एक संभावना भारत के जागरण की

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एक संभावना भारत के जागरण कीgaonconnection

चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम से विख्यात इस पृथ्वी के जिस भू भाग पर हम सभी निवास कर रहे हैं यह भारत के नाम से  जाना जाता है। शायद ही हमारी आगामी पीढ़ी सम्राट भरत के बारे में कुछ जानती हो, क्योंकि अब तक भारत के वैभवशाली गौरवान्वित करने वाले इतिहास को जिस तरह कुचला जाता रहा, उससे सम्राट भरत और उनके नाम पर पड़े भारत के नामकरण से जुड़ी सारी किवदंतियां और कथाएं अंतरिक्ष में प्रस्थान हेतु विसर्जित की जा चुकी थीं।

धन्य है ,वह महान योगी पुरुष, जिसके भागीरथी प्रयास से आज समूचा विश्व जो लगभग पूरी पिछली सदी से योग के लाभों को अनुभव कर रहा था, ने एक स्वर में भारत की इस अनुपम विरासत और उपहार को कम से कम वर्ष का एक दिन समर्पित किया। हालांकि योग और अध्यात्म को किसी एक दिन याद करके विस्मृत कर देना न ही आसान है और न ही पर्याप्त, किन्तु फिर भी जो लोग अभी तक भारत की इस विरासत से अंजान रहे, उन्हें इससे जुड़ने और भारत के वास्तविक सन्देश को जानने और समझने का एक बहुत बड़ा अवसर अवश्य उपलब्ध कराएगा एवं भारत की मनीषी संत परम्परा को उसके इस समूची वसुधा, पृथ्वी के प्रति स्वयंमेव विरासत एवं परम्परा में प्राप्त उत्तरदायित्व का बोध भी।

मैं अप्रैल 2013 में नॉर्वे के प्रवास पर था, लक्ष्य एक ही था, अपनी योग एवं अध्यात्म धरोहर का प्रचार प्रसार। मेरे इस बेहद ही अल्पकालीन प्रवास के दौरान नॉर्वे के होर्टन शहर के प्रसिद्ध स्थानीय पादरी एवं लेखक जान पेत्रुस ने कुछ प्रबुद्ध लोगों को बुलाकर एक बेहद ही विशेष एवं व्यक्तिगत अध्यात्म विषयक गोष्ठी रखी थी। उक्त गोष्ठी का मुख्य वक्ता एवं केंद्र बिंदु मैं ही था। सारे लोग मुझसे उम्र में मेरे पिताजी एवं दादाजी जैसे रहे होंगे। मेरी उम्र मात्र 27 वर्ष और कुछ दिन ही थी। चर्चा जैसे ही शुरू हुई, मेरा परिचय एक योगी और अध्यात्म विशेषज्ञ के तौर पर मुझे आमंत्रित करने वाली मेरी मित्र द्वारा करवाया गया। बार-बार इंडिया और इंडियन कहा जाना मुझे अजीब सा लग रहा था। वैसे अक्सर ही हम खुद को इंडियन कहने पर बड़ा गर्व महसूस करते हैं, किन्तु उस दिन न जाने क्यों मुझे बात कहीं गहरे खटक रही थी और चुभ रही थी।

मेरा परिचय सत्र ख़त्म होने के उपरान्त मैं अपनी बात रखने जैसे ही खड़ा हुआ। एक अजीब से भावनात्मक उबार ने मेरे आंसुओं की बंद पड़ी गठरी को जैसे खोल दिया हो। मैं बड़े ही भावुक स्वर में बोला, ‘कृपया मुझे इन्डियन न कहकर, मुझे भारतीय कह पुकारा जाए, तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी। वैसे एक योगी के लिए शाब्दिक अंतर कोई मायने नहीं रखता, फिर भी राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान को जगाने वाले महापुरुष की जो गाथा मैंने पढ़ रखी थी, वह मुझे उस दिन झकझोर रही थी, हालांकि उन सभी लोगों के सामने “भारतीय” शब्द नया था। इससे पहले उन्होंने कभी भी इस शब्द को नहीं सुन रखा था। मैंने बिना रुके बोलना शुरू किया, “मेरे देश का वास्तविक नाम भारत है, मैं हिन्दू हूं, हिन्दू हमारी राष्ट्रीयता की पहचान है, कृपया मेरे हिन्दू कहने को किसी भी धर्म विशेष से जोड़कर न देखा जाए, क्योंकि जैसा मैं जानता हूं और स्वयं अभी तक अनुभव किया है।

