'बाहरियों ने छीन लिया अयोध्या का अमन-चैन'
रामजन्म भूमि विवादित स्थल से महज एक किमी दूर बन रही मस्जिद भाईचारे की मिसाल, संत ज्ञानदास ने दी मस्जिद बनाने के लिए ज़मीन
Manish Mishra 26 April 2019 11:00 AM GMT

अयोध्या (उत्तर प्रदेश)। रामजन्म भूमि विवादित स्थल से महज एक किमी दूर एक मस्जिद का निर्माण पूरी अयोध्या के मन की बात दर्शाता है।
जिस ज़मीन पर यह मस्जिद बनाई जा रही है, उसे संत ज्ञानदास ने मुस्लिम समुदाय को दी है और मुस्लिम समुदाय के लोग इसे चंदे से बनवा रहे हैं। इसके कारीगर और मजदूर हिन्दू हैं।
मस्जिद में जब अजान होती है, तो वहीं सड़क के दूसरी ओर मंदिर में भजन होते हैं। एक-दूसरे के लोगों के प्रति न बैर दिखता है न दुर्भावना।
यह तस्वीर उसी अयोध्या की है जहां का राम जन्म भूमि का विवाद हर चुनाव में दोनों कौमों में ध्रुवीकरण की धुरी बनके खड़ा हो जाता है।
सफेद और हरे टाइल्स लगी मस्जिद के प्रांगण में खड़े बाबूं खां बताते हैं, "जब पहले से जर्जर एक मस्जिद का जीर्णोद्धार कराने या तोड़ने के लिए जिला प्रशासन ने महंत ज्ञानदास जी को नोटिस भेजा तो उन्होंने मुझे बुलाया और मस्जिद बनाने के लिए कहा। यहां तक पैसे से सहयोग करने को भी कहा।"
उसके बाद बाबू खां आगे बताते हैं, "हमारे समाज के कट्टरपंथी लोगों ने कहा कि मस्जिद में किसी हिन्दू का पैसा नहीं लग सकता। उसके बाद ज्ञानदास जी ने कहा कि आप लोग झगड़िए मत इसे मुस्लिम समुदाय के चंदे से बनवा लीजिए। जिसके बाद हम इसे बनवा रहे हैं, तीन साल हो गए हैं बनते-बनते।" बाबू खां मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी से जुड़े हैं।
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इसी बीच बगल के मंदिर में बज रहे भजन को सुनने के लिए इशारा करते हुए बाबू खां कहते हैं, "यहां कोई झगड़ा नहीं है, बाबरी मस्जिद के मामले को जानबूझकर खींचा जा रहा है। अयोध्या के अंदर मजहब को लेकर कोई विवाद नहीं।
देश की राजनीति पर असर डालने वाली अयोध्या खुद बदहाल है, यहां के लोगों को मंदिर-मस्जिद से पहले रोजगार और रोजी-रोटी का जुगाड़ चाहिए। अयोध्या की अर्थव्यवस्था यहां होने वाले तीन मेलों पर टिकी हुई है।
मस्जिद के ही प्रांगण में बैठे जगदंबा शरण तिवारी (84 वर्ष) कहते हैं, "न हिन्दू आया है, न मुसलमान आया है, आया है तो बस इंसान आया है," आगे कहते हैं, "अयोध्या के बच्चे शिक्षित हों, नौजवानों को रोजी-रोटी मिले, रोजगार मिले। हम तो यही चाहते हैं।"
अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने के बाद से ही हालात बिगड़ने लगे। बाहरी नेताओं के द्वारा खोदी गई नफरत की खाईं लगातार चौड़ी होती गई।
"अयोध्या के अंदर मजहब को लेकर कोई विवाद नहीं है, हम लोग चाहते हैं कि जो सनातनी भाईचारा है वह बरकरार रहे। लेकिन ये राजनैतिक पार्टियां नहीं चाहतीं, मस्जिद परिसर में बैठे शैलेन्द्रमणि पांडेय कहते हैं, "अयोध्या के आसपास कोई उद्योग नहीं, कल कारखाना नहीं। यहां औद्योगिक विकास चाहिए, शैक्षिक विकास चाहिए।"
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देश की राजनीति में ध्रुवीकरण की कोशिश तभी से शुरू हो गई थी जब 1989 के चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हिन्दुओं से जिताने की अपील करते हए पहली चुनावी सभा अयोध्या से शुरू की और वादा किया कि कांग्रेस सत्ता में आई तो रामराज्य लेकर आएगी।
हालांकि कांग्रेस को इसका फायदा नहीं मिला लेकिन उसके बाद से ही भाजपा, वीएचपी व अन्य दलों ने राम मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन करने शुरू कर दिए। भाजना राम मंदिर के सहारे दो सीटों से 180 तक पहुंच गई। लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती जैसे नेता हिन्दुत्व का चेहरा बन कर उभरे।
"जबसे विवाद होना शुरू हुआ है, तबसे हिन्दू-मुसलमानों में दरारें पड़नी शुरू हुईं, इससे पहले दोनों कौम के लोग सीने से सीना मिलाकर रहते थे। पहले हिन्दू-मुसलमान की दीवार गिराई जाए, उसके बाद राजनीति की जाए। राम मंदिर को पराठा सेंकने के लिए स्टोव बना लिया है," जगदंबा शरण तिवारी कहते हैं।
भाजपा अपने घोषणा पत्र में इस बार भी संवैधानिक दायरे में रहते हुए राम मंदिर के निर्माण की बात कही है। लेकिन अयोध्या के लोग इससे आगे निकल चुके हैं।
"अयोध्या के लोग मंदिर-मस्जिद के नाम पर कोई विवाद नहीं करना चाहते। यहां की अर्थव्यवस्था मेलों से चलती है, और अगर कोई विवाद होता है, तो तीर्थयात्री सशंकित हो जाता है और आने से परहेज करता है। इसका असर यहां के लोगों की रोजी रोटी पर पड़ता है। आधी अयोध्या जेलखाना बन के रह गई है," शैलेन्द्र मणि पांडेय कहते हैं।
अयोध्या में ज्यादातर दुकानदार पूजापाठ का सामान बेचते हैं, और मुस्लिम दुकानदार के हिन्दू ग्राहक हैं, तो वहीं हिन्दू दुकानदारों के मुस्लिम ग्राहक होते हैं। अगर कोई फसाद होता है तो इसका सीधा असर उनकी रोजी-रोटी पर पड़ता है।
कपड़े सिलने की दुकान चलाने वाले बाबू खां पहले राम लला के कपड़े भी सिलते रहे हैं। वह बताते हैं, "यह सब नेताओं की साजिश होती है जो भी अयोध्या में होता है। बाहर के लोग आगे शहर का अमन-चैन छीन कर चले जाते हैं," बाबू खां कहते हैं। वहीं बाबू खां मुस्कराते हुए एक और बदलाव बदलाव बताते हैं, "इधर भगवा रंग के कुर्ते ज्यादा सिलने के लिए आ रहे हैं।"
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