"भूखे बच्चों को संभालना मुश्किल हो जाता है" - यूपी में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की फिर से पके भोजन को शुरू करने की मांग

उत्तर प्रदेश की आंगनवाड़ियों में बच्चों को गर्म पका हुआ भोजन परोसे हुए दो साल से ज्यादा समय बीत चुका है। हालांकि अधिकांश अन्य राज्यों ने महामारी के बाद फिर से इसे शुरू कर दिया गया है। लेकिन भारत का सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में अभी भी सूखा राशन बांटा जा रहा है, जबकि राज्य में कुपोषित बच्चों की संख्या काफी ज्यादा है। राज्य सरकार ने आश्वासन दिया है कि जनवरी 2023 से गर्म भोजन परोसना शुरू कर दिया जाएगा।

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शाहजहांपुर/वाराणसी/बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। रेनू देवी उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में सरकारी प्रारंभिक देखभाल केंद्र 'आंगनवाड़ी'में काम करती हैं। उनका पूरा दिन खाने के लिए रोते बच्चों के शोर के बीच गुजरता है।

"वे भूखे हैं, लेकिन हम उन्हें क्या खिलाएं" उन्होंने बच्चों को शांत करने की कोशिश करते हुए सवाल किया। भवल खेड़ा गाँव में काम करने वाली रेनू देवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बच्चे उस समय काफी खुश थे, जब उन्हें आंगनवाड़ी में ताजा पका हुआ भोजन दिया जाता था। लेकिन महामारी के बाद यह बंद हो गया और अब हमें बांटने के लिए सिर्फ सूखा राशन मिलता है।"

उनके मुताबिक, रोजाना चार घंटे बच्चे आंगनवाड़ी में उनकी देखरेख में रहते हैं।

उन्होंने आगे कहा, "भूखे बच्चों की देखभाल करना मुश्किल है। जब उनके माता-पिता बच्चों को लेने आते हैं तो उनके हिस्से का सूखा राशन उन्हें दे दिया जाता है।" सूखे राशन किट में आम तौर पर दाल, चावल, चना और दलिया होता है।

भावक खेड़ा गाँव का आंगनवाड़ी केंद्र उत्तर प्रदेश के उन 189,309 केंद्रों में से एक है, जिन्होंने दो साल से अधिक समय से गर्म पका हुआ भोजन परोसना शुरू नहीं किया है।

भवल खेड़ा गाँव में काम करने वाली रेनू देवी रोते बच्चे को चुप कराते हुए।

मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी की शुरुआत में देश भर की आंगनवाड़ियों को बंद कर दिया गया और सभी राज्य सरकारों ने भारत सरकार की एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना के तहत लाभार्थियों को सूखे राशन की सप्लाई शुरू कर दी थी।

ICDS देश में 0-6 साल की उम्र के 15.8 करोड़ से ज्यादा बच्चों (2011 की जनगणना) और गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माताओं की देखभाल और उनके विकास के लिए दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। यह देश के सभी जिलों में फैले 13 लाख 60 हजार कार्यात्मक आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से (जून 2108 तक) छह सेवाएं प्रदान करता है: पूरक पोषण, प्री-स्कूल गैर-औपचारिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और रेफरल सेवाएं।

महामारी के बाद ज्यादातर राज्य सरकारों ने अपने आंगनवाड़ी केंद्रों पर गर्म पका हुआ भोजन फिर से देना शुरू कर दिया है। कुछ ने अपने दैनिक मेनू में अधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थ (जैसे बाजरा) शामिल किए हैं ताकि कोविड-19 के बाद कैलोरी के नुकसान और बढ़ते कुपोषण की कमी को पूरा किया जा सके।

भले ही आंगनवाड़ी खुल गई हैं और तीन से छह साल की आयु के बच्चे शुरुआती शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के लिए रोजाना (सोमवार से शनिवार) इन केंद्रों पर आते हो, लेकिन उत्तर प्रदेश अभी भी सूखा राशन ही बांट रहा है।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की शिकायत है कि उन्हें केंद्र में पके भोजन के बिना छोटे बच्चों की देखभाल करने में मुश्किलें आ रही हैं।

उत्तर प्रदेश में 189,309 केंद्रों पर दो साल से अधिक समय से गर्म पका हुआ भोजन परोसना शुरू नहीं किया है।

शाहजहाँपुर के काजीपुर आंगनवाड़ी केंद्र में काम करने वाली ज़ैनब बेगम ने कहा कि यह काफी मुश्किल होता जा रहा है। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारे केंद्र में आने वाले बच्चे छोटी उम्र के होते हैं। वैसे तो हमें उन्हें एक केला या कोई अन्य ताजा फल और पौष्टिक भोजन देना चाहिए। लेकिन बच्चों को खिलाने के लिए केंद्र पर ऐसा कोई खाना होता ही नहीं है। जब वे खाने के लिए रोते हैं, तो हम उन्हें घर वापस भेज देते हैं।"

