माटी मोल सब्जियां: एक बोरी बैंगन की कीमत सिर्फ 62 पैसे

Divendra SinghDivendra Singh   1 April 2017 7:55 PM GMT

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माटी मोल सब्जियां: एक बोरी बैंगन की कीमत सिर्फ 62 पैसेबैंगन की मंडी में बिक्री और किसान के खर्च का आंकलन 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

हरदोई। पिछले दिनों 50 बोरी आलू के इंदौर में एक किसान को सिर्फ एक रुपया मिला था, उस वक्त भी गांव कनेक्शन ने खबर को प्रमुखता से उठाया था। बाद में कई चैनल और अख़बारों ने इसे मुद्दा बनाया। अब यूपी के हरदोई में एक किसान को एक बोरी बैंगन के सिर्फ 62 पैसे मिले हैं।

आलू में घाटा खा चुके आलू किसानों को दूसरी फसलों से उम्मीद थी, लेकिन यहां भी उन्हें झटका लगा है। आलू के अलावा दूसरी सब्जियां भी माटी मोल बिकने लगी हैं। हरदोई जिले के बावन ब्लॉक के बावन गाँव के किसान गौरव श्रीवास्तव (32 वर्ष) ने तीन बीघा में बैंगन की फसल लगायी है। गौरव 29 मार्च को सोलह बोरी बैंगन हरदोई नवीन मंडी में लेकर गए तो उन्हें एक बोरी का दाम मिला 62 पैसे।

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गौरव श्रीवास्तव 16 बोरी बैंगन की मिली कीमत और उस पर खर्च हुए पैसे का हिसाब समझाते हैं। “मंडी में सभी बोरियों के मुझे 650 रुपये मिले, लेकिन इस पीछे का खर्च देखिए 220 रुपये खेत से मंडी का भाड़ा लगा, जिस मजूदर ने तोड़ा था उसे 200 रुपए दिए, 40 रुपये पल्लेदारी लगी, 20 रुपये की सुतली लगी थी और 160 रुपए की 16 बोरियां लाया था इस तरह 650 रुपये खर्च हो गए 16 बोरी तो 10 रुपये बचे।”

कई साल तक मनरेगा में ऑपरेटर रह चुके गौरव ने सैलरी न बढ़ने पर ठेके पर जमीन लेकर खेती शुरु की है। उन्होंने 4 एकड़ जमीन ली है। जिस पर आलू, मटर, गेंदा और बैंगन समेत कई सब्जियां उगाते हैं। लेकिन मटर छोड़ सबमें उऩ्हें घाटा ही हुआ है। गौरव ने 3000 रुपये प्रति बीघा (सालाना) की दर से खेत ठेके पर लिए हैं।

गौरव फोन पर बताते हैं, अभी आप अगर इस बैंगन की कीमत में मेरी एक दिन की मजदूरी और मजदूर के खाने-पीने पर खर्च पैसे का हिसाब लगाए तो सोचिए कितना नुकसान हुआ है। सरकार को चाहिए कि सब्जियों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करें वर्ना किसान की आय दोगुनी तो क्या वो कर्ज से नही निकल पाएगा।”

पिछले दिनों गांव कनेक्शन ने इंदौर के एक किसान का दर्द प्रकाशित किया था, जिसमें उसे 55 कट्टी आलू के 1 रुपये मिले थे जबकि दोबारा आलू बेचने पहुंचने पर उसे अपनी जेब से पैसे चुकाने पड़े थे। भारत में सब्जियों की कीमतें तय न होने से किसान आढ़ती और बाजार पर निर्भर करता है। माल ज्यादा होने पर कई बार उसे वहीं फेंककर आना पड़ता है।

           

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