पश्चिम बंगाल: प्रदेश सरकार का दावा- किसानों की आय तीन गुना बढ़ी, किसानों ने कहा- 1,300 में बिक रहा धान, केंद्र की योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ

आंकड़े देखें तो पश्चिम बंगाल धान उत्पादन के मामले में देश का अग्रणी राज्य है, लेकिन एमएसपी पर खरीद के मामले में पीछे है। वहीं राज्य सरकार का दावा है कि प्रदेश में किसानों की आय तीन गुना तक बढ़ी है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत क्या?

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
west bengal election, farmers in west bengal, west bengal farmers, msp, farmers protestपश्चिम बंगाल के किसान धान की सही कीमत के लिए परेशान हैं। (सभी तस्वीरें और ग्राफिक्स गांव कनेक्शन)

ओ पी सिंह

बंगाल में चुनाव होने हैं। पूरे देश के साथ यहां भी मुद्दे किसानों के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी किसानों की आमदनी तीन गुना कर चुकने का दावा कर रही हैं तो मुख्य विपक्षी पार्टी बन चुकी भाजपा के साथ सुर में सुर मिलाकर माकपा और कांग्रेस कह रहे हैं कि यहां पूरे देश की तुलना में किसान सबसे ज्यादा बदहाल है।

बंगाल में खेती-किसानी की स्थिति क्या है? इसे करीब से जानने के लिए "गांव कनेक्शन" की टीम राज्य में सत्ता के केंद्र बिंदु राजधानी कोलकाता से 139 किलोमीटर दूर खड़गपुर के उस कलाइकुंडा में पहुंची जहां आजादी से पहले से ही वायु सेना के फाइटर प्लेन की गरज के साथ लोगों की नींद खुलती है और वायु वीरों की अभेद सुरक्षा के एहसास के साथ नींद आती है।

कलाइकुंडा पश्चिम मेदिनीपुर जिले में पड़ता है जो राज्य में चावल उत्पादन में कभी पहले नंबर पर तो कभी दूसरे नंबर पर रहता है। वैसे बर्दवान को पूरे देश का राइस बॉल यानी चावल का कटोरा कहा जाता है लेकिन कभी बर्दवान तो कभी पश्चिम मेदिनीपुर जिला चावल उत्पादन में पहले पायदान पर रहते हैं। राज्य के कृषि सलाहकार प्रदीप मजूमदार तो कहते हैं कि पश्चिम मेदिनीपुर और बर्दवान चावल उत्पादन में लगभग बराबर रहते हैं।

खड़गपुर स्टेशन से करीब 20 से 22 किलोमीटर बाइक चलाते ही चौड़ी सड़कों का दायरा सिमटता जाता है और पतली तथा टूटी-फूटी राहें शुरू हो जाती हैं। यह पांटुलिया प्रतापपुर गांव है जो कलाइकुंडा ग्राम पंचायत के अधीन है।

बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां सालों भर धान की खेती होती है। ठंड के आखिरी दौर यानी दिसंबर से जनवरी के बीच धान की फसल काट ली जाती है। इसलिए इन सड़कों के दोनों ओर फसल कट जाने की वजह से खेतों में पड़ी कही धान की सुनहरी जड़े नजर आती हैं तो कहीं सिर पर गमछा, फटी कमीज़ और बिना चप्पल पहने किसान फसल को बांधकर घरों की ओर ले कर लौट रहे होते हैं।


सड़क किनारे जैसे ही हमारी बाइक रुकी, गले में कैमरा और हाथों में माइक देखकर ग्रामीणों की भीड़ जुटने लगी थी। हम चलते हुए एक खेत में जा पहुंचे। यहां सफेद बनियान पहने अधेड़ उम्र के गोविंद शर्मा खेतों की सफाई में जुटे हुए थे। उनके खेत में धान की कटाई हो गई थी और अगली फसल के लिए खेत को तैयार करने के लिए साफ कर रहे थे। हमारे पहुंचते ही सामने खड़े हो गए। हमने उनसे जानना चाहा कि इस बार खेती से उन्हें कितना लाभ हुआ है और गुजारा कैसे हो रहा है?