इस साल सितंबर में गाँव कनेक्शन ने वाराणसी, बाराबंकी और शाहजहांपुर जिलों के कई आंगनबाड़ी केंद्रों का दौरा किया। वर्कर्स और हेल्पर्स ने शिकायत की कि भोजन की सप्लाई काफी कम की जाती है। कुछ आंगनवाड़ी केंद्रों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं थीं, मसलन पक्का कमरा या छत का पंखा या फिर टॉयलेट।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी जिले में 3,914 आंगनवाड़ी केंद्र हैं। काशी विद्यापीठ प्रखंड में ऐसे 574 केंद्र हैं। उनमें से कुछ अच्छी तरह से बनाए हुए हैं, लेकिन कुछ की हालत काफी खराब थी।

मंडुआडीह रेलवे स्टेशन के पास मालिन बस्ती में एक आंगनवाड़ी केंद्र एक पेड़ के नीचे चल रहा था। केंद्र की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता माया राय गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "जब भी बहुत गर्मी होती है या बहुत अधिक बारिश होती है, हम छुट्टी कर देते हैं।"

उन्होंने कहा, "हमें रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ें अपने साथ लानी पड़ती हैं और उन्हें अपने साथ ही वापस भी ले जाना पड़ता है क्योंकि हमारे पास उन्हें रखने की जगह नहीं है।" इस आंगनबाड़ी में तीन से छह साल की उम्र के 33 बच्चे हैं। वह कहती हैं, "चूंकि यह बाहर एक पेड़ के नीचे चलाया जा रहा है, कई माता-पिता अपने बच्चों को यहां नहीं भेजते हैं। अक्सर मैं और मेरे सहकर्मी घर-घर जाकर बच्चों को यहां लेकर आते हैं।"

कुपोषण: साइलेंट महामारी

विश्व स्तर पर अनुमानित 14.9 करोड़ बच्चे नाटे हैं और 5 करोड़ गंभीर रूप से कुपोषित हैं। 45 प्रतिशत बच्चों की मौत की वजह किसी न किसी तरीके से कुपोषण से जुड़ी होती है।

कोविड-19 महामारी ने इन समस्याओं को और बढ़ा दिया है। इसकी वजह से जहां एक तरफ खाद्य आपूर्ति प्रभावित हुई है वहीं टीकाकरण पर भी खासा असर पड़ा है। द लांसेट के अनुसार, "कोविड-19 महामारी की वजह से दुनिया भर में लोग पोषण की कमी से जूझ रहे हैं, विशेष रूप से निम्न-आय और मध्यम-आय वाले देशों (LMIC) में। इसका सबसे बुरा असर छोटे बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।"

जुलाई 2021 में एक सवाल का जवाब देते हुए, केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद के निचले सदन को सूचित किया था कि कुल 927,606 बच्चे हैं जिन्हें गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) के रूप में पहचाना गया है।

उन्होंने सदन को बताया कि इनमें से 398,359 बच्चे उत्तर प्रदेश से हैं।

इसके अलावा, 2019-21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, ग्रामीण उत्तर प्रदेश में 5 वर्ष से कम उम्र के 41.3 प्रतिशत बच्चे नाटे थे (उम्र के हिसाब से कम लंबे), जबकि 5 वर्ष से कम उम्र के 33.1 प्रतिशत बच्चे कम वजन (उम्र के हिसाब से कम वजन) के हैं। राज्य में 5 वर्ष से कम उम्र के 17 प्रतिशत ग्रामीण बच्चों को वेस्टेड (लंबाई के अनुसार वजन) के रूप में वर्गीकृत किया गया था, और 7.1 प्रतिशत गंभीर रूप से वेस्टेड पाए गए थे।


राज्य में उच्च कुपोषण के बावजूद 'पोषण' (समग्र पोषण के लिए प्रधानमंत्री की व्यापक योजना) मिशन के लिए आवंटित फंड का इस्तेमाल करने में उत्तर प्रदेश सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है। राज्य अपने फंड का 66.27 प्रतिशत उपयोग करने में विफल रहा (2017-18 से 2020-21 तक, नक्शा देखें)

इसने अभी तक आंगनवाड़ी केंद्रों में गर्म भोजन फिर से शुरू नहीं किया है। लाभार्थियों - छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों, और गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माताओं - को सूखा राशन वितरित किया जा रहा है।


