मैगलगंज: यहाँ का फेमस गुलाब जामुन अब जगह की पहचान है
गुलाब जामुन हो या रसगुल्ला मीठे का शौकीन इन्हें खाने से खुद को शायद ही रोक पाता है, ऐसा ही मशहूर है लखीमपुर खीरी के मैगलगंज का गुलाब जामुन, जिसे लेने के लिए लाइन लगी रहती है।
गाँव कनेक्शन 4 Aug 2023 1:04 PM GMT
यहाँ से गुजरते हुए अचानक एक तेज़ मीठी सी ख़ुशबू हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करती है। जैसे ही उस तरफ नज़र जाती है एक बोर्ड टंगा दिखता है जिसपर लिखा है- "मैगलगंज में आपका स्वागत है गुलाब जामुन खाकर जाइएगा"।
राजधानी लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर दूर लखीमपुर खीरी में पड़ता है एक छोटा सा कस्बा- मैगलगंज, जहाँ का गुलाब जामुन काफी मशहूर है। यहाँ की दुकानों पर आपको लोग कतार में लगे दिख जाएँगे।
राहुल गुप्ता चौथी पीढ़ी के हैं जिनकी यहाँ गुलाब जामुन की दुकान हैं, राहुल कहते हैं, "हमारी दुकान 1941 से यहाँ पर है जिसे मेरे दादा धनपाल गुप्ता ने शुरू किया था और मैं चौथी पीढ़ी का हूँ। मैगलगंज गुलाब जामुन की वजह से ही जाना जाता जिस दिन मैगलगंज में गुलाब जामुन की दुकान बन्द हो जाये, तो मैगलगंज में कुछ भी नहीं हैं, सिर्फ एक गाँव है पुराना सा।"
हार्दिक मिष्ठान भंडार, सुंदर मिष्ठान भंडार, श्री गणेश मिष्ठान भंडार और भी कई अलग-अलग नामों से चलने वाली यहाँ की सभी दुकानों के समाने लगे बोर्ड में एक बात लिखी है, 'मशहूर गुलाब जामुन की पुरानी दुकान।'आधा किलोमीटर की बाज़ार में कम से 25 से अधिक दुकानें हैं।
इन्हीं दुकानों में से एक बलबीर सिंह की भी है, बलबीर गुलाब जामुन की खासियतें गिनाते हुए कहते हैं, "आप मुँह में चम्मच से काट के गुलाब जामुन जैसे रखेंगे वो गायब हो जायेगा।"
वो आगे कहते हैं, "गाय और भैंस के दूध का बना मिक्स खोया होता हैं, उसको मिक्स कर लेते हैं, हाथ से खूब मलने के बाद ज़रूरत के हिसाब से सोडा डाल देते हैं। अब इसमें मैदा मिलाकर इसे आटे की तरह गूँथ लेते हैं, इसके बाद छोटी छोटी लोइ काटी जाती हैं, गोल करने के बाद उसको कढाई में डालते हैं।"
"अब इसे धीमी आँच पर तला जाता है, गुलाबी रंग होने के बाद इसे आँच से उतारकर चाशनी में डाल देते हैं। चाशनी इसकी एक तार की बनती है, उसमें डुबोने के बाद अच्छे से फूल जाता है। बलबीर आगे कहते हैं, " हम 20 साल के थे, तब हमने ये काम शुरु किया था, और यहाँ लाल जी गुप्ता थे उन्ही से हमने सीखा था । उन्हीं ने हमको बताया था और उनके बाबा श्याम लाल गुप्ता इसे मशहूर करके गए थे।"
आखिर इस जगह को मैगलगंज क्यों कहा जाता है, इस सवाल पर राहुल गुप्ता कहते हैं, "यहाँ पर पहले हमारे बाबा लोग बताया करते थे एक अंग्रेज था जिसका नाम लॉर्ड मैकाले थे, उन्हीं के नाम पर इसका नाम रखा गया था, जो बाद में मैगलगंज हो गया।" राहुल के दादा धनपाल खादी कुर्ता और टोपी पहना करते थे और दुकान का सारा हिसाब कागज़-कलम से होता था। वहीं राहुल सारा लेखा-जोखा अपने कंप्यूटर में रखते हैं।
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