पहले तो कुछ भी बताने से हिचकिचा रहे थे। उनका कहना था कि अगर बोलने में कुछ गलती हो गई तो राजनीतिक हिंसा के लिए कुख्यात बंगाल में मुश्किल में फंस सकते हैं। लेकिन जब हमने उन्हें विश्वास दिलाया कि ऐसा कुछ नहीं होगा, तब खुलकर कैमरे के सामने बोलने लगे।

किसान गोविंद शर्मा।

उन्होंने कहा, "इस बार दो बीघा जमीन पर धान बोया हूं। 20 से 25,000 रुपए खर्च हो चुके हैं। लेकिन आधी कीमत भी नहीं मिली है।"

हमने पूछा कि फसल को सरकारी मंडियों में बेचते हैं या कोई और ले जाता है? तब उन्होंने बताया, "कोई मंडी-वंडी नहीं है। पैकारी (व्यवसायी) 1,350 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीद कर ले गए हैं।"

गौर करने वाली बात यह है कि बंगाल में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,868 रुपए है। प्रदेश सरकार 20 रुपए बोनस देती है और नियम है कि राज्य सरकार के कर्मचारी गांव-गांव जाकर किसानों से इसी कीमत पर धान खरीदेंगे। वजन के साथ ही किसानों के हाथ में चेक दे दिया जाएगा। जबकि यहां जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट दिखी। प्रदेश सरकार यह भी दावा कर रही है कि किसानों की औसतन आय यहां तीन गुना बढ़ी है।

पश्चिम बंगाल में धान खरीद के लिए कोई एजेंसी नियुक्त नहीं है। राज्य सरकार ने सेंट्रल परचेसिंग सेंटर (सीपीसी) की स्थापना की है जहां खाद्य विभाग के कर्मी प्रत्येक ब्लॉक में खरीद प्रक्रिया पूरी कराते हैं।

क्या सरकार से कोई मदद मिली है, इस पर गोविंद कहते हैं, "ममता बनर्जी सरकार ने कृषक बंधु योजना चलाई है। इसके तहत 1,000 रुपए मिले हैं। केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि को ममता बनर्जी ने इसे राज्य में लागू ही नहीं किया है। जबकि इसे बिना देरी किए लागू किया जाना चाहिए।"

उन्होंने कहा कि अगर केंद्र से कुछ मदद मिलेगी तो इसमें सीएम को क्या नुकसान है? आखिर किसानों का भला ही तो होगा।

क्या खेती से घर की जरूरतें पूरी हो जाती हैं? इस पर गोविंद का दुख छलक‌ उठा। उन्होंने कहा, "दिनभर खेत में काम करते हैं, लेकिन दो जून की रोटी नसीब नहीं होती। बच्चों की पढ़ाई और अन्य जरूरतें पूरी करने के लिए सप्ताह में वक्त निकालकर दैनिक मजदूरी पर काम करना पड़ता है।"


प्रदेश सरकार के अनुसार पश्चिम बंगाल में 73 लाख से थोड़े अधिक किसान हैं। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अनुसार पश्चिम बंगाल खरीफ सीजन वर्ष 2019-10 में धान उत्पादन के मामले में देश में दूसरे नंबर पर था।

हम गोविंद के खेत से थोड़ा आगे बढ़े। एक खेत के अंदर अधेड़ उम्र के सुप्रतिम घोष धान की फसल एकत्रित कर रहे थे। हमने उनसे पूछा कितनी जमीन पर खेती किए हैं? तो बताया कि 10 हजार खर्च कर चार बीघा जमीन पर धान की फसल बोए हैं लेकिन फसल बेचकर आधे पैसे भी नहीं निकले। गांव में लोग आ जाते हैं और 1,200 से 1,300 प्रति क्विंटल के हिसाब से धान लेकर चले जाते हैं। फसल बीमा कराया है लेकिन राज्य सरकार से कोई मदद नहीं मिली। "कृषक बंधु" योजना का लाभ भी उन्हें नहीं मिलता। केंद्र से तो पैसा मिलता ही नहीं है।

घोष ने कहा, "ममता बनर्जी कुछ देती हैं ना नरेंद्र मोदी देते हैं। हर एक सीजन में यह सोच कर खेती करते हैं कि इस बार कुछ लाभ होगा लेकिन जब फसल कटती है तो जितना खर्च होता है उतनी धनराशि भी हाथ में नहीं मिलती। बस जैसे-तैसे जी रहे हैं।"

वहां से बाइक लेकर हम करीब 500 मीटर दूर पहुंचे जहां खेत में गजेर मारिक काम कर रहे थे। 45 वर्षीय मारिक ने बताया, "तीन बीघा जमीन पर बोरो धान की खेती की है। 25 हजार रुपए खर्च हो गए हैं लेकिन लाभ कुछ नहीं हुआ।"

