पश्चिम बंगाल चुनाव 2021: एक बंद डनलप कारखाना, हजारों बेरोजगार कर्मचारी और राजनीति

शाहगंज में डनलप का टायर कारखाना जो कभी पश्चिम बंगाल का गौरव हुआ करता था, उसे बंद हुए एक दशक हो गये हैं। 10,000 से अधिक पूर्व कर्मचारी मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। राज्य की चुनावी सरगर्मियों को बढ़ाने के लिए नेताओं ने उद्योगों का भी मुद्दा उठाया है। गाँव कनेक्शन ने पूर्व कर्मचारियों से मुलाकात कर चुनाव से उनकी उम्मीदों के बारे में बात की।

Gurvinder SinghGurvinder Singh   17 March 2021 4:44 AM GMT

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पश्चिम बंगाल चुनाव 2021: एक बंद डनलप कारखाना, हजारों बेरोजगार कर्मचारी और राजनीतिइस इमारत ने कभी डनलप कारखाने की आग बुझाने की इकाई के रूप में काम किया था। सभी तस्वीरें: गुरविंदर सिंह

हुगली (पश्चिम बंगाल)। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से बमुश्किल 45 किलोमीटर (किमी) दूरी पर हुगली जिले में स्थित शाहगंज टायर बनाने वाली कंपनी डनलप के लिए जाना जाता था। यहां पर 1936 में एशिया के पहली टायर कंपनी स्थापित की गई थी।

दस साल पहले 2011 में इसका दरवाजा हमेशा के लिए बंद हो गया। तब से राजनीतिक दल इस बंद कंपनी के बहाने एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे हैं। एक बार फिर से बंगाल में चुनावी मौसम है। 294 विधान सभा क्षेत्रों में आठ चरणों का मतदान 27 मार्च से शुरू होकर 29 अप्रैल तक चलेगा।

पश्चिम बंगाल में निर्णायक लड़ाई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सत्ता पर काबिज अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच है। 22 फरवरी को डनलप कारखाने के मैदान में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में विकास योजनाओं की कमी के लिए मुख्यमंत्री बनर्जी को दोषी ठहराया। उन्होंने हुगली जिले में उद्योगों की खराब स्थिति के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि उन्होंने अपने भाषण में एक बार भी डनलप का जिक्र नहीं किया।

दो दिन बाद उसी मैदान से बोलते हुए ममता बनर्जी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि डनलप कारखाने को पुनर्जीवित करने के राज्य सरकार के पांच साल पुराने प्रस्ताव पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 2016 में राज्य विधानसभा में बिल पास होने के बावजूद केंद्र ने डनलप और दमदम स्थित जेसोप एंड कंपनी और एक अन्य खराब स्थिति वाले कारखाने का अधिग्रहण करने की अनुमति नहीं दी। दोनों कोलकाता स्थित रुइया समूह के स्वामित्व में हैं। बाद में जेसोप कारखाना भी बंद हो गया।

कारखाना परिसर में ज्यादातर जगहों पर ऐसे ही सन्नाटा दिखता है.

बनर्जी ने कहा कि राज्य सरकार 2016 से डनलप के पेरोल कर्मचारियों को हर महीने 10,000 रुपए दे रही रही है ताकि उनका भरण-पोषण हो सके।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बात सिर्फ डनलप की नहीं है, बंगाल में औद्योगिक स्थिति ही ठीक नहीं है। "पिछले पांच दशकों में बंगाल में हालात बद से बदतर होते चले गए हैं। बंगाल से उद्योग लगातार बाहर ही गये हैं। यह राज्य कभी प्रसिद्ध एंबेसडर कारों के निर्माण के लिए जाना जाता था और जूट उद्योग का केंद्र भी था," कोलकाता स्थित विश्लेषक शिवाजी प्रतीम बासु ने गाँव कनेक्शन को बताया।

कम्पनी परिसर में बंद पड़ा भोजनालय।

"अब यह उद्योगों के लिए तरस रहा है। काम के लिए एक अच्छे माहौल के अलावा ट्रेड यूनियनों ने कारखानों के काम में दिन-प्रतिदिन बाधाएं पैदा की," बसु आगे कहते हैं।

चुनावी राजनीति की गालियों से दूर डनलप बस्ती में समय ठहरा सा प्रतीत होता है। खाली घर झाड़ियों से ढंक गए हैं। प्लास्टर गिरने से दीवारें उबड़-घाबड़ हो गई हैं। खाली जगहों पर बरगद के पेड़ों ने कब्जा कर लिया है, झाड़ियों में सांप फुफकारते हैं।

