जीरो बजट फार्मिंग एक्सपर्ट अब आंध्र प्रदेश सरकार को देंगे प्राकृतिक खेती की सलाह

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जीरो बजट फार्मिंग एक्सपर्ट अब आंध्र प्रदेश सरकार को देंगे प्राकृतिक खेती की सलाहआंध्र प्रदेश सरकार ने पालेकर को कृषि सलाहकार के रूप में नियुक्त किया

लखनऊ। आंध्र प्रदेश की सरकार ने जीरो खेती के एक्सपर्ट सुभाष पालेकर को सलाहकार के रूप में नियुक्त किया है। इसी के साथ सरकार ने उन्हें अमरावती में फार्मिंग यूनिवर्सिटी शुरू करने के लिए फंड देने की बात भी कही है। अब वे राज्य सरकार को जैविक खेती के लिए योजनाएं और पॉलिसी में सलाह देंगे।

पालेकर ने बीते बुधवार को मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से उनके आवास में मुलाकात की। सरकार ने इस दौरान 100 एकड़ जमीन और 100 करोड़ रुपए भी यूनिवर्सिटी के लिए निवेश करने का वादा किया।

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती में एक बड़ा नाम हैं। पिछले वर्ष उन्हें कृषि क्षेत्र में योगदान देने के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। महाराष्ट्र के विदर्भ से ताल्लुक रखने वाले सुभाष ने अपने पिता के साथ ही खेती करना प्रारंभ किया। उनके पिता तो प्राकृतिक खेती के ही पक्षधर थे लेकिन कृषि स्नातक पालेकर रासायनिक खेती के सम्मोहन से बच नहीं पाए।

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अपने खेतों में रासायनिक खेती शुरू करने के कुछ समय बाद ही उनको वास्तविकता का एहसास हो गया। रासायनिक खेती से खेतों का उपजाऊपन तो कम हुआ ही उत्पादन भी कम होने लगा। इसके साथ ही साथ कई अन्य समस्याएं भी आने लग गई। यहीं से पालेकर ने बिना प्रकृति को नुकसान पहुंचाए कृषि करने का निर्णय लिया।

जीरो बजट ककहरा सीखें सुभाष पालेकर से

1989 से 1995 के बीच उन्होंने प्राकृतिक खेती के लिए अपने प्रयोग शुरू किए। गाय के गोबर और गौमूत्र के अलग-अलग अनुपात में, कई दूसरी वस्तुओं के साथ मिश्रित करके, अलग-अलग समयावधि और समयांतराल में, विभिन्न मात्राओं में वगैरह प्रकार से उन्होंने कई प्रयोग किए। पालेकर ने एक ऐसा फार्मूला तैयार कर लिया जिसमें मृत मिट्टी को भी जीवन प्रदान करने की क्षमता थी।

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पालेकर जी ने अपने इस फार्मूले को जीवामृत नाम दिया। पालेकर जी के अनुसार जीवामृत में अद्भुद शक्ति है। जीवामृत का प्रयोग खेतों में करने से बाहर से अन्य कोई खाद डालने की जरूरत ही नहीं है।

कृषि-ऋषि सुभाष पालेकर को पद्मश्री सम्मान

पालेकर का समर्पण खेती के लिए इतना है कि वे महीने में पांच-छह कार्यशालाएं करते हैं। इन सभी कार्यशालाओं को सेवाकार्य और किसान हित के लिए करते हैं और इसके लिए वो कुछ भी पारिश्रमिक नहीं लेते हैं। उन्होंने हिंदी, अग्रेजी और मराठी में लगभग 20 से ज्यादा पुस्तकें लिखी है।

     

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