हालांकि उन्होंने बताया कि खेत में इतनी फसल जरूर हुई है कि अगले सीजन तक आराम से परिवार के पांच सदस्य खा सकते हैं। बच्चों की पढ़ाई के लिए पेट काटकर अनाज बेचना पड़ता है। वह भी मंडियों में नहीं बल्कि व्यवसायियों के हाथ से। यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य से करीब आधी कीमत पर। ना तो राज्य सरकार से कोई मदद मिली है और ना ही केंद्र सरकार की किसी योजना के बारे में कुछ जानते हैं। मारिक ने तो सीएम के खिलाफ गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि उनकी (ममता) वजह से गांव के लोगों की बदहाली और बढ़ी है।

अपने धान के खेत में खड़े गजेर मारिक

दो ढाई सौ मीटर और आगे बढ़ने पर सुशान्त बेरा से मुलाकात हुई। करीब 62 साल उम्र के बेरा कहते हैं, "दो बीघा जमीन पर छह हजार रुपए लगाकर खेती किए हैं लेकिन उससे जो धान पैदा हुआ है उससे केवल परिवार के चार पांच सदस्यों का भरण पोषण होगा। पास में कोई मंडी नहीं है। अगर कभी धान बेचना हो तो कारोबारी आते हैं और कम कीमत पर खरीद कर ले जाते हैं। फसल बीमा भी इन्होंने कराया है लेकिन कुछ नहीं मिला। कृषक बंधु योजना का भी लाभ नहीं मिलता।"

हालांकि उनसे करीब डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर तपन कुमार दास का धान का खेत है। इन्होंने कृषक बंधु योजना के तहत राज्य सरकार से 2,000 रुपए प्राप्त किए हैं। तपन ने बताया, "धान की खेती में जो खर्च उन्होंने किया था वह भी इस बार नहीं निकला है। थोड़ी बहुत फसल बेचे हैं लेकिन बिचौलियों के हाथ में बेचना पड़ा और केवल 1,200-1,300 प्रति क्विंटल मिला है।"

पास ही में 22 वर्षीय चंडी घोष की जमीन है। डेढ़ बीघा जमीन पर उन्होंने धान बोया था लेकिन फसल की कटाई के बाद उसकी बिक्री से लागत की रकम भी नहीं निकल पाई। पिछले साल इन्हें राज्य सरकार से 2,000 रुपए की मदद मिली थी लेकिन इस बार नहीं मिली। फसल बीमा नहीं कराए हैं। कई तरह का कागजात मांगते हैं, कहां से लाएंगे।"

इस बारे में प्रदेश के कृषि मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक गांव कनेक्शन को बताते हैं, "खरीफ मार्केटिंग सीजन में पूरे साल के दौरान 52 लाख टन धान खरीद का लक्ष्य बंगाल सरकार ने तय किया था जिसे पूरा कर लिया गया है। उनकी सरकार सेंट्रल प्रोसेसिंग सेंटर (सीपीसी) प्रणाली के जरिए गांव गांव में किसानों से धान खरीदी है और मौके पर ही उन्हें चेक के जरिए पेमेंट कर दिया जाता है।"

यह भी पढ़ें- बिहार: लक्ष्य से पिछड़ने के बाद भी नितीश सरकार ने धान खरीद की समय सीमा घटाई, किसानों को हर क्विंटल पर 500-600 रुपए का घाटा

हालांकि जब उनसे पूछा गया कि ग्रामीण क्षेत्र में किसानों को इस बारे में जानकारी नहीं है, तब उन्होंने इस पर कुछ खास टिप्पणी नहीं की और बताया, "उनकी सरकार प्रत्येक ब्लॉक में माइकिंग के जरिए धान खरीद प्रणाली, न्यूनतम समर्थन मूल्य आदि के बारे में प्रचार प्रसार कर रही है जिससे किसान लाभान्वित हो रहे हैं। पिछले 10 वर्षों के दौरान किसानों की सालाना आमदनी 91 हजार से बढ़कर तीन लाख रुपए से अधिक हो गई है।"

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कृषक बंधु नाम से एक योजना शुरू की है जिसमें किसानों को प्रति एकड़ खेती के लिए सालाना 5000 रुपए की वित्तीय मदद की जाती है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कई मौके पर दावा कर चुकी हैं कि किसानों से धान ली जाती है और दूसरे हाथ से उन्हें उसकी कीमत चेक से दे दी जाती है।

इस योजना का नाम सीएम ने "धान दिन चेक निन‌ ( धान दीजिए चेक लीजिए)" दिया है। जबकि कलाइकुंडा के पास इस गांव में जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट दिखी है।

