विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस: राजस्थान में 5 साल में 20 हजार लोगों ने की आत्महत्या, पारिवारिक कारण सबसे बड़ी वजह

दुनिया में कैंसर, एड्स और युद्द और मानव हत्या से होनी वाली मौतों से ज्यादा जानें आत्महत्या की वजह से जा रही हैं। दुनिया में हर 40 सेंकेड में एक आत्महत्या हो रही है।

Madhav SharmaMadhav Sharma   10 Sep 2021 8:23 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस: राजस्थान में 5 साल में 20 हजार लोगों ने की आत्महत्या, पारिवारिक कारण सबसे बड़ी वजह

राजस्थान में हर साल 4500 से अधिक लोग आत्महत्या कर रहे हैं। प्रदेश में 2015 से 2019 के बीच आत्महत्या के मामलों में 31% की बढ़ोतरी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में रोजाना 13 लोग किसी ना किसी कारण से अपनी जिंदगी खत्म कर रहे हैं। भारत में 2019 में 1,39,123 लोगों ने अपना जीवन खुद खत्म किया है। दुनिया में कैंसर, एड्स और युद्द और मानव हत्या से होनी वाली मौतों से ज्यादा जानें आत्महत्या की वजह से जा रही हैं। दुनिया में हर 40 सेंकेड में एक आत्महत्या हो रही है।

दुनियाभर में हर साल 10 सितंबर को आत्महत्या, आत्महत्या के प्रयास के जोखिमों और घटनाओं को रोकने तथा आमजन को संवेदनशील एवं जागरूक करने के लिए 'विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस' मनाया जाता है। इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से इस वर्ष 'विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 2021' की थीम 'कार्य के द्वारा आशा का संचार' रखी गयी है।

एनसीआरबी की 'एक्सीडेंटल डेथस एंड सुसाइडस इन इंडिया' रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में साल 2018 के मुकाबले 2019 में आत्महत्या के मामले 4.56 फीसदी बढ़े हैं। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में जहां 2018 में 4,333 लोगों ने आत्महत्या की। वहीं, 2019 में यह संख्या बढ़कर 4,531 हो गई।

राजस्थान के जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ भूपेश दीक्षित के मुताबिक राजस्थान सरकार की 'क्राइम इन राजस्थान' रिपोर्ट का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि प्रदेश में साल-दर-साल ख़ुदकुशी के मामले बढ़ रहे हैं। 2015 से 2019 के बीच खुदकुशी के मामले 31 फीसदी बढ़े हैं।

दीक्षित बताते हैं, "प्रदेश में बीते कुछ सालों में सामूहिक पारिवारिक आत्महत्या के मामले भी बढ़ रहे हैं। प्रदेश में 2019 में सामूहिक/पारिवारिक आत्महत्याओं के 7 मामलों में कुल 22 लोगों ने अपनी जान दी है। न केवल मानसिक बीमारियां बल्कि सूदखोरी, कर्जा, बेरोजगारी, पारिवारिक समस्याएं, झगड़े, लम्बी बीमारियों से होने वाली परेशानियां, डिप्रेशन, वैवाहिक जीवन में क्लेश, महामारी व युद्ध आत्महत्या के प्रमुख कारण बन कर उभर रहे हैं। दुनियाभर में आत्महत्या मौत के प्रमुख कारणों में से एक है।"

ये हैरान करने वाला आंकड़ा है, लेकिन मलेरिया, एचआईवी/एड्स, स्तन कैंसर, युद्ध एवं मानवहत्या के कारण होने वाली मृत्यु से भी अधिक मृत्यु आत्महत्या के कारण हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार वर्ष 2019 में 15-29 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण आत्महत्या था, जिसपर विश्व समुदाय को तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।

दीक्षित आगे बताते हैं कि ये आंकड़े व हालात सरकार और समाज दोनों को चेताने वाले हैं। राजस्थान में भी आत्महत्या एक जनस्वास्थ्य, सामाजिक एवं आर्थिक समस्या बनकर उभर चुकी है। राज्य सरकार को इस पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।

बननी चाहिए आत्महत्या रोकथाम नीति

प्रदेश में 2015 में 3457, 2016 में 3678, 2017 में 4188, 2018 में 4333 और 2019 में 4531 आत्महत्याएं हुई। इस तरह 2015 से 2019 तक 20,187 लोगों ने खुदकुशी की।

इन मौतों को रोकने के लिए विशेषज्ञ राजस्थान राज्य आत्महत्या रोकथाम रणनीति बनाने की मांग कर रहे हैं। एक्सपर्ट्स और डॉक्टर्स का मानना है कि इससे प्रदेश में सकारात्मक माहौल बनेगा और आत्महत्याओं में कमी आएगी।

"आत्महत्याएं रोकनी हैं तो स्कूल, कॉलेजों और परिवारों तक फैमिली काउंसलिंग सेंटर्स खोलने चाहिए"

