कई गांवों के किसान सिंचाई को तरसे
गाँव कनेक्शन 14 Oct 2016 9:09 PM GMT

लखनऊ। खेती किसान की रोजी रोटी होती है। खेती करके ही किसान अपने परिवार को पालता है, लेकिन खेती के लिये गांव में सिचाई व्यवस्था ही न हो तो ये समस्या किसानों के जीवन पर सवाल पैदा करती है। यही दर्द सरोजनी नगर के कुछ गांव बयां करते हैं। सिचाई के एवज में इन गांवो मे केवल चन्द हैंडपंप ही दिखाई पड़ते हैं। इन गांवो में धान जैसी खेती न के बराबर होती है।
निजी साधनों से करते हैं सिंचाई
नरेरा, मिर्जापुर, दयाल खेड़ा, कल्लन खेड़ा, पारा खेड़ा, बेंती जैसे गांव सिंचाई व्यवस्था के नाम पर बदहाल हैं। लोग अपने निजी साधनों से सिचाई करते है। वहीं कुछ किसान आर्थिक तंगी के चलते निजी साधनों से भी धान की खेती नही कर पाते। सिंचाई की समुचित व्यवस्था न होने के चलते धान की खेती महज 10 से 20 बीघे मे हो पाती है। कम पैदावार होने के नाते धान की खरीद और बिक्री गांव के ही सेठों द्वारा औने पौने दामों में कर दी जाती है। इस वजह से गांव के लोग गेहूं और उरद की खेती पर्याप्त मात्रा में करते हैं। क्योंकि इन फसलों में सिंचाई न के बराबर ही होती है।
नहीं हैं गाँव के आस-पास नहरें
गांव की इस समस्या का कारण गांव के आसपास नहरों का न होना है। बेंती गांव संदीप अवस्थी बताते हैं कि गांव के पास ही नहर है जो वर्षों से सूखी पड़ी है। गांव के आसपास तालाब भी हैं लेकिन वो गंदगी से भरे हैं। जिस कारण गांवो मे बीमारियां घर कर रही हैं। गेहूं की पैदावार अच्छी होती है इसलिये अधिकतर किसान इसी खेती पर निर्भर हैं। आजकल जहां गन्ने और मेन्थाल की खेती दूसरे गांवो के लिये रामबाण साबित हो रही है। वहीं ऐसे गांवो मे पानी के अभाव के कारण लोग इन फसलों से वछिंत दिखायी पड़ रहे हैं। धान की खेती के लिये बेंती गांव में लोग पूरे गांव में लगे एक ही हैण्डपम्प का सहारा लेते हैं। ग्राम प्रधान का कहना है कि गांव के लिये दो हैण्डपम्प और लम्बित हैं जो कि जल्द ही लगा दिये जायेंगें। गांवो की इस अव्यवस्था के लिये जिम्मेदार कहीं न कहीं प्रदेश सरकार को ही माना जा रहा है।
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