उसके अनुसार हिन्दू कोई धर्म न होकर हमें हमारे देश, सभ्यता द्वारा विरासत में प्राप्त परम्परा है, जिसके बलबूते हम समूचे विश्व को एक पारिवारिक प्रेम के सूत्र “वसुधैव कुटुंबकम” में पिरोने का स्वप्न लेकर अनंतकाल से निरंतर चले आ रहे हैं, सिर्फ इसी एक लक्ष्य को लेकर मैं भी आप लोगों के मध्य उपस्थित हूं। हम सभी मानव हैं और हमारी भारतीय परम्परा में हमें जिस धर्म की शिक्षा की दी गई, वह धर्म “सनातन मानव धर्म” कहलाता है। मानव होने के चलते यह धर्म न केवल हम भारतीयों का है। अपितु हम सभी का एकमात्र धर्म है। इससे अलग तमाम मत, मतांतर सिर्फ पंथ विशेष हैं, जिन्हें हम उच्च जीवन स्तर तक पहुंचाने वाले मार्ग कह सकते हैं, जिस प्रकार आप जीसस के बताए हुए मार्ग से उस सत्य तक पहुंचने का कार्य कर रहे हैं, कोई और मानव समुदाय पैगम्बर मोहम्मद साहब के बताए मार्ग पर चलकर और हमारे भारत में तो अनगिनत संतों और महापुरुषों की देशनाएं और मार्ग विद्यमान है, जो परम सत्य और एक सत्य को कैसे प्राप्त किया जाए।

इस हेतु शिक्षा प्रदान करते हैं। भारत का नाम जिस चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर पड़ा, उस भरत शब्द की व्याख्या मेरे पिताजी, भारत के प्रसिद्ध कवि गोस्वामी तुलसीदास की एक चौपाई के द्वारा बचपन से ही मेरे सामने करते आए हैं, (मैं निडर होकर तुलसीदास की इस चौपाई को वहां 20 से 25 लोगों के मध्य लय बद्ध तरी “विश्व भरण पोषण कर जोई, ता कर नाम भरत अस होई” चौपाई हिंदी में थी, साधारण सी बात हैं, मुझे अंग्रेजी में अनुवादित करके बताना पड़ा, “मैं उस भारत देश का नागरिक हूं, जिस भारत देश का नाम सम्राट भरत के नाम पर पड़ा, “भरत” जिसका शाब्दिक अर्थ ही है, वह व्यक्ति या शक्ति या देश, जो सम्पूर्ण विश्व के भरण-पोषण की क्षमता खुद में समेटे हुए हैं, “भरत” कहलाने के योग्य है, वही “भारत” कहलाता है।

कृष्ण ने गीता के दौरान अर्जुन को भी कई बार भारत कहकर सम्बोधित किया, भारत कोई शब्द नहीं हैं, बल्कि वह शक्ति है, जो अपने अंदर एक विशाल ऊर्जा, ज्ञान और प्रकाश को समेटे हुए हैं, जिसकी चिंगारी हर पल, हर जाग्रत संत और पुरुष के अंदर एक ज्वाला बनकर धधक रही है। बस एक पल की देर है, जिस पल यह चिंगारी ज्वालामुखी में बदलेगी, संसार में कोई भी ऐसी पीड़ा शेष न रहेगी, जिसका समुचित उपचार और निदान न हो। भारत का अध्यात्म और योग वही ज्ञान और विज्ञान है, जो संसार की सारी लौकिक एवं अलौकिक समस्याओं का समूल निदान एवं उपचार प्रस्तुत करता है।

हाँ, मुझे गर्व है, आप सभी से कहते हुए, मैं भारतीय हूं, मेरे देश का नाम भारत है। हां, हां मुझे गर्व है, कहते हुए, मैं हिन्दू भूमि में निवास करने के चलते हिन्दू सम्बोधन से पुकारे जाने पर खुद को गौरवान्वित अनुभव करता हूं, क्योंकि मुझे पूरा बोध है। हिन्दू संकुचित मानसिकता से ग्रसित लोगों का समूह नहीं, बल्कि वह विचारधारा है, जो जीवन को सम्पूर्ण आयामों से स्वीकारती हुई। हमें सभी के प्रति सम्मान और प्रेम का भाव रखना सिखलाती हैं। मुझे आप सभी को बताते हुए बेहद हर्ष हो रहा है कि मैं उस सत्य सनातन धर्म का अनुयायी हूं, जो विवादों का विषय नहीं, वरन वह सत्य है, जो प्रत्येक जीवधारी के अंदर पवित्र आत्मा की उपस्थिति को न केवल स्वीकार करता है, अपितु पूर्ण वैज्ञानिक तरीके से प्रमाणित करने की क्षमता भी रखता है।

योग केवल आध्यात्मिक चेतना के जागरण का कार्य नहीं करता, अपितु उस सत्य को स्वीकारने की दिशा हेतु भी हमारा मार्गदर्शन करता है, जिस सत्य का अनुभव करते ही, हम अपने मनुष्य होने पर गौरव महसूस करने लगें। मनुष्य को मनुष्यता से जोड़ने की ही एक कड़ी योग है, आइये एक ऐसे ज्ञान और विज्ञान की खोज हेतु हम भी अपना एक कदम आगे बढ़ाएं और योग करें। आप सभी को योग अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

(लेखक विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल एवं अध्यात्म केंद्र खजुराहो के प्रसिद्ध युवा योग एवं अध्यात्म विशेषज्ञ हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

 

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