सूखा राशन बच्चों का कुपोषण दूर करने में सहायक नहीं

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने बताया कि पके हुए खाने की बजाय सूखा राशन (कच्ची दाल, चावल, चना और डेली) बांटे जाने से यह गारंटी देना मुश्किल है कि उसे बच्चे वास्तव में खा भी रहे हैं या नहीं।

वाराणसी के आदर्श बाल विद्यालय में काम करने वाली मरुशी ने कहा, " इस तरह के खाने में पूरा परिवार शामिल होता है और बच्चों को जरूरी कैलोरी और पोषण नहीं मिल पाता है।" उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि अब उन्हें जो सूखा राशन मिल रहा है, वह कुपोषण को दूर रखने के लिए पर्याप्त है।"

जमीन अनवर का बेटा आदर्श बाल विद्यालय के आंगनवाड़ी केंद्र में आता हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमें सूखा राशन मिलता है। लेकिन जो दलिया वे देते हैं, हम अकसर उसे जानवरों को खिला देते हैं।"

अनवर ने कहा, "आंगनवाड़ी में पका हुआ दलिया मिलता था, तो ठीक रहता था। अब जब हमारा बेटा आंगनवाड़ी के लिए निकलता है तो हम उसके साथ कुछ लंच भेज देते हैं।"


उनके अनुसार, (महामारी से पहले) एक समय था जब घी तक की सप्लाई की जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा, "सरकार को इस मामले में सुधार के लिए कुछ करना चाहिए।"

शाहजहांपुर में आईसीडीएस के जिला कार्यक्रम अधिकारी युगल किशोर संगुरी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बच्चों के लिए सूखे राशन में दाल, दलिया, तेल और चावल दिया जाता है, ताकि उन्हें कुपोषण से बचाया जा सके।"

वाराणसी के जिला कार्यक्रम अधिकारी डीके सिंह ने बताया कि जिले में 45 हजार कुपोषित बच्चे और 4500 गंभीर कुपोषित बच्चे हैं। जिला अधिकारी उस संख्या को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

सिंह ने कहा, " जिले में सितंबर में राष्ट्रीय पोषण माह मनाया गया था. कुपोषण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए।" जिला अधिकारी ने यह आश्वासन भी दिया कि अधिकारी मलिन बस्ती में खुले आंगनबाड़ी केंद्र के मामले को देखेंगे और इसे ठीक कराने का प्रयास करेंगे।

कई राज्यों ने ताजा भोजन परोसना फिर से शुरू किया

हालांकि उत्तर प्रदेश ने अभी तक अपने आंगनवाड़ी केंद्रों में गर्म भोजन परोसना शुरू नहीं किया है। लेकिन मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और तमिलनाडु जैसे कई राज्यों ऐसे हैं जहां बच्चों को गर्म पका हुआ भोजन देना शुरू हो गया है।

झारखंड के पलामू जिले के चैनपुर ब्लॉक के किनी गाँव के पिपरधाबा आंगनवाड़ी में 40 साल की आंगनवाड़ी टीचर संध्या देवी ने बताया कि 15 दिसंबर, 2021 से केंद्र में बच्चों को पका हुआ खाना ही परोसा जा रहा है।

देवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हम उन्हें सुबह हलवा, गुड़-चना और दोपहर में चावल, दाल और सब्जी देते हैं।"

इसी तरह मध्य प्रदेश में विदिशा जिले के अहमदपुर गाँव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अर्चना अहिरवार ने कहा कि बच्चों को डाइट चार्ट के अनुसार पका हुआ भोजन दिया जाता है। "सुबह बच्चे नमकीन दलिया या खिचड़ी खाते हैं। दोपहर में वे पूरी सब्जी, खीर, दाल-चावल, लापसी और सत्तू खाते हैं।"

कोयंबटूर स्थित द इंटरनेशनल सेंटर फॉर चाइल्ड एंड पब्लिक हेल्थ के सदस्य एसआरएस सुब्रमण्यन ने कहा कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद से ही तमिलनाडु में सरकारी स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों में पका हुआ भोजन देना शुरू कर दिया गया था।


सुब्रमण्यन ने गाँव कनेक्शन को बताया "ताजे खाने में चावल, दाल, तेल, नमक, चने की दाल, हरा चना और अंडा होता है।"

देशभर में राइट टू फूड अभियान के लिए काम करने वाले भुवनेश्वर स्थित खाद्य कार्यकर्ता समीत पांडा ने कहा, "ओडिशा में आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों को सप्ताह में पांच दिन अंडे दिए जाते हैं। नाश्ते में स्प्राउट्स और चिक्की भी शामिल होती है। कुछ जिलों में बच्चों को रागी के लड्डू भी दिए जा रहे हैं। सप्ताह में एक बार, उन्हें दालमा (सब्जियों के साथ पकाया जाने गया चावल) भी दिया जाता है।"

