आयीं। किसी ने लोन लेने में समस्या बताई तो किसी ने अपने उत्पाद का उचित बाजार न मिलना बताया।

एक साल से टैडीवियर का बिजनेस कर रहीं हरदोई जिले के कासिमपुर गांव की रहने वाली सीमा वर्मा (33 वर्ष) कहती हैं, "सरकार बजट तो हर साल लेकर आती है लेकिन हमें उसका फायदा नहीं मिलता। पिछले साल वित्र मंत्री ने समूह की महिलाओं को मुद्रा योजना और स्टैंड अप इण्डिया के तहत लोन लेने के लिए कहा था उसका क्या हुआ? हमारे समूह को तो मिला ही नहीं।"

सरस मेले में टैडीबियर बेचती हरदोई जिले की सीमा.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जुलाई में आम बजट 2019 पेश करते हुए कहा था कि स्टैंड अप इंडिया स्कीम के तहत महिला उद्यमियों को लाभ मिलेगा। इसके लिए टीवी चैनल प्रोग्राम शुरू किये जाएंगे। मुद्रा योजना के तहत हर एक स्वयं सहायता समूह की एक महिला को एक लाख रुपए तक ऋण दिया जायेगा।

सीमा कहती हैं, "जो भी लोन मिलता है उसमें तमाम कागज और बहुत शर्तें शामिल होती हैं। गाँव की महिला के लिए ये यह पूरा कर पाना बहुत मुश्किल होता है। अगर जैसे-तैसे इंतजाम करके लोन ले भी लिया तो हमें बाजार नहीं मिलेगा तब फिर हम लोन कैसे चुका पाएंगे?" वो बोलीं, "सिर्फ योजना शुरू करना ही जरूरी नहीं है। जो बातें पिछले बजट में हुईं क्या उनका धरातल पर फायदा हुआ? इस पर भी ध्यान दिया जाए। नहीं तो हम अपनी समस्याएं बताते रहेंगे पर कुछ होगा नहीं।"

सीमा की तरह कई महिला उद्यमियों ने धरातल पर किसी भी सरकारी योजना का लाभ लेने में चुनौती बताई। पिछले बजट में निर्मला सीतारमण ने यह भी कहा था कि जनधन योजना खाताधारक महिलाओं को 5,000 रुपए ओवरड्राफ्टिंग की सुविधा दी जायेगी। इसके तहत खाते में पैसे न होने के बाद भी वह 5000 रुपए निकाल सकेंगी।

मूंज का सामान बनाती झारखंड की महिलाएं.

क्या कभी आपने 5,000 रुपए ओवरड्राफ्टिंग के तहत खाते से निकाले? इस पर अम्बेडकर नगर की नीलम देवी (45 वर्ष) कहती हैं, "हमने तो नाम भी इसका आपसे अभी सुना। हकीकत तो यह है कि गाँव के लोगों को किसी भी चीज के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है। हमें सरकार की किस योजना से क्या लाभ मिल सकता है कभी पता नहीं चलता और न कोई बताता।"

"सरकार बजट तो निकाले लेकिन इस पर भी ज्यादा ध्यान दे कि पात्रों को इसके बारे में जानकारी भी हो और लाभ भी मिले। महिला उद्यमी की एक दूसरे से मीटिंग कराई जाए। हमे ऑनलाइन बाजार से जोड़ा जाए। पर ऐसा होता कहां हैं?"

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत देशभर में हर साल सरस मेला का आयोजन किया जाता है। इसमें स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिला उद्यमियों को अपने उत्पाद बेचने का मौका मिलता है। जिससे महिला उद्यमियों को अपने उत्पाद बेचने में आसानी हो सके। राज्य स्तर पर इस मेले का आयोजन ग्रामीण विकास विभाग द्वारा किया जाता है।

महिला उद्यमियों को क्या-क्या मुश्किलें आती हैं इस पर झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले की मोंगली मुंडा (29 वर्ष) फोन पर बताती हैं, "हम जूट के सामान का बिजनेस करते हैं। इसे बनाने में मेहनत बहुत ज्यादा पड़ती है लेकिन उस हिसाब से दाम नहीं मिलता। दिल्ली मेले में जाते हैं तब तो पैसा मिल जाता है पर आसपास जब भी लगते हैं तो उतना फायदा नहीं होता।"

"उत्पाद के हिसाब हमें उसका दाम मिले इस बात पर बजट में ध्यान दिया जाए। अगर सरकारी स्तर पर अधिकारी जूट के सामान का उपयोग करें तो इसे और बढ़ावा मिलेगा। महंगे की वजह से इसे खरीदने वालों की संख्या बहुत कम होती है।" मोंगली ने बताया।

     

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