डनलप कम्पनी का मुख्य दरवाजा।

केवल 700 जीर्ण-शीर्ण घर जहां पूर्व कर्मचारी अभी भी रहते हैं, एक साइनबोर्ड और झाड़ियों से कुछ-कुछ दिखाई देने वाला एक मेन गेट जो आपको बताता है कि यह उजाड़ कभी जीवन से भरा था।

पुराने समय के कर्माचारी बताते हैं कि अपने अच्छे समय में डनलप का कारखाना कभी 97 हेक्टेयर में फैला हुआ था जहां 12,000 कर्मचारी वर्ल्ड क्लास टायर बनाते थे। यहां उड्डयन उद्योग के भी टायरों का निर्माण होता था। कॉप्लेक्स में स्टाफ के लिए लगभग 1,600 क्वार्टर थे, जिसमें बैचलर के क्वार्टर और वरिष्ठ अधिकारियों के लिए बंगले, दो स्वीमिंग पूल और टेनिस कोर्ट भी था।

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"यह एक मिनी-इंडिया की तरह था जहां विभिन्न धर्मों और क्षेत्रों के लोग खुशी से रहते थे। प्रबंधन ने हमारी अच्छी देखभाल की। हमें कभी किसी चीज के लिए बाहर कदम नहीं रखना पड़ा। हमारे पास बेहतर चिकित्सा सुविधाएं थीं और स्टैंडबाय पर एक आग बुझाने वाली टीम भी थी," 72 वर्षीय सेवानिवृत्त कर्मचारी शिबू पासवान गाँव कनेक्शन को बताते हैं।

वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान हड़ताली श्रमिकों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध के बाद तोपों के टायर की आपूर्ति करने के लिए कारखाना खोल दिया था।

स्टाफ क्वार्टर का दृश्य जहां अब गिनती के लोग ही बचे हैं।

लेकिन, एक दशक से अधिक समय से कारखाने से जुड़े 10,000 से अधिक लोग, जो टायर और कन्वेयर बेल्ट सहित 300 से अधिक उत्पादों का निर्माण करते हैं, एक निराशाजनक भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। वर्ष 2011 में प्रबंधन ने घाटे का हवाला देते हुए काम बंद कर दिया। इस आदेश से एक हजार से ज्यादा श्रमिक बेरोजगार हो गये और 2,500 से अधिक अन्य लोग जो 2009 के रिटायर हुए उन्हें भविष्य निधि और ग्रेच्युटी जैसे कानूनी लाभ नहीं मिले।

कुछ इसी तरह राज्य में कई अन्य उद्योगों का भी हाल रहा है। उदाहरण के लिए टाटा मोटर्स ने 2008 में पश्चिम बंगाल में सिंगुर परियोजना बंद कर दी। हावड़ा जिले को शेफ़ील्ड ऑफ ईस्ट के रूप में जाना जाता था क्योंकि यहां कई उद्योग थे, लेकिन अब कई बंद हो चुके हैं। वर्ष 1855 में नदी के बेहतर संपर्क और कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता के कारण हुगली जिले के रिशरा में पश्चिम बंगाल से जूट उद्योग शुरू हुआ, लेकिन अब यह उद्योग बेहद खराब स्थिति में है। अधिकांश जूट मिलें बंद हैं और कर्मचारियों का भविष्य निधि और ग्रेच्युटी बकाया है।

कम्पनी के अधिकारियों के आवास की तस्वीर।

श्रमिकों का कहना है कि डनलप फैक्ट्री के बंद होते ही उनकी स्थिति बहुत ख़राब हो गयी और कई लोग तो भीख मांगने को मजबूर हो गए। 62 साल के डिलराओ गोन्टे तब तक अंडे और ब्रेड बेचते रहे जब तक उनके बेटे को नौकरी नहीं मिल गयी। हाल ही में उनके बेटे की नौकरी लगी। वे डनलप के रबर और रसायन विभाग में काम करते थे। उन्होंने कहा, "काम करते हुए भी हमें अच्छा वेतन नहीं मिला। 2006 में औसत मासिक भुगतान सिर्फ पांच हजार रुपये था। हमने अपने घरों को चलाने और बच्चों को पढ़ाने के लिए संघर्ष किया। लेकिन, बंदी तो जैसे मृत्यु की घोषणा थी। हमने कभी नहीं सोचा था कि इतनी समृद्ध विरासत वाला कारखाना बंद हो जाएगा।"

