वाराणसी: डूब रहे लकड़ी के खिलौना कारोबार को सरकारी प्रोत्साहन से मिली संजीवनी, लेकिन कारीगरों की मजदूरी नहीं बढ़ी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में संकट में चल रहे लकड़ी के खिलौने के कारोबार को नई संजीवनी मिली है। बाजार में इन खिलौनों की मांग में तो बढ़ी है, लेकिन कारीगरों की मजदूरी दर नहीं बढ़ी।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   5 July 2021 8:45 AM GMT

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मिथिलेश धर/आनंद कुमार

वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। "लॉकडाउन के दौरान सब काम ठप हो गया था। जब से प्रधानमंत्री मोदी ने लकड़ी के खिलौना कारोबार पर ध्यान दिया है, तब से इस उद्योग का प्रचार-प्रसार हो रहा है। खिलौना बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा। बाजार में खिलौने की मांग भी बढ़ रही है। मांग इतनी बढ़ी है कि हम आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं।" लॉकडाउन के दौरान लकड़ी के खिलौना उद्योग पर पड़े असर को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में खिलौना निर्माता गोदावरी सिंह (81 वर्ष) ने गांव कनेक्शन को बताया।

65 साल से काशी की इस अनोखी कला को बचाने में जुटे कई पुरस्कारों से सम्मानित गोदावरी सिंह हाथ में लिया लाल-पीले रंग का बच्चों का खिलौना दिखाते हुए कहते हैं, "करीब 90 फीसदी कारोबार पटरी पर लौट आया है। जिस तरह से सरकार द्वारा लकड़ी खिलौना बाजार को बढ़ावा मिल रहा है, उससे इसका भविष्य उज्जवल नजर आ रहा है।"

चीन से आने वाले खिलौनों, प्लास्टिक के सस्ते खिलौनों और महंगी लकड़ी के चलते पहले से मुश्किल में चल रहे हस्त शिल्प से जु़ड़ी इस कला और कारोबार की मुश्किलों को लॉकडाउन ने बढ़ा दिया था। द इंटरनेशनल मार्केट एनालिसिस रिसर्च एंड कंसल्टिंग की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय खिलौना बाजार 85 फीसदी चीन पर निर्भर है। वहीं मलेशिया, जर्मनी, हांगकांग व अमेरिका से 15 फीसदी खिलौना भारत में आते हैं।

शादी-ब्याह का मौसम आने वाला है, इस कारण बाजार में सिंदूरदानी की मांग बढ़ गई है (फोटो-मिथिलेश धर)

लॉकडाउन में कारीगरों की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ गई थी। कारीगर उधारी लेकर किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। घाटे के चलते कई कारीगरों ने दूसरे काम शुरू कर दिए थे। स्थानीय कारोबारियों और कारीगरों के मुताबिक वोकल फॉर लोकल और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लकड़ी के खिलौना कारोबार को प्रोत्साहित किए जाने के बाद ये कारोबार पटरी पर लौट आया है।

देश के खिलौना कारोबार को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने इसी साल 27 फरवरी से 2 मार्च तक वर्चुअल टॉय फेयर (India Toy Fair 2021) आयोजित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने अगस्त 2020 में मन की बात कार्यक्रम में इसकी घोषणा की थी। एक मार्च 2021 को सचिव, वस्त्र मंत्रालय यूपी सिंह ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत 24 प्रमुख क्षेत्रों में से एक के रूप में खिलौनों की पहचान की गई है। सरकार विभाग के साथ मिलकर खिलौनों के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की है जो इसे प्रोत्साहित करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार खिलौना कारोबार को और बेहतर बनाने के लिए नवाचार पर ध्यान दे रही है।

लकड़ी के खिलौनों की बढ़ी मांग

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को एक साल हो गया है। अब इस कारोबार की क्या स्थिति है? इस सवाल के जवाब में वाराणसी में ही कश्मीरीगंज निवासी और नेशनल मेरिट अवार्ड से सम्मानित कारोबारी रामेश्वर सिंह (60 वर्ष) बताते हैं, "लॉकडाउन के दौरान लकड़ी के खिलौना उद्योग पर बहुत बुरा असर पड़ा था, लेकिन जब से पीएम मोदी ने लोकल खिलौने के लिए वोकल बनने की अपील तबसे हम लोगों के पास जगह-जगह से ऑर्डर की मांग बढ़ गई है। स्थिति यह हो गई है कि जितना ऑर्डर मिल रहे हैं उतनी की पूर्ति नहीं हो पा रही है। अब कारीगर जितना लकड़ी के खिलौने बना पा रहे हैं उतना ही ऑर्डर ले पा रहे हैं। नवंबर महीने में जब बाजार खुला तो 80 फीसदी लकड़ी के उत्पाद बाजार में बिक गये।"

लकड़ी की सिंदूरदानी बनाते विष्णु प्रसाद (फोटो- मिथिलेश धर)