कलाइकुंडा ग्राम पंचायत के सदस्य दीपक करण बताते हैं कि मंडियों में कई तरह की धांधली की शिकायतें मिली हैं। कई जगहों पर भीगा हुआ धान नहीं लिया जाता। कम धान लेकर जाने पर भी नहीं खरीदा जा रहा है। हालांकि जब उनसे पूछा गया कि इस बारे में सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की? तब वह जवाब को टाल गए। उन्होंने दावा किया, "किसानों को एक एकड़ की खेती के लिए कृषक बंधु योजना के तहत 5000 रुपए सालाना मिलते हैं जबकि कुछ किसानों ने बीमा कराया है तो उन्हें मिल रहा है जिसने नहीं कराया नहीं मिल रहा।"

यह भी पढ़ें- एक घोटाला जिसने बंद करवा दी बिहार की सैकड़ों धान मिल, किसान एमएसपी से आधी कीमत पर धान बेचने को मजबूर

ऑल इंडिया किसान सभा के राज्य सचिव अमल हालदार प्रदेश पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "10 वर्षों के ममता शासन में किसानों की बदहाली और बढ़ी है। 244 किसानों ने आत्महत्या की है। केंद्र की पीएम किसान सम्मान निधि भी बहुत अधिक मददगार नहीं है, लेकिन हमारा मानना है कि बंगाल में इसे लागू करना चाहिए।"

वहीं भाजपा किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष श्रीरूपामित्रा चौधरी कहते हैं, "किसानों के खिलाफ अगर किसी ने सबसे अधिक राजनीति की है तो वह ममता हैं। उन्होंने केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध किया। बंगाल के किसानों को पीएम सम्मान निधि का लाभ नहीं लेने दिया। उन्हें आयुष्मान भारत जैसी महत्वकांक्षी स्वास्थ्य बीमा योजना से वंचित रखा। चुनाव है और किसानों के गुस्से को झेलने का डर है इसलिए पीएम सम्मान निधि लागू करने का संकेत दे रही हैं। लोग सबक सिखाएंगे।"

पश्चिम बंगाल किसान कांग्रेस के अध्यक्ष तपन दास पर मामता बनर्जी सरकार पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य की ममता बनर्जी सरकार दोनों ही किसान विरोधी हैं। केंद्र की नीतियों की वजह से देश भर के किसान आत्महत्या कर रहे हैं और ममता के अत्याचार के कारण किसान लगातार दम तोड़ रहे हैं। बंगाल में किसानों की बदहाली का बड़ा कारण सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी के संरक्षण में बिचौलियों का पालन पोषण है। किसान इनके चंगुल से नहीं बच पा रहे हैं।

18 सितंबर को राज्यसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का जवाब।

पिछले साल 18 सितंबर को राज्यसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की तरफ से केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे पाटिल ने बताया कि फसली वर्ष 2020-21 में 9 सितंबर 2020 तक देश के एक करोड़ 24 लाख किसानों से एमससपी पर धान की खरीद हुई थी।

इस रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल के 8,05,186 किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद हुई, जबकि इससे पहले वर्ष खरीफ सीजन 2018-19 में 7,33,357 से सरकारी दर पर धान की खरीद हुई थी। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की रिपोर्ट देखें तो पश्चिम बंगाल में पैदा होने वाले महज 3% धान की ही खरीद 2019-20 खरीफ सीजन में सरकारी दर पर हुई।


इस बारे में पश्चिम बंगाल सरकार के कृषि सलाहकार प्रदीप मजूमदार ने फोन पर बताते हैं, "फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया (एफसीआई) ने अपने आधिकारिक वेबसाइट पर स्वीकार किया है कि पश्चिम बंगाल चावल उत्पादन के सबसे बड़े राज्यों में से एक है। यहां से करीब ढाई करोड़ टन चावल की खरीद केंद्र सरकार ने की है। महामारी के समय भी राज्य सरकार ने किसानों से धान खरीदने के साथ-साथ 72 घंटे के भीतर उन्हें चेक से पेमेंट किया।"

"पश्चिम मेदिनीपुर जिला और बर्दवान जिला राज्य में सबसे बड़े चावल उत्पादक जिले हैं। राज्य सरकार ने तय प्रणाली के तहत किसानों से बिल्कुल पारदर्शी तरीके से धान की खरीद जारी रखी जिसके कारण उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हुई है और केंद्र सरकार के किसी भी कानून का बंगाल के किसानों पर कोई असर नहीं होता।" प्रदीप बताते हैं।

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.