पांडा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "केंद्रों पर पका हुआ भोजन बंद करने के पीछे महामारी के दौरान शारिरिक दूरी का पालन करने का तर्क दिया गया था। लेकिन यह राज्य सरकारों के लिए बच्चों को पौष्टिक आहार नहीं देने का बहाना नहीं बनना चाहिए, जो इस देश का भविष्य हैं," उन्होंने आगे कहा, "समाज के वंचित वर्गों के बच्चों को पोषण सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है।"

पांडा ने कहा, "शिक्षा और पोषण साथ-साथ चलने चाहिए। यह एक अच्छा विचार है और इसे ठीक ढंग से लागू किया जाना चाहिए। किसी भूखे बच्चे को पढ़ाने का कोई मतलब नहीं है!"

साइंस डायरेक्ट जर्नल में 1 मई, 2021 को प्रकाशित 'न्यूरोडेवलपमेंटल इफेक्ट्स ऑफ चाइल्डहुड मालन्युट्रेशनः न्यूरोइमेजिंग पर्सपेक्टिव' नामक एक अध्ययन में नोट किया गया था, "यह लंबे समय से माना जाता रहा है कि गरीब बचपन के पोषण और संबंधित सामाजिक और पर्यावरणीय कारक में गरीबी, भीड़, मातृ अवसाद, और बाल दुर्व्यवहार शामिल हैं। यह बच्चे के संज्ञानात्मक, भाषा और सामाजिक-भावनात्मक विकास पर काफी असर डालता हैं।"

सतीश गाडी गुरुग्राम के एक सीनियर फिजिशियन हैं। वह रिटायर होने से पहले भारतीय सेना में डॉक्टर और भारतीय रेलवे में मुख्य चिकित्सा निदेशक के रूप में काम कर चुके हैं। उन्होंने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बाल कुपोषण आखिर में जीवन में नकारात्मक परिणामों के एक दुष्चक्र की ओर ले जाता है।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "स्वास्थ्य में हमारे पास इतना निवेश है लेकिन जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है वहां देने में विफल रहते हैं। कम से कम जीवन के पहले छह सालों के लिए एक बच्चे को उचित पोषण दिया जाना चाहिए। आप सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर कितना भी कुछ क्यों न कर ले, अगर आने वाली पीढ़ियां बचपन में ही नाटे, कमजोर, कम वजन या कुपोषित हैं, तो बहुत कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है।"

यूपी जल्द ही गर्म भोजन फिर से शुरू करेगा

जब गाँव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश में बाल विकास सेवा एवं पुष्ट आहार विभाग (आईसीडीएस) की निदेशक सरनीत कौर ब्रोका से संपर्क किया, तो उन्होंने बताया कि अगले महीने जनवरी से आंगनबाड़ियों में गर्म पका खाना शुरू कर दिया जाएगा।

ब्रोका ने गाँव कनेक्शन को बताया, "उत्तर प्रदेश जनवरी में गर्म पके भोजन कार्यक्रम को फिर से शुरू कर देगा। सही तारीख जल्द ही घोषित की जाएगी।"

इससे पहले राज्य में बाल कुपोषण को खत्म करने के लिए अप्रयुक्त फंड पर रिपोर्ट करते हुए तत्कालीन निदेशक सारिका मोहन ने बताया था कि आईसीडीएस के साथ शिक्षा के दो विभागों के सहयोग से मिड डे मील योजना को आंगनवाड़ी योजना के साथ विलय करने की योजना पर काम चल रहा है।


ब्रोका ने हालांकि स्पष्ट किया कि सहयोग विभागीय स्तर पर नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर होगा।

ब्रोका ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मूल रूप से विचार सिंगल प्रोजेक्ट में बच्चों के लिए खाना पकाने का है। आंगनवाड़ी और मिड डे मील स्कूलों में एक ही चूल्हे पर एक साथ पकाया जाएगा। इससे काम में आसानी के साथ-साथ खर्चे में भी कमी आएगी।"

फिलहाल उत्तर प्रदेश के आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चे बेसब्री से पके हुए खाने के फिर से शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं।

लेख - प्रत्यक्ष श्रीवास्तव

शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) में रामजी मिश्रा, बाराबंकी (यूपी) में वीरेंद्र सिंह, वाराणसी (यूपी) में अंकित सिंह, कोयम्बटूर (तमिलनाडु) में पंकजा श्रीनिवासन, पलामू (झारखंड) में अश्विनी के शुक्ला के इनपुट के साथ।

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