एक तरफ जहां लकड़ी के खिलौनों की मांग बढ़ी है वहीं इससे जुड़े कारीगरों को प्रशिक्षित कर उन्हें और हुनरमंद बनाया जा रहा है।

"प्रदेश सरकार लकड़ी के खिलौने बनाने का दो महीने का प्रशिक्षण दे रही है। जिन-जिन व्यक्ति को ट्रेनिंग दी गई, उन्हें प्रतिदिन 300 रुपए दिए गए। सरकार का यह कदम सराहनीय है। सरकार की तरफ से प्रोत्साहन मिलने के बाद लकड़ी उद्योग फल-फूल रहा है। खिलौने की मांग बढ़ गई है।" रामेश्वर सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया।

लेकिन कारीगरों की मजदूरी नहीं बढ़ी

वोकल फॉर लोकल के नारों और ट्रेनिंग से कारोबारी खुश हैं दुकानदार भी खुश हैं लेकिन कारीगर उतने खुश नहीं। खोजवां निवासी कारीगर सुक्खू लाल विश्वकर्मा (60 वर्ष) कहते हैं, "बाजार में लकड़ी के उत्पादों की मांग बढ़ गई है लेकिन मजदूरी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।" विश्वकर्मा लकड़ी की गुड़िया बनाते हुए कहते हैं कि प्रतिदिन 6 से 7 घंटे काम करते हैं और 300 से 400 रुपए कमाते हैं।"

एक और कारीगर नटराज कुंदर (24 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताते हैं, "लॉकडाउन के बाद से अभी काम बढ़िया चल रहा है। शादी ब्याह का सीजन आने के चलते लकड़ी की सिंदूर दानी की मांग बढ़ गई है। इससे काम तो ज्यादा मिल रहा है लेकिन महंगाई के हिसाब से मजदूरी नहीं बढ़ी।"

फरवरी 2020 में वाराणसी में आयोजित 'काशी एक रूप अनेक' कार्यक्रम में गोदावरी सिंह द्वारा बनाये गये लकड़ी के बैग देखते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी. (फोटो- पीएम मोदी के twitter हैंडल से)

स्थानीय कारोबारियों के मुताबिक अकेले बनारस में ही 4,500 के आसपास कारीगर काम करते हैं, जिनमें मायूसी है।

लकड़ी के उत्पादों के लोकल कारोबार में मौसम, त्योहार, पर्व और सहालग (शादी-ब्याह) के सीजन का बड़ा रोल रहता है। पिछले 45 सालों से लकड़ी के खिलौने बनाने वाले कारीगर विष्णु प्रसाद (52 वर्ष) इसे बखूबी समझते हैं तभी वो शादी ब्याह के समय में सिंदूर दानी और बरसात के मौसम में लकड़ी के लट्टू और बच्चों के खेलने के दूसरे खिलौने बनाते हैं।

लकड़ी का खिलौना ओडीओपी में शामिल

गोदावरी सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, "सरकार ने बनारस के लकड़ी के खिलौने को ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट) में शामिल कर दिया है। इससे लकड़ी के खिलौने को बढ़ावा मिलेगा और इसकी मांग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में होगी। इसका फायदा यह भी है कि कारीगरों को लोन लेने में सुविधा मिलेगा।" ओडीओपी उत्तर प्रदेश सरकारी की योजना जिसके तहत हस्तशिल्प, परंपरागत रोजगार को बढ़ाने के लिए सरकार चयनित उत्पादों की मार्केटिंग और ब्रांडिंग में मदद करती है। इस योजना को अब केंद्र सरकार ने भी स्वीकार किया है।

कोरैया की लकड़ी मिले तो और बढ़ सकता है कारोबार

ज्यादातर लकड़ी के खिलौने कोरैया (Koraiyya, वैज्ञानिक नेम- Holarrhena antidysenterica) लकड़ी के बनते थे, क्योंकि उसमें चमक अच्छी आती है लेकिन आजकल इसका मिलना मुश्किल हो गया है। सिर्फ वाराणसी ही नहीं मिर्जापुर और चित्रकूट में ये भी ये दिक्कत है। कारीगरों और व्यापारियों का कहना है कि अगर बिहार से आने वाली कोरैया लकड़ी से प्रतिबन्ध हट जाये तो बनारसी खिलौनों का कारोबार और ज्यादा बढ़ सकता है।

"वर्ष 1982 से बिहार से कोरैया की लकड़ी आना बंद हो गई है। इस लकड़ी की गुणवत्ता अच्छी होती है और यह काफी मुलायम होता है जिससे खिलौने की गुणवत्ता बढ़ जाती थी। जब से ये लकड़ी आनी बंद हो गई है, तब से उसकी जगह पर यूकेलिप्टस की लकड़ी से खिलौने बनाए जाते हैं।" गोदावरी सिंह कहते हैं।

कारोबारियों का कहना है कि कोरैया की लकड़ी बनारस आ जाएं तो इस कारोबार का भविष्य काफी उज्जवल हो जाएगा। (फोटो- आनंद कुमार)

