कारीगर और कच्चे माल की कमी से बंदी के कगार पर मिर्जापुर का लकड़ी उद्योग

कभी कालीन उद्योग की तरह ही मिर्जापुर का लकड़ी उद्योग भी काफी मशहूर था, लेकिन जो पहचान चित्रकूट और वाराणसी के कारीगरों को मिली मिर्जापुर के कारीगरों को नहीं मिल पायी।

Brijendra DubeyBrijendra Dubey   23 March 2021 8:53 AM GMT

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कारीगर और कच्चे माल की कमी से बंदी के कगार पर मिर्जापुर का लकड़ी उद्योगमिर्जापुर के बहुत से कारीगरों ने लकड़ी का काम छोड़ दिया। फोटो: गाँव कनेक्शन

अहरौरा (मिर्जापुर)। एक समय था जब यहां के ज्यादातर घरों में लकड़ी के खिलौने बनते थे, दूर से ही खटखट की आवाज सुनाई पड़ जाती थी, देश भर से व्यापारी यहां से खिलौने खरीदकर ले जाते, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में न ही खिलौने बनाने वाले कारीगार बचे और न ही पहले की तरह यहां पर अब खरीददार आते हैं।

मिर्जापुर जिले का अहरौरा बाजार लकड़ी की कारीगरी का गढ़ माना जाता था, सरदार गुलाब सिंह के यहां पिछली चार पीढ़ियों से लकड़ी की कारीगरी का काम होता आ रहा है, लेकिन नई पीढ़ी अब ये काम नहीं करना चाहती है।

गुलाब सिंह गाँव कनेक्शन से इसका कारण बताते हैं, "बहुत साल पहले अहरौरा ही लकड़ी के खिलौनों का प्रमुख केन्द्र था, यहां से सीखकर कारीगर आज बनारस, हरिद्वार, चित्रकूट, आगरा अन्य बड़े बड़े शहरों में जाकर बस गए, वहां पर भी वही लोग खिलौने बनाते हैं। अहरौरा के बने खिलौने देश के कई जिलों से सप्लाई किए जाते हैं।

यहां पर अब बुजुर्ग ही लकड़ी का काम करते हैं, युवा इस काम को नहीं करना चाहते हें। फोटो: बृजेंद्र दुबे

लकड़ी के लट्टू से लेकर किचन सेट, एक्यूप्रेशर उपकरण, शतरंज और शतरंज की मोहरों की मुंबई से लेकर पंजाब तक आज भी काफी मांग है लेकिन समस्या कारीगरों और उस खास लकड़ी की है, जिससे खिलौने बनाए जाते हैं।

पिछले 50 साल से खिलौना बना रहे कारीगर मधुराम विश्वकर्मा (75 वर्ष) बताते हैं, "पहले इतनी महंगाई नहीं थी, पहले के कारीगर हाथ से काम करते थे, लकड़ी के खिलौने बनाना एक हस्तकला है। कारीगर की बढ़ती कमी होने के कारण समय से खिलौने भी नहीं तैयार हो पाते। एक समय था हमारे यहां एक मशीन पर 25 कारीगर हुआ करते थे। लेकिन आज समय है कि हमारे यहां मात्र छह कारीगर रह गए हैं। अहरौरा में खिलौनों के कारीगर कम हैं, लेकिन मशीनें ज्यादा हैं।"

सरदार गुलाब सिंह बताते हैं कि लकड़ी की कारीगरी में कौरैया लकड़ी सबसे जरूरी होती है, जिससे खिलौना बनाने पर कम मेहनत में आसानी से चमक आ जाती थी, खिलौने शानदार मनमोहक और आकर्षक बनते थे, लेकिन जब से वन निगम बन्द हुआ तब से कोरिया लकड़ी मिलने में परेशानी होने लगी है, जिससे हम लोग अब लिप्टस (यूकेलिप्टस) की लकड़ी का खिलौना बनाते हैं लिप्टस की लकड़ी में इतनी खूबसूरती और चमक नहीं आ पाती। दूसरा कारीगर भी अब ये मेहनत का काम नहीं करना चाहते।

लकड़ी के बहुत से खिलौने पहले दूसरे प्रदेशाें में जाते थे। फोटो: बृजेंद्र दुबे

"आज के पांच साल पहले तक यहां पर करीब 500 कारीगर काम करते थे, अब सौ के कारीगर बचे हैं, अगर ऐसा ही रहा तो ये लोग भी काम छोड़ देंगे, "गुलाब सिंह ने बताया।

स्थानीय खिलौना कारोबारियों के मुताबिक कौरैया की लड़की फिलहाल चित्रकूट जिले में आसानी से मिल जाती है, इसलिए वहां खिलौनों का काम भी बढ़ रहा है। चित्रकूट से मिर्जापुर की दूरी करीब 200 किलोमीटर है, वहां से आने वाली लकड़ी स्थानीय कारोबियों को मिल तो जाती है लेकिन भाड़ा ज्यादा होने के चलते उनकी लागत बढ़ गई है। इसलिए ज्यादातर कारखानों में यूकेलिप्टस का इस्तेमाल होने लगा है हालांकि उसका असर क्वालिटी पर भी पड़ा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सांसदीय क्षेत्र वाराणसी के खोजवा जैसे कई क्षेत्रों में लकड़ी से खिलौने बनते हैं, जहां पर वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित कौशल उन्नयन प्रशिक्षण कार्यक्रम में खोजवा के कश्मीरी गंज की रहने वाली महिलाओं को खिलौने बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। क्या मिर्जापुर में भी ऐसी कोई योजना संचालित हो रही है, इस सवाल के जवाब में गुलाब सिंह बताते हैं, "यहां पर अभी ऐसी कोई योजना नहीं चल रही है।"

जो पहचान वाराणसी के कारीगरों को मिली, वो यहां के कारीगरों को नहीं मिल पायी। फोटो: मिथिलेश धर

एक जनपद एक उत्पाद (ओडीओपी) में चित्रकूट के लकड़ी के खिलौनों को शामिल किया गया है, जबकि मिर्जापुर के कालीन कारोबार को इस योजना में शामिल किया गया है। कारीगरों की माने तो ओडीेओपी में लकड़ी के खिलौनों को भी इसमें शामिल करना चाहिए।

भारत सरकार की तरफ से आयोजित देश में पहली बार वर्चुअल टॉय फेयर 2021 में बनारस के लकड़ी के खिलौने को भी शामिल किया गया। टॉय फेयर 2021 की थीम का लोगो लट्टू रखा गया। इस मौके पर भारतीय खिलौना कारोबार को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, "भारत में अच्छी गुणवत्ता के खिलौने बने, साथ ही उनमे कुछ एजुकेशनल वैल्यू भी हो। हमारे पास लेबर की लागत कम है, आइडिया ज्यादा हैं, और हमारे खिलौने विश्व में जाकर बड़े पैमाने पर बिकें, इस पर हम काम करेंगे।"

बीते साल 2020 में 30 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में देशी खिलौनों को बनाने और लोगों से प्रयोग करने की अपील की थी। उस दौरान उन्होंने वाराणसी के खिलौना बाजार की समृद्धि पर जोर दिया था।

मिर्जापुर मंडल के उद्यान विभाग के मंडलायुक्त वीके चौधरी गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "मिर्जापुर जिले में लकड़ी का काम लंबे समय से हो रहा है, विभाग की कोशिश रहती है कि कारीगरों को सही बाजार मिले, अभी यहां के कुछ कारीगरों ने बनारस में स्टॉल भी लगाई थी।"

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wood toys #mirzapur #story 

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