फैक्ट्री के मुख्य द्वार से लगभग 200 मीटर की दूरी पर रनडाउन स्टाफ क्वार्टर हैं जहाँ 700 परिवार रहते हैं। कई अन्य लोग अपने राज्य लौट चुके हैं। 50 साल की आशा शर्मा, उस समय को याद करते हुए कहती हैं कि जब फैक्ट्री बंद हुई तो उनके पति कुलदीप शर्मा की नौकरी छूट गई।

डिलराओ गोन्टे

"उन्हें कोई काम नहीं मिला और हमारे लिए अपने नाबालिग बच्चों को शिक्षित करना मुश्किल हो गया। मैंने एक सिलाई मशीन खरीदी और परिवार चलाने के लिए उस पर 18 घंटे तक काम किया। अपने कष्ट के बारे में बताना हमारे लिए मुश्किल है," आशा कहती हैं।

कर्मचारी लीकेज छतों वाले कमरों में रहते हैं और पानी की भी कोई सुविधा नहीं है। पानी का टैंक 2000 के अंत में ही ध्वस्त हो गए थे। "हम पीने और घरेलू उपयोग, दोनों के लिए पानी की आपूर्ति के लिए हैंड पंपों पर निर्भर हैं," शर्मा ने कहा।

वर्ष 2009 में सेवानिवृत्त हुए 71 वर्षीय एके दास ने दावा किया कि फैक्ट्री में अधिकांश स्क्रैप और अन्य सामान चोरी हो गए हैं और अब यहां डनलप का बहुत ज्यादा हिंसा बचा नहीं है। चिकित्सा सुविधाओं के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा: "अब, सब कुछ ध्वस्त होने के साथ, हमें उपचार के लिए निजी अस्पतालों पर निर्भर रहना होगा, जो हमारे लिए काफी महंगा है," दास ने गाँव कनेक्शन को बताया।

कुलदीप शर्मा और उनकी पत्नी आशा शर्मा।

इस निराशा के बीच एक चांदी की परत भी है। अधिकांश श्रमिकों के बच्चों को रक्षा बलों में नौकरी मिली है। "उनके परिवारों की खराब वित्तीय स्थिति ने बच्चों को अतिरिक्त मेहनत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने परिवारों की आर्थिक स्थिति को सुधारने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। हमें उन पर बहुत गर्व है," 25 साल के फैक्ट्री कर्मचारी धीरज वर्मा कहते हैं।धीरज के बड़े भाई सेना में हैं।

श्रमिक आशा और निराशा के बीच में हैं। बाद के श्रमिकों में ज्यादा निराशा है। लगभग सात साल पहले, उन्होंने अपने भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और अन्य बकाया राशि की निकासी की मांग करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटकटाया था। अदालत ने इसके चल-अचल संपत्ति के दिवालियापन का आदेश दिया था, लेकिन प्रक्रिया अभी भी जारी है।

धीरज वर्मा उस मैदान की और इशारा कर रहे हैं जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी ने राजनीतिक रैली की थी।

"कुछ कर्मचारी अपने सेवानिवृत्ति लाभों के लिए इंतजार कर रहे हैं। स्थिति गंभीर है, क्योंकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि बकाया कब मिलेगा। इंतजार केवल लंबा हो रहा है। एक बार कोर्ट अचल संपत्ति का फैसला करने पर श्रमिकों को डर लगता है कि वे अपने घर भी खो सकते हैं," गोन्टे ने कहा

"हमारे माता-पिता सात दशक पहले यहां आकर बस गए थे। हम एक बड़े परिवार की तरह रहते थे, सुख और दुःख साझा करते थे। यह घर है, और हम इसका हिस्सा नहीं बन सकते। अगर हमें जाना ही पड़ेगा तो हमें पुनर्वास के लिए मुआवजे की जरूरत पड़ेगी क्योंकि हमारी आय कभी भी इतनी नहीं थी कि हम उसमें से कुछ भी बचा पाते," कुलदीप ने कहा। कम्पनी के किसी बड़े अधिकारी से इस विषय पर बात नहीं ही पायी।

पश्चिम बंगाल चुनाव 2021 के बाद सत्ता में नयी पार्टी के आने से क्या स्थितियों में सुधार होगा? " यह बहुत मुश्किल है कि किसी का रवैया बदलेगा, भले ही भाजपा टीएमसी को सत्ता से बेदखल कर दे, क्योंकि भाजपा में वर्तमान सरकार वाली पार्टी के ही 80 फीसदी नेता शामिल हैं। ताजा नेतृत्व की कमी से उद्योगों के प्रति समान मानसिकता बनी रहेगी।" बसु कहते हैं।

  

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