गोदावरी सिंह ने कई बार कोरैया की लकड़ी को वापस बनारस लाने की मांग सरकार से की है। इस संबंध में हम लोगों ने उत्तर प्रदेश व बिहार सरकार को पत्र लिखा था लेकिन आज तक उस पर कोई काम नहीं हुआ। गोदावरी का कहना है कि कोरैया की लकड़ी बनारस आ जाएं तो इस कारोबार का भविष्य काफी उज्जवल हो जाएगा।"

फ्लैट रेट पर बिजली की मांग

लकड़ी कारीगरों की मांग है कि सरकार बुनकरों की तरह खिलौने बनाने वालों को भी फ्लैट रेट पर बिजली मुहैया कराए। कारीगरों का कहना है कि वे भी शिल्पी हैं। इसलिए उन्हें भी फ्लैट रेट पर बिजली मिलनी चाहिए।

इको-फ्रेंडली हैं लकड़ी के खिलौने

वाराणसी में लकड़ी के खिलौने पूरी तरह इको-फ्रेंडली होते हैं। गोदावरी सिंह कहते हैं, "जितने भी लकड़ी के खिलौने पर रंग लगाया जाता है वह प्राकृतिक रंग होते हैं। इन रंगों को लाख से बनाया जाता है। ये रंग लेड-फ्री होता है। इसका फायदा यह है कि अगर इन खिलौने को बच्चे मुंह में लेकर चूसते भी है तो उनके सेहत को जरा भी नुकसान नहीं होगा।"

साल 2019 में भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में विदेशों से आने वाले लगभग 67 फीसदी खिलौने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इन खिलौने में केमिकल तय मात्रा से ज्यादा पाया गया है, जिससे बच्चों को कैंसर व त्वचा संबंधी बीमारी होने का खतरा है। भारत में सबसे ज्यादा चीन से आयात किए जाते हैं।

सिंदूरदानी बनाता कारीगर (फोटो- मिथिलेश धर)

भारतीय खिलौना मेला-2021 के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लकड़ी खिलौने के व्यापारियों से पर्यावरण के अनुकूल खिलौने बनाने की अपील की थी। वहीं केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, खराब क्वालिटी और सस्ते खिलौने विदेशों से आ रहे थे, और भारत के खिलौना उद्योग को लगभग खत्म कर दिया था। क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के माध्यम से हमने टेस्टिंग कराई, तो पता चला उसमें जो केमिकल है वो पर्यावरण के लिये सुरक्षित नहीं है।

जीआई टैग मिलने के बाद 28 से 32 फीसदी बढ़ा कारोबार

30 मार्च, 2015 को लकड़ी के खिलौने को जीआई टैग प्राप्त हुआ था। अक्टूबर, 2013 में जीआई टैग के लिए आवेदन दिया गया था। पद्मश्री से सम्मानित जीआई टैग विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के अनुसार जीआई टैग मिलने के बाद से 28 से 32 फीसदी लकड़ी के खिलौने कारोबार में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "जीआई टैग मिलने के बाद से लकड़ी के खिलौने का कारोबार धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हुआ। अब प्रधानमंत्री जी या मुख्यमंत्री के साथ में दूसरे देश के कोई राष्ट्राध्यक्ष आते हैं तो उनको लकड़ी के खिलौने को स्मृति चिन्ह के रूप में दिए जाते हैं। इससे बनारस के लकड़ी खिलौने को अंतरराष्ट्रीय पटल पर अलग पहचान मिलती है और लकड़ी के खिलौने बाजार को बढ़ावा मिलता है।"

जीआई टैग विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत (फोटो- आनंद कुमार)

बीते साल 2020 में 30 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में देशी खिलौनों को बनाने और लोगों से प्रयोग करने की अपील की थी। खिलौने कारोबार को 'आत्मनिर्भर' बनाने के लिए पीएम मोदी द्वारा 'वोकल फ़ॉर लोकल' का मंत्र दिया गया।

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार बनारस में लकड़ी खिलौने का सालाना कारोबार 15 करोड़ से 20 करोड़ रुपए के बीच है, जिसमें प्रतिवर्ष 5 करोड़ रुपए के खिलौने निर्यात किए जाते हैं। द इंटरनेशनल मार्केट एनालिसिस रिसर्च एंड कंसल्टिंग की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय खिलौना बाजार 85 फीसदी चीन पर निर्भर है। वहीं मलेशिया, जर्मनी, हांगकांग व अमेरिका से 15 फीसदी खिलौना भारत में आते हैं। चीन भारत को 1,472 अरब रुपए के खिलौने का निर्यात करता है जबकि भारत सिर्फ 18 से 20 अरब रुपए के खिलौने का निर्यात कर पाता है। पूरे विश्व के खिलौना उद्योग में भारत की सिर्फ 0.5 फीसदी हिस्सेदारी है।

ऐसे में वाराणसी के खिलौने का कारोबार जिस तरह से बढ़ा है, इससे उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बनारसी खिलौनों की हिसेदारी बढ़ सकती है।

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