आत्महत्याओं की जड़ में बैठी वजहों के बारे में बात करते हुए राजस्थान यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र विभाग से रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. राजीव गुप्ता भारत में पारिवारिक सिस्टम के खत्म होने, उपभोक्तावाद, आर्थिक तंगी और समाज में बीते दशकों में अंदर तक समा गई हिंसा को इसका मुख्य कारण मानते हैं।

वे कहते हैं, "बीते 3-4 दशकों से हमारे परिवारों में शेयरिंग सिस्टम खत्म हुआ है। भले लोग संयुक्त परिवारों में रह रहे हों, लेकिन सुख-दुख में सहभागिता पहले के मुकाबले कम हुई है। इसीलिए इंसान खुद को मुसीबत में पाते ही अकेला समझता है और आत्महत्या की तरफ बढ़ जाता है। इसी तरह बाजार ने हमें सिखा दिया है कि हमें सबसे अच्छा होना है। इस अच्छे होने में बाजार की भूमिका ज्यादा है। इसीलिए जब व्यक्ति खुद को दूसरों से पिछड़ता हुआ देखता है तो उसमें हीन भावना आती है और वो खुदकुशी जैसा कदम उठाता है।"

गुप्ता के मुताबिक अगर आत्महत्याओं के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो पाएंगे कि अलग-अलग पेशों में यह अलग है। उदाहरण के लिए कोई किसान अगर बैंक का लोन नहीं चुका पाएगा तो वह इज्जत या बैंक की कुर्की के डर से आत्महत्या कर लेता है, लेकिन अगर एक बिजनसमैन दिवालिया होता है तो भी उसकी बाकी जिंदगी बेहद ऐश-ओ-आराम में कटती है।

डॉ. गुप्ता आत्महत्याओं को रोकने में सरकार और बाजार से ज्यादा समाज का काम मानते हैं। वे कहते हैं, "खुदकुशी के मामले बढ़ने का कारण सरकारों और बाजार खुद हैं। सरकारों ने सुविधाएं नहीं बढ़ाई, लेकिन उन्हीं सुविधाओं को सफलता का पैमाना बना दिया। इसीलिए अगर आत्महत्याएं रोकनी हैं तो स्कूल, कॉलेजों और परिवारों तक फैमिली काउंसलिंग सेंटर्स खोलने चाहिए। लोगों को मनोवैज्ञानिक रुप से इसके खिलाफ तैयार करना होगा। सरकार ही यह काम कर सकती है।"

मीडिया की है महत्वपूर्ण भूमिका

आत्महत्या की खबरों को कवर करने के मामले में मीडिया की भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस तरह की खबरों को कवर करने के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने कुछ नियम भी बनाए हैं, लेकिन कई बार मीडिया इन नियमों का पालन नहीं करता है। अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या पर टीवी मीडिया की कवरेज इसका हालिया उदाहरण है।

पीसीआई की प्रेस रिलीज नंबर PR/10/19-20-PCI Date-13.09.2019 में इस संबंध में स्पष्ट गाइड लाइन बनाई हुई हैं। विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा साल 2017 में मीडियाकर्मियों के लिए एक मार्गदर्शिता पुस्तक 'प्रेवेंटिंग सुसाइड - अ रिसोर्स फॉर मीडिया प्रोफेशनल अपडेट 2017' भी जारी की गई है। इसका मुख्य मकसद मीडिया के सहयोग से देश में होने वाली आत्महत्याओं को कम करना था। नियमों के अनुसार मीडिया को आत्महत्या की खबरों को रिपोर्ट करते समय निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

• आत्महया की प्रक्रिया और तरीके वर्णन न किया जाए।

• ऐसी भाषा या शीर्षकों का उपयोग न करें जो आत्महत्या को सनसनीखेज बनाता

• आत्महत्या की खबर को अखबार के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित न करें।

• सुसाइड नोट, टेक्स्ट मैसेज, सोशल मीडिया पोस्ट, ईमेल, वीडियो फुटेज आदि का प्रयोग न करें।

• खबर प्रकाशित करते समय (Commit/Committed Suicide) 'प्रतिबद्ध आत्महत्या'/'आत्महत्या की'/'मौत को गले लगाया' जैसे वाक्यों के प्रयोग से बचना चाहिए।

• खबर के अंत में प्रकाशित करें कि आपातकालीन स्थिति में मदद कहां से मिल सकती है, इसके बारे में सटीक जानकारी प्रकाशित करें।

ये देखें- एनसीआरबी की रिपोर्ट: साल 2019 में हर दिन 28 किसानों और 89 दिहाड़ी मजदूरों ने दी जान

ये भी पढ़ें- एक सुसाइड सर्वाइवर की आत्मकथा : अगर मौत मौका नहीं देती, तो ...

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.