"कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका, सबने हमारे साथ विश्वासघात किया"

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   25 July 2019 2:15 PM GMT

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up shiksha mitra boycott of work

उत्तर प्रदेश के सभी प्राथमिक विद्यालयों पर गुरुवार को शिक्षामित्रों ने काली पट्टी बांधकर कार्य बहिष्कार किया। जनपद मुख्यालयों पर शिक्षामित्रों ने 1400 शिक्षामित्रों की मौत को शहीद दिवस के रूप में मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

शिक्षामित्र सगंठन के प्रदेश अध्यक्ष शिव कुमार शुक्ल ने बताया कि 25 जुलाई 2017 को न्यायालय ने सपा सरकार में बतौर सहायक शिक्षक समायोजित किये गये शिक्षामित्रों की नियुक्ति रद्द की गयी थी। जिसके बाद से उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों की मौत का सिलसिला जारी है।

क्या है पूरा मामला

शिक्षामित्र संघ के अध्यक्ष शिवकुमार शुक्ला ने बताया, "सूबे में कल्याण सिंह की सरकार थी। प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी को देखते हुए सरकार ने शिक्षामित्रों को नियुक्त करने का फैसला किया। शिक्षामित्रों के चयन मेरिट के अनुसार गाँव में जिस लड़के/लड़की का अंक सबसे ज्यादा थे उन्हें चिन्हित किया गया और मामूली मानदेय पर साल 2000 से संविदा पर नियुक्तियां शुरू कर दी गयी। पूरे प्रदेश में एक लाख बहत्तर हजार शिक्षामित्रों की नियुक्ति हुई। लंबे अवधि तक न्यूनतम मानदेय पर काम करने के बाद शिक्षामित्रों ने "समान काम समान वेतन" और नियमतिकरण की मांग को लेकर आन्दोलन शुरू किया और साल 2011 में बसपा सरकार में आन्दोलन के दौरान सरकार से वार्ता हुई और तत्कालीन सरकार ने वार्ता में ये निर्णय लिया की शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित करके सहायक अध्यापक के तौर पर समायोजित किया जायेगा।"

शिव कुमार आगे कहते हैं, " बसपा सरकार के दौरान केंद्र सरकार, एचआरडी मंत्रालय से अनुमति लेकर 62-62 हजार शिक्षामित्रों के ग्रुप बनाकर शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण कराने पर स्वीकृत बनी और प्रथम बैच में शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण के लिए भेज दिया गया। साल 2012 में चुनाव के बाद सूबे में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो शिक्षामित्रों ने फिर से आन्दोलन करके अपनी मांगे सरकार के सामने रखी जिस पर तत्कालीन शिक्षामंत्री राम गोविन्द चौधरी ने ये घोषणा कर आश्वान दिया कि सभी शिक्षामित्र सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित किये जायेंगे

"शिक्षामित्र संगठन द्वारा शिक्षा मंत्री को ये बताया गया कि शिक्षामित्रों के दो बैच का प्रशिक्षण हो चुका है। बाकि जितने शिक्षा मित्र बचे हैं वो सभी स्नातक हैं जिस पर शिक्षा मंत्री ने भरोसा दिलाया कि जितने भी शिक्षा मित्र स्नातक हैं सबका प्रशिक्षण कराकर उन्हें सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित किया जायेगा। इसके बाद 46 हजार बचे शिक्षा मित्रों के प्रशिक्षण के लिए भारत सरकार से अनुमति लेकर प्रशिक्षण के लिए भेज दिया। आज की डेट में उत्तर प्रदेश का एक एक शिक्षा मित्र प्रशिक्षित हैं।" शिव कुमार आगे कहते हैं।

सपा सरकार में शिक्षामित्रों को बनाया गया सहायक अध्यापक

शिव कुमार शुक्ल ने बताया कि अखिलेश यादव की सरकार में पूरी तरह से शिक्षा मित्रों के हित में कार्यक्रम लागू किये गये और एक अगस्त 2014 को हमारे प्रथम बैच के 58826 लोगों को सहायक अध्यापक बना दिया गया। दूसरे बैच का प्रशिक्षण पूरा होने के बाद 19 और 20 मई 2015 को जोइनिंग दी गयी और उत्तर प्रदेश के एक लाख 37000 शिक्षा मित्रों का समायोजन कर दिया गया14 हजार प्रशिक्षित शिक्षामित्रों का समायोजन पद खाली न होने के कारण रोक दिया गया

"हमारे समायोजन के बाद शिक्षा मित्रों के साथ साजिश की गयी। हम उच्च न्यायलय से साल 2015 में मुकदमा हारे और फिर हमने सर्वोच्च न्यायलय में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को शिक्षा मित्रों को स्टे दे दिया और शिक्षामित्र उस स्टे के आधार पर काम कर रहे हैं2 मई २०१७ को सर्वोच्च न्यायलय में नियमित सुनवाई शुरू हुई और 14 दिन की सुनवाई होने के बाद कोर्ट ने कोर्ट ने फैसला रिजर्व कर लिया गया।"

"सर्वोच्च न्यायलय ने शिक्षा मित्रों का समायोजन 25 जुलाई 2017 को निरस्त कर दिया। जिसके बाद से 35 से 40 हजार का वेतन पाने वाले सहायक अध्यापक का वेतन फिर से शिक्षा मित्रों की तरह कर दिया गया। समायोजित होने के बाद निकाले जाने पर शिक्षा मित्रों का आर्थिक नुकसान तो हुआ ही साथ में वो सामाजिक उपहास के भी पात्र बन गए। तब से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में अवसाद, चिंता के चलते 1400 शिक्षा मित्रों की मौत हो चुकी है और सरकार द्वारा मृतक परिवारों को किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं दी गयी।" शिव कुमार शुक्ल कहते हैं।

मुख्यमंत्री को भेजी जा चुकी है रिपोर्ट

प्रदेश अध्यक्ष शिव शिवकुमार शुक्ला ने बताया कि पिछले धरना प्रदर्शन के दौरान प्रदेश सरकार ने संज्ञान लेते हुए एक कमिटी का गठन किया था और शिक्षा मित्रों के हित में सुझाव मांगे थे। उस समिति के अध्यक्ष उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा थे। उस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। संगठन द्वारा उनसे इस संदर्भ में मुलाकत की गयी तो उन्होंने बताया की रिपोर्ट बनाकर मुख्यमंत्री को भेज दी गयी है। वो गोपनीय है अब उस पर मुख्यमंत्री जी कार्यवाही करेंगे।"


  

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